मराठी फिल्मों के नए पूंजी निवेशक / जयप्रकाश चौकसे

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मराठी फिल्मों के नए पूंजी निवेशक
प्रकाशन तिथि : 29 मई 2018


प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण और अनुष्का शर्मा फिल्म निर्माण क्षेत्र में सक्रिय हो रही हैं और सभी चाहती हैं कि वे मराठी भाषा में फिल्में बनाएं। क्षेत्रीय फिल्मों में आर्थिक जोखिम कम होता है। इनमें प्रयोगात्मक फिल्में बनाई जा सकती हैं क्योंकि प्रस्तुतिकरण से अधिक महत्वपूर्ण कहानी का चुनाव इनमें किया जा सकता है। इसके साथ ही मराठी भाषा में बनी फिल्मों को हिन्दुस्तानी में भी बनाया जा रहा है जैसे करण जौहर 'सैराट' बना रहे हैं जिसमें बोनी-श्रीदेवी की सुपुत्री जाह्नवी और शाहिद के छोटे भाई अभिनय कर रहे हैं। भारतीय फिल्मों का इस तरह विविध भाषाओं में बनाया जाना हमेशा होता रहा है। एक मुंबइया निर्माता ने तो चेन्नई में कुछ लोगों को नियुक्त किया है कि वे अच्छी फिल्मों पर निगाह रखें। ठीक इसी तरह पाकिस्तान में भी सवैतनिक लोग रखे हैं जो वहां के मधुरतम गीतों को भारत भेज सकें। दरअसल दुनिया के किसी भी देश में बनने वाली फिल्मों पर हम हाथ साफ करते रहे हैं। शम्मी कपूर निर्देशित संजीव कुमार व जीनत अमान अभिनीत 'मनोरंजन' अमेरिकन 'इरमालॉड्स' से प्रेरित थी। संजीव कुमार को भुलाना संभव नहीं है। सदी के महानायक प्रचार तंत्र की आंधी में भी हम संजीव कुमार को नहीं भूल सकते।

सन् 1913 से सन् 1931 तक भारत में मूक फिल्में बनती रही हैं और उनका प्रदर्शन पूरे भारत में होता था परन्तु फिल्म में ध्वनि के आते ही वे क्षेत्रीय हो गईं। हम भाषाओं और नदियों को लेकर हमेशा ही लड़ते रहे हैं और प्रदूषण मुक्ति के लिए ली गई गंगा की सौगंध महज एक नारा ही साबित हुई। दादा फालके की प्रथम भारतीय फिल्म राजा हरिश्चंद्र की कथा भारत की सभी भाषाओं में फिल्माई गई। सत्य को समर्पित राजा हमारा आदर्श है और झूठ बोलते रहना हमारे नेताओं का यथार्थ है।

मराठी भाषा में बनी पहली फिल्म के साउंड रिकॉर्डिस्ट विष्णुपंत दामले थे। 'अयोध्याचा राजा' मात्र उन्नीस दिन की शूटिंग में बना ली गई। शांताराम ने इसे निर्देशित किया था। इस फिल्म के प्रदर्शन के मात्र दस दिन पूर्व ही 'संत तुकाराम' का भी प्रदर्शन हुआ था परन्तु संभवत: नाटक के मंचन के समय शूट किए जाने के कारण उसे पहली मराठी सवाक फिल्म नहीं माना गया और यही घटना प्रथम भारतीय फिल्म 'राजा हरिशचंद्र' के पहले प्रदर्शन के पूर्व भी घटी थी। पूना में प्रभात फिल्म कम्पनी की स्थापना हुई थी। स्टूडियो निर्माण के पूर्व वहां एक वृक्ष लगाया गया था और कालांतिर में छात्र प्राय: उसके नीचे बैठते थे और मंथन करते थे। 'महाभारत' सीरियल के एक अत्यंत साधारण से अभिनेता को पूना फिल्म संस्थान का अध्यक्ष मौजूदा सरकार ने बनाया था। उसी समय से इस महान संस्था ने अपनी गरिमा खो दी।

भालजी पेंढारकर ने 'वंदे मातरम आश्रम' नामक फिल्म बनाई थी जिसके प्रारंभ में महात्मा गांधी का कथन प्रस्तुत किया गया था। 'वे शिक्षण संस्थाएं मृत समान हैं जहां आदर्श की शिक्षा देते हुए छात्र को व्यावहारिक जीवन के यथार्थ से जूझना सिखाया नहीं जाता'। ये शब्द आज भी संगमरमरी स्कूली इमारतों में गूंजते हैं जहां हम केवल परीक्षा में पास होना सिखाते हैं और वे अपनी डिग्रियों को डेगर की तरह इस्तेमाल करते हुए जीवन मूल्यों को रक्तरंजित करते हैं। आज सबसे अधिक मुनाफा शिक्षा संस्थान और अस्पताल व्यवसाय में है। देश के बीमार होने के ये ही कारण हैं।

ज्ञातव्य है कि दिलीप कुमार अभिनीत 'राम और श्याम' भालचंद्र पेंढारकर को समर्पित की गई है। गौरतलब है कि दक्षिण भारत का फिल्मकार मराठी भाषा में फिल्में बनाने वाले को आदरांजलि देता है। \ ग्वालियर के राज परिवार से संबंधित वनमाला पृथ्वीराज कपूर अभिनीत 'सिकंदर' की नायिका थीं। उन्होंने राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त फिल्म 'श्यामची आई' का निर्माण किया। अपने शिखर पर पहुंचकर उन्होंने फिल्मों से संन्यास ले लिया और अपने बीमार पिता की सेवा के लिए ग्वालियर लौट आईं। यह एक साहसी फैसला था। शशिकपूर का मत था कि वनमाला से अधिक खूबसूरत कोई नायिका नहीं रही है। वे अपने पिता के साथ 'सिकंदर' के सैट पर एकटक वनमाला को निहारते रहते थे।

डॉ. जब्बार पटेल ने सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्में बनाईं। उनकी फिल्म 'सिंहासन' में नेताओं पर करारा व्यंग्य था। उनकी 'जैत रे जैत' एक महान प्रयोग सिद्ध हुआ। कुछ वर्ष पूर्व डॉ. जब्बार पटेल ने पूना में राजकपूर के फार्महाउस के एक हिस्से में फिल्म माध्यम की शिक्षा देेने वाली संस्था का आकल्पन किया था। ज्ञातव्य है कि राजकपूर का वह सौ एकड़ का फार्महाउस उनकी मृत्यु के कुछ समय बाद बेच दिया गया था और खरीददार वहां शिक्षा संस्थान ही बनाना चाहता था। कई बार प्रयास करने के बाद भी डॉ. जब्बार पटेल से संपर्क नहीं हुआ। यह भी ज्ञात नहीं हो सका कि वे फिल्म माध्यम पढ़ाने वाला संस्थान बना पाए या नहीं।