ममता / मंजरी शुक्ला

Gadya Kosh से
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ख़्वाबों से आँख मिचौली करने की अब ऐसी आदत पड़ गई थी कि अब रितु जान ही नहीं पाती थी कि क्या सच हैं और क्या झूठ ...क्या उसकी माँ का उसे छोड़कर जाना झूठ था या उसके पापा का दिन रात उसके साथ रहकर उसकी देखभाल करते-करते अपने बालों में काली डाई लगाते हुए उम्र को धोखा देना...उम्र की लुकाछुपी सच थी या बचपन का जवानी से मुस्कुराते हुए आँखों में आँसूं भरकर विदा लेना, कभी दुबारा लौटकर ना आने के लिए I भीगी आँखों को पोंछते हुए उसने दीवार घड़ी की ओर बड़े ही अनमने ढंग से देखा, जैसे उसे पता था कि रात के दो तो बज ही रहे होंगे I परन्तु घड़ी का अकेलापन दूर करना भी तो ज़रूरी था I उस कमरे की घड़ी को अपनी धुंधली दृष्टि से देखते हुए, जो सालों से एक ही जगह टंगी हुई थी, उसकी तन्हाई को दूर करने के लिए ये आवश्यक था कि उसे पल भर के लिए तो देख लिया जाए, वरना जो जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारी साँसों की गवाह रहती है हम उसकी तरफ देखने की कभी ज़हमत तक नहीं उठाते I अपने इस दार्शनिक भाव पर रितु हौले से मुस्कुरा उठी I उसका अंदाज़ा बिलकुल सही था, रात के दो बज रहे थे, पर रोज़ की तरह उसकी आँखों से नींद कोसो दूर थी I नींद आखिर आती भी कैसे, उसके पापा जो समाज की ज़िम्मेदारियों से ग्रस्त थे और जिनके इशारे के बिना मेरठ शहर का पत्ता भी नहीं हिलता था, उनके घर आने का अभी समय ही कहाँ हुआ था I बाहर की समस्या सुनने के लिए वह कितनों के घर जाते थे, ये बात वह उम्र के उस पड़ाव पर जाते ही जान गई थी, जिसे किशोरावस्था कहते है I एक ऐसा दौर, जहाँ ना तो बच्चों के साथ खेलने की उम्र होती है और ना बड़ों के बीच बैठने की इजाज़त, बस फुटबॉल की तरह इधर से उधर लुढ़कते रहो और लोग तुम्हें लातों से मार मारकर गोल करते हुए तुम्हें ठोंक पीटकर गोल भी बनाते रहे I पापा की उसे बहुत याद आ रही थी, अचानक उसे जोरो से हँसी आई और वह हमेशा की तरह फ्रिज से लिमका निकाल कर बैठ गई I इतनी रात में किसके यहाँ फ़ोन करे और क्या कहे कि शहर का कमिश्नर दूसरों की समस्याओं का हल खोजते-खोजते खुद ही लापता हो गया है I कौन उसकी बात पर विश्वास करेगा की दिन की उजली धूप में शराफत से नहाया हुआ कोई पुरुष रात होते ही अमावस के चाँद की तरह गायब हो जाता है I अचानक उसे पता नहीं क्या हुआ वह अपनी माँ की पुरानी फ़ोटो लेकर बैठ गई और मुस्कुराती हुई माँ की तस्वीर देखकर ना चाहते हुए भी उसके आँसूं बह चले I थोड़ी देर तक धीरे-धीरे रोने के बाद उसकी रुलाई फूट पड़ी और पागलों की तरह ज़मीन पर सर मारते हुए वह भरभराकर रो पड़ी I माँ उसे क्यों छोड़ कर चली गई ये उसे कभी पता नहीं चल पाया I उसे अच्छे से याद हैं, वह उस समय दस साल की थी जिस दिन उसकी माँ ने लाल साड़ी पहनकर उसके गाल में मुस्कुराते हुए हलकी-सी चिकोटी काटते हुए पूछा था-"मैं कैसी लग रही हूँ?"

