ममता कालिया / परिचय

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 ममता कालिया की रचनाएँ     

इस सदी के सातवें दशक में जहाँ ममता कालिया ने लेखन आरंभ किया, कथा-कहानी में तब स्त्री की एक भीनी-भीनी छवि स्वीकृति और समर्थन के सुरक्षा-चक्र में दिखाई देती थी। व्यावसायिक पत्र-पत्रिकाएँ इस यथास्थितिवाद को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थीं।

रोज़मर्रा के संघर्ष में युद्धरत स्त्री का व्यक्तित्व

ममता कालिया ने अपने लेखन में रोज़मर्रा के ,संघर्ष में युद्धरत स्त्री का व्यक्तित्व उभारा और अपनी रचनाओं में रेखांकित किया कि स्त्री और पुरुष का संघर्ष अलग नहीं, कमतर भी नहीं वरन समाजशास्त्रीय अर्थों में ज़्यादा विकट और महत्तर है।

जन्म

२ नवंबर १९४० को वृंदावन में जन्मी ममता की शिक्षा दिल्ली, मुंबई, पुणे, नागपुर और इन्दौर शहरों में हुई। उनके पिता स्व श्री विद्याभूषण अग्रवाल पहले अध्यापन में और बाद में आकाशवाणी में कार्यरत रहे। वे हिंदी और अंग्रेजी साहित्य के विद्वान थे और अपनी बेबाकबयानी के लिए जाने जाते थे। ममता पर पिता के व्यक्त्वि की छाप साफ दिखाई देती है।

'प्यार शब्द घिसते घिसते चपटा हो गया है अब हमारी समझ में सहवास आता है' जैसी साहसी कविताओं से लेखन आरंभ कर ममता ने अपनी सामर्थ्य और मौलिकता का परिचय दिया और जल्द ही कथा-साहित्य की ओर मुड गईं। उन्होंने अपने कथा-साहित्य में हाडमाँस की स्त्री का चेहरा दिखाया। जीवन की जटिलताओं के बीच जी रहे उनके पात्र एक निर्भय और श्रेष्ठतर सुलूक की माँग करते हैं जहाँ आक्रोश और भावुकता की जगह सत्य और संतुलन का आग्रह है।

संप्रति

ममता कालिया पिछले तैंतीस वर्षो से अध्यापन से जुड़ी रही हैं और संप्रति महिला सेवा सदन डिग्री कॉलेज इलाहाबाद में प्राचार्या हैं। वे प्रख्यात रचनाकार श्री रवीन्द्र कालिया की पत्नी हैं और उनके दो बेटे हैं अनिरुद्ध और प्रबुद्ध।

प्रमुख कृतियाँ व सम्मान

ममता कालिया की रचनाओं में उनके कहानी संग्रह 'छुटकारा', 'उसका यौवन', 'जाँच अभी जारी है', 'प्रतिदिन' और 'चर्चित कहानियाँ' उल्लेखनीय हैं। उनके प्रमुख उपन्यास हैं-'बेघर', 'नरक दर नरक', 'प्रेम कहानी' और 'एक पत्नी के नोट्स।' आजकल उनका लघु उपन्यास 'दौड' ('तद्भव' में प्रकाशित) चर्चा के केंद्र में है। ममता को इससे पहले 'कहानी' पत्रिका (सरस्वती प्रेस) सम्मान, उ० प्र० हिंदी संस्थान का यशपाल सम्मान तथा अभिनव-भारती (कलकत्ता) का रचना सम्मान सहित अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान‎ से सम्मानित संपर्क : prabudhkalia@hotmail.com

एक और परिचय

ममता कालिया

जन्म सन् 1940, ममता कालिया का जन्म मथुरा उत्तर प्रदेश में हुआ। उनकी शिक्षा के कई पड़ाव रहे जैसे नागपुर, पुणे, इंदौर, मुंबई आदि। दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेज़ी विषय में एम०ए० किया। एम०ए० करने के बाद सन् 1963-1965 तक दौलत राम कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी की प्राध्यापिका रहीं। 1966 से 1970 तक एस०एन०डी०टी० महिला विश्वविद्यालय, मुम्बई में अध्यापन कार्य, फिर 1973 से 2001 तक महिला सेवा सदन डिग्री कालेज, इलाहाबाद में प्रधानाचार्य रहीं। 2003 से 2006 तक भारतीय भाषा परिषद् कलकत्ता की निदेशक रहीं। वर्तमान में नई दिल्ली में रहकर स्वतंत्र लेखन कर रही हैं ।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं — बेघर, नरक दर नरक, एक पत्नी के नोट्स, प्रेम कहानी, लड़कियाँ, दौड़ आदि उपन्यास तथा 12 कहानी-संग्रह, जो सम्पूर्ण कहानियों के नाम से दो खण्डों में भी प्रकाशित हुए हैं। हाल ही में उनके दो कहानी-संग्रह और प्रकाशित हुए हैं, जिनके शीर्षक हैं — पच्चीस साल की लड़की और थियेटर रोड के कौवे।

कथा-साहित्य में उल्लेखनीय योगदान वेफ लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से ’साहित्य भूषण’ सम्मान 2004 में तथा वहीं से 1989 में कहानी सम्मान प्राप्त हुआ था। उनके समग्र साहित्य पर अभिनव भारती, कलकत्ता ने उन्हें ’रचना पुरस्कार’ भी दिया । इसके अतिरिक्त उन्हें सरस्वती प्रेस तथा साप्ताहिक हिन्दुस्तान का श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार भी मिल चुका है ।

ममता कालिया शब्दों की पारखी हैं। साधारण शब्दों में भी अपने प्रयोग से जादुई प्रभाव उत्पन्न कर देती हैं। विषय के अनुरूप सहज भावाभिव्यक्ति उनकी ख़ासियत है। व्यंग्य की सटीकता एवं सजीवता से भाषा में एक अनोखा प्रभाव उत्पन्न हो जाता है। अभिव्यक्ति की सरलता एवं सुबोधता उसे विशेष रूप से मर्मस्पर्शी बना देती है।