मलाई पर एकाधिकार, तलछट के लिए युद्ध / जयप्रकाश चौकसे

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मलाई पर एकाधिकार, तलछट के लिए युद्ध
प्रकाशन तिथि :20 फरवरी 2017

जब बरतन से दूध निकाल लेते हैं, तब बरतन की निचली सतह पर हल्की-सी परत मलाई की शेष रहती है, जिसे तलछट कहते हैं। ऊपरी सतह पर मलाई अधिक होती है। प्राय: तलछट धो दी जाती है या बरतन साफ करने वाली बाई उसे उदरस्थ कर लेती है। इसी तरह मनुष्य की विचार प्रक्रिया में भी तलछट रह जाती है। कुछ वर्ष पूर्व फिल्मकार विशाल भारद्वाज ने चौथे दशक की नाडिया का बायोपिक बनाने का विचार किया था परंतु कुछ व्यावहारिक परेशानी हो सकती थी। वह नाडिया बायोपिक उनकी विचार प्रक्रिया का तलछट था, जो अब काफी परिवर्तन के बाद फिल्म 'रंगून' की शक्ल में प्रदर्शित होने वाली कंगना रनौट, सैफ अली खान और शाहिद कपूर अभिनीत फिल्म 'रंगून' के रूप में प्रदर्शित की जाने वाली है।

दशकों पूर्व होमी वाडिया ने ऑस्ट्रेलिया में एक सरकस कलाकार को देखा और उसे अपनी फिल्मों में अभिनय के लिए भारत ले आए। वाडिया फिल्म कंपनी ने नाडिया और जानकॉउस के साथ अनेक सफल एक्शन फिल्में बनाईं जैसे हंटरवाली, पंजाब मेल इत्यादि। बाद में उन्होंने नाडिया से विवाह भी कर लिया। उन दिनों आज की तरह यह बवाल नहीं उठाया जाता था कि आप अपना भारतीय होना सिद्ध करें। आज तो आपको हर माह पेंशन लेने के लिए अपने जीवित रहने का प्रमाण-पत्र देना पड़ता है। जीवन-मरण सब व्यवस्था के भीतर का मामला है। सारा जीवन 'मुगल-ए-आजम के संवाद की तरह हो गया है कि अनारकली सलीम तुम्हें मरने नहीं देगा और अकबर तुम्हें जीने नहीं देगा। हुक्मरान जीने नहीं देता, उसका प्रचारक हमें मरने नहीं देता।

कंगना रनौट स्वयं ही किसी फिल्म को देखने की एक वजह हो सकती है, क्योंकि वह दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा से अलग भी है और निहायत ही गैर-फिल्मी परिवार की पहाड़ी कन्या है, जिसने अपने संघर्ष के दिनों में फुटपाथ पर भी रातें बिताई है। स्वयं कंगना रनौट का जीवन एक पहाड़ी सिन्ड्रेला की तरह रहा है। उसका अपना जीवन भी बायोपिक का मुंतजिर है कि कैसे एक पहाड़न 'क्वीन' बनी। स्वयं विशाल भारद्वाज का जीवन भी ऐसा ही रहा है। उन्होंने विज्ञापन फिल्मों के लिए जिंगल रचे और आरवी पंडित ने अपनी 'माचिस' के लिए गुलजार और विशाल भारद्वाज की टीम बनाई तथा आज विशाल गुलजार के मानस-पुत्र की तरह हो गए हैं जैसे कोई नज़्म व्यक्ति की शक्ल लेकर आपके जीवन में आ जाए परंतु इस उलटफेर में जाने आरवी पंडित कहां चले गए हैं। संभवत: उनसे संपर्क के लिए विज्ञापन देना होगा। वे एक जली हुई तीली की तरह फिल्मी माचिस से गुम हो चुके हैं।

उनसे 'माचिस' के प्रदर्शन के समय भेंट हुई थी और एक दोपहर के भोजन के लिए उन्होंने खाकसार को आमंत्रित किया और घर में प्रवेश करते ही उन्हें खयाल आया कि संभवत: खाकसार शाकाहारी है परंतु आरवी पंडित का मांसाहारी होना भी कम आश्चर्य की बात नहीं थी। उनसे जानकारी मिली कि गोवा में शंकर भगवान के मंदिर के निर्माण के समय बनारस से कुछ पंडित गोवा आमंत्रित किए गए और वे गोवा में ही बस गए। उनमें से कुछ लोगों ने क्रिश्चियन बन जाने का फैसला किया और गोवा के हृदय में कुछ सांसें बनारस की समा गई हैं। भारत ऐसा ही बना है और आज आपको सिद्ध करना पड़ता है कि आप भारतीय हैं। इस तरह गोवा के कुछ निवासी अपना सरनेम पंडित रख चुके हैं।

विशाल भारद्वाज की 'रंगून' में कंगना नाडिया की तरह हाथ में हंटर लिए नज़र आ रही हैं। क्या यह नाडिया बायोपिक की ही तलछट है? इस फिल्म में गीत है, 'इश्क किया अंग्रेजी में, खुल्लम खुल्ला, दो ओठों का जाम पिया, अंग्रेजी में सॉरी कहते कहते इश्क किया अंग्रेजी में।' यह गीत उस दौर की याद दिलाता है, जब सेंसर बोर्ड अंग्रेजी फिल्मों में चुंबन के दृश्य को इजाजत देता था परंतु हिंदी फिल्मों के लिए इस तरह के दृश्य प्रतिबंधित थे। अजंता, एलोरा अौर कामसूत्र लिखे जाने वाले देश में जाने कब क्या प्रतिबंधित कर दिया जाता है।

हमारे भारत महान में मलाई पर कुछ लोगों का जन्मसिद्ध अधिकार है और अवाम तलछट पर जीवित हैं, जिन्हें 'भूख ने बड़े प्यार से पाला है।' कहावत है कि बारह बरस में तो कूड़े का भी भाग्य बदल जाता है परंतु हमारी जहालत ही एकमात्र नहीं बदलने वाली चीज है। अशिक्षा से बड़ी समस्या वे शिक्षित लोग हैं, जो दकियानूसी एवं प्रतिक्रियावादी विचार वाले हैं। भारत के सारे भ्रष्टाचार और घपलों को इन तथाकथित पढ़े-लिखे लोगों ने ही अंजाम दिया है, क्योंकि फाइलों में हेराफेरी के लिए पारम्परिक शिक्षा प्राप्त होना जरूरी है।

शिक्षा प्रणाली में आमूल परिवर्तन किए बिना कुछ भी नहीं हो सकता। हमारे विश्वविद्यालय डिग्री देते हैं, जिसे खंजर की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कौरव व पांडवों को शिक्षा के लिए ले जाया गया, जहां पहले उनसे आश्रम बनवाया गया और शिक्षा पूरी होने पर तोड़ने का आदेश दिया गया। दुर्योधन को लगा कि सम्पति का विनाश क्यों करें परंतु पांडवों ने गुरु के आदेश का पालन किया तब गुरु ने कहा सम्पत्ति से मोह नहीं करने का पाठ पढ़ाने के लिए उन्होंने यह आदेश दिया था। कालांतर में सम्पत्ति (राज्य) के लिए ही युद्ध हुआ, जिसे जाने कैसे धर्मयुद्ध कहा जाता है।