मर्दाना फिल्में, जनानी फिल्में व सार्थक फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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मर्दाना फिल्में, जनानी फिल्में व सार्थक फिल्में
प्रकाशन तिथि :14 मई 2015


अनुष्का शर्मा ने जोया अख्तर की 'दिल धड़कने दो' की शूटिंग कमोबेश उसी दौरान की जब वे अनुराग कश्यप की 'बॉम्बे वेलवेट' कर रही थीं। उनका कहना है कि ज़ोया अख्तर महिला होने के कारण स्त्री पात्रों को महिला के नजरिए से प्रस्तुत करती हैं। निर्देशक के लिंग का उसके काम पर कितना असर पड़ता है यह बताना कठिन है। दरअसल, निर्देशक की अभिरुचियों पर सब कुछ निर्भर करता है, न कि उसके स्त्री या पुरुष होने से कोई अंतर आता है। बिमल राय की फिल्मों की महिलाएं अत्यंत संवेदनशीलता से प्रस्तुत हुई हैं। उनकी चंद्रमुखी और पारो अद्‌भुत चरित्र-चित्रण हैं। उनकी चंद्रमुखी ही देवदास से कहती है कि पारो के लिए उसकी तड़प से उसने पारो को जाना है और वह पारो का बहुत आदर करती है। बिमल राय की 'बंदिनी' तो लगता है कि नायिका कल्याणी के हृदय में ही शूट की गई है। वैष्णव संत स्वभाव के बंगाली बिमल राय किसी भी महिला निर्देशक से अधिक संवेदना से नारी पात्र प्रस्तुत करते हैं।

'हैप्पी न्यू ईयर' और 'तीस मार खां' जैसी मसाला फिल्में बनाने वाली फराह खान ने कहा था कि वे 'मर्दाना फिल्में बनाती हैं तो उन्हीं की विचार-शैली से उनके पति शिरीष व भाई साजिद शायद 'जनाना फिल्में' बनाते हैं। नरगिस की मां जद्‌दनबाई भी फिल्में निर्देशित करती थीं परंतु मेहबूब खान ने 'मदर इंडिया' बनाई है, इसी तरह नूतन की मां शोभना समर्थ ने भी फिल्में बनाई हैं परंतु उनकी बेटी के साथ बिमल राय ने 'सुजाता' और 'बंदिनी' बनाई हैं। सीधी-सी बात है कि निर्देशक की अपनी शिक्षा, संस्कार व अभिरुचियां निर्णायक सृजन शक्ति है, न कि उनका पुरुष या नारी होना। अपर्णा सेन सफल सितारा रही हैं और उन्होंने अनेक सार्थक फिल्में रची हैं जैसे अकेलेपन की विरल थीम पर महान फिल्म जैनिफर कैंडल-कपूर अभिनीत '36 चौरंगी लेन' व राखी अभिनीत 'परमा' तथा स्वयं अपनी पुत्री कोंकणा के साथ भी उन्होंने कमाल की फिल्में रची हैं। अयान मुखर्जी की 'वेक अप सिड' व मधुर भंडारकर की 'पेज तीन' में भी कोंकणा सेन का चरित्र-चित्रण बहुत अच्छा किया गया है। शोनाली बोस की 'मार्गरिटा विद अ स्ट्रॉ' सर्वकालिक महान रचना है और सेक्चुअलिटी को उन्होंने कवि की तरह प्रस्तुत किया है। करण जौहर जैसे साधन सम्पन्न निर्देशकों से बेहतर ढंग से शोनाली बोस ने 'मार्गरिटा' में न्यूयॉर्क प्रस्तुत किया है। उनके पात्रों की नजर से उन्होंने न्यूयॉर्क दिखाया है।

अरुणा राजे ने अपने पति के साथ मिलकर विनोद खन्ना और शबाना आजमी अभिनीत 'शक' बनाई है और पति से तलाक लेने के बाद अरुणा राजे ने हेमा मालिनी, विनोद खन्ना और नसीर अभिनीत 'रिहाई' बनाई है जो एक कस्बाई नायिका के अवचेतन में झांककर उसके अपने महिला होने के गौरव को विपरीत परिस्थितियों में भी कायम रखते हुए प्रस्तुत किया है। वह अपनी कोख में पर पुरुष के बच्चे के लिए संघर्ष करती है, क्योंकि उसे अपनी कोख के गौर‌व की रक्षा करनी है और इसी फिल्म में एक संवाद था कि 'नारियों से सीता-सा आचरण रखने की आकांक्षा रखने वाले पुरुष क्या स्वयं भी राम की तरह चरित्रवान रहे है?'

जोया अख्तर की पहली फिल्म 'लक बाय चांस' फिल्म उद्योग पर व्यंग्य की तरह रची गई। जावेद अख्तर व हनी इरानी की पुत्री जोया अख्तर ने बचपन से ही फिल्म उद्योग को नज़दीक से देखा था। जोया अपने भाई फरहान अख्तर और अपनी मां हनी से अलग किस्म की फिल्में बनाती है। एक ही परिवार में एक ही माता-पिता की संतानें जोया व फरहान अलग किस्म की फिल्में बनाती हैं, क्योंकि उन दोनों की व्यक्तिगत अभिरुचियां अलग-अलग हैं। मनुष्य फैमिली नामक फैक्ट्री में बनाए एक से प्राणी नहीं होते, यह व्यक्ति का व्यक्ति से अलग होने का प्रमाण है और वे सारी राजनीतिक प्रणालियां, जो सारे मनुष्यों को एक-सा सोचने के लिए बाध्य करती हैं, अमानवीय हैं। मेहबूब खान, राज कपूर और सुनील दत्त पर विदुषी नरगिस का गहरा प्रभाव रहा है परन्तु तीनों ने भिन्न किस्म की फिल्में बनाई हैं। मनुष्य की तरह फिल्में भी फैक्ट्रियों में नहीं बनती।