मरद / सत्यनारायण सोनी

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कोई लुगाई आपरै धणी नै इयां कैय सकै कांईं- 'मूंडो दीखै बाळणजोगो। दाढी नीं, मूंछ नीं। बाई बरगो सफाचट्ट! भगवान छोरी बणांवतै-बणांवतै छोरो बणा दियो, बस!Ó बात तो अपरोगी लागै। पण कोई लुगाई कैय देवै तो किस्यो मूंडो पकड़ीजै। लुगाई रो चरित्र अर मोट्यार रो डौळ आंख्यां आडो आवण लागै। बापड़ो है ई बाई जिस्यै मूंडै रो। सूधो गऊ बरगो। पण जोड़ायत नै भळै ऊथळो देवै तो कांईं देवै? मूंडो उतारÓर बैठ ज्यावै गोडां माथै हाथ धरÓर। भगवान माड़ी करी, पच्चीस बरस रै मोट्यार नै ई हाल दाढी-मूंछ नीं बगसी। पण इण में उणरो कसूर ई कांईं, जिको जोड़ायत मूंडै आयो बोल ज्यावै। उण मन ई मन राती आंख्यां करी अर भळै जरड़ी भींचतै सोच्यो, बता देंवतो थनै बाई बरगै मूंडै री औकात। पण लोक-लाज रो डर लागै। जग हंसाई सूं डर लागै। लोग कांईं कैÓसी, 'फकीरियै रो बीनणी साथै सलूक चोखो कोनी। नां रे, टींगर माड़ो नीसर्यो!Ó पण भळै बीं रै भीतर बैठ्यो दूजो मिनख जाग्यो। ...यार, क्यूं जरड़ी भींचै। इस्सी ई मरदानगी हुंवती तो रंडार बोल ज्यांवती। राम-राम करो, जीभ को पाटती नीं। छेछवा करती जका न्यारा। अर बीं री आंख्यां साम्हीं जोड़ायत साथै बीती रातां रा चित्राम घूमण लागै। सेवट कुणसी कमजोरी है उण में! दाढी-मूंछ ई तो नीं बगसी भगवान। बस। वगत री वगत सगळी मनस्यावां तो पूरी करै बो बीं री। भळै आज किण कमजोरी रो डंड मिल्यो है उण नै। बो घणी ताळ इणी गतागम में पजियोड़ो बैठ्यो रैवै अर भळै ऊभो हुयÓर दरपण साम्हीं जावै। मूंडै फूटतै भूरै बाळां नै निरखै। बां माथै हाथ फेरै। होठां रै आसै-पासै उगतै रूंवां नै पंपोळै। लारलै केई बरसां सूं बै बियां रा बियां ई तो खड़्या है। राई घटै नां तिल बधै। केई दफा बो रेजर में पाती घालÓर मूंडै पर फेरै। लोग कैवै, रेजर फेर्यां दाढी-मूंछ तावळी पांगरै। सगळा कोतग कर्या, पण रूं तो आगै बधण रो नांवई नीं लेवै। इणी अळोच में खासा वगत बीतग्यो। सेवट बो आपरै मन में घिरोळा खांवती अै बातां बतावै तो बतावै किण नै? कीं रै साम्हीं खोलै मन री अेकूअेक पड़तां। बीं रै साम्हीं दो-तीन खास-खास भायलां रा चैरा आवै। जिकां साम्हीं आपरी पीड़ रो दरियाव ढोळÓर हळको हुया करै बो। पण आ बात बो बतावै तो कियां बतावै? बतांवतां ई लाज आवै। भायला ई मसखरी करसी जकी न्यारी। 'बाई-बाईÓ करÓर चिगावण लागै तो? लोगां नै तो हाँसण में लाभ। ...अर भळै कठैई जोड़ायत सूं बां रा भेंटा हुयग्या अर ऊठ-बैठ बणायली तो? ...तो बाई बरगै मूंडै री बा धार ई क्यूं मारसी! बो बगनो-सो हुयोड़ो घूंण घालÓर बैठ्यो है अर जोड़ायत फिरै है आंगण में फदका करती। उण नै घर रै कामां सूं ई फोरो कोनी। कठै ई कोई ऊळी-सूळी बात तो नईं है। बो सोचै। आपरै मरद साथै कोई लुगाई इण तरै वरताव कर्या करै है? अैड़ा बोल ई कदे बोलीजै? लोग तो कांणियै नै ई कांणो को कैवै नीं। आप आपरै खसम री सगळी लुगायां कदर करै। लूलै-पांगळां अर भोळा-ढाळां नै ई परोटै। भळै बो तो भण्यो-गुण्यो है। चोखलै चावो है। अड़ोसी-पड़ोसी गांवां तकात रा लोग जाणै। मंच माथै बोलै तो ताळियां बाजण लागै...