मनाेरंजन उद्योग आैर उत्सव की छुट्टियां / जयप्रकाश चौकसे

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मनाेरंजन उद्योग आैर उत्सव की छुट्टियां
प्रकाशन तिथि : 29 जुलाई 2014


सिंनेमा के प्रारंभिक दौर में सिनेमा मालिक निर्माता को अग्रिम राशि देता था। चंदूलाल शाह को एक सिनेमा मालिक ने ईद के अनुरूप कथा पर फिल्म बनाने के पैसे दिए परंतु शाह ने उसे सामाजिक फिल्म दे दी आैर उसने मुकदमेबाजी की धमकी देकर फिल्म प्रदर्शित की क्योंकि समय कम था परंतु सामाजिक फिल्म की अभूतपूर्व सफलता के कारण उसने मुकदमेबाजी नहीं की थी। वह दौर गांधी का धर्मनिरपेक्षता का दौर था आैर सिनेमा उद्योग हमेशा ही धर्मनिरपेक्ष रहा है। मुस्लिम निर्माता भी दिन के पहले शॉट पर नारियल फोड़ते रहे हैं आैर हिंदू तथा पारसी निर्माता भी रोजा अफ्तारी यूनिट के साथ करते रहे हैं। हिंदू राज कपूर की फिल्मों की ताकत ख्वाजा अहमद अब्बास की कथाएं तथा नरगिस रही हैं आैर मेहबूब खान ने मेहता की लिखी फिल्म बनाई है। यहां तक कि वी. शांताराम ने 'पड़ोसी' में एक हिंदू अभिनेता को मुस्लिम पात्र करने को कहा आैर मुस्लिम अभिनेता से हिंदू पात्र निभाने काे, गोयाकि धर्मनिरपेक्षता के निर्वाह को प्राथमिकता दी गई परंतु विगत सप्ताह फिल्म उद्योग में कुछ लोगों ने 'बी.जे.पी. कोष्ठ' बनाने का प्रयास करके न्यौता दिया है कि 'मुस्लिम कोष्ठ' भी बने गाेयाकि फिल्म उद्योग की धर्मनिरपेक्षता में दरार डालने के प्रयास प्रारंभ किए गए हैं।

फिल्म उद्योग बॉक्स ऑफिस के नियमों पर चलता है आैर कुछ लोग इसकी सीमा में गुणवत्ता को प्रमुखता देते रहे हैं। कोई भी निर्माता गुणवत्ता वाले कलाकार या तकनीशियन का धर्म नहीं पूछता। सूरज बड़जात्या ने अपनी पहली तीन सफल फिल्में सलमान खान के साथ बनाईं आैर अब वे अपनी नवीनतम फिल्म "प्रेम रतन धन पायो' भी सलमान के साथ बना रहे हैं। सितारा हैसियत आैर गुणवत्ता ही चयन का आधार रहते हैं आैर जब भी किसी ने इसके परे जाने का प्रयास किया है तब उसके हाथ असफलता ही लगी है। मसलन चेतन आनंद जैसे महान निर्देशक ने अपनी प्रेमिका प्रिया राजवंश को बार-बार दोहराया तो असफल रहे आैर उन्हें अपने अंतिम वर्षों में छोटे परदे के लिए काम करना पड़ा।

आज कल फिल्म निर्माण के पहले ही यह किया जाता है कि उसका प्रदर्शन किस धार्मिक उत्सव के समय किया जाए ताकि अतिरिक्त छुट्टी को बॉक्स ऑफिस पर भुनाया जा सके। दीपावली पर सबसे अधिक शाहरुख खान अभिनीत फिल्मों का प्रदर्शन हुआ है तथा इस वर्ष भी उनकी फराह निर्देशित 'हैप्पी न्यू ईयर' दीपावली पर लग रही है। अािमर खान विगत कुछ वर्षों से क्रिसमस पर फिल्में लगाते रहे हैं आैर इस वर्ष भी उनकी राजकुमार हीरानी निर्देशित "पीके' का प्रदर्शन होने जा रहा है।

बाजार आैर विज्ञापन शासित काल खंड में धर्म के आधार पर नहीं वरन् अतिरिक्त छुट्टियों में अधिक व्यवसाय के आधार पर फिल्मों का प्रदर्शन किया जाता है क्योंकि सारी कमाई ही छुट्टी आधारित है। लंबे समय तक फिल्में मनोरंजन का एकमात्र साधन रही, अत: कभी भी प्रदर्शन किए जाने पर व्यवसाय होता था। आज दर्शक के पास विकल्प है, अत: उसे लुभाने के लिए फिल्मकार छुट्टियों वाला सप्ताह खोजता है। इतना ही नहीं विगत दशक में सामाजिक जीवन में भी पश्चिम की तर्ज पर सप्ताहांत महत्वपूर्ण हो चुका है। पांच दिन काम के बाद दो दिन मौज-मस्ती के हाेते हैं। रिश्तेदारों से मिलना-जुलना भी छुट्टी के दिन ही होता है। आज की जीवन शैली देखकर लगता है कि मनुष्य सप्ताह में दो दिन ही जी रहा है आैर पांच दिन काम करते समय 'मरते हुए जीता है'। अगर आप सानंद काम करें तो पूरा सप्ताह ही जी भरकर जीते हैं। जाने क्यों काम को मौज-मस्ती से अलग करके देखा जाने लगा है। अगर आप कार्य को धर्म मान लें तो संभव है कि छुट्टियां "गैर-धार्मिक' हो जाएं परंतु काम तो अब महज रस्म अदाएगी होकर रह गया है। विदेशों में मृत शरीर को विशेष कक्ष में रखा जाता है आैर छुट्टी के दिन ही अंतिम क्रिया संपन्न की जाती है कि शवदाह के लिए समय नष्ट हो। धनाढ्य व्यक्ति की मृत्यु को चार दिन तक गुप्त रखा जाता है कि शेयर बाजार में उसका असर नहीं हो। हम किस विचित्र काल खंड में जी रहे हैं कि मृत्यु को भी छुट्टी का इंतजार करना पड़ सकता है।