मन की साध / पद्मा शर्मा

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शालिनी बेसब्री से दरवाजे पर टकटकी लगाये देख रही थी। हर आहट पर उसकी नजरें उठ जाती थी और हृदयगति तीब्र हो जाती थी। वह आँगन में बैठी सब्जी काट रही थी। व्यग्रता बढ़ते ही उसके हाथ भी तेजी से चलने लगते थे। आज उसके हृदय में एक नयी उमंग थी। बगल वाले मकान में रहने वाले संदीप भैया आज अपने साथ नववधू को लेकर आने वाले थे।

वह एक तरह का बाड़ा था जिसमें चार पाँच किरायदारों के लिए पोर्शन बने हुए थे। शालिनी के बगल वाला मकान संदीप का था। अभी कुछ दिन पहले ही तो संदीप का विवाह हुआ था। व्यस्तता के कारण शालिनी अपने पति के साथ संदीप के पैतृक घर बनारस नही जा पायी थी। शादी के बाद पहली बार संदीप अपनी पत्नी के साथ आ रहा था। ‘ मीनू ’ यही नाम तो था कार्ड में। वैसे भी वो उससे अपरिचित कहाँ थी। संदीप रोज के किस्से मुँह बोली भाभी शालिनी को सुनाता ही रहता था। मीनू की इच्छा - अनिच्छा, उसका व्यवहार उसकी कार्य कुशलता सभी से वह परिचित थी। विवाह के लिए जब मीनू का फोटो आया था संदीप ने सबसे पहले उसी को दिखाया था। जब उसने स्वीकृति दे दी थी तब संदीप ने भी अपना निर्णय ‘ हाँ ’ में घरवालों को बता दिया था।

सगाई के बाद संदीप जब मीनू को फोन करता तो वह शर्म के कारण कुछ बात ही नहीं कर पाती थी, और वह रिसीवर शालिनी को पकड़ा देता था। वह शालिनी से यही निवेदन करती कि भाभी इन्हें मना करो ये फोन नही किया करें। घर पर सबको मालूम पड़ता है तो मुझे अच्छा नहीं लगता। सब लोग क्या सोचेगें? अब थोड़े दिन की ही तो बात है। फिर अन्त में यही निर्णय लिया गया कि शालिनी ही फोन लगाया करेगी। इस तरह बिना देखे उन दोनों में संम्बन्ध बन गये थे।

अचानक ऑटो आकर रूका तो शालिनी की विचार शृंखला भंग हो गयी। उसने देखा पहले संदीप ऑटो से उतरा है फिर एक अधेड़ उम्र की महिला धीरे -धीरे उतरी। साथ में सकुचायी सी, लजायी सी चमकीले वस्त्रों और गहनों से लदी मीनू भी उतर रही थी। शालिनी ने उन लोगों को ड्राइंगरूम में बिठाया और चाय - नाश्ते की तैयारी में लग गयी। आज शालिनी के यहाँ ही उन लोगों का भोजन था।

शाम तक सारा सामान ट्रक में आ गया। ये वो सामान था जो विवाह में मिला था। उन लोगों की गृहस्थी अच्छी तरह से व्यवस्थित करने के उद्देश्य से ही संदीप की माँ साथ में आ गयी थी। अम्माँ जी ने धीरे -धीरे सारा सामान व्यवस्थित कर दिया था। अपनी बहू पर उनका प्यार देखकर शालिनी को मीनू के भाग्य से ईर्ष्या होने लगती थी वे उसका पूरा ख्याल रखती थी। अपने साथ बिठाकर नाश्ता करवाती थी। घर के कामों को खुद निबटाती थी। साथ में कहती भी रहती थी - अभी नयी हो धीरे - धीरे सब सीख जाओगी। लगभग पन्द्रह दिन बाद ही अम्माँ बनारस चली गयी।

शादी के लगभग डेढ़ - दो माह बाद ही यह खबर भी सभी तरफ फैल गयी कि मीनू माँ बनने वाली है। अब तो अम्माँ जी बीच -बीच में दो - चार दिन के लिए आ जाती। उन्हें सूद जो मिलने वाला था। खाने -पीने, चलने -फिरने, संबंधी ढेर सारी हिदायतें वे मीनू को देती रहती थीं। वे जब भी आतीं अपने साथ घी के लड्डू अवश्य लातीं उसमें से दो - चार लड्डू की हकदार शालिनी भी होती थी।

