महामारी की अंधड़ में एक कविता का जन्म / जयप्रकाश चौकसे

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महामारी की अंधड़ में एक कविता का जन्म
प्रकाशन तिथि : 20 अप्रैल 2021


महामारी की अंधड़ के समय अस्पतालों की कमी और वहां आधुनिक उपकरणों के अभाव की दिल दहलाने वाली खबरें प्रतिदिन आ रही हैं। व्यवस्था योग की शून्य मुद्रा, निद्रा से कभी जागती ही नहीं। डॉक्टर, नर्स और अस्पताल प्रबंधन लगातार योद्धा की तरह तैनात हैं। कुछ अस्पताल प्रबंधन ने डॉक्टरों के मेहनताने को 30 फीसदी तक घटा दिया है। महामारी के दौर में किसी अस्पताल और मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास तक नहीं किया गया है।

डॉक्टरों की मेहनत के बावजूद कोविड से मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। आयुर्वेद में डॉक्टर को कविराज कहा गया है। वह महान आदर्श भंग हो गया है कि जब राजा कवि होगा तब सबको न्याय मिलेगा। बहरहाल, अस्पताल ही वह जगह है, जहां एक मरीज दम तोड़ रहा है और उसी क्षण अस्पताल के अन्य कक्ष में किसी का शिशु का जन्म हो रहा है। जन्म और मृत्यु का अनंत चक्र अस्पताल में घूमते समय कवि हृदय मरीज व डॉक्टर को दिखाई देता है। उनका काम अध्यात्म के दायरे में चला गया है। अस्पताल की पृष्ठभूमि पर अनेक फिल्में बनीं व उपन्यास लिखे गए हैं। राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर, फिरोज खान और आई. एस. जौहर अभिनीत फिल्म ‘सफर’ में राजेश खन्ना को कैंसर है। शर्मिला टैगोर डॉक्टर है। शर्मिला अतिरिक्त कमाई के लिए एक बिगड़ैल अमीरजादे को पढ़ाने जाती है। छात्र का बड़ा भाई शर्मिला से एकतरफा प्यार करने लगता है। शर्मिला, राजेश खन्ना से प्रेम करती है। राजेश, चित्र बनाता है। फिल्म में एक गीत है, ‘जीवन से भरी तेरी आंखें मजबूर करें जीने के लिए, सागर भी तरसते रहते हैं, तेरे रूप का रस पीने के लिए’। फिल्म में कल्याणजी-आनंदजी ने ऐसा पार्श्व संगीत रचा, जिसमें मरीज के दिल की धड़कन और अस्पताल के कार्यकलाप दोनों एक साथ उजागर होते हैं ।

एक अमेरिकन फिल्म ‘आइलेस इन गाजा’ में एक सीनेटर अपनी पत्नी और 14 वर्षीय बेटी सहित कार एक्सीडेंट का शिकार होता है। सीनेटर की मृत्यु हो जाती है और बेटी की एक आंख घायल हो जाती है। पत्नी को मामूली खरोंच आती है। सामने से आ रही टैक्सी का ड्राइवर उन्हें पास के अस्पताल ले जाने की कोशिश करता है, परंतु वह महिला उसे दूर के किसी अस्पताल ले चलने का आदेश देती है। वहां के आंख विशेषज्ञ को वह जानती है। अस्पताल में परिचित डॉक्टर कहता है कि शीघ्र ही लड़की की घायल आंख निकालना चाहिए वरना एक के कारण दूसरी आंख भी खराब हो सकती है। सीनेटर की विधवा किसी बहाने ऑपरेशन को रुकवा देती है। उसका कहना है कि एक नकली आंख वाली लड़की से कौन शादी करेगा? अंतत: लड़की की दूसरी आंख भी खराब हो जाती है। फिर वह महिला उस डॉक्टर और अस्पताल पर लाखों डॉलर का मुकदमा ठोक देती है। कुछ दिन गहन जांच के बाद सप्रमाण अदालत में यह सिद्ध होता है कि उस महिला ने इसी डॉक्टर से विवाह करना चाहा था। डॉक्टर अपनी आगे की पढ़ाई को समर्पित था तो उसने इंकार कर दिया। इसको महिला ने अपना अपमान समझा। टैक्सी ड्राइवर की गवाही भी होती है कि आखिर महिला निकट के अस्पताल में क्यों नहीं गई? व कई और बातें सीनेटर के बारे में निकलकर सामने आती हैं।

बहरहाल इंदौर के डॉक्टर पीयूष जोशी ने हाल ही में कविता लिखी है। कविता के कुछ अंश इस तरह हैं। ‘सेहत किसकी बचाएं हम, शिकायत कहां लगाएं हम, दर-दर भटकता है मुकद्दर, किस दर गुहार लगाएं हम, मरते देखना है अपनों को और सपनों को, नोचने से पहचाने भी नहीं जाते, काले अंग्रेजों के नाखूनों को, नाखून में चिपके खून को, बर्बादी के मजनून को, किस्मत पर थूकी पीक को और भेड़ों सी मूरख लीक को, जिसे छोड़ ना पाए हम, रुख मोड़ ना पाए हम, हवा का हक ना रहा, बात का नमक ना रहा, सेहत किसकी बचाएं हम।