और वह अपनी बेइन्ताह खूबसूरत माँ को एकटक देखती रह गई थी

उसकी माँ इतनी सुन्दर, इतनी गोरी चिट्टी...उसे मानों खुद पर गर्व हो आया था कि उसकी माँ उसकी सभी सहेलियों की माँ से सुन्दर है...सबसे सुन्दर और सबसे प्यारी

और वह दौड़कर उनके गले लिपट गई थी

गीले लहराते बालों से गिरती हुई पानी की बूंदों को पकड़ने के लिए वह अपनी माँ के पीछे-पीछे दौड़ा करती थी और आख़िरी में थककर जब वह अपने घुटने पकड़ कर बैठ जाती तो माँ बड़े ही प्यार से उसके नज़दीक आकर उसके ऊपर गीले बाल झटकती, जिससे वह ख़ुशी से झूम उठती I और रितु का हाथ जैसे अचकचाकर अपने ऊपर की बूंदों को हटाने के लिए अपने आप ही उठ गया I उसे सिर्फ़ अपनी माँ की ही याद थी, अपने बचपन के झरोखों से झाँकने पर...क्योंकि पापा तो हमेशा से ही नाम और पैसों के दीवाने थे I सुबह हो या शाम और या फिर रात, उसने खुद को माँ की ही गोद में पाया, फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि माँ उसे बिना बताए ही चली गई I उसे आज भी अच्छे से याद है, उसके स्कूल में पेंटिंग प्रतियोगिता में जब उसे फर्स्ट प्राईज़ मिला था और वह बिना सांस भरे दौड़ती हुई स्कूल से घर भागी थी I माँ को सबसे पहले अपना पहला प्राईज़ दिखने के लिए I बाहर दरवाजे से ही उसने माँ को पुकारना शुरू कर दिया था, पर जो माँ उसके स्कूल से लौटने के पहले ही पलकें बिछाए धधकती धूप और कड़कड़ाती सर्दी में हमेशा खड़ी रहती थी वह आज कहाँ चली गई थी I दरवाज़े पर लगातार घंटी बजाते हुए जब उसके नन्हें-नन्हें हाथ थक गए, तो वह रोती हुई अपना भरा हुआ टिफिन हाथों में पकड़े हुए दरवाजे पर ही सो गई I जब उसकी आँख खुली तो उसने खुद को बिस्तर पर पाया I पलंग के पास ही पापा के साथ में डॉक्टर अंकल खड़े हुए थे I

पपा उसे देखकर बड़े ही चिंतित स्वर में बोले-"। बेटा, आपने सुबह से खाना नहीं खाया और आपका टिफ़िन भी पूरा भरा हुआ है, तभी देखिये आपको कितना तेज फ़ीवर आ गया है I"

उसने अपने पापा को ऐसे देखा मानों कोई मेहमान उससे बात कर रहा हो I ना तो उसे उनकी इन मीठी बातों में अपनापन दिखाई दिया और ना ही प्यार, बस ये एक तरह का रटा रटाया वाक्य जैसा था जो डॉक्टर अंकल को दिखाने के लिए बोला जा रहा था I और उसका सोचना बिलकुल सही था, जैसे ही डॉक्टर अंकल कमरे के बाहर गए, पापा का एक भरपूर चांटा उसके कोमल गाल पर पड़ा और उसने दर्द से चीखते हुए ओर माँ को याद करते हुए जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया I नौकरानी को बुलाकर उसे दवाइयाँ दिखाते हुए पापा ने उससे कुछ कहा और तेजी से कमरे के बाहर चले गए I पर नौकरानी बहुत भली थी उसने बड़े ही प्यार, मनुहार और सर पर ताम्बे का गमला खाने के बाद भी उसे किसी तरह से खाना और दवाइयाँ खिला ही दी I जैसे ही उसे थोड़ा-सा प्यार और अपनापन मिला वह नौकरानी के गले लग कर फूट-फूट कर रो पड़ी I वह इतना रोई कि उसकी हिचकियाँ बंध गई और उसे उल्टियाँ होने लगी I वह डर गई कि अब उसे बहुत डाँट पड़ेगी, पर उस नौकरानी ने, जिसे अब वह उसके कहने पर दाई माँ कहने लगी थी बड़े ही प्यार से उसे गोद में उठाकर नहलाया, धुलाया और पाउडर लगाकर बिस्तर पर लेटा दिया I उसने हज़ारों बार दाई माँ से पूछा कि उसकी माँ उसे छोड़कर क्यों चली गई, वह तो उसके बिना एक पल भी नहीं रह सकती थी, पर हर बार जवाब दाई माँ के बहते आंसुओं ने ही दिया इसलिए धीरे-धीरे उसने परिस्तिथियों के साथ समझौता करते हुए माँ के बारें में पूछना ही छोड़ दिया I पर उसे इस बात पर हमेशा आश्चर्य होता रहा कि ना तो कभी उसके पापा ने उसकी माँ को ढूंढने की कोशिश की और ना ही कभी नाम लिया I जब वह थोड़ी समझदार हुई तो एक दिन अचानक दाई माँ के पैरों में गिर पड़ी और अपना सर पटकने लगी I दाई माँ की ये देखकर रुलाई फुट पड़ी और वह बोली-"। हमार पाँव छूके काहे हमें नरक के द्वारे पहुँचा रही हो बिटिया?"

