मन को छूती सहज संवेदनशील लघुकथाएँ / उपमा शर्मा
रचनात्मकता सबसे पहले आत्म अभिव्यक्ति है। इस अभिव्यक्ति के कई माध्यम हो सकते हैं। लेखक की अभिव्यक्ति का माध्यम सदैव शब्द होते हैं। जब अनुभूतियों की चुभन लेखक को उद्वेलित कर देती है तब अन्दर के भाव शब्दों के रूप में पृष्ठों पर उतरने को बेचैन हो उठते हैं।
कहते हैं विसंगतियों की कोख़ से उपजती है लघुकथा। आज के इस दौर में रिश्तों की उण्णता खोती जा रही है। जैसे-जैसे समाज में विरोधाभास की बढ़ोतरी हो रही है, उतनी ही क्षण विशेष में उपजी इस विधा लघुकथा के लिए उर्वरा भूमि तैयार होती जा रही है। क्षण विशेष में उपजी इस विधा की मारक शक्ति अत्यधिक तीखी होती है।
अपने लेखनी से ऐसी ही सधी हुई लघुकथाओं का संग्रह 'छोटे छोटे सायबान' लेखक पुरुषोत्तम दुबे ने पाठकों को दिया है। इस लघुकथा संग्रह में कुल 45 लघुकथाएँ हैं। यह लघुकथाएँ अपने आप में बेहद विशेष हैं; क्योंकि इनका चयन बलराम अग्रवाल, भगीरथ परिहार एवं अशोक भाटिया जैसे वरिष्ठ लघुकथाकारों ने किया है।
लघुकथा हृदय के तारों को वैसे ही झनझना देती है, जैसे बिजली का करेंट। लेखक की लघुकथाओं में गहरी संवेदना, दरकते मूल्यों के प्रति चिंता, आतंक से फैली दहशत और निहित स्वार्थ से टूटते रिश्तों और राष्ट्र के प्रति अटूट प्रेम को सहज रेखांकित किया है। ये लघुकथाएँ अपने समवेत पाठ में जीवन का एक व्यापक परिदृश्य उपस्थित करती हैं।
लघुकथा में विचार, भाव, अनुभूतियों को सघन संवेदना के साथ प्रस्तुत करने की बड़ी चुनौती होती है। लघुकथा के तेवर की कसौटी अपने समय की सत्यत होती है और यह जितनी पीड़ाजनक होगी, लघुकथा के तेवर में भी उतनी ही आक्रामकता स्वत: उत्पन्न हो जाएगी।
मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन आतंकवाद है। आज की परिस्थितियों में कोई देश-काल इससे अछूता नहीं है।
दहशतगर्द का कोई धर्म कोई ईमान, दोस्त, परिवार नहीं होता। उनका एक ही धर्म होता है-दहशत फैलाना, आतंक मचाना, व्यक्तियों को मारना-काटना। लेखक ने लघुकथा 'वे दो' दहशत गर्द के दहशत फैलाने और मानवता, इंसानियत के धर्म से विमुख होने के ताने-बाने पर बुनी एक मार्मिक लघुकथा है। दोनों साथी दहशत फैलाने के अपने-अपने काम को एक दूसरे से सराहते हैं। दहशत फैलाना, मासूम व्यक्तियों को बिना कारण ही मारना उनका ईमान है। अपने इस कर्म को सर्वोपरि मान वे बताते हैं-आज किसने कितने मारे और अपने कर्म को सराहते हैं। कथा अपने चरम पर पहुँचती है जब उनमें से एक की गिनती दूसरे से ज़्यादा निकलती है। संवादात्मक और विवरणात्मक शैली से बुनी इस कथा के संवाद भी बहुत सहजता से बुने गये हैं। यथा-
"यानी तूने मेरे से एक कम मारा!"
दहशतगर्द और हार?
