महाजन / शमशाद इलाही अंसारी

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शहर में एक महाजन था जिसके औलादें निक्कमी थी। कई बार उसने उन्हें कोई काम धंधा सिखाने की कोशिश भी की लेकिन कामयाब न हुआ। एक दिन उसने अपने बड़े लड़के को अपने घर के सामने चाय की दुकान खुलवा दी।

महाजन अपनी दुकडिया में एक मद्धम सी रौशनी वाले लैम्प की रोशनी में अपने बही खातों पर झुका रहता। जो असामी आती उन्हें बाहर बारामदे में घंटो इंतज़ार करवाता। चाय की दुकान सामने देख कर लोग समय और भूख मारने को चाय पीते, जब तक एक असामी एक-दो चाय, खासे-बिस्कुट न पी-खा ले तब तक महाजन उसे अन्दर न बुलाता। असामी को पैसे अगर मिल जाते तो वह एक चाय खुशी की पी कर जाता। लिहाजा रफ्ता-रफ्ता महाजन के हुनर से उसका एक लडका हिल्ले से लग गया।

कुछ समय बाद महाजन का शहर एक मास्टर प्लान की ज़द में आ गया। सरकार को सड़क और कई भवनों का निर्माण करना था जिन्हें बनाने के लिए सरकारी ठेके छूटे। ठेकेदारों को भारी धन की जरुरत हुई, सो महाजन के ठिकाने पर उन्हें मत्था नवाना ही था। महाजन ने सभी ठेकेदारों को पंद्रह दिनों का वक्त दे दिया और इन पन्द्रह दिनों में उसने अपने दूसरे लडके को अपने पडौस में खाली पड़े आहाते में रोडी, बजरी, सीमेंट आदि की दुकान खुलवा दी। पंद्रह दिन बाद ठेकेदारों को इस शर्त पर कर्जे देने शुरू कर दिए कि वह भवन निर्माण सामग्री उसके लडके की दुकान से ही खरीदें। इस तरह दूसरे लडके का कारोबार भी सेट कर दिया।

शहर में चुनाव हुए, महाजन की एक असामी ने चुनाव लड़ा और जीत गया। जीतने के बाद सबसे पहले नेता जी महाजन के चरणों में ही आ कर गिरा। महाजन ने मौका देखते ही गर्म लोहे पर चोट की। पुरानी रुकी हुई किस्तों का हवाला देते हुए तकादा कर दिया। नेता जी ने जिम्मेदारी के साथ सभी हिसाब मय ब्याज के शीघ्र ही चुकता करने का वायदा किया। महाजन ने अपने तीसरे लडके को जिसने सरिया, गार्टर आदि लोहे के सामान की दुकान खोली थी उसकी तरफ इशारा किया। ‘शहर में अभी बहुत विकास होना है लोहे की जरुरत पड़ेगी, इसका ख्याल रखना’। नेता जी ने मुस्कुराते हुए लडके के सर पर हाथ रखा और विदा ली।