अर थमण रो नांव ई नीं लेवै। मोकळी वाह-वाही हुवै। अर अठै आपरै ई आंगणै जोड़ायत रा बोल सुणै तो कानां रा कीड़ा झड़ै। भागवान! जूतां री ठरका देंवती, गाळां काढ लेंवती, कोई फरक नीं पड़तो। कोई दरद नीं हुंवतो। पण ओ घाव तो इण भांत कर्यो है कै नां बतावण-जोगो अर नां दिखावण-जोगो। धरती बराड़ देवै नीं, फांसी खाइज्यै नीं। रीस तो घणी ई आवै मन मांय। पण दिमाग फैसलो नीं देवै। जोड़ायत री इण बात रो ऊथळो देवै तो कियां देवै? उण दोनूं हाथां सूं आपरो माथो झाल लियो। बैठ्यै-बैठ्यै उणनै भुंवाळी-सी आवण लागगी। घड़ी-घड़ी जोड़ायत रा बै ई बोल बीं रै दिमाग में गेड़ा काटण लाग्या- 'मूंडो दीखै बाळणजोगो, दाढी नीं, मूंछ नीं, बाई बरगो!Ó अर बीं रै दिमाग में दूजी भांत रा ई चित्राम मंडण लाग्या। ...बीं री जोड़ायत है, दाढी-मूंछ-वाळो अेक गबरू-सो मोट्यार है। अर दोनूं...नईं-नईं! वो आपरी नस नै झटको देवै। दिमाग में चालती इण रील नै थामणी चावै। पण थमै कोनी। भळै चड़ूड़ी हुवण लागै। ...उण मोट्यार साथै बा हड़-हड़ हाँसै। बो मोट्यार ई हाँसै। अर दोनूं बांथमबांथ। ...बो भळै आपरी आंख्यां मींचै, खोलै। माथै ऊपर हाथ फेरै। नीं देखणो चावै ओ दरसाव। भूल जावणो चावै जोड़ायत रा बोल। बिसर जावणो चावै माथै में मंड्या सगळा चित्रामां नै। पण बिसरणो तो दूर, बै चित्राम तो घड़ी-घड़ी बीं साथै खब्बी मांडै। सेवट वो दाढी-मूंछ-वाळै उण मोट्यार री घेटी मोसणी चावै। बीं रा हाथ मोट्यार री घेटी तांईं जाय पूगै। पाछा बावड़ै। भळै बीं रा हाथ आगै बधै। पण हिम्मत नीं हुवै। नईं, नईं, आ कियां बरदास्त हुय सकै! म्हारै थकां, म्हारै ई साम्हीं, कोई म्हारी ई जोड़ायत साथै। ...म्हैं मार नाखूंला उण दुस्टी नै। म्हैं नीं देख सकूं। बस-बस, और नीं देख सकूं। बो जूझतो रैवै आपरै भीतर भंवतै आं भतूळियां सूं। ल्यो चाय पीÓल्यो!ÓÓ जोड़ायत रा बोल सुण फकीरो बावड़्यो। बीं री निजर जोड़ायत रै मूंडै जा अटकी। 'हूं, चाय न्यारी प्यावै!Ó मन ई मन बरड़ायो बो, पण बोल बारै नीं फूट्या। चाय रो कप बीं रै साम्हीं पड़्यो हो। अर साम्हीं पीढो ढाळ, हाथां में चाय री बाटकी झाल, पग पसारÓर बैठगी बा। 'ढंग तो देखो स्साळी रो!Ó वो भळै बरड़ायो मन ई मन। चाय रो अेक लाम्बो-सो सुरड़को खींच, आंख्यां मटकांवती, मुळकती-सी उणरी जोड़ायत आपरै धणी कानी निजरां फैंकी। बो निजर नीं जोड़ सक्यो। भीतर ई भीतर घुटतै निजरां जमीं पर टेक दी। हैं...ओऽ, बा बात तो म्हैं थांनै बतांवती-बतांवती ई भूलगी। काम-धंधा में इस्सी बिचळाइजी, याद ई को रैयी नीं।ÓÓ फकीरै जोड़ायत रै मूंडै कानी तकायो। भळै होळै-सीÓक बोल्यो, कुणसी बात?ÓÓ बा ई, दाढी-मूंछांआळी।ÓÓ दाढी-मूंछ रो नांव सुणतां ई फकीरै रो खून सूखग्यो। सत निकळग्यो। डील में जाणै जीव रो अंस ई कोनी। पण उणरी जोड़ायत तो आप में मगन, बोल्यां जावै ही- ओमियै री बू थारै खातर ओ तानो मार्यो, जद जी में तो इस्सी आई, रांड रा झींटा पटÓर हाथ में देद्यूं। पण पछै सोच्यो, मां-पिताजी गांव सूं आÓसी जद कांईं कैÓसी। अर बास-गळी में जिकरो चालसी कै बीनणी आंवतां ई खाड़ा-नमेड़ा करण लागगी।ÓÓ फकीरै रो मूंडो देखणजोगो हो। बीं रै मूंडै रा भाव पल-पल पलटो खावै हा। साम्हीं पड़्यै कप में चाय ठंडी हुवै ही।

(1998)