महाभारत, साड़ी, लंगोट और काली पट्‌टी / जयप्रकाश चौकसे

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महाभारत, साड़ी, लंगोट और काली पट्‌टी
प्रकाशन तिथि :12 मई 2016


वेद व्यास की महाभारत में अर्थ की अनेक परते हैं और हजारों वर्षों से उसकी विविध व्याख्याएं की जाती रही हैं। कथा के तीन सूत्र वस्त्र में भी मिलते हैं। गांधारी द्वारा आंख पर बांधी दो इंच चौड़ी पट्‌टी, भीष्म पितामह की आजन्म कुंआरे रहने की लंगोट और द्रोपदी की साड़ी, जिसे खींचने के प्रयास को श्रीकृष्ण ने साड़ी की लंबाई को अनंत करके ध्वस्त कर दिया।

गांधारी ने काले रंग की पट्‌टी बांधी थी परंतु हमारे मित्र सिद्धार्थ तिवारी ने अपनी टीवी महाभारत में इसे रंगीन कर दिया। काली पट्‌टी ही प्रकाश को रोकती है। गांधारी ने लंबे विवाहित जीवन में केवल एक बार आंख से पट्‌टी हटाकर अपने ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन को देखना चाहा और उसे निर्देश दिया कि वह अपनी मां के सामने निर्वस्त्र आए ताकि पहली बार खुलने वाली आंखों की संचित शक् ति अपने पुत्र को दे सकें। अगर ऐसा हो जाता तो वह अपराजेय रहता। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि उसे अपनी मां के सामने पूरी तरह निर्वस्त्र जाने में लज्जा आएगी, अत: वह कम से कम एक लंगोट तो धारण कर ले। दुर्योधन ने ऐसा ही किया और वस्त्र से ढंकी उसकी जांघें कमजोर रह गईं तथा श्रीकृष्ण के कहने पर भीम ने उसी कमजोर जगह पर गदा से प्रहार किया। महाभारत में श्रीकृष्ण ने सत्य की जीत के लिए छल के प्रयोग को सही माना। सूर्यास्त के पूर्व सूर्यास्त का आभास भी उन्होंने रचा जिसके कारण जयद्रथ का वध संभव हुआ।

श्रीकृष्ण द्वारा छल के उपयोग करने को न्यायोचित कैसे करार दिया जा सकता है? क्या हम यह मानें कि पौराणिक धारणा के अनुसार यह घटना सतयुग के अंतिम चरण में घटी है और इसे आने वाले कलयुग की छाया मान लें। यह पौराणिक युग वर्गीकरण को भी न्यायसंगत ठहरा देगा। छल को प्रेम का हिस्सा भी मान लिया गया है और शायद इसीलिए शैलेंद्र 'गाइड' में 'मोसे छल किया जाए' लिखते हैं। मौजूदा नेता भी छल को पौराणिकता का हिस्सा मानते हैं। इसी झीनी चदरिया से लज्जा ढंक रहे हैं। महाभारत जैसे सर्वकालिक महान ग्रंथ की वैज्ञानिक एवं तर्कपूर्ण व्याख्या करने के प्रयास को हुड़दंगी लोग धर्म विरोधी मानकर रोक देते हैं। उसके वैज्ञानिक अध्ययन से वर्तमान की कई गुत्थियां सुलझ सकती हैं। अपने को धार्मिक कहने वाले व्यक्ति भी इस तरह के अध्ययन के खिलाफ हो जाते हैं। आधुनिक जीवन की भागमभाग से जन्मी मनोवैज्ञानिक समस्याओं का निदान भी महाभारत में उपलब्ध है। आश्चर्य होगा कि इसमें समलैंगिकता जैसे विषय का भी समावेश है। जब अज्ञातवास में अर्जुन ने स्त्री रूप धारण करके राजा विराट की पुत्री उत्तरा को नृत्य की शिक्षा दी तो उत्तरा उनके स्त्री रूप से प्रेम करने लगी। अत: अर्जुन ने अज्ञातवास की अवधि पूरी होने पर उत्तरा से विवाह का प्रस्ताव रखा तो उसने मना कर दिया। उसे तो केवल उनके स्त्री रूप से ही आसक्ति थी। कालांतर में उसने अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से विवाह किया, जिसकी जन्मना कोमलता में किंचित स्त्रैण तत्व था। एक वैचारिक स्थापना यह भी बनी कि हर पुरुष में आधा स्त्री, अाधा शैतान और आधे देवता होते हैं और इस तरह पुरुष के एक के बदले डेढ़ हिस्से होते हैं।

वेदव्यास की रचना श्रीगणेश द्वारा लिपिबद्ध है। संभव है कि बुद्धि के देवता श्रीगणेश ने और इसे अधिक पैना तथा अर्थवान बना दिया। एक यूरोपीय विद्वान ने कहा है कि महाभारत एक घना जंगल है और आप जितना अधिक भीतर तक पहुंचते हैं, उतने नए अर्थ निकलते हैं। हमने तो प्राकृतिक जंगलों के साथ इस महान वैचारिक जंगल को भी नहीं समझा। पुराणों और महाभारत की तरह की रचनाओं की महानता को कुछ नेताओं ने अपना वोट बैंक बना लिया है। ब्राह्मणों द्वारा संस्कृत को उनकी जाति के अतिरिक्त कोई नहीं पढ़े ऐसी आज्ञा भी जारी की। जिस समृद्ध भाषा में आठ हजार शब्द केवल वृक्ष एवं पक्षियों के वर्णन के लिए हैं, उसे ही हमने हानि पहुंचाई। जंगलों को वृक्षविहीन कर दिया और पर्वतों की ऊंचाई को कम कर दिया। हम सब बौनों ने अपने कद के टुच्चे समाज की रचना के प्रयास किए। मौजूदा व्यवस्था और सरकार अपने प्रयास व परिश्रम के कारण कायम नहीं है, उसने बौनेपन को ही स्थापित किया है।

अत: नेहरू को पाठ्यक्रम से हटाना उनका स्वाभाविक कदम है। वे भारत को खोजना नहीं, खोना चाहते हैं। लंगोट औरकाली पट्‌टी सामूहिक अवचेतन पर चस्पा कर दी गई है।