मसाला मैन मनमोहन देसाई की आत्महत्या की पहेली / जयप्रकाश चौकसे
मसाला मैन मनमोहन देसाई की आत्महत्या की पहेली
प्रकाशन तिथि : 13 फरवरी 2011
'अमर अकबर एंथोनी' 'नसीब', 'धरमवीर' की तरह दर्जनभर सफल और भव्य फिल्में बनाने वाले मनमोहन देसाई मुंबई की निम्न मध्यमवर्गीय बस्ती खेतवाड़ी में ही रहना पसंद करते थे। श्रेष्ठिवर्ग के क्षेत्र नेपियन सी रोड पर उनका भव्य आलीशान फ्लैट था, परंतु वहां कुछ दिन रहकर ही वे भीड़भरे खेतवाड़ी में लौट आए। बच्चों के साथ क्रिकेट खेलना, पतंग उड़ाना, लट्टू घुमाना उन्हें पसंद था। पत्नी की मृत्यु के कई वर्ष बाद उन्हें नंदा से प्यार हो गया। ज्ञातव्य है कि देसाई की तरह फिल्म परिवार में जन्मीं नंदा ने सात साल की उम्र में १९४८ में मराठी फिल्म 'मंदिर' से करियर शुरू किया। १९५६ में शांताराम की 'दिया और तूफान' ने उन्हें सितारा बना दिया। जब देसाई ने नंदा से मेलजोल बढ़ाना चाहा, तब नंदा ने साफ कह दिया कि उनकी रुचियों और स्वभाव में अंतर है, परंतु देसाई का विश्वास था कि प्रेम के लिए समान रुचियां जरुरी नही है। खैर, अंततः देसाई ने नंदा का मन जीत लिया। इस इंटेंस प्रेमकथा के पात्र अधेड थे, पर उनके प्रेम मे आवेग था। उनकी कोर्टशिप लंबी चली और विवाह का फैसला भी उन्होंने किया।
03 मार्च 1991, को मनमोहन देसाई ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली। वे सफल समृद्ध व्यक्ति थे और उन्हें सच्चा प्रेम भी मिल गया था। उनकी पहली पत्नी से जन्मे केतन ने सहर्ष नंदा को स्वीकार लिया था। यह आज तक रहस्य है की देसाई ने आत्महत्या किस कारण की। उनके निकट मित्रों का अनुमान है की वर्षों से वे कमर दर्द से परेशान थे और स्थायी ईलाज के लिए जोखिमभरी शल्य चिकित्सा से इनकार करते रहे। एक अनुमान यह भी है की उनकी कुछ फ़िल्में नही चली और विडियो चोरी से वे इतने क्लांत थे की उन्हें लगता था की फिल्म उद्योग खत्म हो जाएगा। इसलिए 'अमर अकबर एंथोनी' के अधिकार उन्होंने बेच दिए। इन तथ्यों के बावजूद खिलदंड प्रकृति के देसाई के पास आत्महत्या का कोई कारण नही था। बादल सरकार के नाटक 'बाकी इतिहास' मे आत्महत्या कर चुका पात्र पूछता है कि आपके पास जीने का कोई कारण है ? आज साडंध वाली व्यवस्था मे यह सवाल कई लोगो के मन मे उठ सकता है।