मनोेरंजन व राजनीतिक जगत में तांत्रिक परम्परा / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मनोेरंजन व राजनीतिक जगत में तांत्रिक परम्परा
प्रकाशन तिथि :21 मार्च 2017


राज कपूर के छोटे भाई शम्मी कपूर की प्रारंभिक दर्जनभर फिल्में असफल रहीं तो फिल्मालय के शिखर पुरुष शशधर मुखर्जी ने उन्हें सलाह दी कि वे अपने सफल ज्येष्ठ भ्राता राज कपूर की अभिनय शैली की नकल करना बंद कर दें और जो कुछ राज कपूर परदे पर करते दिखाई देते हैं, उसके ठीक उल्टा करें। उनकी आंखें बोलती हैं, तो तुम वही काम अपने हाथ-पैर से लो। वे अपनी खामोशी से जो अभिव्यक्त करते हैं, वह तुम चीखकर करो। इसके अनुरूप स्वयं शशधर मुखर्जी ने शम्मी कपूर अभिनीत 'तुमसा नहीं देखा' बनाई, जिसमें उनकी नायिका अमिता थीं, जो शशधर मुखर्जी की अंतरंग मित्र की सुपुत्री थीं। शशधर मुखर्जी ने राज कपूर के प्रचारक बनी रूबेन से कहा कि शम्मी कपूर की 'रिबेल स्टार' छवि मीडिया में बनाएं। यह योजना सफल रही और शशधर के छोटे भाई सुबोध मुखर्जी ने 'जंगली' बनाकर इस सफल छवि पर आम दर्शक की सहमति का ठप्पा लगवा दिया। इस योजना के प्रेरणास्रोत हॉलीवुड स्टार जेम्स डीन थे।

इस उछल-कूद छवि को अपने ढंग से जम्पिंग जैक जितेंद्र ने भी भुनाया। जब इस छवि की भरमार हो गई और दर्शक इससे उकताने लगे तब शक्ति सामंत ने हवा के बदलते रुख को पहचानकर राजेश खन्ना को आंखें मिचमिचाने वाले नरम दिल व्यक्ति की छवि में 'आराधना' में प्रस्तुत किया, जिसे सचिन देव बर्मन के माधुर्य ने सम्बल दिया। हर सुपर स्टार के पीछे ठोस योजना रही है। इसी तरह अमिताभ बच्चन की प्रारंभिक नौ फिल्में असफल रहीं। कहते हैं कि वे ख्वाजा अहमद अब्बास के पास उनकी पारिवारिक मित्र इंदिरा गांधी की सिफारिश लेकर आए थे और आज वे उसी गांधी परिवार के विरुद्ध खड़े हैं, जिनकी सहायता से उनके पिता ने लंदन से डॉक्टरेट हासिल की थी और राज्य सभा में उनके पिता हरिवंश राय बच्चन नामांकित भी हुए थे। इतना ही नहीं उन्हें नेहरू-गांधी परिवार के पड़ोस में आवास भी आवंटित हुआ था। कुछ लोग सीढ़ियां बनाते हैं और कुछ लोग ऊपर मंजिल पर पहुंचकर उसी सीढ़ी को ठोकर मारकर गिरा देते हैं। जीवन की सांप-सीढ़ी के खेल निराले हैं।

