मसिजीवी / जगदीश कश्यप
लड़की के माँ-पिता व छोटी बहन चुपचाप बैठे मेरी ओर देख रहे थे और मैं मेज़ पर प्रसिद्ध क्रिकेट-खिलाड़ी की स्टील वाले फ्रेम में लगी रंगीन फोटो देखते हुए चाय सिप कर रहा था । पत्र में तो उषा लिखती थी— 'आपकी रचनाओं से मुझे बड़ी प्रेरणा मिलती है । कैसे लिख लेते हैं ये सब ?'
वायदे के मुताबिक मैं शकुन के साथ उठ लिया और सड़क पर आ गया ।
दरअसल शकुन को मैंने उसकी पीएच०डी० के लिए काफ़ी मैटर उपलब्ध कराया था । उसी ने मुझे इस पी०पी० टीचर लड़की के बारे में लिखा था कि अगर शादी में रुचि हो तो बात चलाई जाए । मैंने 'हाँ' लिख दी थी ।
बस चल दी थी । पुष्कर से पहले ही जहाँ इस लड़की का स्काउट-कैंप लगा था, हम वहीं उतर लिए । कैंप खाली पड़ा था। उषा ने बताया कि सब लड़कियाँ पुष्कर कैंप-फ़ायर में गई हैं । मुझे बैठने का इशारा कर वह सामने तंबू में चली गई । जब बाहर आई तो उसके हाथ में दो सेब और चाकू था । शकुन ने लिखा था कि लड़की के माँ-बाप ग़रीब हैं, छोटी बहन की पढ़ाई के अलावा भाई बेरोज़गार था । मैंने आश्वस्त कर दिया था कि उषा को एक धोती में ही ले जाऊँगा ।
उसके बुझे हुए अंदाज़ से मैंने जज कर लिया था कि वह मेरे साधारण से पहनावे पर अति खिन्न थी । जबकि शकुन ने लिखा था कि ज़रा कपड़े ठीक-ठाक पहनकर आना ।
'लीजिए !' कहते हुए उसने सेब का एक टुकड़ा मेरी ओर बढ़ाया ।
'शकुन तुम्हारे गाने की बड़ी तारीफ़ कर रही थी । कुछ सुनाओ !'
इस पर वह कुछ नहीं बोली और फ़ोल्डिंग-चेयर पर बैठी सेब का टुकड़ा मुँह में रख धीरे-धीरे कुतरती रही ।
'आपको क्रिकेट का शौक है?' एकाएक वह बोली और कुर्सी पर टँगे थैले में से ट्राँजिस्टर निकालकर क्रिकेट-कमेंटरी सुनने लगी ।
'मुझे तो बड़ा बोर गेम लगता है — आई मीन नेशनल ला॓स ।' मेरी निधड़क बात पर वह कुछ नहीं बोली ।
एकाएक 'क्लीन बोल्ड' शब्द के साथ प्रचंड शोर की ध्वनि सुनाई देने लगी तो वह अत्यंत उत्साह में आकर बोली— 'तीसरा भी गया ! कपिलदेव ने आज कमाल ही कर दिया ।'
मुझे आत्मग्लानि हुई कि क्रिकेट का शौक मैं क्योंकर नहीं पाल सका । वह गुनगुनाती हुई उठी और तंबू में जाकर फिर लौट आई ।
'आप ऐसा करें, पहाड़ी वाली सड़क के मोड़ पर खड़े हो जाएँ । आख़िरी बस आने का समय हो गया है । वरना फिर कोई ट्रक ही मिल पाएगा आपको । मुझे तो रात को यहीं रुकना है । मैं कल शकुन को सब-कुछ बता दूँगी ।
लेखक होने का इतना मतलब तो होना ही चाहिए कि वह यह समझ ले कि लड़की ने उसे नापसंद कर दिया है— बेशक पत्रों में समर्पण वाली बात लिखती रही हो । आख़िर वह मुझे यहाँ बुलाकर अपमानित क्यों करना चाहती थी । पहले ही अपनी बात बता देती । इसी उधेड़बुन में मैं शकुन के साथ उठ लिया और बोझिल क़दमों से पहाड़ी वाली सड़क पर आ गया । शाम का धुंधलका छाने लगा था । सिहरा देने वाली ठंडक को महसमस कर बिना बस या ट्रक की परवाह किए, शहर तक तेरह-चौदह किलोमीटर की दूरी मैं पैदल ही इस तेज़ी से नापने लगा मानो कपिल देव का पीछा कर रहा होऊँ । शकुन मुझसे पीछे छूट गई । पता नहीं, वह मेरे इस अप्रत्याशित व्यवहार के बारे में क्या सोच नही थी ।