मनोरंजन / सपना मांगलिक

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मनोरंजन

आशा को लेखन का बेहद शौक था। या यूँ कहें कि लेखन द्वारा वह अपने दिल के हर दर्द को कागज़ पर उतार अपनी व्यस्त भागदौड़ और घुटन भरी ज़िन्दगी में कुछ पल सुकून के जी लेती थी। मगर उसके पति मनोज और सासू माँ को उसका लेखन कलम घिसाई और टाइम की बर्बादी लगता था। वे दोनों जब-तब उसके लेखन पर व्यंग्य-बाण छोड़ते और लेखन को ठलुओं का काम कहकर सबके सामने उसका मजाक उड़ाते। उस वक्त आशा की आँखों से बेबसी और अपमान के आंसू निकल पड़ते थे। एक दिन एक साहित्यिक कार्यक्रम में आशा को विशिष्ट अतिथि के रूप में बुलाया गया तो वह मना न कर सकी और कुछ देर के लिए कार्यक्रम में चली गयी। मगर जब घर लौटी तो सासू-माँ ने दरवाज़े से ही अपशब्दों की बौछार करना शुरू कर दिया। इस अपमान से दुखी हो आशा अपने कमरे में आंसू पोंछती जब पहुंची तो उसका पति फोन पर उसके पिताजी को धमकी दे रहा था कि आशा ने यह लेखनबाजी नहीं छोड़ी तो वह उसे छोड़ देगा। घर के बाहर पराये पुरुषों के साथ बैठकें करने वाली आवारा औरतों की उसे कोई ज़रूरत नहीं है। आशा तड़प कर बोली "मनोज मैं घर के सारे कार्य निपटा कर अगर कुछ देर अपना मनोरंजन कर आई तो इसमें क्या ग़लत है?" मनोज लगभग चीखते हुए बोला "तुम्हारा मनोरंजन और मनोरंजन करने वालों को मैं खूब समझता हूँ उन्हह"। रोज़-रोज़ के अपमान से तंग आकर आशा ने घर से बाहर निकलना ही बंद कर दिया। मनोज को गुनगुनाते हुए अटेची पैक करते देख आशा ने उसे सवालिया नजरों से देखा तो मनोज बोला "अरे मैं तुम्हे बताना भूल गया हमारे क्लब के सभी पुरुष थाईलेंड ट्रिप पर जा रहे हैं"। आशा ने पूछा "औरतें नहीं जा रहीं?"। मनोज- "पागल हो, वहाँ औरतों का क्या काम"। आशा ने हैरानी से पूछा "फिर मर्दों का वहाँ कौनसा ज़रूरी काम है" मनोज आँख मारते हुए "मनोरंजन नहीं करें अपना, बस तुम बीवियों से ही चिपके रहे?"।