मन्दोदरी की वेदना / सुभाष काक
मन्दोदरी के बारे में वाल्मीकि रामायण में बहुत कम मिलता है। वहां यह लिखा है कि मन्दोदरी ने अपने पति रावण से सीता वापस लौटाने का आग्रह किया। रावण की अन्य रानियां थीं, इसलिये लगता है कि उसकी सीता के प्रति करुणा और सहानुभूति के पीछे कुछ विशेष कारण था, यह रहस्य भागवत पुराण, काश्मीर रामायण (रामावतार चरित), अद्भुत रामायण, तिबत और जावाद्वीप के रामायण ग्रन्थों से खुलता है।
इन सब में यह लिखा है कि सीता रावण और मन्दोदरी की पुत्री थी। पर सीता के जन्म का प्रसंग विभिन्न ग्रन्थों में अलग है। यहां मैं मिथक के पीछे के तथ्य पर आधारित एक सत्याभासी वृतान्त प्रस्तुत करता हूं।
कुछ कहेंगे कि मन्दोदरी जैसे काव्य के पात्र के बारे में विचार व्यर्थ है। हज़ारों वर्ष पूर्व कवि की कल्पना का आज के युग के साथ क्या जोड हो सकता है, वह पूछेंगे? ऐसे लोग रामायण का बदलते युगों में निरन्तर प्रभाव का रहस्य नहीं जानते। यह प्रभाव रामायण का हर व्यक्ति के भीतर की यथार्थता का चित्रण करने में है। राम, सीता, रावण आदि हमारे भीतर की शक्तियां हैं। हमारे अन्दर द्वन्द्व, विरोध, मात्सर्य, और भ्रान्ति है, पर करुणा और प्रेम भी है। यह कथा आजकल के युग के लिये बहुत ही अनुकूल है जब भौतिकवाद और विषयासक्ति गम्भीर नैतिक प्रश्न खडे कर रही है। यह हमें आजकल के जीवन और इसके साहित्य में चित्रण को भी समझने में सहायता दे सकती है।
कहानी यह है कि मन्दोदरी दानव शिल्पी मय और उसकी अप्सरा पत्नी हेमा को जन्मी। उसके जन्म के पश्चात ही इन्द्र ने हेमा को वापस अपनी नगरी अमरावती बुला लिया। हेमा नवजात शिशु को छोड स्वर्ग लौट गई। मन्दोदरी का पालन उसके पिता मय ने किया।
मन्दोदरी धीरे धीरे बडी हुई और उसका सौन्दर्य अखरता गया। पर मां का अभाव उसे खलता था। इस बात को जानते हुए मय ने उसे एक ऋषि के आश्रम भेज दिया यह आदेश देते हुए कि वहां कुछ ऐसा न करे जिससे उसका और उसके वंश का अपमान हो।
आश्रम के जीवन से मन्दोदरी बहुत सुखी रही और सहेलियों के साथ खेल और शिक्षा में डूब गई। वह सीखी कि कर्तव्यों को कभी उपेक्षित न करे।
सीता का जन्म
मन्दोदरी को गुरुकृपा से किसी भी देवता अथवा पुरुष को बुलाने का वरदान मिला। उस काल का सबसे पराक्रमी व्यक्ति लंका नरेश रावण था। कुतुहलवश मन्दोदरी ने मन्त्रोच्चार कर रावण को आमन्त्रित किया। उसके सामने अत्यन्त सुन्दर और प्रभावशाली युवक प्रकट हुआ। इस आकर्षिक रूप देख मन्दोदरी सुधबुध खो बैठी। उसके हृदय में वासना उभरी। युवक और युवती ने आलिंगन किया। सम्भोग उपरान्त रावण चला गया।
कुछ दिन पश्चात मन्दोदरी जान गई कि उसने गर्भ धारण किया है। वह भयभीत हुई। उसे अपने पिता को दिया अपने वंश को अपमानित न करने का वचन याद आया। उसने इन्द्र को बुलाया और रोने लगी।
जब इन्द्र ने पूछा कि उसकी क्या इच्छा है, मन्दोदरी बोली कि उसके गर्भ के शिशु का बिना क्षति तत्काल जन्म हो और उसका अपना कौमार्य अक्षत रहे। इन्द्र ने यह दोनों बातें मान लीं पर उसने कहा कि परिमाणस्वरूप मन्दोदरी को रावण से सम्बन्ध और गर्भवती होने की घटना की विस्मृति हो जायेगी और यह स्मृति तब ही लौटेगी जब वह उस शिशु को देखे। मन्दोदरी की स्वीकृति पर उसका उसी समय प्रसव हुआ। नवजात कन्या थी जिसे उन्होंने राजा के खेत में छोड दिया। मन्दोदरी अब मूर्छित हुई। जब वह जागी उसे न ही रावण के साथ अपने सम्बन्ध का स्मरण था न ही अपने शिशु का। रावण को मन्दोदरी के गर्भ धारण या कन्या के जन्म के बारे में कोई जानकारी न थी, अब वह इन्द्र के जादू से मन्दोदरी मिलन को भी भूल गया।
परित्यजित कन्या को राजा जनक ने अने खेत में पाया, और फलस्वरूप उसे सीता पुकारा। उसकी असाधारण सुन्दरता से वह इतना मोहित हुआ कि उसको गोद लिया। इस राजकुमारी सीता का कुछ वर्ष पश्चात अयोध्या के राजकुमार राम के साथ विवाह हुआ।
रावण के साथ विवाह
शिक्षा के समापन पर मन्दोदरी अपने पिता के पास लौट आई। एक दिन उस क्षेत्र में रावण विचर रहा था। उसकी दृष्टि अलौकिक सुन्दरी मन्दोदरी पर पडी जो राज उद्यान में अपनी सहेलियों के साथ टहल रही थी। उसने ठान ली कि वह उसी को अपनी मुख्य रानी बनाएगा।
