मलहम / मेनका मल्लिक

Gadya Kosh से
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दू बजे रातिसँ प्रमोदकें दस्त शुरु छलनि। भोर होइत-होइत पाँच-छओ बेर भऽ चुकल छलनि। घरमे राखल प्राथमिक उपचारक कोनो दवाइ सुनवाइ नहि कएलक। कमजोरी बड़ रहनि। कोनहुना राति काटलहुँ। हम डॉ. चौधरीक घर फोन घुमौलहुँ। घण्टी बजैत रहल। कोनो उतारा नहि। मोन घबराएल छल। मोने मोन तय कएलहुँ जे किएक ने हुनका क्लिनिके पर नेने जाइ. हुनक कम्पाउण्डर राम अशीष होयबे करत। हम राम अशीषकें फोन कयलहुँ।

राम अशीष बाजल, "जल्दी नेने अबियनु। हम क्लिनिके में छी।"

हम झा जीकें फोन कयलहुँ जे ओ जल्दी गाड़ी लऽ कऽ आबथि। हम झोरामे चद्दरि आ कम्मल राखि घरक गेट सभमे ताला लगाबऽ लगलहुँ। ताबत झा जी आबि गेलाह। हमरालोकनि प्रमोदकें लऽ कऽ डॉ. चौधरीक क्लिनिक लेल बिदा भेलहुँ।

डॉ. चौधरी शहरक प्रतिष्ठित डॉक्टर छथि। जखन ओ डाक्टरी शुरुह कएने छलाह, तखनेसँ हमरा सभसँ परिचय छनि। ताहि समय चौकक कौन पर एकभगाह दिस खपरैलक घरमे क्लिनिक रहनि। राम अशीष सेहो तहिएसँ हुनका संग छनि।

गाड़ी क्लिनिक पहुँचि गेल। राम अशीष क्लिनिकक बाहरेमे ठाढ़ छल। प्रमोदक हाथ पकड़ि भीतर लऽ गेल आ एकटा अखड़ा चौकी दिस संकेत करैत चद्दरि ओछाबऽ कहलक। हम झोरासँ चद्दरि बहार कऽ ओहि चौकी पर ओछओलहुँ। ओम्हरसँ स्लाइनक बोतल आ आर-आर जोगाड़ लेने राम अशीष आएल आ प्रमोदक देहमे लगा देलकनि।

हम पुछलियै, "डॉक्टर साहेब बिलम्बसँ बैसै छथि की?"

ओ कोनो उतारा नहि देलक। दोसर रोगीकें सूइ देबऽ चलि गेल।

प्रमोदक समक्ष एकटा आओर रोगी छल। ओकरा संग आयल व्यक्ति बाजल, "डॉक्टर साहेबक भरोसे रहबै तऽ पेसेन्टक जय सियाराम भऽ जेतै। देखै नहि छियै। कोना सम्हारैत छै राम अशीष। ई कोनो बात भेलै? एगारह-बारह बजे कोनो बैसऽ के समय भेलै? रोजगार चलऽ लगलै तऽ। ई तऽ बुझू जे राम अशीष भाइ छै जे पेसेन्ट के जान बचै छै।" कने थम्हैत प्रमोद दिस संकेत करैत बाजल, "हिनके देखियौक ने। डॉक्टर साहेबक भरोसे रहितथि तऽ।"

हम कहलियै, "ठीके! डॉक्टर साहेबकें एते विलम्ब नहि करबाक चाहियनि।"

रोगी सभक भीड़ बढ़ि रहल छल। सर्दी, उकासी, ज्वर, रद्द, दस्त आ भाँति-भाँतिक लोक, मुदा राम अशीषक मुँह पर कनेको असहजता नहि झलकैत छल। ओ खन सूइ दैत छल, खन रोगीकें स्लाइन चढ़बैत छल। छोट-छोट नेना सभ कानैत छल, तऽ ओकरो दुलार करै छल, पुचकारैत छल, "बौआ रे! नुनू रे! की होलौ रे? माइ मारलकौ हन? हे नइं कानऽ नुनू। आ...हा...हा...चकलेट देबौ, मिठाइ देबौ...बिस्कुट देबौ।"

राम अशीषक बात सुनितहि नेना चुप भऽ जाइत छल। लगैक जेना राम अशीषक भाषा ओ बूझि गेल होअए. मुदा तखने राम अशीष नेनाक पोन पर सुइया भोंकि दैत छल। नेना फेर कानऽ लगैत छल आ राम अशीष ओकरा परबोधऽ लगैत छल, "आ...हा...हा...की होलऽ नुनू? चुट्टी काटलकऽ। ठीक भऽ जेतऽ।" आ नेनाक मायसँ कहै, "कने सहला दहक। कनिए."

