मन की शांति / अन्तरा करवड़े
"जब तक मन में भिन्न - भिन्न विचारों का प्रसार होता रहता है¸ मन शांत नहीं रहता। विचारों से¸ सत्य - असत्य से परे की स्थिती ही सच्ची साधना का पथ है।"
स्वामीजी का प्रवचन सुन रही मिसेस सोनी¸ धीरे से मिसेस अग्रवाल की ओर रूख करती हुई फुसफुसाई¸ "जानती है आप? जोशीजी की बहू की घर में किसी से जरा नहीं जमती। जरा सासूजी ने कमरे की सफाई को कहा तो दूसरे ही दिन रानीजी चली मायके।"
"हाँ! मैंने तो ये भी सुना है कि माँ-बाप ने दहेज के साथ दो नौकरानियाँ भी दी है¸ जिनके तेवर सहते-सहते¸ मिसेस जोशी बीमार पड़ गई है।"
दोनों चुपचाप मुस्कुराई। फिर मिसेस सोनी ने कहा¸ "स्वामीजी कितनी सच्ची बातें कहते है! कब से ढूँढ़ रही थी आपको ये सब कुछ बताने के लिए। अब आपसे मन की बात कह दी है तो कितना शांत और प्रसन्न लग रहा है।"
और दोनों ने एक दूसरे पर एक अर्थपूर्ण मुस्कान बिखेरी और पुन: दत्तचित्त हो प्रवचन सुनने में लग गई।