महाजन सरकार और लकड़ी की तलवार / जयप्रकाश चौकसे

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महाजन सरकार और लकड़ी की तलवार
प्रकाशन तिथि :30 दिसम्बर 2016


'दंगल' के प्रदर्शन के पूर्व आमिर खान से मिलने पहुंचे राजकुमार हिरानी और वहां मौजूद एक व्यक्ति ने हिरानी से पूछा कि उनकी बनाई अब तक की सारी फिल्मों के नायक अच्छे मनुष्य हैं, जो अपनी सतह से ऊपर उठकर कुछ करना चाहते हैं परंतु संजय दत्त के बायोपिक का विषय इस मायने में अलग है कि इस प्रस्तावित फिल्म के नायक संजय दत्त ने ड्रग्स का सेवन किया है, अवैध हथियार रखने के अारोप में जेल गए हैं और कई प्रकरणों में उनके माता-पिता नरगिस एवं सुनील दत्त ने उन्हें अपने राजनीतिक संबंधों की सहायता से बचाने के सफल प्रयास किए हैं। कई लोग यह मानते हैं कि आतंकियों द्वारा मुंबई पर आक्रमण के लिए देश में अवैध ढंग से लाए गए शस्त्र उनके अजंता स्टूडियो परिसर में रखे गए थे और उन्हें इसकी पूरी जानकारी भी थी। अवैध हथियार प्रकरण में उन्होंने एके 47 को जिस फाउंड्री में गलाया उसके निर्दोष मालिक ने पूरी सजा काटी है अौर उसे बार-बार पेरोल पर छूटने की सुविधा भी नहीं मिली। अत: राजकुमार इस व्यक्ति के बायोपिक में उसे 'बुरे वक्त में फंसे अच्छे व्यक्ति' के रूप में कैसे प्रस्तुत करेंगे? उन्होंने अपरोक्ष रूप से महात्मा गांधी को परदे पर प्रस्तुत किया तो क्या अब गोडसे नुमा व्यक्ति को बतौर नायक प्रस्तुत करेंगे- इस अाशय के सवाल पूछे और राजकुमार हिरानी के कथन का आशय यह था कि संजय दत्त को हमेशा गलत समझा गया है।

इसी प्रस्तावित फिल्म में रणवीर कपूर को संजय दत्त की भूमिका अभिनीत करने के लिए चुना गया है, जिनके व्यक्तित्व में संजय दत्त जैसा कुछ भी नहीं है। हर दत्त गाथा में कपूर स्थायी भाव है। ज्ञातव्य है कि सुभाष घई पहले ही 'खलनायक' बना चुके हैं, जिसमें मां अपने गुमराह बेटे को क्षमा कर देती है, जबकि मेहबूब खान की 'मदर इंडिया' में प्रस्तुत मां अपने गुमराह बेटे को गोली मार देती है। ज्ञातव्य है कि सुभाष घई की 'खलनायक' विलंब से बनी, क्योंकि संजय दत्त जेल में थे। राजकुमार हिरानी सुभाष घई की 'खलनायक' से अलग किस्म की फिल्म बना रहे हैं परंतु वे अपने नायक की कमतरियों को किस तरह के अावरण मंे छिपाने का प्रयास करेंेगे? राजकुमार हिरानी असाधारण प्रतिभा के धनी है और वे किसी भी कार्य को करने के पहले उस बारे में दस बार सोचते हैं और पुनर्विचार भी करते हैं।

सुनील दत्त ने मेहबूब खान की 'मदर इंडिया' में बिरजू का पात्र अभिनीत किया था। बिरजू के पिता ने बंजर जमीन को खेती योग्य बनाने के प्रयास में अपने दोनों बाजू खो दिए थे। एक दृश्य में द्वार पर दस्तक होती है, तो हाथ कटा हुआ व्यक्ति सांकल खोलने के लिए जाता है और अपनी अपंगता का भाव उसे गहरे तक हृदय में धंसा हुआ महसूस होता है। मेडिकल विज्ञान स्वीकार करता है कि कटे हुए अंग के मौजूद होने का भाव व्यक्ति में होता है, जिसे फैंटम लिंब का भाव कहते हैं। मेहबूब खान तो अनपढ़ व्यक्ति थे परंतु मनुष्य के भाव पक्ष को उन्होंने जीवन की पाठशाला में पढ़ा था। गांव के ब्याजखोर महाजन के अत्याचार के कारण बिरजू विद्रोह करता है और अपनी प्रेयसी के अन्यत्र हो रहे विवाह के समय प्रेयसी को लेकर भाग रहा है तब उसकी मां उसे गोली मार देती है। मां का लाड़ला था बिरजू परंतु गांव की खातिर वह अपने प्रिय पुत्र को गोली मार देती है।

बिरजू का कपोल-कल्पित पात्र ही सुनील दत्त व उनके पुत्र संजय दत्त के अवचेतन को समझने की एकमात्र कुंजी है। सच तो यह है कि भारत में हमेशा ब्याजखोर महाजन रहे हैं और आक्रोश की मुद्रा के सारे पात्र इसी महाजनी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष का हिस्सा हैं। यहां तक कि नक्सलवाद भी असमानता व अन्याय आधारित व्यवस्था के खिलाफ उठाया गया कदम है। श्याम बेनेगल की 'अंकुर' के अंतिम दृश्य में बालक जमींदार की हवेली पर पत्थर फेंकता है और इसी से आक्रोश की सारी छवियां गढ़ी गई हैं। दुष्यंत कुमार भी इसी को अभिव्यक्त करते हैं- 'कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तबियत से तो उछालो यारो।'

ज्ञातव्य है कि मेहबूब खान का बिरजू ही सलीम-जावेद की 'दीवार' का नायक है गोयाकि तीन दशक फांदकर बिरजू महानगर पहुंचा था परंतु वर्तमान नायक विहीन कालखंड में बिरजू कहीं नज़र नहीं आता और सरकार ने महाजन की भूमिका ग्रहण कर ली है। याद आता है जेपी दत्ता कीफिल्म 'बंटवारा' का दृश्य जिसमें एक पात्र कहता है कि सभी कालखंड में दलाल होते हैं, दलालविहीन समाज कभी रचा ही नहीं गया। वर्तमान में हुक्मरान निर्मम पूंजीवाद के दलाल हैं।

इन पंक्तियों को लिखते समय जयपुर के कवि सरलजी का फोन आया कि विविध कवि सम्मेलनों में वर्तमान के हुक्मरान के खिलाफ सुनाई कविताओं पर श्रोता गण खूब तालियां पीटते हैं, जिसे आगामी परिवर्तन का संकेत मानना चाहिए। कविजी अपने नाम की तरह ही सरल व्यक्ति हैं। धर्मवीर भारती की प्रमथ्यु गाथा का उन्हें स्मरण कराना पड़ा कि तालियां पीटने वाले तमाशबीन तानाशाह को ही मत देते हैं। 'हम सबके दामन पर दाग, हम सबकी आत्मा में झूठ, हम सब सैनिक अपराजेय, हम सबके हाथों में टूटी तलवारों की मूठ।'