महाकवि पन्त की जन्मभूमि कौसानी से..... / अशोक कुमार शुक्ला
उत्तराखंड राज्य के जनपद बागेश्वर में 1950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पर्यटक स्थल कौसानी अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के कारण पर्यटकों का चहेता स्थल रहा है । यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य की मिसाल इस तथ्य से समझी जा सकती है कि वर्ष 1929 में जब पूज्य बापू महात्मा गांधी भारत के दौरे पर निकले थे तब अपनी थकान मिटाने के उद्देश्य से यहां एक चाय बागान के मालिक के अतिथि गृह में दो दिवसीय विश्राम हेतु यहाँ आये परन्तु यहाँ आने के बाद कौसानी के उस पार हिममंडित पर्वतमालाओं पर पड़ती सूर्य की स्वर्णमयी किरणों को देखकर इतना मुग्ध हो गये कि अपने दो दिन के प्रवास को भूलकर लगातार चौदह दिन तक यहाँ रूके रहे। अपने प्रवास के दौरान उन्होंने गीता पर आधारित अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘अनासक्ति योग’ की रचना का प्रारंभिक चरण पूरा कर डाला।
यहाँ के सौंदर्य से वशीभूत प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक यहाँ आते हैं और सूर्यादय के दौरान स्वर्णिम छटा से सराबोर होने वाली हिमालय श्रंखला का मनोहारी दृष्य देखते हैं। यहाँ आने वाले पर्यटकों से में से बहुत कम को ही इस तथ्य से सरोकार होता है कि यह स्थल अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ साथ एक चाय बागान के व्यवस्थापक के परिवार में जन्में महाकवि सुमित्रानंदन पंत की जन्म स्थली भी है। वैसे सरकारी तौर पर महाकवि की जन्म स्थली को अधिग्रहीत कर उनके नाम पर एक राजकीय संग्रहालय बनाया गया है जिसकी देखरेख एक स्थानीय व्यक्ति करता है।
महाकवि को श्रंद्धांजलि स्वरूप समर्पित इस स्थल के प्रवेश द्वार से लगे भवन की छत पर महाकवि की मूर्ति स्थापित है । वर्ष 1990 में स्थापित इस मूर्ति का का अनावरण वयोवृद्ध साहित्यकार तथा इतिहासवेत्ता पंडित नित्यनांद मिश्र द्वारा उनके जन्म दिवस 20 मई को किया गया था। इस मूर्ति की स्थापना को इक्कीस वर्ष हुये जिसमें से ग्यारह वर्ष उत्तराखण्ड को पृथक राज्य बनने के बाद हो चुके है परन्तु खुले आसमान के नीचे स्थापित इस मूर्ति के उपर कैनोपी लगाकर उसे वर्षा आदि से बचाने का विचार अब तक क्यों नहीं आया यह समझ से परे है।
महाकवि का पैत्रक ग्राम यहां से कुछ ही दूरी पर है परन्तु वह आज भी अनजाना तथा तिरस्कृत है। संग्रहालय में महाकवि द्वारा उपयोग में लायी गयी दैनिक वस्तुयें यथा शाल , दीपक, पुस्तकों की आलमारी तथा महाकवि को समर्पित कुछ ऐक सम्मान-पत्र एवं पुस्तकें तथा हस्तलिपि सुरक्षित हैं।
महात्मा गांधी की विश्राम स्थली रहा चाय बागान का वह अतिथि गृह कालान्तर में जिला पंचायत का डाक बंगला बन गया और अविभाजित उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय सुचेता कृपलानी द्वारा गांधी जी की स्मृति को तरोताजा रखने के लिये ‘उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि’ को प्रदान कर दिया गया । महात्मा जी की अमर कृति ‘अनासक्ति योग ’ के नाम पर उनकी विश्राम स्थली को ‘अनासक्ति आश्रम’ का नाम दिया गया है। इस आश्रम मंं पर्यटकों के रहने के लिये लगभग तीस विश्राम कक्षों की भी व्यस्था है जो वैष्णवी खानपान की सुविधा सहित सामान्यतः निशुल्क (अथवा आपकी श्रद्धानुसार दिये जाने वाले डोनेशन) पर उपलब्ध है परन्तु कौसानी पहुँचने वाले पर्यटक स्थानीय होटल तथा रिसौर्ट मालिकों के द्वारा छोडे गये दलालों से इतनी बुरी तरह घिरे होते हैं कि वे इस आश्रम तक पहुँचने की बात सोच ही नहीं पाते।
कहने को तो कस्बे के मुख्य चौराहे पर पर्यटकों की सुविधा हेतु पर्यटन विभाग का कार्यालय भी है परन्तु यह कार्यालय भी स्थानीय होटल तथा रिसौर्ट मालिकों के द्वारा छोडे गये दलालों से निपट पाने में अक्षम जान पड़ता है। अब तो हालात यहाँ तक बिगड़ चुके हैं कि गांधी जी के नाम पर बने ‘अनासक्ति आश्रम’ का मुख्य कर्ताधर्ता भी आश्रम परिसर में कक्ष की मांग पर विशुद्ध पेशेवर अंदाज में सबसे पहले आपके द्वारा दिये जाने वाले डोनेशन की पड़ताल करता है और उसके द्वारा स्वयं निर्घारित की गयी न्यूनतम डोनेशन धनराशि को सुनिश्चित करने के बाद ही आपसे आगामी बातचीत करता है।
आश्रम के क्रियाकलापों में सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली कार्यक्रम गांधी जी की सामूहिक प्रार्थना है। यह प्रार्थना इस आश्रम के दैनिक दिनचर्या का विशेष अंग है। आश्रम परिसर में गांधी दर्शन साहित्य तथा पुस्तकालय और वाचनालय भी स्थापित है।
गांधी दर्शन में रूचि रखने वाले शोध कर्ता, आघ्यात्मिक अभिरूचि के पर्यटक तथा दार्शनिकों के लिये प्राकृतिक सौंदर्य के साथ साथ यह महत्वपूर्ण ज्ञानार्जन स्थल भी बन जाता है।