मनुष्य और शहर : भूमिकाओं का उलटफेर / जयप्रकाश चौकसे

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मनुष्य और शहर : भूमिकाओं का उलटफेर
प्रकाशन तिथि : 24 मई 2013


संजय लीला भंसाली की प्रेम-कथा का नाम कृष्ण लीला नहीं वरन 'रामलीला' है। शायद 'सावरिया' के बाद वे सांवले से ही बच रहे हैं। इस प्रेम-कथा में 'बैंड बाजा बारात' के लिए प्रसिद्ध रनवीर सिंह नायक हैं और सावरिया रणबीर कपूर की भूतपूर्व प्रेमिका दीपिका पादुकोण नायिका हैं। फिल्म में 'देवदास' से भी बड़े सेट लगाए जा रहे हैं, क्योंकि भव्यता के प्रति भंसाली का आग्रह इतना अधिक है कि उनके सीरियल 'सरस्वतीचंद्र' में भी भव्य हवेली है यद्यपि उसके मालिक को बार-बार गरीब कहा गया है। भंसाली का गरीब हवेली में ही रहता है, जैसा यश चोपड़ा की एक फिल्म में ड्राइवर की लड़की अमेरिकन कपड़ों में नजर आती है।

बहरहाल, सिनेमा में क्रांति लाने का दावा किसी जमाने में भंसाली करते थे और आजकल यह दावा अनुराग कश्यप करते हैं। उनकी आगामी फिल्म 'बॉम्बे वेलवेट' में नायक रणबीर कपूर हैं, जो एक स्ट्रीट फाइटर की भूमिका करने जा रहे हैं। शायद बॉक्ंिसग भी करें। ज्ञातव्य है कि अमिताभ बच्चन स्ट्रीट फाइटर की भूमिका मनमोहन देसाई की 'नसीब' में कर चुके हैं। इस फिल्म की पृष्ठभूमि छठे दशक का बंबई है, जो फिल्म की कथा के अनुसार महानगर बनने की प्रक्रिया से गुजर रहा है। अभी तक रणबीर कपूर एकमात्र कलाकार रहे, जो जिम जाकर अपने शरीर में मांसपेशियों की मछलियां नहीं गढ़ रहे थे। क्या इस फिल्म के स्ट्रीट फाइटर की भूमिका के लिए रणबीर कपूर 'मछलियां' गढ़ेंगे? ज्ञातव्य है कि जो तेज गेंदबाज सितारा बनने के बाद जिम जाता है, उसकी गेंदबाजी की गति कम हो जाती है। बकौल सलीम साहब एक क्रिकेट खिलाड़ी का एकमात्र रियाज क्रिकेट है। उसे जिम जाने की जरूरत नहीं। पाकिस्तान के शोएब अख्तर भी इस बात से सहमत हैं कि जिम जाकर उन्होंने गलती की।

बहरहाल, अनुराग की स्ट्रीट फाइटर भूमिका में रनवीर सिंह ज्यादा फिट नजर आते और प्रेम-कथा में रणबीर कपूर का जवाब नहीं है, परंतु जाने 'सावरिया' के बनते समय ऐसा क्या हुआ है कि रणबीर कपूर ने अपने मेंटर भंसाली के साथ कोई फिल्म नहीं की और न ही सहनायिका सोनम कपूर के साथ काम किया। बहरहाल, 'रामलीला' और 'बॉम्बे वेलवेट' अपनी तय टीम के साथ ही बनेंगी। इम्तियाज अली की सिफारिश पर रणबीर कपूर ने 'बॉम्बे वेलवेट' स्वीकार की है। उसने 'रॉकस्टार' के लिए जो मेहनत की थी, वैसी ही मेहनत वह 'बॉम्बे वेलवेट' के लिए भी करेगा। वह एक समर्पित कलाकार है और बॉक्स ऑफिस की चिंता नहीं करता वरना अनुराग बसु की 'बर्फी' कैसे करता।

गौरतलब यह है कि अमिताभ बच्चन भी 'नसीब' में स्ट्रीट फाइटर की भूमिका के लिए जिम नहीं गए थे और उस समय वे छरहरे बदन के व्यक्ति थे। उन्होंने अपने अभिनय से ही स्ट्रीट फाइटर की छवि के साथ न्याय किया था। रणबीर कपूर भी बिना जिम गए इस तरह का प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। मार्लिन ब्रेन्डो भी 'ऑन द वाटरफ्रंट' में फाइटर थे, परंतु वे कभी जिम नहीं गए। कुछ कलाकार भूमिका के लिए अपने मन को तैयार करते हैं, संवाद अपने अवचेतन में ध्वनित होता सुनते हैं और कैमरा उनके भीतर उठ रहे तूफान को कैद कर लेता है। सभी कलाकारों के हाथ में रिवॉल्वर शोभा नहीं देती, लगता है कि गिटार पकड़े हैं और कुछ कलाकारों की आंखों में ऐसी हिंसा होती है कि लगता है, वे कद्दू से भी हत्या कर सकते हैं।

दरअसल, सड़क पर युद्ध हिम्मत से लड़ा जाता है और उससे बड़ा कोई हथियार नहीं। सलीम साहब की 'नाम' में एक स्थान पर दुबले-पतले संजय दत्त को चंद हथियारबंद गुंडे घेर लेते हैं। वह कहता है कि वह पहले आगे आने वाले एक व्यक्ति को मार देगा, फिर भले ही सब मिलकर उसे मारें, परंतु पहले कौन आगे आता है। हर गुंडे को यकीन हो जाता है कि यह पहले हमलावर को मार देगा। यह यकीन दिलाना ही सिनेमा है, यही कला है। रणबीर कपूर को स्ट्रीट फाइटर की भूमिका के लिए अपने शरीर में मांसपेशियों को पैदा करने की आवश्यकता नहीं है। मन में तूफान जगाने से ही काम बन सकता है। इस फिल्म में महानगर बनने की पृष्ठभूमि है तो मुंबई ही नायक है और एक शहर का बदलना बहुत बड़ी घटना होती है। यह केवल भव्य गगनचुंबी इमारतों से नहीं स्पष्ट होता। सड़कों के चौड़ा होने से नहीं पता चलता, तवायफों और दलालों की बढ़ती मांग से जरूर कुछ आभास होता है, परंतु असली परिवर्तन तो यह कि सीमेंट की सड़कों से सख्त पड़ोसी का दिल हो जाए और जनाजों में केवल निकट रिश्तेदार ही बेमन से शामल हों - संवेदनाओं के घटने से जाहिर हो जाता है कि यह महानगर है।

जब आपको घरों से अधिक लोग सड़कों पर सोते नजर आएं, भिखारियों की संख्या बढ़ जाए और अपराधी की हिम्मत बढ़ जाए, समझ लीजिए आपका शहर महानगर हो गया है। जब मनुष्य के व्यवहार में क्रूरता आ जाए और मानवतावादी संस्थाएं खंडहर नजर आएं, जब शहर कभी सोए ही नहीं, समझ लीजिए वह वयस्क हो गया, महानगर हो गया।