वह रोते हुए उनसे विनती करते हुए बोली-"मैं पागल हो जाऊँगी दाई माँ, मुझे बस एक बार बता दो कि मेरी माँ तो मुझे इतना प्यार करती थी, फिर भला वह मुझसे बिना कुछ कहे सुने मुझे अचानक छोड़कर क्यों चली गई? मैं ना तो कभी किसी से शादी कर पाऊँगी और ना ही कभी अपने बच्चों को ममता दे सकुंगी I आँसूं पोंछते हुए रितु आगे बोली-" मेरे बचपन का ज़ख्म अब नासूर बनता जा रहा हैं दाई माँ...और तुम मुझे बहुत जल्दी किसी पागलखाने में देखोगी I "

ये बोलते हुए जब हिचकियाँ लेते हुए उसने उनके कंधे पर अपना सर रखा तो दाई माँ बोली-" हम तोहसे वादा करत हैं, जिनहि दिन तुम डॉक्टरी की परीक्षा में पास हो जाओगी, उ दिन हम तोहके वह कारण बता देब I

पर ऊके पहले हमसे कुछ नहीं पूछना ...और ये कहकर वह रोते हुए वहाँ से चली गई

अब बस रितु के पास अपने जीवन का एक ही मकसद बचा था एम.बी.बी.एस. करना और अपनी माँ के बारे में जानना

उसका बचपन कब लुकाछिपी खेलते हुए जवानी को ढूंढकर ले आया वह जान ही नहीं सकी I

उसकी सुंदरता और सादगी देखकर कई लड़को ने उसके पास आने की नाकाम कोशिश की, पर उस पर तो जैसे जूनून था अपनी माँ को जानने का, उनके बारे में पता करना का, इसलिए वह किसी की तरफ आँख उठकर भी नहीं देख सकी I उसे मन ही मन इन नादान लड़कों की सोच पर हँसी भी आती और वह सोचती कि किसी को अपना दर्द बताए भी तो क्या बताए I वे ज़ख्म जिनसे रिसता खून केवल वहीं देख पा रही थी, उसका इलाज क्या उनमें से कोई भी कर सकता है? "