सौ का आँकड़ा पार करने को इतनी रात में कहाँ जाए वह? "
दहशतगर्द का सिर्फ एक धर्म है। अपने उस धर्म को पूरा करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है। थोड़ी देर पहले तक जो उसका साथ देने वाला साथी था, उससे उसकी गिनती कम निकलती है। यह बात उसे कैसे बर्दाश्त हो और उस गिनती को बराबर करने के लिए वह अपने ही साथी को मार डालता है।
" उसने एक लम्बी साँस फेफड़ों में भरी, कोने में रखी मशीनगन उठाई और... सौ पूरे कर डाले।
लेखक की लघुकथाएँ 'मस्तक दान' , 'प्रार्थना' , 'अनमोल गीत' राष्ट्रीय प्रेम की भावना से ओत-प्रोत लघुकथाएँ हैं। लेखक के अनुसार सर्वश्रेष्ठ दान देश के लिए किया जाने वाला मस्तक दान है। सर्वश्रेष्ठ गीत राष्ट्रगीत है।
पिछले साल कोरोना नामक महामारी की त्रासदी से गुज़रे। यह महामारी समाप्त अभी भी नहीं हुई, लेकिन एक समय इसने सम्पूर्ण मानव जाति को घर में बंद कर दिया। कारख़ानों में ताले लग गये। अर्थव्यवस्था चरमरा गई। मनुष्य की जान संकट में आ गई। न जाने कितने इस महामारी की भेंट चढ़ गए; लेकिन कहीं न कहीं इसके लिए मनुष्य भी जिम्मेदार है। उसने प्रकृति पर ऐसा अतिक्रमण किया कि जीव-जंतुओं के रहने का स्थान ही खत्म कर दिया। जंगल काटे। कंकरीट के शहर बना डाले।
ऐसे में कोरोना महामारी पशु-पक्षियों के लिए राहत लेकर आई। सांकेतिक भाषा में लिखी यह लघुकथा बताती है कि मानव के अतिक्रमण को रोक प्रकृति ने उन्हें भी सुख से रहने के दिन फिर से दिए। जो मनुष्य खाने को दाना भी नहीं छोड़ रहे थे, आज प्रकृति की मार से पूरे के पूरे खेत छोड़ घर बैठे हैं।
शब्दों के माध्यम से निर्मित चित्र ही बिंब कहलाता है। गद्य-बिम्ब फोटो की तरह यथार्थ बिंब न होकर लेखक की कल्पना और भावना के अनुरूप निर्मित होते हैं। शब्द चित्रों की अनुभूति पाठक पढ़कर अनुभव करते हैं, साथ ही लेखक की अनुभूति से तादात्म्य स्थापित करते हैं। दृश्य बिंब का सम्बन्ध नेत्रों से है। लेखक ने लघुकथा अन्नप्राशन में ऐसा ही खूबसूरत दृश्य बिम्ब खींचा है।
कोरोना महामारी की त्रासदी का अंत दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहा था। सब इसी सोच-विचार के साथ जी रहे थे कुछ महीनों, साल में इस महामारी का अंत होगा और दुनिया पहले की तरह ख़ूबसूरत शांतिमय हो जाएगी। लेखक की लघुकथा 'अँधेरी सुरंग' सही सवाल छोड़ती है कि तब तक यह दुनिया बचेगी भी कि नहीं।
कोई भी रचना अभिव्यक्ति की अनिवार्यता से उपजती है। रचनाकार जीवन में प्राप्त अपने अनुभवों को रचना में उतारता है। अपनी अनुभूतियों को दूसरे से बाँटने की इच्छा किसी रचना की प्रबल प्रेरक शक्ति है।
'घर लौटा राम खिलावन' लघुकथा प्रबल अनुभूति की ही द्योतक है। कोरोना काल में काम के अभाव में घर लौटने वाले मज़दूरों की स्थिति बहुत ख़राब हो गई थी। यातायात के साधन बंद थे। मीलों का रास्ता तय करके ये मज़दूर घर वापस आये थे। एक माँ के अपने घर वापस आये बेटे के तलवे के घावों पर बहाते आँसू इस लघुकथा की संवेदना को चरम पर ले जाते हैं।
पुरुषोत्तम दुबे की लघुकथाओं में विषय की विविधता है। विषय का नयापन लघुकथा के प्रति रुचि जगाता है।
'आसमान के नीचे' पति पत्नी के रिश्तों के माधुर्य की मीठी—सी कथा है।
'फैसला होने तक' लघुकथा आज की नई पीढ़ी की समझदारी को दिखाती है जो एकता को जीवन का मूलमंत्र मानती है।
'लड़की पसंद है'-पुरानी-नई पीढ़ी के सोच के अन्तर को दर्शाती एक सहज लघुकथा है, जिसका सुखद मोड़ यह है कि सोच का सुखद परिवर्तन दो परिवारों को एक कर देता है।
लघुकथा 'सातत्य' प्रकृति की निरंतरता का संदेश देती है।