तखने एकटा स्त्री पाँच-छओ बरखक नेनाकें लेने आएलि। सभक ध्यान ओकरा दिस चलि गेलैक। ओकर नेना लारू-बातू भेल रहै आ ओ स्त्री घौना करैत रहै। नेना बेसुमार ज्वरसँ पीड़ित छल आ आँखियो ने खोलैत छल। राम अशीष नेनाक मायकें डॉटि कऽ चुप कएलक। नेनाक माथ पर पानिक पट्टी देबऽ लागल। कोनो दबाइयो देलक। आधा घण्टाक बाद नेना आँखि खोललक। सभकें अचरज भेलैक। नेना टुकुर-टुकुर ताकऽ लागल राम अशीष दिस। राम अशीष पुचकारलक, "नुनू! की होलौ? बिस्कुट लेबहो?"

बिस्कुटक नाम सुनितहिं नेना राम अशीष दिस हाथ बढ़ौलक। राम अशीष टेबुलक दराजसँ बिस्कुटक डिब्बा बहार कएलक आ दूटा बिस्कुट नेनाकें देलक। नेना हुलसि कऽ बिस्कुट खाए लागल। नेनाक माय बाजलि, "सैह दखहो! हम्मे पट्टी दैत-दैत थाकि गेलियै, मुदा बोखार नइं उतरलै। कोनो तरहे राति बितौलियै। अपने भगमान छिकियै राम अशीष भाइ." नेनाक माय भावुक भऽ गेल छलि।

हम राम अशीषक बारेमे सोचऽ लगलहुँ। कतेक धैर्यपूर्वक काज करैत अछि। सात बजे भिनसरसँ राति दस बजे धरि। एतेक काल खटैत-खटैत केहन बुझाइत हेतै? कोना नेना सभ हिताएल रहैत छै? लोक कहैत छैक जे डॉक्टरकें आबऽसँ पहिने आधा दुख राम अशीषे हरि लैत छैक।

प्रमोदक स्लाइनक बोतल सठऽ पर रहैक। हम उठि कऽ राम अशीषकें कहऽ लेल जाय लगलहुँ, ताबत देखलहुँ जे हाथमे दोसर बोतल लेने राम अशीष आबि रहल अछि। प्रमोदक सामने बला रोगीकें दोसर स्लाइन चढ़ि चुकल रहैक। आब ओ डॉक्टरक आसमे छल जे बैसताह तँ देखा कऽ दवाइ लिखाओत। ओकरा संग आयल व्यक्ति बाजल, "नब्बे परसेन्ट दर्द तऽ राम अशीष भाइ ठीक कइये देलकऽ आ दस परसेन्ट दर्द जऽ मर्दकें नइं भेलै तऽ मर्द की?"

ई बात सुनि हमरा हँसी लागि गेल। ओहो दुनू हँसल। ओ व्यक्ति फेर बाजल, "एतेक कतौ देरी भेलैए. अहुरिया काटैत ने रहौक रोगी सभ। डाक्टर लेल धनि सन। डाक्टरीमे नाम जस भऽ गेने सभ ओहने।"

रोगी बाजल, "अरे बुझबे करै हय जे राम अशीष तऽ हेबे करै, तें अपने आराम सऽ अबै हय। आ भी।आइ.पी. आर के घरेमे देखै होतै।"

"धुर। इहो तऽ घरे हइ. नीचामे किलनिक आ उपरमे घर।"