मन्दोदरी के पास उपस्थित होकर रावण ने विवाह का प्रस्ताव रखा। मन्दोदरी भी रावण के नामरूप और प्रतिभा से आकर्षित थी और उसने अपनी स्वीकृति दे दी। कुछ अवधि में विवाह हुआ। रावण का मन्दोदरी के प्रति प्रेम अधिक गहरा हुआ जब उसे ज्ञात हुआ कि मन्दोदरी सती और अक्षता है।
अपनी बहन शूर्पनखा के नाक और कान राम और लक्ष्मण के हाथों कट जाने पर रावण ने दण्ड हेतु राम की पत्नी सीता को अपहरण करने की ठानी। उसने मन्दोदरी से सलाह ली, जिसने स्वीकृति दे दी।
छल कपट से रावण ने सीता का अपहरण किया। जब मन्दोदरी को सन्देश मिला कि शूर्पनखा का प्रतिशोध पूरा हो चुका उसे सन्तोष हुआ। यह विदित था कि रावण इस नई राजकुमारी को अपने हर्यम् में सम्मिलित करेगा। मन्दोदरी इस नई रानी को अपनी सहेली बनाने के लिये उत्सुक थी।
मन्दोदरी और सीता
सीता अशोक वाटिका में वृक्ष के नीचे बैठी थी जब मन्दोदरी उससे मिलने आई। ज्योंही उसकी दृष्टि सीता पर पडी उसकी स्मृति लौट आई। यह जान कर कि सीता उसकी अपनी पुत्री है वह मूर्छित गिर पडी।
उपचार पश्चात जब सुध बुध लौटी उसे समझ न आया कि उसे क्या करना चाहिये। वह सीता से गले मिली, उससे बहुत मीठी बातें की। वह सीता की माता होने का किसी को नही कह सकती थी, रावण को बिल्कुल नहीं। उसने संकल्प किया कि वह अपनी पुत्री का उसके अपने पिता से विवाह नही होने देगी। उसे कुछ सन्तोष हुआ जब सीता ने उसे कहा कि वह पतिव्रता है और वह रावण को अपना शरीर कभी छूने नहीं देगी।
वह घर लौट कर रावण से प्रार्थना करती है कि सीता को मुक्त कर ले। पर रावण कुछ नहीं मानता। रावण ब्रह्मा से मांगे अमरत्व के वरदान का जुडा हुआ प्रतिबन्ध भूल चुका हैः
आत्मनो दुहिता मोहादत्यर्थं प्रार्थिता भवेत्।
तदा मृत्युर्मम भवेद्यादि कन्या न कांक्षति। अद्भुत् रामायण ८,१२
अर्थात मोहवश यदि मैं अपनी ही पुत्री की, उसकी कांक्षा के विरुद्ध, इच्छा करूं तो मेरी मृत्यु हो जाये।
वास्तव में उसे सीता के पिता होने का कुछ नहीं ज्ञात है, और इस परिस्थिति में मन्दोदरी कुछ बता नहीं सकती। वह रावण से वचन मांगती है कि सीता से व्यवहार करुणामय हो। विवश होकर रावण सीता को १२ मास की अवधि आत्मसमर्पण के लिये देता है।
जब हनुमान उडकर लंका पहुंचता है, वह मन्दोदरी को रावण के महल में विचरते देख उसे सीता समझ लेता है क्योंकि मां बेटी का रूप एक जैसा है। इस भ्रान्ति से निकल वह शीघ्र ही अशोक वाटिका में सीता को पाता है। इस काल रावण की दी गई अवधि के केवल दो मास शेष हैं।
हनुमान द्वारा लंका जलाए जाने के उपरान्त राम की सेना युद्ध की तैयारी में व्यस्त हो जाती है। अब मन्दोदरी अपने देवर विभीषण से विनती करती है कि वह रावण को समझाए कि सीता को मुक्त करने में ही भला है। पर रावण कुछ नहीं सुनता और विभीषण को राज्य सभा से निकाल देता है। विभीषण अपने साथियों सहित राम की सेना में सम्मिलित हो जाता है।
रावण के पास असीम शक्ति है, अतः वह युद्ध के लिये उत्सुक है। यहां मन्दोदरी की वेदना तीव्र हो रही है। उसके मन में द्वन्द्व है। उसे अपनी बेटी और पति के बीच चुनना है।
युद्ध तीव्र हो जाता है। मन्दोदरी का पुत्र इन्द्रजित रणक्षेत्र में मर जाता है। उसे बहुत सन्ताप होता है। अन्य बन्धुजन भी मर जाते हैं।
सीता के साथ बलात्कार का समय आ रहा है। राम और रावण के बीच घोर संग्राम हो रहा है। राम रावण को पराजय नहीं कर सकता। अपनी पुत्री की प्रतिष्ठा को बचाने के लिये अब मन्दोदरी सर्वोच्च त्याग करती है।
वह दूत द्वारा राम को अपने पति की एक गुप्त दुर्बलता की सूचना, जिससे उसका वध सम्भव हो, भेजती है। दूसरे दिन राम रावण का वध कर लेता है, और सीता मुक्त हो जाती है।
मन्दोदरी की पीडा एक आधारभूत, नित्य मनोग्रन्थि का वर्णन है। यह प्रकृति का मानव के भीतर आसुरि शक्ति से ऐसे युद्ध की कहानी है जिसमे ममता, रहस्य, क्षति, नैतिकता, कैवल्य यह सब विद्यमान हैं। यह युद्ध समकालीन युग में भी हो रहा है -- भीतर और बाहर दोनों।