मनरुपा / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
सोनमनी के कनियैनी के नाम छेलै मनरुपा। ब्याह के बाद सिर्फ़ चार-पाँच दिन ही ससुरारी में रहै के रिवाज छेलै। मनरुपा के उमर भी चौदह-पन्द्रह वरसोॅ से बेशी नै होतेॅ लेकिन कनियैनी रूपोॅ में पिन्हला-ओढ़ला के बाद भरली-पुरली जवान नांकी देखै में लागै। देखै में सास सीतेॅ नांकी सुन्नर अपरूप लागै छेलै। बुझैलेॅ होशियारोॅ कम नै छै। तीनेॅ-चार रोजोॅ में सास-ससुर केॅ मोॅन जीती लेलकै।
विदा होयकेॅ जबेॅ मनरुपा नैहरोॅ आवेॅ लागलै तेॅ सीता के आँख डबडबाय गेलै। भरी आँखी लोर सीता मनरुपा केॅ विदा करलकै। चाहै छेलै सीता ने कि घुरलेॅ सालें गौना कराय केॅ पुतोहु बसाय लौं मतुर मनरुपा के माय-बाप कम सें कम तीन सालोॅ के पैन्हेॅ गौना दै लेॅ तैयार नै होलै। समधी बिहारी के जिद करला पर सीधे कहलकै-"घोॅर बसाय के उमर आभी नै होलोॅ छै दू में से केकरोॅ। तीन सालोॅ के पैन्हेॅ गौना रो जिद सें कोय फायदा नै। हम्में मानियोॅ जाबेॅ पारै छी मतुर समधिनी नै मानथौं।"
गौना तीन साल तेॅ टरियै गेलै मतुर भागोॅ में बाकी बचलोॅ जे कुछ्छु दुख भोगना छेलै ओकरा के टारतिहै। गाँमोॅ में ऐन्होॅ कुछ्छु लोग छेलै जेकरा सीता के बढ़ती सें ईर्श्या हुअेॅ लागलोॅ छेलै। सोनमनी के बढ़िया सें रहबोॅ, खैवोॅ-पीवोॅ ऐन्हां लोगोॅ के दुखोॅ रो कारण छेलै।
बैशाखोॅ में भयंकर लू चली रेल्होॅ छेलै। धरती दिन भर आगिन नांकी तपै, रात केॅ उमस सें व्याकुल सौसे गाँव खुल्ला अकासोॅ में खटिया पारी केॅ केन्होॅ केॅ सुतै।
ऐन्हेॅ में एक रात, हाथोॅ केॅ हाथ नै सूझै वाला अन्हरिया छेलै। खाय-पीवी केॅ बिहारी आरो सोनमनी बथानी पर सुतलोॅ छेलै आरो सीता ऐंगना में खटिया पर। निशि भगेॅ रात, नीनोॅ में बेसूध सौसे गाँव सुतलोॅ छेलै कि कोय सीता के घरोॅ में आगिन लगाय देलकै। उतरवारी भंडार कोना सें आगिन उठलोॅ छेलै, यही लेलोॅ तुरत देखाय नै पड़लै आरो दोसरोॅ बात ई भेलै कि सौसे गाँव नीनोॅ में सुतलोॅ छेलै, जबेॅ आगिन मुन्हा पर पहुँची के लहकै लागलै, आरो गाय, भैंस हरकी केॅ खूट्टा ठियां डिकरै-उछलेॅ, कूदेॅ लागलेॅ तबेॅ बथानी पर बिहारी के नींन टूटलै। घरोॅ में आगिन लागलोॅ देखी केॅ हवासेॅ उड़ी गेलै बिहारी के. मुँहोॅ सें पैन्हेॅ तेॅ बोलिये नै फुटलै। हौवाय उठलै बिहारी तबेॅ सोनमनी के नीन टूटलै।
सोनमनियै हल्ला करलकै-" आगिन लागलै हो। दौड़ोॅ हो, दौड़ोॅ ह अ... हो। तब ताँय सीता भी घरोॅ सें बाहर निकली चुकलोॅ छेलै। गाँव वाला भी चारोॅ तरफोॅ सें जुटी केॅ जेनां-तेनां जेकरा हाथोॅ में आगिन बुताय के पानी ढ़ोय रोॅ जे साधन बाल्टी, घैलोॅ मिललै, दौड़ी पड़लै। मतुर एक्केॅ बात दुखोॅ रोॅ छेलै कि सौसे टोला में एक्के ठो इनारा छेलै। पाँति बनाय केॅ जबेॅ पानी खींचे लागलै तेॅ ओकरोॅ पानी सुक्खी गेलै।
हाहाकार मचलोॅ छेलै। गाय-माल खोली केॅ बिहारी खूट्टैेॅ लागलोॅ गिरी केॅ बेहोश होय गेलोॅ रहै। सोनमनी धरती पर लोटी-लोटी भोकार पारी केॅ कानी रेल्होॅ छेलै। सीता केॅ मुकमुकी लागी गेलोॅ छेलै; नै आँखी में लोर नै मुँहोॅ में बोली। सौसे बाखर जरी केॅ राख होय गेलोॅ रहै। काठ, कोरोॅ में आगिन लहकी रेल्होॅ छेलै। ई तेॅ धन्न मिंया टोली रोॅ मिंया पोखर छेलै आरो धन्न मिंया सीनी जेॅ पोखरी सें पानी तब तांय देतें रहलै जब ताँय आगिन के एक्कोॅ लुत्ती रहि गेलै। ऐकरा सें, सबसें बड़ोॅ फायदा ई होलेॅ कि सिरिफ सीतेॅ के घोॅर जरी केॅ रहि गेलै। गाँव में आरो केकरोॅ घोॅर जरै सें बची गेलै।