एहि बीच प्रमोदकें तेसर बोतल स्लाइन चढ़ऽ लागल छलैक। डॉक्टर साहेब सेहो आबि गेल छलाह। बेरा-बेरी लोक सभ अपन नम्मरक अनुसार जाय लागल। दवाइ लऽ कऽ राम अशीषकें देखबैत छल। क्लिनिकक भीतरेमे दवाइक दोकान छैक। डॉक्टरे साहेबक छनि। राम अशीष दवाइक झोरी दिस तकैत छल आ पुर्जा दिस सेहो। तकर बाद दवाइक खोराक बुझबैत छल, " ई भोर...ई साँझ...ई सुतऽसँ पहिने...ई खाली पेट...ई खाना के बाद...ई। '

एकटा रोगी बाजल, "हौ राम अशीष भाइ! दवाइएसँ हमरा आर के पेट भरि जेतै की? पाँच सौ रूपा लऽ कऽ आएल रहियै, सबटा बरगाही दवाइएमे सठि गेलै। किछ सौदा-बारी सेहो लै के रहै।"

दोसर व्यक्ति बाजल, "तऽ हिनका किए बोलै छहो? ई लिखै छिकथिन दवाइ?"

पहिल व्यक्ति बाजल, "एकरे कहबै तब ने कहतै डाक्टरके. अपन दोकान छिकनि तऽ। सबटा गरीबे सऽ लुटथिन। हमरा आर के कोनो सरकार दिस सऽ रूपा मिलै हइ?" बजैत दुनू व्यक्ति क्लिनिकसँ बहरा गेल।

हम प्रमोदकें लऽ कऽ चेम्बरमे गेलहुँ। बड़ी काल धरि हालचाल पुछलनि डॉक्टर साहेब। बड़का कतऽ अछि? की करैए? छोटका कतऽ अछि? ओ की करैए? अपन बेटाक बारेमे कहलनि। हुनका दुख छलनि जे हुनक बेटा डॉक्टरी नहि पढ़लकनि। तकर बाद पुर्जा लिखलनि। पथ्य-परहेज कहलनि। बाहर आबि दवाइ कीनलहुँ आ राम अशीषकें देखेलियैक। गहींर साँस लैत ओ दवाइक खोराक बुझएलक। कहलक, "ओना तऽ एक सप्ताहक दवाइ छिकै। जऽ मोन ठीक भऽ जाएत, तऽ एक-दू खोराक के बाद बन्न कऽ देबै। सूइ देबऽ हमे रातिमे आबि जइबै।"

दस बजे रातिमे राम अशीष प्रमोदकें सुइया देबऽ आयल। सुइया देलाक बाद चाह आ बिस्कुट दैत हम पुछलहुँ, "आब घरे जाएब ने?"

ओ बाजल, "हँ, घरे जेबै। आब कते खटियै? भोर सऽ राति धरि घिरनी भेल रहै छी, बजैत-बजैत कंठ सुखा जाइ हए. पैखनो-पेशाब दाबऽ पड़ैए. आइ बोखार लागल रहए. आबऽ के हालमे नइं रहियै। भोरे सऽ रोगी आर के फोन पर फोन आबए लागल। हारि कऽ दबाइ खा कऽ आबि गेलियै। की करियै? अपनो मोन नइं मानै हइ. नइं अबितियै तऽ चिन्ह-जान बला आर घरे पर पहुँचि जइतै। छुट्टीयो ने दै छिकथिन एकाध दिन।"

हम कहलहुँ, "अहाँ सभ दूटा कम्पाउण्डर छी। बेरा-बेरी कहियो कऽ छुट्टी किएक ने लैत छी? संजयकें तँ हम देखबो बहुत कम करै छी क्लिनिकमे।" बजैत हम भानस घरमे चलि गेलहुँ।

राम अशीष बाजल, "संजय सार छिकनि डाक्टर साहेबके. बेसीकाल मेमसाहेबक टहल टिकोरामे लागल रहै छै। क्लिनिक हमरे पर। आब शरीर बर्दास्त नइं करैए. प्रमोद बाबू! अपने तऽ शुरुहे सऽ हमरा देखने छिकियै-खपरैले बला घर सऽ। डाक्टर साहेब अपने के मित्र सन छिकथिन। हमरा कतेको ठाम सऽ फोन अबैए...कतेको डाक्टर अपना क्लिनिकमे बजबैए...मुँहमांगा दरमाहा कहैए. मुदा हमरा माने नइं होइए जे कतौ दोसर जग जाइ. एतेक दिन हिनका हियाँ काटि देलियै, तऽ। आब कथी लेल हाइ-बाप करबै। बेटा इंजीनियर भऽ गेल।" कने थम्हैत बाजल, "सोचने रहियै जे एतहि सऽ रिटायर करब। मुदा आब देखल आ सुनल नइं जाइए."

