मनोभाव / सत्या शर्मा 'कीर्ति'
नीले आकाश में विचरते हंस पर सवार स्त्री ने देखा कि एक छोटे से घर में घबराई और डरी-सी आँखों बाली स्त्री ने थरथराते हाँथो से बुझे राखों के बीच छुपा कर रखी अपनी जान से प्यारी किताबों को निकाल कर रख दिया सामने खड़ी प्रौढ़ा स्त्री के हाँथों में और चुपचाप अपनी इच्छाओं को आटे सँग बेल बनाती रही सम्बन्धों की रोटियाँ।
ओठों पर विजयी मुस्कान लिए प्रौढ़ा स्त्री ने दहकती अग्नि में झोंक दिए किताबों सँग बुनी हुई अनगिनत सपने।
पास ही आँगन में खड़ी सब कुछ देख रही नन्ही प्यारी-सी स्त्री उछलती-कूदती, इठलाती आई और अपने छोटे से स्कुल बैग की बड़ी-सी दुनिया को निकाल उड़ेल दी अग्नि के भवँर में और खुश हो खिलखिला उठी।
फिर होने लगे स्वाहा मन की किताबों में बंद अलग-अलग मनोभाव। जिसमें समिधा देने हेतु निकल पड़े तीन जोड़ी आँखों से आँसू।
सहमी आँखों से वेदना के आँसू
प्रौढ़ आँखों से-आत्मग्लानि के आसूँ
नन्ही चहकती आँखों से स्वतंत्रता के आँसू।
अपने ही स्त्री स्वरुपों विभिन्न मनोभाव देख व्यथित हो पुनः किताबों में छुप गयी आकाश में रहने वाली सर्व शक्तिमान स्त्री।