मरनखाट / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
बिठनी रौतौॅ के दसौॅ बीघा खेत नीलाम होय गेलै। दोनौॅ बापुत जमींदारौॅ ड्योढ़ी पर हक्कन करी कैॅ कानलै। गोड़-हाथ पकड़लकै। आरजू-मिन्नत करलकै मतुर जमींदार बरपलै नै। उलटे बोलला पर दस-बीस लाठी मार खेलकैॅ केवलां नें। सिपाही तेजा सिंह के साथें चार-पाँच आरो लठैत सिपाही वै दिनां पुरनका सब कस्सर सूद समेत वसूली लेलकै। झूट्ठे जमींदार डरै छेलै कि सब गुआरौॅ एक होय जैतैॅ। कोय कुछ नै बोललै।
बिठनी यै दुक्खौॅ कैॅ सहै नै पारलकै। खटिया पकड़ी लेलकै। एक तैॅ खतियौनी जमीन के नीलामी रौॅ दुख आरो दोसरौॅ आँखी समना गाय-भैंसी नांकी बेटा कैॅ डंगाय देबौॅ। नीलामी रौॅ दुख बिठनी भूलै तैॅ बेटा रौॅ कुहरबौॅ पिछुआबै लागै। खाना-पीना कुछुवे नै सुहाबै। खाय रो इच्छा तैॅ हुअै मतुर अन्न कंठौॅ सें पारे नै हुअैॅ।
पुतोहु लक्ष्मी छेलै। सिराहनौॅ में खाड़ी होय कैॅ कानी-कानी कैॅ बोललै-"बाबू! तोंहें खाना खा। हुनका हरदी तेल के मालिस सें फायदा छै। दस-पाँच दिनौॅ में ठीक होय जैतैॅ।"
बिठनी खटिया पर निढ़ाल पड़लौॅ हों से हाँ तक कुछुवे नै बोेललै। आँखी सें जे लोर चुबी रहलौॅ छेलै उ$ लगातार चूतें रहलै। आरो बींसवां दिन हिचकी ऐलै। पानी मांगलकै आरो बिठनी के दम टूटी गेलै। साँझ के समय छेलै। असकल्लौॅ केवल रौत। सिरहानौॅ में बेटा बिहारी रौतौॅ कैॅ बैठाय कैॅ गोतिया, चटैया आरो दोस्त-मोहिमौॅ कैॅ दाह-संस्कार वास्तें कहै लेली निकली गेलौॅ। घंटा भर में गाँव के बड़ौॅ-बूढ़ौॅ सब दुआरी पर जमा होय गेलै। भरोसी काका सबकैॅ कानतें देखी कैॅ समझैलकै-"कानला सें आबै की होतौ। दुनिया रौॅ यहैॅ रिवाज छेकै। आना-जाना लागलै छै। चल बांस काट। चचरी बनाबौॅ। केवला रे, कफ्फन लानै लैॅ आदमी बजार भेज।"
सब काम फटाफट हुअैॅ लागलै। भियान होतैं फकडोल बनी कैॅ तैयार होय गेलै। सुल्तानगंज घाट लेली गामें से तीस-चालीस आदमी पारा-पारी लहासौॅ कैॅ
कंधा पर ढोलें, ' राम-नाम सत्त छै, सब कैॅ यहैॅ गत्त छैं कहने चललै। दस कोस के सफर। तेसरौॅ पहर तांय पहुँचतै। रातभर बीती जैतैॅ लहास जलैतें। तहिया गाड़ी-बस, ट्रक के इंतजाम कहाँ छेलै।
जेनां-तेनां केवल रौतें बापौॅ के श्राद्ध करलकै। बैल-गाय तैॅ बिकिये गेलै। सौ-पचास करजा भी होय गेलै। जेकरा कन तोंय पत्ता बिछाय कैॅ खैनें छौॅ, ओकरा, तोंय केनां नै खिलैभौॅ। गाँव-समाजे बारी नै देतों। मरनहारौॅ कैॅ बैतरणी पार नै करैभौॅ तैॅ पितर के आत्मा भटकतैं रहतौं। गाय के पूंछ बिना पकड़नें बैतरणी पार हुअैॅ नै पारै। वाभनौॅ के सब फरमैलका पूरा करतें केवलौॅ के दम टूटी गेलै। किसानौॅ से निठल्ला बनिहार बनी गेलै उ$।
अतनौ पर केवलें हिम्मत नै हारलकै। शंभू सिंहौॅ रौॅ हरवाही होय गेलै मतुर विहरिया कैॅ चाकरी लैॅ काहूँ-केकरोह कन नै राखलकै। कम उमर में नौकरी वहौॅ जमींदार या कोय संतानीकौॅ घरौॅ में, बच्चा रो डाड़ौॅ टूटी जाय छै।
