मनोरंजन जगत के जुगनू / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :25 सितम्बर 2017
मनोरंजन जगत के इतिहास के हर दौर में प्रमुख सितारों के साथ-साथ जुगनू जैसे कलाकारों ने बॉक्स अमावस्या की रात मेें कुछ रोशनी प्रदान की है। प्रतिभा त्रिवेणी दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद के दौर में बलराज साहनी ने सार्थक सफल फिल्में अभिनीत की हैं। बलराज साहनी साम्यवादी दल में सक्रिय थे और तमाम लाल सलाम बोलने वाले लोगों को कुछ समय के लिए जेल भेज दिया गया था। जाने कैसे सरकार को शांति भंग होने का खतरा लगता था और विचारशील दिमाग वाले उन्हें चलते-फिरते बम लगते थे। बलराज साहनी अभिनीत एक फिल्म के निर्माता ने अदालत में अर्जी दायर की कि संदेह में बंदी बनाए गए बलराम साहनी को प्रतिदिन स्टूडियो आने दिया जाए ताकि फिल्म की शूटिंग पूरी हो। अदालत ने फरमान जारी किया कि प्रतिदिन प्रात: दस बजे पुलिस बलराज साहनी को स्टूडियो लाएगी और संध्याकाल पांच बजे तक उन्हें जेलखाने वापस लाया जाएगा। संभवत: यह फिल्म ज़िया सरहदी की 'हमलोग' थी। ज़िया सरहदी भी वामपंथी थे। सृजन क्षेत्र में हमेशा वामपंथी ही सक्रिय रहे हैं। 'साधनहीन आम आदमी के लिए काम करूंगा' का भाव जाग्रत होते ही आप वामपंथी हो जाते हैं। राजनीति में राइट विंग ने कभी सृजनशील लोग नहीं दिए हैं परंतु लोकप्रिय नारे गढ़ने में वे बड़े प्रवीण रहते हैं। इसी दौर में मधुर संगीत के कारण भारत भूषण, महिपाल एवं प्रदीप कुमार जैसे भावहीन लोगों ने भी सफल फिल्मों में काम किया है।
धर्मेंद्र, राजेंद्र कुमार और मनोज कुमार के दौर में अमोल पालेकर और फारूख शेख ने मध्यममार्गीय मनोरंजन प्रदान किया। इसी दौर में संजीव कुमार भी उभर रहे थे। सच तो यह है कि मोतीलाल, बलराज साहनी की परम्परा के विलक्षण अभिनेता रहे हैं संजीव कुमार। राजेश खन्ना धूमकेतु की तरह उदित हुए और उसी गति से अस्ताचल गामी भी हो गए परंतु उनके दौर में पठान फिरोज खान ने अपनी जमीन नहीं छोड़ी। सलमान खान, आमिर खान और शाहरुख खान के दौर में भी राजकुमार राव जुगनू की तरह चमक रहे हैं। मनोज बाजपेयी भी उन्हीं के हमसफर हैं। एक और हमसफर हैं 'विकी डोनर' जैसी फिल्म के लिए विख्यात आयुष्मान खुराना जिनकी 'शुभ मंगल सावधान' भी सफल फिल्म है। इसी दौर में चरित्र भूमिकाओं में नवाजुद्दीन सिद्दीकी सुपर सितारों की नाक के नीचे से क्रेडिट ले उड़ते हैं। इस तरह के दृश्य चुराने वाले कलाकार भी हर कालखंड में सक्रिय रहे हैं। अमिताभ बच्चन अभिनीत एक फिल्म में नीलू फुले ने केवल दो शब्द बोलकर पूरा दृश्य अपने नाम कर लिया। वे शब्द थे, 'मी जातो।' रंगमंच पर नीलू फुले ने बहुत काम किया। बहरहाल, इसी तरह कुछ अभिनेत्रियां भी अपना प्रभाव उत्पन्न कर देती हैं। सुरेखा सीकरी, फरीदा जलाल और नादिरा इस खेल में माहिर रही हैं। बाबूराम इशारा की 'चेतना' में उम्रदराज नादिरा अपने ही पेशे में आई नई लड़की का मिथ्या गर्व तोड़ देती है। नादिरा का संवाद था, 'तुम में अपना बीता हुआ कल देख रही हूं और मुझ में तुम अपने आने वाले दिन देख सकती हो।' फरीदा जलाल ने राजेश खन्ना की प्रेमिका की भूमिका अभिनीत की थी फिल्म 'आराधना' में परंतु उन्हें चरित्र भूमिकाओं में ही खूब सराहा गया। फिल्म उद्योग के लोग इस कदर फॉर्मूलाग्रस्त हैं कि वे कभी-कभी किसी नई लड़की को देखकर कहते हैं कि यह सितारा नहीं सिस्टर मटेरियल है गोयाकि उसमें सेक्स अपील नहीं है। नारी के प्रति यह संकीर्णता सदियों से चली आ रही है। जया बच्चन (भादुड़ी) पर भी इसी तरह का लेबल चस्पा किया गया था।
मोतीलाल से प्रारंभ परम्परा में ही ओम पुरी ने विविध चरित्र भूमिकाएं अभिनीत कीं और विगत कुछ वर्षों से परेश रावल बहुत उम्दा कार्य कर रहे हैं। चरित्र भूमिकाअों में डेविड ने बहुत नाम कमाया था नादिरा और डेविड यहूदी थे।
नसीरूद्दीन शाह रंगमंच पर सक्रिय हैं और सिनेमा में उन्हें अपनी प्रतिभा के अनुरूप अत्यंत कम अवसर मिले। नसीरूद्दीन शाह गुणवत्ता के प्रति इतने सजग हैं कि फॉर्मूला फिल्मों में अभिनय करते समय वे अपनी हिकारत को पूरी तरह छिपा नहीं पाए। अमावस्या की रात जुगनू का प्रकाश ही मार्ग प्रशस्थ करता है।