मर कर भी किसी के आंसुओं में मुस्कुराएंगे / जयप्रकाश चौकसे

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मर कर भी किसी के आंसुओं में मुस्कुराएंगे
प्रकाशन तिथि : 06 नवम्बर 2019


आज से लगभग पैंतीस वर्ष पूर्व संजीव कुमार की मृत्यु हुई थी। गुज़श्ता सदी में बलराज साहनी, उत्पल दत्त, दिलीप कुमार और राज कपूर जैसे विलक्षण कलाकार हुए हैं। वर्तमान में भी इरफान खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, अन्नू कपूर, सौरभ शुक्ला और आमिर खान की तरह के कलाकार सक्रिय हैं। परंपरा से प्रेरणा लेकर व्यक्तिगत प्रतिभा अपने स्वतंत्र योगदान से परंपरा को शक्तिशाली करते हुए ओजस्वी नदी की तरह सदैव प्रवाहमान रहती है। 'बजरंगी भाईजान' में सबसे अधिक लोकप्रिय सितारे सलमान खान भी अभिनय अखाड़े में 'सुल्तान' की तरह दंड पेल रहे हैं। दरअसल फिल्म विद्या का असली सितारा लेखक ही होता है। फ्रांस के फिल्म आलोचकों की 'आॅतर थ्योरी' भी यही तथ्य रेखांकित करती है। सन् 1908 में पहली बार कलाकार का क्लोजअप लिया गया और सितारा अवधारणा का जन्म हुआ। सितारे दर्शक सिनेमाघर लाते हैं और इस तरह वे फिल्म उद्योग के आर्थिक मेरुदंड बन जाते हैं। कुछ फिल्मों में कहानी सितारा होती है जैसी हाल ही में 'सांड की आंख' में हमने देखा।

इसके फिल्मकार ने एक कलाकार के क्लोज-अप के आगे पीछे कुछ दृश्य जोड़े और दर्शकों ने कहा कि कलाकार ने दुख की भावना को अभिव्यक्त किया है। फिल्मकार ने उसी भावहीन क्लोज अप के साथ कुछ अन्य दृश्य जोड़कर पुन: दिखाया तो दर्शकों ने कहा कि कलाकार ने सुख को अभिव्यक्त किया है। एक ही शॉट पर दो प्रतिक्रियाएं संपादन के महत्व को प्रतिपादित करती हैं। गोयाकि फिल्म लेखन की मेज और संपादन उपकरण की मेज पर बैठकर ही किया जाता है।

महाश्वेता देवी के उपन्यास से प्रेरित फिल्मकार एचएस रवैल ने बलराज साहनी, दिलीप कुमार, वैजयंती माला और जयंत अभिनीत फिल्म 'संघर्ष' बनाई थी। 'संघर्ष' में संजीव कुमार ने मात्र कुछ ही दृश्यों में अभिनय किया था। एक दृश्य में संजीव कुमार अभिनीत पात्र दिलीप कुमार अभिनीत पात्र की बाहों में दम तोड़ता है। इस छोटे से दृश्य की शूटिंग के बाद दिलीप कुमार ने कहा था कि संजीव कुमार विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं और अवसर मिलने पर कमाल का काम करेंगे। कालांतर में संजीव कुमार ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। यह भी गौरतलब है कि संजीव कुमार और जया (भादुड़ी) बच्चन ने अनेक फिल्मों में विविध रिश्ते अभिनीत किए हैं। 'शोले' में जया, संजीव कुमार की बहू तो गुलजार की 'परिचय' में उनकी पुत्री का पात्र अभिनीत कर चुकी हैं। कुछ फिल्मों में उन दोनों ने युवा प्रेमी पात्र भी अभिनीत किया है।

ज्ञातव्य है कि हरिभाई जरीवाला ने अभिनय क्षेत्र में प्रवेश करते समय अपना नाम संजीव कुमार अपनाया था उन्होंने शशधर मुखर्जी के फिल्म अभिनय संस्थान में दाखिला लिया था। मसाला मनोरंजन के आदिगुरू शशधर ने कहा कि यह थुलथुले शरीर वाला संजीव कुमार कभी सितारा नहीं बन पाएगा। वे उसे अपने संस्थान से निकालना चाहते थे परंतु उनके सहायक आर के नैय्यर ने उन्हें रोका। आरके नैय्यर, मुखर्जी महोदय के लिए सफल फिल्म 'लव इन शिमला' बना चुके थे और फिल्म उद्योग में सफल व्यक्ति की बात को मंत्र की तरह माना जाता है।

उपरोक्त घटना के पच्चीस वर्ष पश्चात संजीव कुमार ने आर के नैय्यर के साथ बिना किसी शर्त के अभिनय करना चाहा। संभवत: वह अपना "कर्ज" चुकाना चाहते थे। शशधर मुखर्जी से नैय्यर ने सिफारिश की थी। संजीव कुमार आर के नैय्यर की लगातार चालीस दिन की शूटिंग में काम करने के बाद अमेरिका में अपने हृदय की शल्य चिकित्सा कराने वाले थे। इस तरह खाकसार की लिखित त्वरित फिल्म "कत्ल" का निर्माण हुआ। "कत्ल" की शूटिंग के दिनों में संजीव कुमार ने बताया कि उनकी विगत तीन पीढ़ियों में ज्येष्ठ पुत्र के दस वर्ष का होते ही उसके पिता का निधन हो जाता है। संजीव कुमार ने शादी नहीं की थी। सुलक्षणा पंडित दिलो जान से उन पर न्योछावर हो रही थीं।

संजीव के छोटे भाई का कार दुर्घटना में निधन हुआ। संपत्ति को लेकर भविष्य में कोई विवाद ना हो जाए, इसलिए संजीव ने अपने दिवंगत भाई के पुत्र को कानूनी तौर पर गोद लिया था। अत्यंत आश्चर्यजनक और तर्कातीत बात है कि उनका गोद लिया पुत्र दस वर्ष का हुआ और उनका निधन हो गया। इस तरह की बातों पर विश्वास करने का मन नहीं होता परंतु यथार्थ कुछ और ही संकेत देता है। इस तरह की घटनाओं के होने के बाद भी हमारे पास तर्क का कोई विकल्प नहीं है। मिथ मेकर और माइथोलॉजी शासित काल खंड में हम तर्क सम्मत विचार का त्याग नहीं कर सकते।