लोग सोचते कि कमिश्नर की इकलौती लखपति बेटी है जिसका गुरुर उसे सबसे बात करने से रोक रहा है I वे बेचारे ये नहीं जानते थेय कि उसके घर में झाड़ू पोंछा करने वाली काम वाली बाई भी जब अपनी आठ साल की बेटी को लेकर आती और अपनी बेटी को प्यार भरी नज़रों से देखकर उसे दुलारती तो वह खुद को कितना दीन हीन महसूस करती I अचानक बाहर के दरवाज़े की घंटी बजी और उसने घड़ी पर नज़र डाली I सुबह के पाँच बजने वाले थे I आज वादे के मुताबिक दाई माँ को भी आना था, आखिर आज उसने उनकी शर्त भी तो पूरी कर दी थी I पापा हमेशा की तरह घर के अंदर आकर अपने कमरे की तरफ़ चुपचाप चले गए I उसने सोचा कि किसी दिन अगर उसकी जगह कोई चोर घर में घुस आए और दरवाज़ा खोले तो भी पापा के ये समझ में नहीं आएगा कि दरवाज़ा किसने खोला क्योंकि उन्होंने तो कभी ये देखा ही नहीं I खैर अब सिर्फ़ दो घंटे बाकी थे दाई माँ के आने में...अपनी बैचेनी को कम करने के लिए वह चाय बनाकर पीने लगी I थोड़ी देर बाद जब वह पापा के साथ लॉन में बैठकर पेपर पढ़ रही थी तो अचानक वहाँ दाई माँ आ गई और पापा को नमस्ते किये बग़ैर ही उन्होंने उसकी ओर देखा I पापा ने भी उनको देखकर अपना सर पेपर में छुपा लिया और गौर से पेपर पढ़ने का उपक्रम करने लगे I ये देखकर दाई माँ बोली-"साहब, पूरा जीवन तो आप उलटा ही जिए और अब पेपर भी उलटा पढ़ने लगे I"

ये सुनकर पापा का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा और मुझे भी जैसे काठ मार गया I सारी ज़िंदगी मुँह सिलकर काम करने वाली दाई माँ को आज अचानक क्या हो गया था I

मैंने लगभग चीखते हुए कहा-"आपको कोई हक़ नहीं है, पापा से इतनी बद्तमीज़ी से बात करने का पर दाई माँ एक फीकी मुस्कान के साथ बोली-" ... बिट्टू, जो हम बताने जा रहे है, ऊके बाद तो तुम इस मानुस से कभी बात ही नहीं करोगी I "

पापा का चेहरा ये सुनकर जैसे डर के मारे पीला पड़ गया और वह कुछ कहते इससे पहले ही दाई माँ बोली-"तोहार माँ तो तोहको जनम देते ही मर गई थी, ऊके बाद तुम जिनको अपनी माँ समझी वह तोहार सौतेली माँ थी, पर ई पिसाच को उसका तुमसे इतना दुलार सहन नहीं हुआ ...जलन हो गई...ये दुनियाँ का पहला ऐसा बाप होगा जो ई बात से नफरत करे कि इसकी बेटी इससे ज़्यादा उस औरत से प्यार करती थी जो उसकी सौतेली माँ थी I इसको बेटा चाहिए था पर उस देवी जैसी औरत ने साफ़ मना कर दिया था ताकि तोहार हिस्से का प्यार और दुलार कहीं बँट ना जाए I रितु के पैर ये नंगी सच्चाई सुनकर काँपने लगे और उसकी आखों के आगे जैसे अँधेरा छा गया I वह कुछ कहना चाह रही थी परन्तु शब्द उसके गले को नोचकर लहूलुहान कर रहे थे I दाई माँ मुँह में पल्लू ठूंसकर अपनी रुलाई रोकते हुए बोली-" और फिर तोहरे स्कूल जाने के बाद इसने जूते लातों से मारते हुए गर्म सरियें से दागकर उसे इस घर से हमेशा के लिए निकाल दिया I वह इसके पैरों में गिरकर गिड़गिड़ाती रही कि वह आखरी बार तुझसे मिलने के बाद कभी नहीं आएगी... पर ई राच्छस ने ऊसे कहा कि अगर उसने अपनी मनहूस शक्ल तुझे दिखाई तो ये तुझे जान से मार देगा I घृणा और शर्म की शक्ल में रितु के बहते आँसूं उसकी गर्दन को भिगो रहे थे, उसकी इच्छा हुई कि वह उस ज़ुबान को उतने घाव दे, जितनी बार उसकी ज़ुबान ने इस आदमी को पापा कहा है, पर नफ़रत शब्दों पर इतनी भारी पड़ गई कि उसे एक शब्द भी बोलना गँवारा नहीं हुआ

वो भर्राए गले से सिर्फ़ इतना ही कह सकी-" चलो दाई माँ, अब मैं अपने पिता का श्राद्ध करने के बाद अपनी माँ के पास जाकर रहूँगी I और वह दाई माँ का हाथ पकड़कर चल दी, अपने बहते आँसुओं को पोंछते हुए