भियान होय गेलोॅ छेलै। बैशाखोॅ के भियान वहेॅ रंग लागलै सीता परिवारोॅ केॅ कि सुरुज भगवान रातकोॅ आगिन लैकेॅ फेरू आबी गेलोॅ छै, रातके नांकी लाल-लाल लहकतें हुअें। घरोॅ बगलोॅ में एक ठो बड़का नीमोॅ के गाछ छेलै। वही गाछी नीचूं में तीनोॅ प्राणी बैठलोॅ छेलै। चारोॅ तरफें घरोॅ सें निकाललोॅ सामान बिखरलोॅ छेलै। तीनूं नौकरोॅ केॅ सीता गाय-मालोॅ केॅ चराय लेॅ भेजी केॅ खुद आपनेॅ उठलै आरो आगिन-पानी सें सरगद, इदगिद होलोॅ घरोॅ में घूसलै। पीछू-पीछू बिहारी आरो सोनमनी भी एैलेॅ।
चौरोॅ सें भरलोॅ कोठी आगिन के तावोॅ सें दू फाँक होय गेलोॅ छेलै। ओकरा सें आभियो धुइयाँ उठि रेल्होॅ छेलै। धान, कपड़ा, लत्ता सभ्भेॅ जरी केॅ स्वाहा होय गेलोॅ रहै। जे बचलोॅ रहै उ$ धुइयाँ के गंधोॅ सें बेस्वाद-बर्बाद होय गेलोॅ छेलै। जरी केॅ खोयनोॅ होय-होय केॅ बाँस-बत्ती टूटी-टूटी गिरी रेल्होॅ छेलै। सौसे घोॅर, दिवार आगिन आरो धुइयाँ सें कारोॅ-कारोॅ होय गेलोॅ छेलै। उजरबन्हाँ घरोॅ के ई हाल देखी केॅ सोनमनी बुक नै बान्हेॅ पारलकै आरो कानै लागलै। सीता बेटा केॅ बच्चा नांकी हाथ पकड़ी केॅ नीमोॅ गाछी ठियां छाहुर में लै जायकेॅ बैठेलकै। सच्चेॅ में भंक लोटी रेल्होॅ छेलै। सीता बेटा सें कहलकै-"बेटा, ऐकरैह दुर्दिन कहै छै। मतुर ऐन्होॅ दुक्खोॅ में आदमी केॅ हिम्मत सें काम लेना चाहियो। आगिन लागलोॅ नै छै, आगिन लगाय देनें छै। दुश्मनोॅ केॅ जरेॅ दहोॅ, नरुआ-जरलोॅ छै, पक्का बनतै।" हमरोॅ बढ़ती देखलोॅ नै गेलै। ऐन्होॅ में जौं कानबेॅ-पीटबेॅ तेॅ दुश्मन आरो खुशेॅ होतै। "
" मतुर माय ...? अतना पैसा कहाँ से ऐतै। सोनमनी सवाल करलकै।
बड्डी हिम्मत आरो, साहस भरलोॅ आवाज में सीता कहलकै-"जोॅन आरो मिस्त्राी तोंय देखोॅ। काल्ह सें काम शुरू करोॅ। सब तोड़ी केॅ पवस्त करी दहोॅ। जत्तेॅ बढ़िया पक्का रोॅ घोॅर बनाबेॅ पारोॅ, बनाबोॅ। नीचें ईंटोॅ, सीमेंट, चूना, सुरकी पर आरो उपर छौनी खपड़ा के. सभ्भेॅ घरोॅ में छात होना चाहियोॅ। छात ऐन्होॅ कि आदमी खड़ा होय जाय।"
"माय ...?" अचरज भरी आँखोॅ से देखलकै सोनमनी ने माय सीता केॅ जिनकोॅ आँखी में काहीं कोय डोॅर, चिन्ता नै छेलै। गोस्सा आरोॅ संकल्प के एक ऐन्होॅ रेखा तैरी रहलोॅ छेलै हुनका आँखी में कि सोनमनी साहसोॅ से भरी गेलै।
"नरुआ जरलै, पक्का बनतै। आपन्हेॅ आदमी ई कुकृत करनेॅ छै। ओकरा छाती पर मूंग दलोॅ। आगू बढ़ी केॅ देखाबोॅ।"
तब तांय कैयेक आदमी अपना-अपना घरोॅ सें खाना-पानी लैकेॅ आबी गेलोॅ छेलै। खाना खैला पर जबेॅ सभ्भेॅ चल्लोॅ गेलै तबेॅ एकांत पाबी केॅ सीता बोललै-" गाय-माल फेरू होय जैतेॅ। लगवौन माल छोड़ी केॅ सब बेची लेॅ। सात गो बाछा, चार बाछी में तेॅ आधोॅ से बेशी घोॅर पूरा होय जैतै। दूध के बिकरी सें भी अच्छे पैसा संघरलोॅ छै। सब काम होय जैते, तोंय निराश नै हुओॅ सोनमनी।