महामारी / लाल्टू

Gadya Kosh से
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जीवन।

जन्म से मृत्यु तक की अनोखी घटनाएँ। प्यार और नफरत की अनगिनत लहरें। जब मन अवसाद में डूबा हो; हताशा और नफरत से हम कुढ़ रहे हो, तभी अचानक अनजान लोग आकर भवलीलाओं का सागर हम पर उड़ेल दें - ऐसा कभी कभी होता है। आज मेरे साथ जो हुआ – उसे और क्या कहूँ?

विभाग के अध्यक्ष के आदेश पर लम्बी यात्रा कर एक विदेशी अतिथि को लेने आया था। हवाई अड्डे पर आगमन लाउंज के बाहर एक कुर्सी पर बैठकर अध्यक्ष को मन ही मन गालियाँ दे रहा था, तभी एक पुराना मित्र कहीं से आ मिला। उसे देखकर मुझे कोफ़्त ही हुई, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में कई बातें उसके बारे में सुनायी थीं, जो दुःखदायी थीं।

कहानी इस मित्र के बारे में हो सकती थी। उसने जो कुछ भी कहा, उससे मन और तिक्त हुआ। मैं चिढ़ता ही गया। आखिर किसी तरह उससे पिंड छुड़ाकर भागा। पर उसकी बात कहीं और लिखी जाएगी। असली कहानी तो अलेक्सी से मिलने के बाद शुरू हुई।

घोषणा हुई थी कि मेरे अतिथि का हवाई जहाज तीन घंटे से अधिक लेट है। दुःख का एक और करारा डोज़। रात तो खैर बर्बाद होनी ही थी; पर इस तरह भीड़ के बीच और वह भी दिल्ली की भीड़। उमस भरी रात, कैसे गुजरे ! साथ एक पुस्तक थी। बार बार झोले से निकाल कर उसे पढ़ता और थककर वापिस रख देता। अब मानो हताशा और थकान के एक भँवर में फँसा मैं उबासियाँ लेता जा रहा था।

तभी उसने आकर पूछा, “एक्सक्यूज़ मी ! यहां कोई 'बार' हैं क्या ?”

सबसे पहले उसके मोटे मोटे फूले गाल दिखे। वह निश्चित ही विदेशी था, वह उसकी आवाज से स्पष्ट था। रंग का हल्का गोरा। मुझे तो जैसे डूबते को सहारा मिला। मैंने कहा, “अच्छा होगा कि आप शहर चलें। मैं आपको एक जगह ले जा सकता हूँ जो देर रात तक खुली रहती है।”

रात के वक्त दिल्ली शहर से गुजरना एक विचित्र अनुभूति देता है। उसे लेकर मैं हवाई अड्डे से क्रमशः दूर आता जा रहा था। खामोश सड़कों पर खड़े खामोश मकानों के पास कभी कभार इक्के दुक्के लोग गुजरते। रात इतनी हो चुकी थी कि सड़कों पर गाड़ियाँ भी बहुत कम थीं। मुझे कनाट प्सेल में एक 'बार' का पता था, जहां गिने चुने लोगों के लिए सारी रात दूकान खुली होती थी। वहीं आकर हम दोनों ने एक टेबल लिया और ह्विस्की और सोडा का आर्डर दिया। उसने अपना भारी 'बैक पैक' दीवार से लगाकर रखा। अभी तक उसने अपने बारे में यही बतलाया था कि वह अमेरिका के न्यूयार्क शहर का रहने वाला है, पर इस वक्त लंबी यात्रा कर रूस के मास्को शहर होकर दिल्ली आया है। पाँच घंटों बाद उसे न्यूयार्क की फ्लाइट पकड़नी है।

मैंने ह्विस्की का सिप लेते हुए उससे कहा, “आप इतनी दूर से आ रहे हैं - थक गए होंगे !”

वह हँस पड़ा। उसकी हँसी में कुछ असाधारण सी बात थी। वह हँसी उसकी नहीं, दूर खड़े किसी आदमी की थी।

उसने कहा, “अरे भाई ! मैं तो पता नहीं कब से चैन से सोया नहीं हूँ। मैं जहाँ से आ रहू हूँ, वहां तो जंग चल रही है।”

वह जंग के इलाके से आया है। वह हँस रहा है। मैं जंग के इलाकों की कल्पना करता हूँ। बचपन के 'ब्लैक आउट' याद आते हैं - उन्नीस सौ बासठ, पैसठ, इकहत्तर। जंग यानी अँधेरा, साइरेन।