राम अशीष दुखी लागल।

हम कहलियैक, "की करबै? अहाँ सभक नीक सोचै छियै। नीक करै छियै, तें रोगियो सभ अहाँसँ हिताएल रहैए. अहींकें तकैए. लोकक असंतोषक बारेमे डाक्टर साहेबसँ किएक ने बतिआइत छी?"

राम अशीष बाजल, "हमरा साधंस नइं होइए. ओ हमर बड़ इज्जत करै छिकथिन। दोसर ठाम एते प्रतिष्ठा नइं भेटत। कम्पाउण्डर के-के दैत छै एते प्रतिष्ठा? आइ तक हमरा कहियो राम अशीष नइं कहलका। राम अशीष जी कहब करै छथि। मुदा।"

"की?"

राम अशीष बाजल, "एक सप्ताह पहिनेक घटना छैक। अहाँ के मोहल्ला बला सिंह जीक बेटी के रातिमे साढ़े दस बजे पेट दर्द उठल रहैक। क्लिनिक पर गेला। हल्ला करैत-करैत रहि गेला। गेट नइं खुजलनि। काल्हि भेंट भेल छलाह सिंहजी. सभटा बात कहलका। हमर मोन कचोटलक। जऽ डाक्टरक घर इमरजेन्सी में नइं खुजतै, तऽ किए औतै लोक डाक्टर भिड़ा? मरि नइं जेतै घरेमे?" ओ आक्रोशित छल, "जहिया सऽ अप्पन दोकान भेलनिए, दवाइयो ओतबे हनि कऽ लिखब करै छथिन। केना कहबनि ई बात सब?"

हम दुनू गोटें सुनैत रही।

दुखी मोने ओ फेर बाजल, "डाक्टर भूषण ओतऽ पत्नीक ऑपरेशन छलैक। जा नइं सकलियै। छुट्टीए ने भेटलै। छुट्टी लेल फोन केलियनि डाक्टर साहेब के तऽ फोने ने उठौलखिन। क्लिनिक अएलियै। सोचलियै जे छुट्टी लऽ कऽ चलि जेबै, मुदा पार नइं लगलै। समये ने मिललै। बेटा फोन कैलकै, तऽ सिगनेचर करऽ गेलियै।"

हम मोने मोन सोचऽ लगलहुँ जे आइ सभटा बात बाजिए लेत राम अशीष। बाजओ, भने ओकर मोन हल्लुक भऽ जयतैक। मुदा देवाल घड़ी पर नजरि गेल तँ देखलियैक जे एगारह बाजऽ बला रहैक। मुदा ओ फेर बाजऽ लागल, "परब-तिहार सबटा बिसरि गेलियै। कहिया कौन परब अबै छै आ कहिया जाइ छै, कहाँ बूझि पबै छियै नीक जकाँ।" ओ उठि कऽ ठाढ़ भेल, "अपनेक बहुत समय लेलौं। पुरान लोक छिकियै अपने। अपन लोक। तें बोललौं सब बात। बात बोलि कऽ अपन मोन हल्लुक केलौं।"

राम अशीष विदा भेल।

दोसर दिन, अहलभोरे प्रमोदक पेटमे असह्य दर्द उठलनि। हमरा डर भेल। डॉक्टर चौधरीक ओहिठाम फोन कएलहुँ। कोनो उतारा नहि भेटल। तखन राम अशीषकें फोन कयलहुँ। मुदा ओकर मोबाइल बन्न छल। सोचलहुँ, एकबेर क्लिनिक पर देखि लेबै नहि तँ कोनो दोसर डॉक्टर लग लऽ जयबनि। झा जीकें फोन कएलियनि। ओ अएलाह आ प्रमोदकें गाड़ी पर लादि विदा भेलहुँ।