मीनू का सातवां महीना समाप्त होने को था अम्माँ जी पहले से आयी हुयी थी। आँठवा महीना लगते ही बहू की साधें (गोद भराई रस्म ) होना थी। बहू को बनारस जाने में परेशानी होती, इधर संदीप भी परेशान होता इसलिये वे ही आ गयी थीं और यहीं पर डिलेवरी होना थी।

साधें के लिये दो दिन बाद का मुहूर्त निकला था। मीनू के मायके वालों को भी खबर कर दी गयी थी। उन्हें गोद भराई का सामान और शगुन लेकर आना था। अम्माँ जी ने मीनू से ही कहला दिया था कि सोने के चंदा, सूरज और चाँदी की छोटी सी बंशी भी बनेगी, एक कठला बच्चे के लिये आयेगा बांकी जो उनका सामर्थ्य हो कपड़े बगैरह अपने हिसाब से ले आयें।

संदीप चाहता था कि उसके परिचितों को भी इस मौके पर आमंत्रित किया जाये क्योंकि शादी बनारस में होने के कारण कई लोग सम्मिलित नहीं हो पाये थे। वह उनकी लिस्ट बनाने में लगा था। अम्माँ जी व शालिनी भोजन में बनने वाली सामग्री की लिस्ट बना रही थी। हलवाई भी आ चुका था और वह सामानों की सूची बनवा रहा था।

रात्रि में अचानक मीनू को पीड़ा होने लगी। संदीप और अम्माँ जी उसे अस्पताल ले गये। शालिनी भी साथ में थी। जिस डॉ0 का इलाज चल रहा था वो लेडी डॉक्टर वहीं मिल गयी उसने चैकअप करने के बाद कहा - ये तो डिलेवरी पेन्स है लगता है प्रिमेच्योर डिलेवरी होगी।

फिर वो अम्माँ जी की तरफ देखते हुए बोली - “ सतमासा बच्चे की थोड़ी अधिक केयर करना पड़ती है। जच्चा को भी खतरा है। “

यह सुनकर कोई भी अपनी वस्तुस्थिति में नहीं था। सब अपने में डूबे चहल कदमी कर रहे थे। थोड़ी देर बाद बच्चे के रोने की आवाज आने लगी लेकिन सभी के चेहरों पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। नर्स ने आकर बताया बेटा हुआ है। जच्चा और बच्चा सकुशल हैं यह सुनकर सभी लोग आश्वस्त हो गये। शालिनी ने खुश होते हुए अम्माँ जी को बधाई देना चाही तो उन्होंने दूसरी तरफ मँुंह फेर लिया। उन्हें चिन्ता खाये जा रही थी कि मुहूर्त के अनुसार परसों ही तो साधें होना थी वे बहुत बैचेन दिखाई दे रही थी। वे रात में कमर दर्द की बात कहकर घर चली आयी। रात में शालिनी ही रूकी।

दूसरे दिन शालिनी जब हॉस्पीटल पहुँची तो देखकर हतप्रभ रह गयी कि बच्चा रो रहा है और अम्माँ जी आराम से दूसरी तरफ मुँह किए बैठी है। मीनू उठने की कोशिश कर रही है लेकिन उठ नहीं पा रही है। शालिनी मन ही मन सोच रही थी कि पोता होने पर तो सभी खुश होते हैं लेकिन ये दुःखी क्यों हो रही है।

मीनू तो पहली बार माँ बनी थी। वह अभी खुशियाँ भी नहीं मना पायी थी। वह भी चाहती थी कि बच्चे को अपने सीने से लगाए उसे प्यार करे लेकिन अम्माँ जी की तरेरती हुयी आँखे उसके उसके हाथ पीछे कर देती थी। वह चाहती कि बच्चे को दूध पिलाए, वह उसे दूध पिलाने लगती तो अम्माँ जी झिड़क देती - “ रहने दे अभी तो पिलाया था, भट्टा है क्या? अम्माँ जी के ये तेवर देखकर मीनू दहशत में आ गयी थी।