वह कह रहा था, ”हम लोग सोलह साल से न्यूयार्क में रह रहे हैं। पर मेरी पैदाइश बोस्निया की है। आप जानते होंगे, पहले युगोस्वालिया में था - बोस्निया ? मैं वहीं से आ रहा हूँ। वहां रिश्तेदारों से मिलना था। बहुत जरूरी था। परिवार में मौत हुई थी। वहाँ से निकल पाना बड़ा मुश्किल था। बहुत कोशिश की कि पश्चिम की ओर से निकलूँ, पर आखिरकार मास्को ही आना पड़ा।”

भूगोल के सवालों से मैं घबराता हूं। पर बोस्निया की विभीषिका से वाकिफ हूं। यह आदमी वहाँ से आया है, जहाँ आए दिन सर्ब लोगों और मुसलमानों की घमासान लड़ाई का जिक्र अखबारों में आता है। मैंने घबराहट भरी आवाज में कहा, “वहाँ तो स्थिति वाकई बड़ी बुरी है।”

वह फिर जोर से हँसा। फिर रुक कर कहा, “अरे ! इन साले कम्युनिस्टों ने दुनिया तबाह कर दी ! इतना अच्छा देश था।” कहते हुए उसकी आवाज़ भारी हो आई।

मैंने विषयांतर करते हुए कहा, “न्यूयार्क कैसा शहर है ? आप क्या करते हैं वहाँ ?”

”न्यूयार्क बहुत सुंदर है साब ! हम वहां रीअल एस्‌टेट के धंधे में है। ज़मीनों की खरीद फरोख्त करते हैं।”

फिर थोड़ी देर रुककर कहा, “अरे भई ! वहाँ भी गड़बड़ कम नहीं है। स्कूल के बच्चों के हाथ बंदूकें हैं। कहीं भी चैन से नहीं सकते !”

दूर देश से आया वह आदमी हँस रहा था। बात करते ही उसके माथे पर तनाव की लकीरें आ जातीं। अनजान इस आदमी के साथ अपनी बातचीत को मैं मन की डायरी में ध्यान से सजा रहा था। एक छोटे बच्चे की तरह बड़ी सावधानी से एक एक अक्षर लिख रहा था।

तभी एक गंजा सा, चश्मा पहने हुए, दढ़ियल आदमी वहां आया। वह भी हमउम्र दिखता था। यह एक साधारण सा 'बार' था। जहाँ कुर्सियां नहीं थीं केवल स्टूल लगाए हुए थे। वह आदमी हमसे अनुमति लेकर वहीं बैठ गया। शायद शराब का सुरूर था कि उसके आने से हमें जरा भी दिक्कत न हुई। उसने प्लेट में पड़ी मूगफली का एक दाना उठाया और चबाते हुए बोला, “तो गर्मी से बचने के लिए रात जगी जा रही है।”

हम लोगों ने उसे अपनी कहानी सुनाई। बातों बातों में पता चला कि वह कनाडा का रहने वाला है। पिछले एक हफ्ते से दिल्ली में है। उसे देर रात तक मटरगश्ती का शौक है। किसी मित्र ने इस 'बार' के बारे में बतलाया तो रोज यहीं आ रहा है।

उसने सिगरेट की डिब्बी निकाली और हमारी ओर बढ़ाई । अलेक्सी ने एक कश खींचकर कहा, “बढ़िया सिगरेट है।”

”हाँ, पर यहां बहुत महंगी मिलती है। सरकार बहुत टैक्स लेती है।”

”पर कनाडा से तो सस्ती होगी।”

”अरे हाँ, हाँ - वहां एक तो अपनी करेंसी में कीमत दो और टैक्स तो वहाँ भी बहुत है।”

वह शायद ऐसे लोगों में से था जिसे कीमतें हमेशा अधिक लगती हों।

अलेक्सी ने कहा, ”हाँ, कनाडा से तो न्यूयार्क मे सिगरेट बहुत सस्ती होगी।"

“यही तो समस्या है, जहाँ से सारा प्रदूषण पैदा होता है, वहाँ कोई रोकथाम नहीं! हाँ !”

”क्या प्रदूषण ! न्यूयार्क में अब प्रदूषण कहां वह तो पंद्रह साल पहले की बात है !”

उन दोनों में अजीब बहस छिड़ गई। बीच बीच में मैं कोई सवाल पूछता। बीच बीच में मुझे बोरियत होती। रह रह कर यह भी चिंता सता रही थी कि विभागीय अतिथि के हवाई जहाज के आने समय न हो गया हो।

वह कनेडियन कह रहा था, “अरे भई ! अमेरिका में बढ़ते प्रदूषण से जो अम्लीय वर्षा हमारे हो रही है, हमारे बच्चों पर उसका क्या असर पड़ रहा है ? हाँ? आज अगर जरा भी बूँदाबाँदी हो, मैं अपने बेटे को फुटबाल खेलने की अनुमति दे सकता?”

