मय्यहर संगीत घराने को आदरांजलि / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मय्यहर संगीत घराने को आदरांजलि
प्रकाशन तिथि : 22 नवम्बर 2018


संगीत की दुनिया में मय्यहर घराने को सम्मान से देखा जाता है जैसे संस्कृति के क्षेत्र में पेरिस को देखा जाता है। मध्य प्रदेश का पेरिस है मय्यहर और इस घराने ने महान प्रतिभा को अपनी संगीत परम्परा से संजोए रखा लेकिन, विकास के नाम पर किए गए विनाश का रोड रोलर मय्यहर में भी परम्पराएं कुचल रहा है। अली अकबर के पौत्र राजेश खान अमेरिका से आकर मय्यहर को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। प्राचीन 'मय्यहर' को मैहर भी लिखा जाता है। यहीं शारदा देवी का मंदिर है। उन्हें सरकारी सहायता की न तो उम्मीद है और न दरकार है। राजेश खान रियाज़ करते हैं और वर्तमान में गूंजती स्वर लहरी विगत में छेड़े सुरों को अपनी सुशुप्त दशा से जगाकर पुन: झनकार देती है। ध्वनि कभी मरती नहीं। कुरुक्षेत्र में आज भी कराह सुनी जा सकती है।

संगीत घरानों की परम्पराओं को एक घटना से रेखांकित किया जा सकता है। कुछ वर्ष पूर्व टेलीविजन पर किशोरों के गायन की प्रतिस्पर्धा जारी थी और फाइनल में दो किशोर पहुंचे। पाकिस्तान से आए एक किशोर ने फाइनल में गाने से यह कहकर इनकार कर दिया कि उनका मुकाबला उनके ही भारत में रहने वाले ग्वालियर घराने के किशोर के साथ है और वह अपने ही घराने के किशोर से टकराना नहीं चाहता। अत: लाखों का प्रथम पुरस्कार उनके 'हम घराने' किशोर को दिया जाए। इस तरह की भावना संगीत संसार में आज भी मौजूद है। हुक्मरान का शगल है कि वे एक ही परिवार से नेता के आने पर एतराज दर्ज करते हैं। वे मुतमईन हैं कि वे ऐसा नहीं करेंगे। के. आसिफ अली अपनी फिल्म 'मुगल-ए-आजम' का एक गीत बड़े गुलाम अली खान से गवाना चाहते थे। बड़े गुलाम अली खान ने उन्हें टालने के लिए 25 हजार रुपए का मेहनताना मांग लिया। के. अासिफ ने तुरंत ही 50 हजार रुपए उनके चरणों में रख दिए। इस तरह 'मुगल-ए-आजम' में बड़े गुलाम अली खान के दो गीत लिए गए 'शुभ दिन आयो' और 'प्रेम जोगन'। फिल्म संगीतकारों ने शास्त्रीय वादकों की सेवाएं मुंहमांगी रकम देकर ली है। शंकर-जयकिशन ने 'बसंत बहार' में पन्नालाल घोष के बांसुरी वादन का उपयोग किया। चौथे दशक की एक फिल्म में गीत है, 'विरहा ने कलेजा यूं छलनी किया, जैसे जंगल में कोई बांसुरी पड़ी हो'। अफसोस है कि आचार्य शिवदत्त शुक्ला भी इस फिल्म का नाम नहीं खोज पाए।

उस्ताद अलाउद्‌दीन खान का जन्म बंगाल में हुआ था। महाराज मय्यहर ने उन्हें अपने दरबार में सम्मान का स्थान दिया। बंगाल के प्रसिद्ध फिल्मकार ऋत्विक घटक ने उस्ताद अलाउद्‌दीन खान पर एक वृत्त चित्र भी बनाया था। संभवत: इसी वृत्त चित्र का पार्श्व संगीत मानस मुखर्जी ने दिया था। सुनील दत्त के निमंत्रण पर घटक महोदय उनके लिए एक फिल्म बनाने मुंबई आए और अपने साथ संगीतकार मुखर्जी को भी लाए। पटकथा बन जाने पर सुनील दत्त ने नायक की भूमिका करनी चाहिए। यह बात ऋत्विक घटक को उचित नहीं लगी और वे बंगाल लौट गए परंतु मानस मुखर्जी मुंबई में ही रहे। खाकसार की फिल्म 'शायद' में उन्होंने संगीत दिया। आज के प्रसिद्ध गायक शान उन्हीं मानस के ही सुपुत्र हैं। मानस मुखर्जी की मृत्यु उस समय हुई जब वे अपनी कला के शिखर के निकटतम पहुंच गए थे। रविशंकर ने कुछ फिल्मों में भी संगीत दिया है। उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी की 'अनुराधा' में संगीत दिया था। शैलेन्द्र ने गीत लिखे थे। एक गीत इस तरह है, 'हाय रे वो दिन क्यों न आए/ जा जा के ऋतु लौट आए/हाय रे वो दिन क्यों न आए/सूनी मेरी बीना संगीत बिना/सपनों की माला मुरझाए'। इसी फिल्म का एक अन्य गीत है 'जाने कैसे सपनों मैं खो गई अंखियां/ मैं तो हूं जागी मोरी सो गई अंखियां'। यह अजब-गजब सत्य है कि आंखें सो जाती हैं परंतु मनुष्य जागता रहता है, क्योंकि अवचेतन कभी सोता नहीं। सबसे अधिक दुख इस बात का है कि जागे हुए को जगाए कौन। यही हाल अवाम का है। वह सब जानता है कि हुक्मरान हानिकारक है। उसका यह रोना कि कोई विकल्प नहीं है, कोई मायने नहीं रखता। ज्ञातव्य है कि नेहरू के अंतिम वर्षों में लेख प्रकाशित होते थे कि उनके बाद कौन? परंतु लाल बाहदुर शास्त्री आए, बाद में 'गंूगी गुड़िया' कही जाने वाली को सत्ता सौंपी तो उसने स्वतंत्र बांग्लादेश का निर्माण कर 'शत्रु' की एक बांह तोड़ दी और एक कवि हृदय सांसद ने उन्हें दुर्गा का अवतार बताया तो उसे अपने दल में क्षमा मांगने पर बाध्य किया गया। अब उनका दल इस तथ्य को काल्पनिक बता रहा है। संसद की कार्यवाही के रिकॉर्ड में यह मिल जाएगा परंतु जो इतिहास को अपने दृष्टिकोण से पुन: लिखवा रहे हैं, उनके लिए संसद की कार्यवाही बदल देना बाएं हाथ का खेल है।

बहरहाल, मय्यहर घराने के पुनर्जागरण के लिए राजेश खान मय्यहर पहुंच गए हैं। आज के बेसुरे वक्त में राजेश खान का सुर छेड़ना आज भी उम्मीद को ज़िंदा रखता है। आज फिज़ाओं में चुनावी कर्कशता का दौर चल रहा है। ऐसे वक्त में सुर साधना कठिन है परंतु असंभव नहीं। अगर इस तरह का गीत गूंजता है कि 'सुर न सधे क्या गाऊं मैं' तो यह भी गूंजता है 'कौन आया मेरे मन के द्वारे पायल की झनकार लिए।' ज्ञातव्य है कि सचिन देव बर्मन ने कहा था कि फिल्म 'मेरी सूरत तेरी आंखें' के लिए बनाया गीत 'पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई/एक पल बीता जैसे एक युग बीते/ युग बीते मोहे नींद न आई' की प्रेरणा उन्हें काजी नजरूल इस्लाम की एक रचना से मिली है। सृजन क्षेत्र पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष है और रहेगा।