मीनू पलंग पर लेटी रहती थी और अम्माँ जी नीचे बुत बनी बैठी रहती थी। मीनू सोचती कि अम्माँ जी को साधें करवाने का बहुत शौक था। साधें न होने से उनके मन की साध मन में ही रह गयी थी इसीलिए वे अनमनी रहती है। वे कहती थी कि चौक - दष्टौन तो कई बार हो जाते हैं साधें तो सिर्फ एक, बार पहले बच्चे के समय ही होती है। अब तक अम्माँ जी की बेटी मेघा भी अपनी ससुराल से आ गयी थी।

अभी तीसरा दिन ही था दोपहर में मीनू सो रही थी अचानक उसकी नींद खुली तो उसने सुना अम्माँ जी कह रही हैं - “ क्यों मेघा सात महिने में भी कोई बच्चा होता है क्या? “

मेघा बोल पड़ी -” हाँ अम्माँ कई बार बच्चा समय से पहले भी हो जाता है। मेरी जिठानी को भी सतमासा लड़की हुयी थी। “

अम्माँ जी धीरे से बुदबुदायी -” बच्चा देखकर लगता तो नहीं कि सतमासा है। यह तो पूरे दिन का हुआ लगता है। “

मेघा ने समझाते हुए कहा-” नहीं अम्माँ बच्चा तंदुरुस्त है इसलिए ऐसा सोच रही हो। तुम तो नाहक परेशान होती हो। उन्होने शंका भरे शब्दों मे कहा -” मुझे तो कोई गड़बड़ लगती है।”

ये शब्द मीनू के कानों में पिघलते शीशे के समान तैरते चले गये। वह हतप्रभ थी। आज उसकी समझ में आ गया था कि अम्माँ की बेरूखी का कारण क्या है? उसके मन में द्वन्द्व छिड़ गया कि मैं अम्माँ को कैसे विश्वास दिलाऊँ कि ये बच्चा उन्हीं का पोता है। उसकी पहली रात की सौगात है। वह ऊपर से नीचे तक सिहर गयी थी उसके मन में भय व्याप्त होने लगा था कि कहीं अम्माँ जी ने यही बात संदीप से कही और उसके मन में भी शक पैदा हो गया तो क्या होगा? मैं अपनी पवित्रता का सबूत कहाँ से लाऊँगी? कैसे उन्हें विश्वास दिलाऊँगी कि ये उन्हीं का बेटा है। कहा भी जाता है कि माँ सत्य है और पिता विश्वास। उसे सब समझ आ गया कि इसीलिए अम्माँ जी उसका व पोते का ध्यान नहीं रख रही हैं। ममता की मूर्ति आज पाशाण क्यों बन गयी है। उसके मन का द्वन्द्व बढ़ता जा रहा था कि आज तोे तरह -तरह के टैस्ट हो रहे हैं जिनसे साबित हो जाता है कि पिता कौन है। लेकिन ये मेरे लिये कितनी बदनामी की बात होगी। मेरा अपमान होगा, मुझ पर अविश्वास होगा। कहीं संदीप भी ..................ऐसा ही सोचेंगें तो मैं जीते जी मर जाऊँगीं।

संदीप इन बातों से बेखबर अपनी खुशी का इजहार कर रहा था। साधें वाले दिन जो पार्टी वह अपने दोस्तों को नहीं दे पाया था वह आज होटल में दे रहा था। वह खुशी से बोल पड़ा - “मीनू यू आर ग्रेट, यू गेव मी अ ब्यूटीफुल सन “। मीनू मुस्करा दी उसने संदीप का हाथ अपने हाथ में लेकर पूछा - “ तुम्हे तो विश्वास है न कि ये सात माह का ही बच्चा है। “

वह यकायक चौंक गया और बोला - “तुम भी पागल हो अरे सोनोग्राफी की रिपोर्ट तक कहती है बच्चे कितने दिन का है। तुम अपने मन से फालतू के विचार निकाल दो। ये मेरा ही बेटा है “ कहकर संदीप बाहर चला गया। तभी दरवाजे की ओट से निकलकर अम्माँ जी अन्दर आयी। लग रहा था कि उन्होनें सारी बातें सुन ली थी उन्होनें सोते हुए पोते को अपनी गोद में उठाया और उसे दुलार किया। अब उनके चेहरे पर ममता झलक रही थी। मीनू यह देखकर प्रसंन्न हो गयी कि अम्माँ जी का मन परिवर्तित हो गया है। साधें भले ही न हो पायी हों लेकिन आज उसके मन की साध पूरी हो गयी थी।