मनमौजी किशोर / नवल किशोर व्यास

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मनमौजी किशोर


किशोर कुमार बहुआयामी थे। अभिनेता, निर्माता, निर्देशक, गीतकार, संगीतकार सभी कुछ थे पर जो पक्ष सबसे ज्यादा सबल और लोकप्रिय हुआ वो था उनका गायक होना। इस पर बहुत बात हुई है, बहुत लिखा गया है पर उनके अभिनय और दूसरे पक्षो पर बात कम हुई है। किशोर कुमार को गायक ही बनना था, अभिनय में उनकी कोई बड़ी दिलचस्पी न थी। कुंदन लाल सहगल के बड़े मुरीद थे तो एक दिन बड़े भाई अशोक कुमार के पास मुम्बई पहुच गए कि किसी भी तरह सहगल साहब से एक बार मिलवा दें। अब मुम्बई आ ही गए तो बिना इच्छा के भी किशोर कुमार को फिल्मों में काम करना पड़ा। अशोक कुमार के भाई होने का पूरा फायदा मिला। बहुत से निर्माता किशोर के बहाने अशोक कुमार को खुश करने की जुगत करते। इधर किशोर कुमार ने भी सोचा कि फिल्मों में काम करूंगा तो गाने भी तो गाने को मिलेंगे। इस चक्कर में धडाधड फिल्में करते गए। हालत ये हुई कि फिल्मो की शूटिंग पूरी करने के लिए एक सेट से दूसरे सेट भागना पड़ता। इतने व्यस्त हुए कि भूल जाते की कौन सी फिल्म है। इमोशनल सीन में कॉमेडी और कॉमेडी में इमोशन कर बैठते। निर्देशक उन्हें स्कूल मास्टर की तरह लगते जिनकी टोकाटोकी से वे दुखी हो जाते और इस तरह से धीरे-धीरे अभिनय से मोहभंग होता रहा और गायकी पर ध्यान ज्यादा लगता गया। बीच-बीच में कुछ फिल्मों में दिखते जैसे कि क्लासिक कल्ट पड़ोसन में दिखे पर अभिनय अपनी मर्जी और सुविधा से ही करते। खुले जंगल का राजा थे वो, रिंगमास्टर के हाथ में जाना नही चाहते थे। इस चिढ़ के कारण सत्यजीत राय तक को फिल्म पारस पत्थर के लिए मना कर दिया क्योंकि उन्हें अच्छे निर्देशकों और उनकी रचनात्मक टोकाटोकी का भय हो चला था।

एक चीज जिसकी वजह से उनको सनकी और पागल कहा गया वो था उनका प्रकृति से प्रेम। मुम्बई उन्हें रास नही आ रही थी। अक्सर कहते कि कौन इस रूखे-सूखे, मूर्ख, दोस्तो से खाली और मतलबपरस्त शहर में रहना और मरना चाहेगा। अपने शहर खण्डवा न जा पा रहे थे तो खण्डवा को ही उन्होंने अपने आसपास लाने की सोची। सनक चढ़ी कि बंगले के आगे एक छोटी नदी बनाऊ। वेनिस की गलियो की तरह उसमे नाव चलाऊ। लोकल निगम के अधिकारियों की ना-नुकर के बाद भी मजदूरों से काम शुरू कराया पर कुछ दिन बाद ही खुदाई में पानी की जगह कंकाल निकलने शुरू हो गए। भाई अनूप कुमार चिढ़ते-कुढ़ते गंगाजल लाये और काम बंद करा हवन-पूजा शुरू करा दी। किशोर का वेनिस-स्वप्न ध्वस्त हुआ। 

इन्ही दिनों एक पत्रकार आई और सवाल पूछा- आप अकेले घर मे बन्द बन्द क्यों रहते है? फिल्मी पार्टी में क्यों नही दिखते? किशोर बोले-में कहा अकेला हूँ। आओ में तुम्हे अपने दोस्तों से मिलाता हूँ। बगीचे पहुंचे और पेड़ो की तरफ देखकर कहा- ये है मेरे दोस्त। जनार्दन, रघुनन्दन, गंगाधर, जगन्नाथ, बुद्धाराम। इस क्रूर दुनिया में ये ही मेरे सच्चे दोस्त है। पत्रकार ने अगले दिन छापा- किशोर कुमार पूरी रात पेड़ो पर बाहें डाल बगीचे में सोते है। गहरे आदमी की गम्भीर बात को सनक करार दे दिया गया। ऐसा ही एक बार फिर हुआ। एक इंटीरियर डेकोरेटर उनके घर आये। मई-जून की मुम्बइया उमस में थ्री पीस सूट पहने अमेरिकन एक्सेंट में किशोर को ऐस्थ्रेटिक, डिजाइन, विजुअल सेंस और बाकी चीजो पर ज्ञान बांट रहे थे। आधे घण्टे तक उसको सुनने के बाद किशोर बोले-मुझे बहुत साधारण डिजाइन चाहिए। ऐसा करो-घर में पैर डूबे रहे इतना पानी कर दो। सोफे की जगह बोट लगाओ। सेंटर में बड़ी रस्सी बांधो ताकि बोट को वहां बांध कर चाय पी सके। दीवारों पर पेंटिंग की जगह कौवे टांग दो और छत पर पँखो की जगह उछलकूद करते बन्दरो को बिठा दो। डेकोरेटर हतप्रभ। हाजिर जवाब और विनोदी किशोर का ये अपना ढंग होता था किसी को मना करने का। साउथ में मिस मैरी फिल्म की शूटिंग को गए तो उन्हें पांच दिन तक उन्हें होटल में बिठाए रखा, शूटिंग न हुई। गुस्से में किशोर ने अपने बाल मुंडवा लिए- बोले-अब कर लो शूटिंग। कोई उन्हें 'टेकन फोर ग्रांटेड' ले, ये उन्हें बर्दाश्त न था।

शादियां भी कहा कम चर्चा में रही। चार शादियां की और सबसे जुड़ने और टूटने के उनके अपने कारण रहे। पहली पत्नी रूमा देवी से शादी इसलिए टूटी क्योंकि वो करियर बनाना चाहती थी और किशोर घर। बीमार मधुबाला से शादी हुई और नौ साल तक कभी उसकी देखभाल में व्यस्त रहे तो कभी उसके बहुत पीड़ा के पलो में भी स्टेज शो के लिए दुनिया घूमते रहे। मधुबाला के बाद तीसरी शादी की योगिता बाली से जिसे उन्होंने बाद में मजाक होने जैसा बताया और चौथी शादी हुई अभिनेत्री लीना चंद्रावरकर से जो कि उनके बेटे अमित कुमार से भी छोटी थी पर जो मन कर गए तो कर गए।

वो मनमौजी थे। मन हो तो बिना सोचे कोई भी काम कर जाते थे और मन न हो तो कोई भी ताकत उनसे कोई काम नही करा पाती थी। प्रतिभा का अतिरेक थे और सच को उसके सारे कड़वेपन के बावजूद परोसने वाले साहसी भी। कम जिंदगी जी पर हम सब के लिए भरपूर आनन्द छोड़ गए।