महमूद: हास्य का जादूगर मेन्ड्रेक / जयप्रकाश चौकसे

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महमूद: हास्य का जादूगर मेन्ड्रेक


साहसी महमूद ने अपने स्वयं को स्थापित करने के पहले ही निर्माता बनना तय किया तथा अपने बचपन के मित्र पंचम (आर.डी. बर्मन) को ‘ छोटे नवाब’ में संगीत देने का अवसर दिया। यह महमूद का ही साहस था कि उन्होंने कुछ वर्ष पश्चात अपनी फिल्म ‘कुंआरा बाप’ में राजेश रोशन को अवसर दियाइस जुलाई 2004 को बहत्तर वर्षीय महान हास्य अभिनेता फिल्मकार महमूद का निधन अमेरिका में हुआ, जहां वे अपने बेचारे आहत दिल का डाक्टरी इलाज कराने गए थे। उनका जन्म बम्बई में 29 सितंबर 1932 को हुआ था और उनके पिता मुमताज अली उस समय संघर्षरत फिल्म कलाकार थे। उनकी माता का नाम था लतीफुन्निसा और उन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्र महमूद को जन्म ही नहीं दिया, वरन् अपने नाम के माध्यम से उसे वो मिजाज भी दिया, जिसमें उन्हें अपने जमाने का सबसे सफल लतीफेबाज बनाकर फिल्मों में हास्य सम्राट बनाया। महमूद ने सौम्य-सरल जॉनीवॉकर को अपदस्थ करके हास्य सितारे का सिंहासन पाया। दोनों में अंतर यह था कि सौम्य-सरल जॉनीवॉकर दूसरों की लिखी पटकथा और संवाद से बंधे थे, जबकि महमदू ने अपनी भूमिकाएं और संवाद स्वयं लिखे और अपनी सफलता के दौर में दक्षिण भारत में बनी हिन्दी फिल्मों में उनका मेहनताना फिल्म के रोमांटिक हीरो से अधिक होता था।

बहरहाल, उनके पिता मुमताज अली लंबे संघर्ष के बाद सफल हुए, परंतु धन की व्यवस्था नहीं कर पाने के कारण परिवार आर्थिक संकट में फंस गया और महमूद ने बाल कलाकार के रूप में अशोक कुमार अभिनीत ‘किस्मत’ में काम किया, जो पहली सुपरहिट है और एक सिनेमाघर में तीन साल तक चली। 1941 की इस फिल्म से ही पहली बार प्रति नायक छवि प्रस्तुत हुई और इस छवि को नई धार दी सलीम-जावेद की लिखी अमिताभ बच्चन ने। यह भी इत्तेफाक है कि अपने संघर्ष के दिनों में अमिताभ, महमूद के घर रहते थे। बहरहाल, अठारह की उम्र में महमूद काम मांगने अशोक कुमार के पास गए, जिनके बचपन की भूमिका उसने किस्मत में निबाही थी। अशोक कुमार ने बेहतर अवसर मिलने तक उन्हें अपना ड्राइवर बनाया। महमूद ने बहुत पापड़ बेले, यहां तक कि मीना कुमारी को टेबल टेनिस सिखाने का काम भी उन्होंने किया। उसी दौर में मीना की छोई बहन मधु से उन्हें प्रेम हो गया और क्या आश्चर्य है कि इस खेल का स्कोर प्रारंभ होने पर ‘लव आल’ बोलते हैं। मीना कुमारी ने मधु से कहा कि महमूद के सफल होने तक इंतजार करें, क्योंकि एक बड़े परिवार का वह अकेला कमाने वाला है।

‘परवरिश’ के निर्माता शाह ने अपने नायक राजकपूर से आज्ञा मांगी कि वे ‘परवरिश’ में छोटी भूमिकाएं करने वाले महमूद को लेने दें। राजकुमार ने सहर्ष सहमति जुटाई और इसकी सफलता ने महमूद के लिए रास्ते खोल दिए।

गौरतलब यह है कि साहसी महमूद ने अपने स्वयं को स्थापित करने के पहले ही निर्माता बनना तय किया तथा अपने बचपन के मित्र पंचम (आर.डी. बर्मन) को ‘ छोटे नवाब’ में संगीत देने का अवसर दिया। यह महमूद का ही साहस था कि उन्होंने कुछ वर्ष पश्चात अपनी फिल्म ‘कुंआरा बाप’ में राजेश रोशन को अवसर दिया। इत्तेफाक देखिए कि दो दशक बाद राजेश रोशन ने अपने भतीजे ऋतिक रोशन की पहली फिल्म में पार्श्व गायन महमूद के बेटे लकी अली को दिया। फिल्म संसार में पिता का खाया हुआ घी इस तरह संतानों के काम आता है। बहरहाल, ‘छोटे नवाब’ और ‘भूत बंगला’ की साधारण-सी सफलता ने महमूद को अवसर दिया कि वह बड़े बजट की फिल्म ‘पड़ोसन’ किशोर कुमार और सायरावानों के साथ बनाए। ‘पड़ोसन’ अब कल्ट फिल्म मानी जाती है और सर्वकालिक महान हास्य फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ की र्शेणी की फिल्म है।

‘पड़ोसन’ के निर्देशन ज्योति स्वरुप थे ,जो कभी राजकपूर के सहायक थे और ‘परवरिश’ के दौर में महमूद की सफलता ने उन पर काम का दबाव इतना बड़ा दिया कि वे उस दौर में प्रचलित मेन्ड्रेक नामक दवा के आदी हो गए और अपने घातक साइडइफेक्ट के कारण बाद में दवा प्रतिबंधित भी हो गई। दिन-रात काम और अनजाने ही अनावश्यक दवाओं का मात्रा से अधिक सेवन ने महमूद के जिस्म को बीमारियों का घर बना दिया। उस दौर में उनके और अरुणा ईरानी के इश्क की भी अफवाहें थी, परंतु असल बात यह है कि सफलता के चक्रव्यूह में महमूद फंस गए। मनोरंजन जगत सौ हाथों से देता है, तो हजार हाथों से वापस भी लेता है। महमूद असाधारण प्रतिमा के धनी थे। 1947 में प्रदर्शित ‘प्यार किए जा’ में उनका लिखा हास्य दृश्य आज भी याद आता है, जिसमें एक युवा फिल्मकार बनने का सपना देखने वाला अपने पिता को भूतिया फिल्म की कथा सुनाता है।