क्लिनिकक गेट पर बुझना गेल जे राम अशीष नहि आयल अछि। ओ आओत तखने उपचार होयत षायद। दुमहला परसँ डॉक्टर साहेब बजलाह, "झा जी! प्रमोद बाबूकें क्लिनिकमे बैसा दियनु आ कने राम अशीषक ओहिठाम चलि जाउ। नेने आउ ओकरा।"

ई कहि डॉक्टर साहेब भीतर चलि गेलाह। हम सभ ओतेक काल धरि प्रतीक्षा कयल, जतेक कालमे ओ बाहर आबि सकैत छलाह। तकर बाद हम प्रमोदकें नेनहि राम अशीषक ओहिठाम चलि गेलहुँ।

झा जी कहलनि, "चलू ने। दोसरे डॉक्टर लग लऽ जाइत छियनि। नर्सिंग होम लऽ चलियनु। कोनो चौधरीए साहेबक टारामे तेल छनि?"

हम मना कएलियनि झा जीकें, "एहिठाम कौन बड़का शहर आ महानगर सन नर्सिंग होम छैक, जे चौबीसो घण्टा डॉक्टर भेटत। ओत्तहु तँ कम्पाउण्डरे देखत पहिने। आ हिनका एहिठामसँ इलाज चलैत छलनि। चलू राम अशीषकें एही गाड़ी पर बैसौने नेने आएब।"

राम अशीषक घरक बहरिया केबाड़ बन्न छल। बाहरमे ओकरा कात-करोटक किछु लोक रोगीकें लेने ठाढ़ छल। भीतरसँ राम अशीषक स्वर सुनाइ पड़ैत छल। ओ पत्नी पर गरजैत छल, "दू दिन सऽ बोलब करियऽ जे समान सैंति लहो। सबटा काज हमरे पर। बहरियो आ भितरियो। हम्में केतना चिरेबै? जल्दी करहो।" एक गोटें केबाड़ पीटलक, "दुइए मिनट लेल बाहर अबहो ने राम अशीष भाइ."

ओ भीतरेसँ बाजल, "जाह हमरा छोड़ि दहो। दोसर भिड़ा जाहो। हमर टेनक समय होइ गेलै।"

ओ केबाड़ नहि खोललक। तखन झा जी ओकर केबाड़ पीटलनि, "हम छी झा जी. बैंक बला झा जी. प्रमोद बाबू के लऽ कऽ।"

बिच्चहिमे बाजल राम अशीष, " कहलियऽ ने। छोड़ि दहो हमरा। '

हमरा अचरज भेल। भीतरसँ खिड़की-केबाड़ बन्न होएबाक स्वर सुनाइ पड़ैत छल। झा जी फेर बजलाह, "कने बाहर तँ आबह।"

राम अशीष केबाड़ खोललक। ओकरा हाथमे दूटा बैग छलैक। पाछाँसँ ओकर पत्नी एकटा नमहर झोरा लेने बहरायलि आ रिक्शा पर बैसि गेलि। राम अशीष बाजल, "जाइ छिअऽ बेटा लग। बड़ भेलै चौधरी साहेबक सेवा।"

हम बजलहुँ, "डाक्टर साहेब लग गेल रही। कहलनि जे अहाँकें बजा कऽ नेने आबी. अपने दर्दसँ परेशान छथि। कारे में पड़ल छथि।"

राम अशीष इथ उथमे पड़ि गेल। तखनहि ओहि दिनक ओ नेना, जकर बोखार पट्टी दऽ कऽ उतारने छल, मायक कोरामे देखाइ पड़लैक। नेनाकें तखनहुँ बोखार रहैक। ओकर माय बाजलि, "राम अशीष भैया! एकरा फेर बोखार होइ गेलै हन।"

राम अशीष नेना दिस तकलक। नेना आँखि मुनने छल, मुदा ओकरा हाथ ओहिना उठि रहल छलैक, जेना ओहि दिन बिस्कुट लेबाक लेल उठल रहैक।

सभ देखलक जे राम अशीषक हाथक दुनू बैग छुटि कऽ नीचाँ खसि पड़लैक।