मनोरंजन जगत मे अभिनव हेलमेट / जयप्रकाश चौकसे

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मनोरंजन जगत मे अभिनव हेलमेट

प्रकाशन तिथि : 30 अगस्त 2012

लंदन और टोक्यो में अनुसंधान चल रहे हैं कि क्या एक मनुष्य दूसरे के अवचेतन में प्रवेश करके उसके सपनों और विचारों को नियंत्रित कर सकता है। दरअसल वर्ष २०१० में क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म 'इन्सेप्शन' में एक औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाला जासूस एक कॉर्पोरेट के महत्वपूर्ण सदस्य के अवचेतन में पैठकर उससे अपनी कंपनी को हानि पहुंचाने वाले निर्णय कराता है। कॉर्पोरेट जंगल में मजबूत संस्था कमजोर या समान ताकत वाली संस्था को नष्ट करने के लिए हर किस्म के औजार इस्तेमाल करती है। जासूसी का यह क्षेत्र भी रॉ और आईएसआई तथा सीआईए या केजीबी जैसी खुफिया एजेंसियों की तरह चलता है। यहां भी टाइगर और जोया हैं। याद कीजिए मधुर भंडारकर की 'कॉर्पोरेट', जिसमें बिपाशा बसु अपने शरीर का इस्तेमाल करके विरोधी कंपनी के राज हासिल करती हैं। कॉर्पोरेट क्षेत्र की जासूसी में हिंसा के दिमागी स्वरूप को प्रयोग किया जाता है। गोली चलाने के बदले इनके टाइगर इनकी जोया पर गलत सूचनाओं और विचारों से हमला करते हैं और नैराश्य की दशा में गोली भी चलाते हैं। दरअसल जासूसी का यह क्षेत्र ज्यादा घिनौना है और रक्त के बदले संवेदनाएं बहाई व कुचली जाती हैं।

हाल ही में एक कंपनी ने ऐसा हेलमेट ईजाद करने का दावा किया है, जिसे पहनकर टीवी के परदे पर प्रस्तुत घटनाएं आपको सत्य लगेंगी। इसके पीछे जो सिद्धांत काम कर रहा है, उसे वे 'स्थानापन्न सत्य' कहते हैं, अर्थात सत्य के स्थान पर भरम को रख दिया जाता है। विज्ञान अवचेतन के रहस्य को समझने का प्रयास लंबे समय से कर रहा है। स्मृति पटल पर मनचाहे कालखंड को चस्पां कर देने के प्रयास के सफल होते ही आप वर्तमान में रहकर भी विगत की स्मृति का आरोपण कर सकते हैं।

हम धीरे-धीरे उस क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं, जिसे अभी तक ईश्वर का क्षेत्र माना जाता था। सत्य और भरम का खेल सांप और रस्सी की तरह हो सकता है कि अंधेरे में रस्सी पर पैर पडऩे से व्यक्ति को सांप के काटने का भरम हो सकता है। कल्पना यथार्थ पर भारी पड़ सकती है और 'मुगल-ए-आजम' का संवाद सत्य में बदल सकता है कि जहांपनाह मैंने आंखें खुली रखीं, क्योंकि मैं अफसाने को हकीकत में बदलते देखना चाहती थी।

बहरहाल, आज की राजनीति के क्षेत्र में यह भी बताना कठिन हो रहा है कि सच क्या है और झूठ क्या! अनेक चतुर नेता अपने विरोधी के अवचेतन को हथियाना चाहते हैं, ताकि उससे वह कराया जाए, जो उसके दल के हित में न हो। आज राजनीति में यह खेल दूसरे ढंग से खेला जा रहा है। अपना आदमी विरोधी के खेमे में महत्वपूर्ण बनाया जा रहा है।

बहरहाल, वर्तमान में बिना उस जादुई हेलमेट के प्रयोग के भी अनेक दर्शक टेलीविजन पर प्रस्तुत सीरियल को सत्य ही समझ रहे हैं। सीरियल संसार की तर्कहीनता और फूहड़पन को असल संस्कृति के नाम पर स्थापित किया जा रहा है। अंधविश्वास और कुरीतियों को मजबूत बनाने का प्रयास किया जा रहा है। सबसे विराट अफसाने तो न्यूज चैनल पर प्रसारित किए जा रहे हैं। इस हेलमेट के बाजार में आने के बाद सीरियल संसार और अधिक भयावह हो जाएगा।

महाभारत के अनुशासन पर्व में एक कथा इस प्रकार की है कि ऋषि देवशर्मा को अपनी सुंदर पत्नी रुचि की रक्षा की चिंता है। उन्हें भय है कि इंद्र उनकी पत्नी पर मोहित हो सकते हैं। एक बार यात्रा पर जाते समय वह शिष्य विपुल पर रुचि की रक्षा का भार डालते हैं। विपुल इंद्र को आते देख यह जानते हुए भी कि वह इंद्र का सामना नहीं कर पाएगा, गुरुपत्नी की आंखों में झांकते हुए अपनी ऊर्जा उनके अवचेतन में प्रवाहित कर देता है और इंद्र के आने पर रुचि के माध्यम से विपुल की आवाज ही गूंजती है। इंद्र समझ जाते हैं कि विपुल ने रुचि के सारे अवचेतन और शरीर पर कब्जा जमा लिया है और वह वापस लौट जाते हैं। विपुल अपने गुरु से कैसे कहे कि रक्षा का केवल यही उपाय था कि वह गुरुपत्नी की चेतना में पैठ जाए, परंतु यह भी एक किस्म का सहवास है और शायद उस क्रिया का शिखर है।

गुरु कहते हैं कि किसी भी कार्य के परिणाम का आकलन इस पर निर्भर करता है कि व्यक्ति का उद्देश्य क्या है, उसकी नीयत क्या है! विपुल द्वारा गुरुपत्नी की रक्षा के लिए किए गए प्रयास को पाप नहीं कहा जा सकता। स्पष्ट है कि अवचेतन पर अधिकार के प्रयोग सदियों से हो रहे हैं।