मर्द / पद्मजा शर्मा

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वे उच्च शिक्षित, नौकरी पेशा सहेलियाँ हैं। दोनों में उस दिन लंच टाइम में स्त्री-पुरुष सम्बन्ध, विवाह और स्त्री की स्वतंत्रता पर तीखी बहस छिड़ गई. मीना कह रही थी कि स्त्री-पुरुष अकेले में अधूरे हैं। यह अधूरापन विवाह से पूर्णता प्राप्त करता है और तभी तो वह माँ बन सकती है। मगर श्रद्धा ने मीना की बात से असहमति जताई. इर्द-गिर्द बैठे खाना खाते हुए साथी उनके तर्क-वितर्क सुन रहे थे। कोई हंस रहा था तो कोई लापरवाही से इधर-उधर नजरें दौड़ा रहा था। श्रद्धा ने कहा-'स्त्री अपने आप में पूर्ण इकाई है। उसके लिए विवाह नामक संस्था में रजिस्ट्रेशन करवाना कतई ज़रूरी नहीं। बिना शादी के भी वह माँ बन सकती है। टेक्नोलॉजी कितनी एडवांस हो गई है।'

चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सुगनी देवी कब से चाय की ट्रे लेकर खड़ी दोनों की बातें सुन रही थी। वह अचानक उस बहस को विराम देते हुए बोली-' देखो मैडम जी, पूरण-अपूरण और स्वतन्त्रता का तो पता नहीं, पर इतना जानती हूँ कि औरत-औरत है, यह मरद ही उसे बताता है और मरद-मरद है यह उसे औरत ही बताती है और सिर्फ़ वही बता सकती है। दोनेां एक दूसरे से हैं। एक दूसरे के लिए हैं। एक दूसरे के बिना न औरत पूरण औरत है न मरद पूरण मरद ही है।

लंच टाइम समाप्ति के साथ ही बहस भी समाप्त हो चुकी थी और उस दिन के बाद उस दफ्तर में इस विषय को लेकर कभी बहस नहीं हुई।