महात्मा गाँधी और सिनेमा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 03 नवम्बर 2012
आज पृथ्वीराज कपूर का जन्मदिन है। जब भारतीय कथा फिल्म मात्र तेरह वर्ष की थी, तब उस दौर के बीए पास सुदर्शन युवा पृथ्वीराज ने आसानी से मिलने वाली सरकारी नौकरी की सुख-सुविधा छोड़कर मुंबई आकर फिल्म उद्योग में प्रवेश का साहसी निर्णय लिया। इतना ही नहीं, अपनी पत्नी और पुत्र को लेकर वे अजनबी शहर में आ पहुंचे। रवींद्रनाथ टैगोर के सुझाव पर बीएन सरकार ने शिशिर भादुड़ी के सफल नाटक पर फिल्म बनाने का निर्णय किया और एक नाटक देखकर उन्होंने पृथ्वीराज और दुर्गा खोटे को लेकर 'सीता' बनाई, जिसकी अपार सफलता ने साहित्यिक कृतियों पर फिल्म बनाने वाली संस्था 'न्यू थिएटर्स' को मजबूत बनाया। सफल सुपर सितारा होने के बाद पृथ्वीराज ने गांधी के उस प्रभावकाल में 'पृथ्वी थिएटर्स' की स्थापना की, जिसका मूलमंत्र था 'कला देश की सेवा में'। उस विलक्षण कालखंड में महात्मा गांधी का प्रभाव पूरे देश में समाज के सब क्षेत्रों पर पड़ा था। राजाराव ने 'कांतापुरा' १९३८ में प्रकाशित किया, परंतु उपन्यास का घटनाक्रम गांधीजी के १९१५ में स्वदेश लौटने के समय का है। दक्षिण भारत के एक छोटे-से गांव में जहां रेडियो नहीं थे, अखबार नहीं आते थे, वहां भी शहर से लौटे नायक मूर्ति द्वारा गांधी का संदेश पूरे गांव में पहुंचा था। ८ अगस्त १९४२ को कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी के बाद जनता का मनोबल बनाए रखने के लिए अनेक गुप्त ट्रांसमीटर सक्रिय थे। एक ऐसे ही ट्रांसमीटर पर राजाराव सक्रिय थे और वह भवन अभिनेता मोतीलाल का था।
गांधीजी की 'हरिजन' में प्रकाशित एक सत्यकथा पर आधारित एक पद्य नाटक भारती साराभाई ने लिखा, जिसमें एक विधवा अपाहिज तीर्थ यात्रा पर नहीं जा सकती। उसे काशी जाकर गंगा स्नान की तीव्र इच्छा है। वह अपना सारा धन लगाकर हरिजनों के उपयोग के लिए गांव में कुआं खुदवाती है। वह कहती है, 'मैं शायद कभी काशी नहीं जा पाऊंगी। ईश्वर मेरे इस काया रूपी जर्जरित पात्र को नहीं भेजेगा सांसारिक तीर्थस्थानों पर। परंतु मुक्त हंस-सी मेरी आत्मा, ला सकेगी इसी धरती पर फिर वापस। एक नन्हे कुएं में मां गंगा के पवित्र जल के साथ, खोई हुई मेरी सामथ्र्य।', इस रचना में प्राचीन धार्मिकता का संगम नवीन सामाजिक चेतना के साथ हुआ। गांधीवादी मूल्यों के प्रतिनिधि साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने भी 'ठाकुर का कुआं' नामक कथा इसी विषय पर लिखी है। गांधीजी की प्रेरणा से ही हिमांशु राय ने अशोक कुमार और देविका रानी अभिनीत 'अछूत कन्या' बनाई और महान देवकी बोस ने धोबन और ब्राह्मण की प्रेमकथा 'चंडीदास' बनाई, जिसका एक गीत कांग्रेस कार्यकर्ता दिलीप राय ने नेहरू को सुनाया था। सिनेमा के महाकवि सत्यजीत राय ने गांधीवादी मुंशी प्रेमचंद की दलित व्यथा-कथा 'सद्गति' दूरदर्शन के लिए बनाई थी। बिमल रॉय की 'सुजाता' की नायिका नूतन आत्महत्या के लिए जाते हुए गांधीजी की मूर्ति के नीचे 'आत्महत्या पाप है' पढ़कर लौट आती है। गांधीवाद से प्रभावित ब्राह्मण नायक दलित 'सुजाता' से प्रेम करता है।
चार्ली चैपलिन अपनी आत्मकथा में गांधीजी से डॉकस्ट्रीट लंदन में अपनी मुलाकात का विवरण लिखते हैं और १९३६ में उनके विचार से प्रेरित होकर मशीन-मनुष्य के रिश्ते पर 'मॉर्डन टाइम्स' बनाते हैं। बलदेवराज चोपड़ा की 'नया दौर' में दिलीप कुमार कहते हैं कि 'बात अमीर-गरीब की नहीं, मनुष्य के हाथ और मशीन की है।' सबसे अधिक फिल्में गांधीजी के आदर्श से प्रेरित रही हैं और राजनीति तथा समाज में उनके आदर्श विस्मृत कर दिए गए हैं, परंतु फिल्म विधा में जारी है, जबकि स्वयं गांधीजी ने न फिल्म देखी, न उस पर विचार प्रकट किए हैं।
इस वर्ष भारत में कथा फिल्म की सदी का उत्सव मनाया जा रहा है और आज भारत के इतिहास का सबसे भयावह समय चल रहा है तथा सिने सदी उत्सव के अतिरिक्त हमारे पास खुश होने का कोई कारण नहीं रह गया है।
गांधीजी और सिनेमा के माध्यम से अजब-गजब भारत के सामूहिक अवचेतन को समझने का प्रयास करती है मेरी किताब 'महात्मा गांधी और सिनेमा', जिसका विमोचन आज मुंबई में होने जा रहा है। मात्र २९५ रुपए की यह किताब हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है। इस कॉलम में जो मेरा दृष्टिकोण है, उसी दृष्टिकोण से किताब लिखी गई है। प्रकाशक है मौर्या आट्र्स और ई-मेल है- gandhiandcinema@gmail.com,
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