जीवन अनुभवों का सबसे बड़ा भंडार है और अनुभव सबसे बड़ा गुरु है। जीवन में पाए अपने किसी अनुभव की छुअन लेखक के भीतर सौन्दर्य का कौंध उत्पन्न करती है जिससे प्रेरित हो लेखक अभिव्यक्ति के लिए बेचैन हो उठता है।
' घ्राण शक्ति, अनुभवों के उपहार, युक्ति, कार्टून, रुनझुन, बेड-टी, गृहासक्त, युग-पीड़ा, जीवन क्रम, विरेचन, उपद्रवी आदि मार्मिक अनुभवजन्य लघुकथाएँ हैं जिसकी अनुगूँज देर तक मस्तिष्क पटल पर रहती है।
भाषा और समाज का सम्बंध अभिन्न है। मनुष्य के विचार और भावों का अभिव्यक्ति के लिए भाषा की सर्व माध्यम है। यदि मनुष्य से भाषा ही छीन ली जाये तो उसकी सामाजिक संरचना ही ध्वस्त हो जाएगी। अपने भावों की अभिव्यक्ति के लिए लेखक से लोकव्यवहार की भाषा की अपेक्षा की जाती है। साथ ही माधुर्य और सहजता लेखक की भाषा का गुण है। पुरुषोत्तम दुबे की लघुकथाओं की भाषा सहज और लोकव्यवहार की भाषा है। लघुकथा में भाषा का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। भाषा जितनी ही सहज, सरल भावाभिव्यंजक एवं बोधगम्य होती है, वह उतनी ही प्रभावशाली होती है। लेखक की भाषा पात्रानुकूल है, भाषा में यथार्थ का गुण है, संवेदनशीलता है। लेखक ने बड़ी कुशलता से भाषा को अभिनव अर्थवत्ता प्रदान कर अभिव्यक्ति को समर्थन प्रदान किया है।
जिस तरह अलंकार आभूषणों से नारी का सौंदर्य खिलता है, उसी प्रकार अलंकारों के प्रयोग से लघुकथा का प्रवाह रोचक और प्रभावशाली हो जाता है। पु रुषोत्तम दुबे की लघुकथाओं में अलंकार का सहज प्रयोग भाषा में चार चाँद लगाता है। यथा
गेहूँ की बड़ी-बड़ी बालियाँ किसी महारानी के जूड़े में जड़े सोने की फूलों-सी शान से इतरा रहीं थीं। भाषा काव्यात्मक सौन्दर्य से परिपूर्ण है।
यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि लेखक का भाषा के सौन्दर्य पर पूर्ण अधिकार है। 'सतयुग के शिलालेख' लघुकथा का भाषायी-सौन्दर्य पाठक को चमत्कृत करता है। बोलचाल की भाषा में कहावतों के प्रयोग से भाषा की अर्थशक्ति बढ़ी है। लेखक की भाषा में अपने कथ्य को सार्थक एवं प्रभावशाली रूप में संप्रेषित करने की सामर्थ्य है।
शीर्षक किसी भी लघुकथा का बहुत महत्त्वपूर्ण घटक होता है। सांकेतिक भाषा में प्रतीकात्मक शीर्षक अपनी सुंदर भूमिका का निर्वाह करते हुए लघुकथा को कलात्मक बना जाता है। शीर्षक को लघुकथा की आत्मा कहना मेरे विचार से कोई अतिशयोक्ति नहीं है। सटीक शीर्षक लेखक की योग्यता का द्योतक है। शीर्षक संक्षिप्त, नवीन और लघुकथा के मर्म को स्पष्ट करने वाला हो। लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं लेना चाहिए कि शीर्षक ऐसा हो जो सनसनी पैदा कर दे। लघुकथा विधा एक ऐसी विधा है जिसमें शीर्षक का सबसे ज़्यादा महत्त्व है। अपने छोटे से रूपाकार के कारण लघुकथा में शीर्षक का बहुत महत्त्व हो जाता है। कई बार इस विधा में शीर्षक इतना महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि शीर्षक ही लघुकथा का सार करता है। इस दृष्टि से पुरुषोत्तम दुबे की लघुकथाओं के शीर्षक सांकेतिक एवं सटीक हैं। लघुकथा में शीर्षक का क्या महत्त्वहै, यह घ्राण शक्ति, अलंघ्य घेरा, सातत्य, विरेचन आदि लघुकथाओं से जाना जा सकता है कि किस प्रकार एक शीर्षक लघुकथा को श्रेष्ठता के शीर्ष तक पहुँचाने की शक्ति रखता है। ऐसा अन्य विधाओं में प्रायः नहीं देखा जाता।
समग्रतः पुरुषोत्तम दुबे के इस लघुकथा संग्रह की लघुकथाएँ मानवीय संवेदनाओं और जीवन की ऊष्मा से ओत-प्रोत हैं। लेखक के विज़न में व्यापकता है। लघुता में प्रभुता की ये लघुकथाएँ पाठक वर्ग पर एक विशिष्ट प्रभाव छोड़ती हैं।
कृति: छोटे-छोटे सायबान (लघुकथा-संग्रह) : पुरुषोत्तम दुबे; पृष्ठ: 40, मूल्य: 40 रुपये, संस्करण: 2021; प्रस्तोता: जन लघुकथा साहित्य, एम-70, दिल्ली-110032 -0-