आरो फेरू। जिनगी रौॅ गाड़ी दमटूटऔॅ बैलौॅ नांकी भगवान भरोसे चलैॅ लागलै। महिना-साल केना बीती जाय, पतो नै चलै। मालिक शंभू सिंह के दुआरी पर सें झलफल सांझ होला पर कमाय कैॅ आबै। थक्की कैॅ चूर रातौॅ में सूतें तैॅ भियानै कैॅ नींन टूटै। दिशा-मैदान करतें हौॅर जोतै के बेरा होय जाय छेलै। दिन भर मालिकौॅ के काम करतें फेरू वही सांझ बेरां घौॅर। गोड़ौॅ में तेल लगैतें एक दिन बेटा कहलकै-"बाबू, हेनाकैॅ काम नै चलथौं। आबैॅ पाँच-सात बरस बीती गेलै। हम्में जवान होलियै। तोंय कमैबौॅ आरो हम्में बैठी कैॅ खैबैॅ। ई अच्छा नै लागै छै। हमरौ कामौॅ के जुगाड़ करौॅ।"
बाप हाँसलै। कत्तैॅ दिनौॅ के बाद हाँसलौॅ होतै केवल रौत ओकरौ खुद याद नै छै। बिहारी माय बाप-बेटा के बीच हँसी-खुशी रौॅ वातावरण देखी कैॅ बीचें में बोललै-"हाय रे भाग, कत्तैॅ बरस बीती गेलै हिनकौॅ ई हँसी सुनलैॅ। ज़रूरे कोय नया सुरुज उगतै कल खुनु सरंगौॅ में। बाबू की मरर्लै, हिनको हाँसबो-कानबौॅ दुनो लेनें गेलै।"
हाँसते हुअें ही बोललै केवल रौत-"आय छोड़ौॅ बितलौॅ बात बिहरिया माय। हमरा दुनुं बाप-बेटा के बीचौॅ रो बात सुनौॅ। सहिये आय यहे रातौॅ में चान के साथें सुरुजो उगतै।" "के जरैॅ-मरैॅ। ई हँसी-खुशी केकरा अच्छा नै लागै छै।" ई कहते बिहारी के माय भी खटिया गोरथारी में बैठी गेलै-"मनझमान आरो दुखौॅ सें भरलौॅ एक-दू बरस नै, सात बरस बीती गेलै। यहौॅ रंङ़ कोय दुख आरो शोक में जीयै छै। गाड़ी रौॅ बैलौॅ नांकी एक रस्सौॅ मूबान्हलौॅ जिनगी। तोरेह से पार लागै पारै छै ई नरकौॅ के जिबौ। हम्में सब जीव तैॅ मरी-मरी कैॅ जीलौॅ छी।" कहतें-कहतें आँखी से लोर गिरी गेलै बिहारी माय कैॅ।
"केनां की करतिहै हम्में, सोची कैॅ देखौॅ बिहारी माय। दस बीघा खेत जोतै छैलियै आरो आय हरवाही करै छियै। दोसरा के खेत जोतै छियै। एक सौ सत्तर टाका के बान्हलौॅ हरवाहा। ई टाका की हम्में अपना जिनगी में दियै पारबै। हमरा मरला के बाद हमरा बेटा कैॅ हौॅर जोतै लैॅ पड़तै। बेटा के बाद पोता कैॅ। पुश्त-दर पुश्त, जब तांय टाका नै गिनी कैॅ दैतै, तब तांय इ हरवाही चलतै रहतै। हरवाही के रोक्का बिना फाड़नें मुक्ति नै। आरो मजूरी भी बान्हलौॅ अनटेटलौॅ रंङग। दिन भरी रौॅ मजूरी चार पैला धान। जलखैय में एक पैला सत्तू, कलौवा में दू पैला। हमरे तैॅ पेट नै भरै छै। दिनभर पेट बान्ही कैॅ कमाय लैॅ लागै छै। देखै नै छौॅ हमरौॅ धरान। पचास बरसौॅ सें बेशी उमर नै होलौॅ होतै आरो बूढ़ौॅ लागै लागलियै। अंग थकै लागलै। ई तैॅ भगवानें परिवार छोटौॅ देनें छैं। जे सवा सेर धानौॅ में लाय-लपटाय कैॅ काम चली जाय छै।" केवल रौत जे अब तांय खोली कैॅ नै बोललौ छेलै आय बोली कैॅ लंबा सांस लेलकै आरो उठी कैॅ खटिया पर बैठी रहलै।
बिहारी नें माय कैॅ झिड़कलकै-तोंय माय, बीचौॅ में आबी कैॅ चौपट करी देल्हौॅ। आबैॅ हमरौॅ सुनौॅ। हम्में बाबू कैॅ सहारा दें लैॅ चाहै छियै। आबैॅ हम्में बैठी कैॅ खाय वाला नै छिहौं। "
"जै बातौॅ लैॅ तखनी हम्में हाँसैॅ लागलौॅ छैलियै उ$ बात फेरु शुरू होलै। चलौॅ छोड़ौॅ बीतला बातौॅ कैॅ। ई हमरा बतावौॅ बिहारी माय कि बाबू हमरौॅ बियाह कहिया करनें छेलै। तोंय लाजौॅ सें नै बोलभौ, हम्में जानै छियै। बिना वियाह करनें बाबू हमरा हरौॅ के लागनों पकड़ैॅ नै देलैॅ छेलै। पैन्हें बिहारी के वियाह करौॅ, ऐकरौॅ बाद तैॅ जिनगी भर कमाना-खाना छेबै करै।" ई कहतें केवलौ के मुँहौॅ पर खुशी नाची गेलै। बिहारी लजैलैॅ आँरो माय ठठाय कैॅ हाँसलै।