बहरहाल, अमिताभ बच्चन को सलीम-जावेद की सिफारिश पर प्रकाश मेहरा ने आक्रोश की मुद्रा में 'जंजीर' में प्रस्तुत किया और उन्हें अपनी राह और मंजिल मिली। मनोरंजन व राजनीति को तर्क से समझा नहीं जाता, इसलिए इसे तांत्रिक प्रक्रिया कह सकते हैं। मनोरंजन जगत की घटनाओं के समान ही घटनाएं राजनीति में घटित होती हैं, क्योंकि दोनों ही क्षेत्र अवाम की पसंद-नापसंद पर आधारित है। नरेंद्र मोदी ने भी कांग्रेस ने जो कुछ किया, ठीक उसके विपरीत करके अपनी छवि गढ़ी है, क्योंकि कांग्रेस के दौर में अवाम उपेक्षित रहा है। इंदिरा गांधी के बाद कांग्रेस में उस तरह की लौह छवि वाला कोई नेता नहीं आया। टेलीविजन के परदे पर आक्रोश छवि के अमिताभ बच्चन की तरह ही अर्नब गोस्वामी ने अपने राजनीतिक पूर्वग्रह से शासित होकर राहुल गांधी की छवि को धूल-धूसरित कर दिया। राहुल गांधी के व्यक्तित्व में रिबेल स्टार बनने का कोई तत्व ही नहीं है। सत्य से अधिक बल प्रस्तुत छवियों में होता है। अवाम के गले किस तरह आपको उतारा जाता है- यह महत्वपूर्ण है। समर्थ माताएं जानती हैं कि शिशु को कड़वी घुट्‌टी किस तरह और क्यों पिलाई जाती है। इसी मामले में सोनिया गांधी से चूक हो गई। राजनीतिक परिदृश्य में पूरे विश्व में ही राइटिस्ट लोग इसलिए विजयी हो रहे हैं कि वामपंथ ने अपने सपनों को साकार करने के प्रयास नहीं किए। वाशिंगटन में ट्रम्प और दिल्ली में मोदी अपने सिंहासन एक-दूसरे को भी सौंप सकते हैं, क्योंकि अमेरिका का भारतीयकरण और भारत का अमेरिकीकरण हो रहा है, क्योंकि सोवियत रूप में वामपंथ अवाम को संतुष्ट नहीं कर पाया और चीन भी वामपंथी रास्ते से पूंजीवाद को ही साधने का प्रयास कर रहा है। अगर पूंजीवादी बारूद के गोदाम पर दुनिया बैठी है तो माचिस को पहरेदार बनाकर सर्वव्यापी विनाश का मार्ग प्रशस्त हो चुका है परंतु पूरी तरह निराश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि कोई रात इतनी लंबी नहीं होती कि उसकी सुबह न हो। जैसे साम्यवादी वादाखिलाफी से अवाम नाराज हुआ वैसे ही पूंजीवादी खोखले नारों से भी होगा। अब राजनीति के हृदय प्रदेश में सत्ता उस व्यक्ति को सौंपी ग है, जिसका एक मात्र गोरक्षा अभियान असफल हो गया था। राजनीति में यह गोधूलि की धंुध का समय है। यादव वंश की भूमि पर गो-रक्षक को भेजना सत्ता को उचित लगा परंतु प्रगति का चक्र विपरीत दिशा में चलाने से आप बैलगाड़ी युग में ही लौट जाएंगे। भारतीय राजनीति का त्रासद पक्ष यह है कि लंबे समय तक कांग्रेस के मदमस्त हाथी पर कोई अंकुश लगाने वाला नहीं था और अब भाजपा भी मदमस्त हाथी की तरह है अौर उस पर कोई अंकुश नहीं लगा सकता।

यह भारतीय राजनीति की अजब रीत है कि कभी प्रबल विरोधी रही भारतीय जनता पार्टी का शने: शने: कांग्रेसीकरण हो रहा है। क्या सत्ता हमारे यहां कांग्रेसी चरित की ही होती है? भारत को कांग्रेस मुक्त बनाने का ढोल पीटते-पीटते स्वयं भाजपा कांग्रेस होती जा रही है। किसी दौर में भोपाल के मुख्यमंत्री निवास में ढेरों भैसें पाली जाती गई थीं और अब उसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री निवास में गायें पाली जाएंगी। अनुमान लगाया जा सकता है कि सुषुप्त अघोरपंथ का पुनरागमन संभव है। भारतीय राजनीति में तर्कसम्मत विज्ञान विचार के बदले तांत्रिक परम्परा के फिर से जीवित होने की संभावना प्रबल है।