मनोजगत् के नए अध्याय खोलती कविताएँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
प्रकट रूप से देखा जाए तो हम संसार के बारे में जानने के लिए सर्वदा उत्सुक रहते हैं। पडोस के बारे में हमारी चिन्ता उत्सुकता के भाव वाली होती है। ईर्ष्या-भाव हुआ तो, चटखारे लेने वाली, शत्रुता हुई तो हरदम शंका से लबरेज़। हम जिसके बारे में सबसे कम जानते है, जानना भी नहीं चाहते, समय ही नहीं है जानने का, वह हम स्वयं हैं। हमें अपने भीतर झाँकने का समय ही नहीं है। जो अपने बारे में जानने का प्रयास करता है, वह उसे बाहर प्रकट करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। दिओल परमजीत का काव्य-संग्रह 'हवा में लिखी इबारत' ऐसी ही कविताओं का संग्रह है, जिसमें खुद की अन्तर्यात्रा है। गहन से गहनतम कोनों तक की पड़ताल है। इनकी पंजाबी रचनाओं का अनुवाद किया है सुभाष नीरव ने। नीरव स्वय अच्छे कथाकार और कवि हैं। पंजाबी की लघुकथाओं, कहानियों और उपन्यासों का हिन्दी पर्याप्त अनुवाद किया है। काव्य की गहराइयों तक भी इनकी पहुँच है। यह सत्य और तथ्य मैं पिछले 32 वर्षों से देख रहा हूँ। कविता का अनुवाद करना एक कठिन कार्य है, नीरव जी ने इसको भी कुशलतापूर्वक निर्वाह किया है।
दिओल की छोटि कविताओं और क्षणिकाओं में वही त्वरा मिलती है, जो हरकीरत 'हीर' की रचनाओं में देखने को मिलती है। काव्य की अन्तरंगता का गर्भनाल जैसा जुड़ाव होता है, यह जुड़ाव उतना ही गहरा है जितना -कोख हरी होती है / तो कितना चाव चढ़ता है / माँ को। (औलाद-11)
कवयित्री के–'कोख हरी होना, चाव चढ़ना'-मुहावरों पर ध्यान देना ज़रूरी है। यह भावपूर्ण सर्जन का मूलाधार है।
समय के ताप से ही रचना मुकम्मल होती है। ये पंक्तियाँ देखिए-
थोड़ा वक़्त लगता है / गहरे पानियों में / उतरते समय... (दिलासा'-12)
कविता यूँ ही नहीं बन जाती। उसमें अनुभूति की आँच होना ज़रूरी है, आत्ममंथन ज़रूरी है-
कच्ची-पक्की कविता / तेरे अहसास के साथ / कुन्दन हो जाती... (कविता-13)
प्रेमानुभूति की गहनता वियोग के क्षणों में ही पता चलती है। पिंघलना और फिर वाष्पित होकर धरती और आकाश को छू लेना ही प्रेम की पराकाष्ठा है, जिसको समझना और महसूस करना हर शख़्स के लिए सम्भव नहीं-
तू क्या जाने / मैं कैसे वाष्प बन / छू लेती हूँ अम्बर और धरती (तरलता-14)
समय आदमी को बहुत कुछ सिखाता है, जो अपना अस्तित्व बचाए रखना चाहता है, वह इन्हें भूलकर आगे बढ़े तो उचित है-
समय के साथी / परवाह नहीं करते / गहरे घावों की... (समय के साथी-18)
'चूड़ियाँ' कविता में हाँक सुनकर गली में जाना और दाम पूछकर वापस आना, गहरी विवशता का चित्र प्रस्तुत करती है-
'चूड़ियाँ / मेरे माप की न थी / पूरी न आई...' (19)
समय का बदलाव व्यक्ति को कितना अवश कर देता है। हैं। देओल की कविता में दिए की रौशनी और चुँधियाती रौशनी के प्रतीक बहुत प्रभावशाली हैं। जो माँ दिए की लौ में छोटी-सी सुई ढूँढ लेती थी, आज उसकी परनिर्भरता देखिए–
चुँधियाती रौशनियों में / बच्चों को / आवाज़ देती है माँ-'ढूँढके दो रे / मेरी ऐनक... (झरोखा 21)
'आवागमन' में जीवन का यथार्थ और अध्यात्म दोनों को बहुत खूबसूरती से पिरोया है-
मिट्टी / मित्ती संग खेलती गई / मिट्टी में समा गई. (22)
'खुशबू' का सौन्दर्यबोध तो, नवीन कल्पना से रंजित और बहुत अनूठा है-
मिट्टी में से / रौशनी झरे / हवाओं में मिलकर / देहों की खुशबू महके—। (23)
आकर्षण, वक़्त, कविताओं का कथ्य और अधिक गहरा है। 'चिंगारी' हमारे जीवन के स्याह पक्ष को बहुत तीव्रता से अभिव्यक्त करती है-
सब कुछ / राख कर गई / क्रोध और ईर्ष्या की चिनग (29)
आहट, बुज़ुर्ग, इन्तज़ार मार्मिक कविताएँ हैं। 'घर' कविता की गहराई दर्शनीय है। यह जीवन की विडम्बना को चित्रित करती है-
अब मैं / बंगलों में घिरी / तलाश रही हूँ / तेरा घर ... मेरा घर... (35)
चिड़िया, नमक, दरवाज़े, शब्द, झील जैसी, धुआँ जैसी बहुत-सी कविताएँ हैं, जो बरबस पाठक को भावों की गहरी नदी में अवगाहन कराती हैं।
कौवे और बाज की प्रतीकात्मकता का प्रयोग दत्र्शनीय है-
चिड़िया को / खुले अम्बर में / उड़ने नहीं देते / काले कौवे और बाज (चिड़िया, -37)
धुआँ की ये पंक्तियाँ देखिए-
धुएँ के बहाने / रोना / मुझे बहुत अच्छा लगता है। (47)
'देवदासी' कविता की प्रतीकात्मकता भावों की गहनता को और तीव्रता प्रदान करती है-
फ़कीर की कुटिया में / एक कोने में पड़े /
कमण्डल की तरह / वह चुप थी (53)
चुप्पी की व्यंजना करती ये पंक्तियाँ अचानक अहल्या के मिथक का संकेत कर जाती हैं-
अवश्य किसी ॠषि ने / उसको छुआ होगा। (53)
देओल की सभी कविताएँ मनोजगत् के नए अध्याय खोलती हैं, मन के की गहन घाटियों में उतरने को बाध्य करती हैं। हिन्दी-जगत् में इनकी कविताओं का स्वागत होना चाहिए.
हवा में लिखी इबारत (काव्य-संग्रह) : दिओल परमजीत, अनुवाद: सुभाष नीरव, राही प्रकाशन, एल-45, गली नं-5, करतार नगर, दिल्ली-110053, संस्करण ; 2019, मूल्य 250 / , पृष्ठ; 91