मनमोहन सिंह 'बायोपिक' का महत्व / जयप्रकाश चौकसे

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मनमोहन सिंह 'बायोपिक' का महत्व
प्रकाशन तिथि : 29 दिसम्बर 2018


भूतपूर्व प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' नामक पुस्तक लिखी है। जिससे प्रेरित फिल्म जनवरी में प्रदर्शन के लिए तैयार है। इस फिल्म में अनुपम खेर ने सरदार मनमोहन सिंह की भूमिका अभिनीत की है, जो उनके कॅरिअर के लिए सबसे कठिन काम इसलिए था कि वे भारतीय जनता पार्टी के समर्थक रहे हैं और कांग्रेस के खिलाफ काम करते रहे हैं। अत: अनुपम खेर के मन में यह द्वंद्व रहा होगा। उन्हें अपने राजनीतिक विश्वास खारिज करके यह भूमिका अभिनीत करनी पड़ी होगी। हम कल्पना करें कि भाजपा की स्मृति ईरानी को किसी सीरियल में सोनिया गांधी की भूमिका करना हो तो उनके लिए यह कितना कठिन होगा कि जिसके खिलाफ दुष्प्रचार में वे हमेशा लगी रहीं, उसी को छोटे परदे के लिए अभिनीत करना पड़ रहा है। ज्ञातव्य है कि एकता कपूर के सीरियल 'सास भी कभी बहू थी' से उन्होंने अपनी पहचान बनाई थी। राजकुमार हिरानी द्वारा बनाई गई बायोपिक 'संजू' में संजय दत्त की भूमिका रणवीर कपूर ने अभिनीत की थी। गोयाकि नरगिस की 'हकीकत' में कपूर अफसाना शामिल होता रहा है। 'संजू' में सुनील दत्त को गरिमामंडित छवि प्रदान की गई। 'भाग मिल्खा भाग' में मिल्खा सिंह की दो सफलताओं के यथार्थ क्रम को ऊपर नीचे खिसकाया गया ताकि नाटकीयता पैदा की जा सके। पूरी ईमानदारी और तटस्थता से आत्मकथा लिखना कठिन काम होता है, क्योंकि मनुष्य के लिए खुद को समझ पाना ही सबसे कठिन होता है। प्राय: मनुष्य अपने गोपनीय विचार क्षणों में भी स्वयं से झूठ बोलता है। महात्मा गांधी और पंडित नेहरू ने अपनी अात्मकथाओं में स्वतंत्रा संग्राम की घटनाओं का वर्णन किया है। इसी तरह इन आत्मकथाओं का विषय समय रहा है। बायोपिक का उद्देश्य भी घटनाओं के माध्यम से समय को प्रस्तुत करना होना चाहिए।

सरदार मनमोहन सिंह वित्त संबंधी सारे शीर्ष पदों पर रहे हैं और उन्होंने इतना अध्ययन किया है कि उनके द्वारा अर्जित डिग्री और प्रमाण-पत्रों को लिखने मात्र में किताब का एक अध्याय लग सकता है। मनमोहन सिंह सादगी पसंद करने वाले सच्चे गांधीवादी रहे हैं। उनके पूरे परिवार का ही आचरण हमेशा आदर्श रहा है। उनकी सुपत्री भी शोध करके लिखने वाली चिंतक हैं। जब सरदार साहब वित्त सचिव थे, तब उन्होंने सरकारी वाहन का उपयोग नहीं करते हुए बस में यात्रा करना पसंद किया था। कुछ लोगों ने यह अशोभनीय प्रचार किया है कि वे खामोश रहने वाले प्रधानमंत्री थे। उन्होंने हर अवसर पर कम शब्दों में अपनी बात कही है। बड़बोले और बहुत अधिक बोलने वाले ने काम तो कुछ किया नहीं। पुरानी फाइलों से सामग्री निकालकर अपनी संकुचित विचारधारा की मिक्सी में उन्हें चलाया और मिक्सी से निकले माल को अपना बताने के प्रयास किए। यह संभव है कि कांग्रेस अगले आम चुनाव में सरदार मनमोहन सिंह को अपने प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित करें। अगर कांग्रेसी साहसी कदम उठाती है तो चुनाव में उनके दल की विजय की संभावनाएं अधिक व्यापक हो जाएंगी। भारत में आर्थिक उदारवाद के प्रणेता मनमोहन सिंह रहे हैं। आज भी दुनिया के सभी देशों की अर्थनीति की भरपूर जानकारी मनमोहन सिंह को है और वे भारत को सही दिशा में ले जाने में सफल होंगे। बहरहाल, फिल्म पूरी तरह से निर्देशक का माध्यम है। इस फिल्म में निर्देशक का दृष्टिकोण ही निर्णायक सिद्ध होगा। क्या इस फिल्म का प्रदर्शन आगामी चुनाव पर कुछ प्रभाव डाल सकेगा। दरअसल मतदाता पर अनेक प्रभाव पड़ते हैं परंतु ढाई गुणा ढाई के मतदान कक्ष में वह अपनी सहज बुद्धि का ही प्रयोग करता है।

मतदान का यह कक्ष गणतांत्रिक व्यवस्था का पूजा और प्रार्थना का स्थान होता है। इसी जगह की गई प्रार्थनाएं बाद में दशों दिशाओं से गूंजती हैं। यह देखना है कि फिल्मकार अपने द्वारा चुने हुए महान विषय के साथ कितना न्याय करते हैं। इस तरह यह फिल्म अत्यंत महत्वपूर्ण है। संकीर्णता की शक्तियों को पराजित करने के लिए मनमोहन सिंह की वापसी आवश्यक है।