महाजनी रथ के मानव पहिए / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 25 जुलाई 2020
अपनी स्वच्छता के लिए बार-बार पुरस्कार पाने वाले शहर, इंदौर के एक उच्च मध्यम आर्थिक वर्ग के व्यक्ति ने अपनी पत्नी को गिरवी रखा। आर्थिक मंदी के कारण उसे मन मार कर यह किया। कुछ समय बाद पत्नी ने पुत्री को जन्म दिया, तो दोनों पक्षों में विवाद हुआ कि पुत्री पर अधिकार किसका? फसल पर जमीन के मालिक का अधिकार हो या हल चलाने वाले व्यक्ति का? यह ताजा घटना है, जबकि मध्य युग में भी ऐसा होता था। भीतर की गंदगी का आंकलन नहीं किया जा सकता। मनुष्य कपड़े पहनता है, वस्त्र मनुष्य को धारण करने लगे, तो संसार धोबी घाट बन जाएगा।
फिल्मकार एड्रिएन लिने की फिल्म ‘इनडिसेंट प्रपोजल’ में प्रस्तुत है कि आर्थिक मंदी में पति-पत्नी अपनी अंतिम बचत लेकर लाॅस वेगास गए कि जुएं में धन जीतकर जीवन यापन के साधन खोजेंगेे। पर वे अपना सारा पैसा हार गए। जुआ घर का मालिक उन्हें देख जान गया था कि एक-दूसरे से गहरा प्रेम करने वाले लोग लचर व्यवस्था व आर्थिक मंदी के मारे हुए हैं। मालिक एक अभद्र प्रस्ताव रखता है कि हारे हुए धन की दोगुना राशि उन्हें लौटा दी जाएगी, बशर्ते की पत्नी शनिवार-इतवार उसके साथ निजी द्वीप पर गुजारे। सीने पर पत्थर रखकर यह अभद्र प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है। आर्थिक मंदी का दौर दिल भी तोड़ देता है, प्रेम को भी लहुलुहान कर देता है। बिदाई के क्षण पति जेल जाने के लिए तैयार होता है, परंतु तब तक हेलीकॉप्टर उड़ जाता है। जब पत्नी लौट आती है, तब पति उससे दूर-दूर रहता है। पुरुष मानसिकता इतनी संकीर्ण व अभद्र होती है कि उसके लिए नारी शरीर भी जूठन हो जाता है। नारी शरीर की नदी में स्नान किया जाता है, अपने गंदे वस्त्र धोए जाते हैं। रॉबर्ट रेडफोर्ट अभिनीत धनाड्य व्यक्ति के लोग, पति-पत्नी पर निगाह रखते हैं। जब रिश्ता समाप्त होने वाला है, तब रॉबर्ट पति को समझाता है कि उसने उसकी पत्नी को बड़े आदर से रखा यहां तक कि उसे स्पर्श भी नहीं किया और वह इसके प्रमाण भी दे सकता है। थॉमस हार्डी के उपन्यास ‘मेयर ऑफ कैस्टरब्रिज’ में भी पति, पत्नी को दाव पर लगा कर हार जाता है। ज्ञातव्य है कि इसी रचना से प्रेरित गुलशन नंदा द्वारा लिखी गई ‘दाग’ यश चोपड़ा ने राजेश खन्ना के साथ बनाई थी।
पौराणिक ग्रंथ की कथा है कि गुरु ने दक्षिणा में 800 सफेद घोड़े मांगे। पुत्री माधवी को बार-बार गिरवी रखा जाता है। गालव-माधवी कथा हमारी सामुहिक सोच पर लगे कलंक की तरह है। स्त्री देह को संपत्ति मानकर बहुत व्यापार किया गया और इनके वृत्तांत लिखे गए हैं। मानव इतिहास की तीव्रतम मंदी हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। कोरोना महामारी ने आर्थिक मंदी के लिए जमीन बना दी है। व्यवस्था ने रेत में मुंह धंसा दिया है और उसके लिए तूफान गुजर चुका है। तेज तूफानी हवाओं ने सबकुछ उड़ा दिया, परंतु वैचारिक संकीर्णता न केवल कायम रही वह और अधिक हिंसक हो गई है। याद आती है सुभाष कपूर की फिल्म ‘बुरे फंसे ओबामा’ जिसके पात्र आर्थिक मंदी के सताए हुए लोग हैं। अमेरिका लौटते हुए अप्रवासी भारतीय से एक पात्र कहता है कि अमेरिका में आर्थिक, मानसिक व शारीरिक व्याधियां जन्म लेती हैं व अमेरिका उनका निर्यात करता है। निवेदन है कि निर्यात बंद कर दें। हम तो स्वदेशी बीमारियां बनाने में सक्षम हैं। हमने किसी बात का दावा किया, तो वह हमारी हो जाती है।
हरिशंकर परसाई की एक कथा में एक व्यक्ति पड़ोसी की पत्नी से विवाह करने के लिए आमरण अनशन पर बैठता है। दिन गुजरते हैं और पूरी बस्ती में तनाव आ जाता है। परिस्थतियां इसकदर बिगड़ने लगती हैं कि पति भी आमरण अनशन पर बैठ जाता है। उसके अनशन का उद्देश्य है कि अनशन पर बैठे व्यक्ति को उसकी पत्नी से विवाह करना ही होगा। वह मुकर नहीं सकता। नारी शरीर का सिक्का प्रस्तुत करने वाली कथाएं देश-विदेश में रची गई हैं।