महाभारत हमेशा संभावना बनी रहेगी / जयप्रकाश चौकसे

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महाभारत हमेशा संभावना बनी रहेगी
प्रकाशन तिथि : 12 फरवरी 2013

श्याम बेनेगल ने आठवें दशक में निर्माता शशि कपूर के लिए 'कलयुग' नामक फिल्म बनाई थी। यह वेदव्यास की महाभारत की कथा को आधुनिक कालखंड में रोपित करने का कठिन काम था। दरअसल, वेदव्यास की महाभारत के पात्र और परिस्थितियों से प्रेरित अनेक दृश्य अनगिनत फिल्मों में आए हैं। प्रकाश झा की 'राजनीति' मूलत: 'गॉडफादर' की तरह थी, परंतु बुनावट में महाभारत के रेशे भी मौजूद थे। मारिया पुजो की 'गॉडफादर' पूंजीवादी देश की महाभारत है और संगठित अपराध जगत भी पूंजीवादी व्यवस्था से ही जन्मा है। आप जब भी महाभारत को वर्तमान कालखंड में रोपित करने का प्रयास करेंगे, उसमें गॉडफादर और अपराध जगत से बच नहीं सकते, क्योंकि बड़े औद्योगिक घराने में संपत्ति के लिए भाइयों के बीच का युद्ध अपराध जगत से जुड़ ही जाएगा। सारे सफल औद्योगिक घरानों की नींव और विकास में अपराध तत्व जुड़े ही हैं।

संदीप देब की 'द लास्ट वॉर' भी महाभारत की कथा का वर्तमान स्वरूप है और इसमें धनाढ्य परिवार आपराधिक गतिविधियों का संचालन करता है। इस उपन्यास की समीक्षा मात्र मैंने पढ़ी है। महाभारत की व्याख्या करने के सबसे अधिक प्रयास हुए हैं और देश-विदेश की भाषाओं में हुए हैं। सबसे अधिक प्रयास बंगाली और मराठी भाषाओं में हुए हैं। टेलीविजन पर डॉ. राही मासूम रजा का लिखा संस्करण बलदेवराज चोपड़ा ने बनाया था। कुछ समय पूर्व ही एकता कपूर का प्रयास चंद एपिसोड बाद ही रोक दिया गया। स्टार टेलीविजन ने पहले एक प्रयास करके निरस्त कर दिया था और वर्तमान में स्वास्तिक कंपनी को बनाने का काम सौंपा गया है।

इस कथा में ऐसा कुछ आकर्षण है कि यह बार-बार कही जाकर भी अपने मूल स्वरूप में अभी तक दोहराई नहीं गई है। वेदव्यास के पहले रचे महान ग्रंथों और इसमें एक विशेष अंतर यह है कि सारे मानवीय रिश्तों की छानबीन करती हुई यह रचना संदेश देती है कि जीवन के अनुभवों से गुजरते हुए मनुष्य स्वयं को पहचानने का प्रयास करे। इस तरह यह कथा मनुष्य और अन्य के रिश्तों की कथा रह जाती है।

यह कथा अध्यात्म को भी इसी तरह परिभाषित करती है। अपने काम को निष्ठा से करते रहना ही एकमात्र रास्ता है। यह कथा मोक्ष को काल्पनिक मानती है, क्योंकि जन्मों के चक्र से बाहर आकर दिव्य में लीन होने का अर्थ है अपनी निजता को समाहित कर देना या स्मृति पटल को पूरी तरह साफ कर देना, जिसके बिना दिव्य में लीन नहीं हो सकते, परंतु स्मृति पटल के संपूर्ण लोप एवं निज व्यक्तित्व के स्वाहा होने के बाद शून्य ही बचता है और शून्य कहां विलीन होता है, उससे मनुष्य का क्या संबंध रह जाता है। स्पष्ट है कि स्वर्ग या नर्क इसी धरती पर हैं और हमारे अपने काम से ही बनते हैं। हर वह साधारण व्यक्ति जो अपना काम परिश्रम, निष्ठा व ईमानदारी से कर रहा है, वह अध्यात्म ही साध रहा है।

यह भी मान्यता है कि वेद, पुराण, उपनिषद व महाभारत इत्यादि में अध्यात्म को अधिक जगह नहीं दी गई है और भौतिक जगत में आप किस तरह जीते हैं या जीना चाहिए, इसी का विवरण है। उन महान विचारकों के लिए भौतिक जगत ही अध्यात्म का क्षेत्र था। पूंजीवादी अज्ञान ने इन्हें परस्पर विरोधी के रूप में खड़ा किया है। यह भी कहा जाता है कि यह कथा होमर तक पहुंची थी और उसने इसे एक घने, गहरे जंगल की तरह माना, जिसमें दूर तक प्रवेश करने के बाद भी वह स्थान कहीं अधिक बड़ा है, उस स्थान से जहां तक आप पहुंचे हैं। अत: यह घना, अनंत और दुर्गम है। विगत अनेक वर्षों से आमिर खान भी इस पर विचार कर रहे हैं और उनके मन में इसे परदे पर प्रस्तुत करने की इच्छा भी है। आज फिल्म निर्माण की टेक्नोलॉजी इतनी विकसित हो गई है कि यह कथा अपने समग्र रहस्य के साथ प्रस्तुत की जा सकती है, परंतु टेक्नोलॉजी मात्र से कुछ नहीं होगा, जब तक कोई निष्णात निर्देशक यह काम अपने हाथ में नहीं लेता। थॉमस मन का कथन है कि मिथ उन घटनाओं को प्रस्तुत करता है, जो कभी घटी नहीं, परंतु हमेशा विद्यमान रही हैं।

भारत के वृहत इतहास के हर कालखंड में महाभारत मौजूद रहा है और अनंत काल तक रहेगा, क्योंकि यह मनुष्य को उसकी सारी कमजोरियों और करुणा के साथ जीवन संग्राम में सतत युद्धरत सैनिक के अवचेतन के रूप में प्रस्तुत करता है। जीवन का प्रत्येक क्षण एक युुद्ध है। सांस की प्रत्यंचा पर इच्छा या अनिच्छा का कोई न कोई बाण हमेशा चढ़ा रहता है।

राजनीति या अपराध जगत अथवा औद्योगिक घरानों के बाहर भी जीवन के अनेक क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें महाभारत की कथा रोपित की जा सकती है। यह अखबार की दुनिया में, साहित्य के क्षेत्र में और शिक्षा परिसर में भी रोपित की जा सकती है। दरअसल, हर परिवार में यह घटित होती रहती है। इतना ही नहीं, यह हर व्यक्ति के हृदय में घटित होती रहती है। इतनी जगह इतने समय से घटित होने वाली कथा भी अभी पूरी तरह उजागर नहीं हुई है। यह हमारे मन के उस पाप की तरह है, जिसे हम स्वयं से कहने का साहस भी नहीं करते।