अलेक्सी ने कहा, “बच्चों की हालत कहाँ अच्छी है, न्यूयार्क में मेरे बच्चे को अपनी बोली का एक लफ्ज़ बोलने पर एक काले लड़के ने यूँ ही पीट दिया था !”

”आप लोग यूरोप से गए होंगे ?”

”हाँ, और आप ?”

”बस वहीं से हम भी आ बसे हैं कनाडा में ।”

”आपके परिवार के लोग भी वहीं से आए होंगे ?”

परिवार की बात होते ही जैसे उस कनाडियन (अभी तक उसका नाम हमें पता न था) को बेचैनी सी हुई। उसने खुद को सँभालते हुए कहा, “हाँ, हाँ, हम सब बाहर से ही आए थे। मैं जब कनाडा आया, मेरा बेटा दो साल का था।”

अब वे दोनों एक दूसरे को गहराई से देख रहे थे। मुझे लगा, अनकही कई बातों का बोझ हमारे माथों पर बढ़ता जा रहा था। मुझे लगने लगा था कि मुझे वापस हवाई अड्डे चलना चाहिए। मन ही मन मैंने हिसाब लगाया कि मेरे पास एक घंटा और बचा था। उन दोनों ने फिर से सिगरेटें सुलगा ली थीं। दारू का एक राउंड और चल पड़ा था। नशे में अलेक्सी की भाषा बिगड़ती जा रही थी। किसी भी बात को कहते हुए वह एक दो बार 'मदर फकर' जरूर कहता। पर उसके चेहरे पर संतुलन था, जबकि वह कनाडियन बातें करते हुए अस्थिर हो रहा था। हर बात कहते हुए मानो 'बार' में बैठे दूसरे लोगों से सहमति माँगता हुआ वह चारों ओर देखता।

अलेक्सी ने अचानक कहा, “इंडिया बहुत शांत है, कोई जंग लड़ाई नहीं।”

मैंने कहा , “हमारी अपनी समस्याएं हैं। यहां भी दंगे फसाद होते रहते हैं।”

कनाडियन बोला, ”हां, हां, पर जंग तो नहीं हो रही ...,” अचानक ही उत्तेजित होता हुआ वह बोला, "दुनिया की कई जगहों में सेनाएँ बच्चों तक का कत्ल कर रही हैं, क्रूर, अमानवीय हो गई है दुनिया ....,।” वह जोर जोर से सिगरेट के कश खींचता चारों ओर देख रहा था।

अलेक्सी ने उदासी भरी आवाज़ में कहा, ”अब जीवन की कोई कीमत नहीं। हर मदर फकर को पैसा ही सब कुछ है। पैसै, आराम, सेक्स...!”

“थोड़ा रुककर वह बोला, ”मेरी पहली बीवी मेरे साथ न्यूयार्क आई। हम एक दूसरे को बचपन से जानते थे - और वह मुझे छोड़ गई – बोलो क्यों ? सिर्फ इसलिए कि मैं बहुत गरीब था। आज मेरे पास पैसे हैं, बीवी भी अच्छा कमा लेती है, पर मैं कोई बहुत सुखी तो नहीं हूं। मेरे दोस्त, इन दिनों मैं बहुत दुःखी हूं बहुत दुःखी ! ...मेरा बेटा ...,” उसने अपनी बात पूरी न की।

कनाडियन बोला, “पर एक अच्छे बीवी बच्चों वाला सैनिक युद्ध छिड़ने पर दूसरे लोगों पर अत्याचार क्यों करता है - बलात्कार, यौन अत्याचार ..... बतलाओ, क्यों ?”

थोड़ी देर की चुप्पी। फिर कनाडियन ने अलेक्सी से उसके धंधे के बारे में पूछा। उसने खुद अपने बारे में भी बतलाया। वह एक वैज्ञानिक संस्था में टेक्नीकल स्टाफ में है। फिर उसने गंभीरता से कहा, “एक महामारी फैली हुई है। नहीं तो आप लोग ही बतलाइए कि अगर जंग हो, तो बच्चों को, बच्चों तक को, क्यों नहीं बख्शा जाता? बहुत ही खतरनाक बीमारी है...हमलोग .. हमलोगों ने अपने सभी सपनों को कुचल डाला है.... अगर बच्चों को भी प्यार न कर सकें...।”

उसकी थोड़ी देर की चुप्पी, जैसे एक विस्फोट का इंतजार था। उसने काँपती आवाज़ में कहा, “आपलोगों ने ऐसी माँ को देखा है, जिसका बेटा बेवजह एक जंग में अपनी जान गँवा बैठा हो !”

मुझे अब बेचैनी होने लगी। मैं चाहता था उठकर बाहर चलूं। एयर कंडीशंड हवा से निकल खुले में बैठूँ। पर अलेक्सी ने जैसे मुझे रोकते हुए हाथ पकड़कर कहा, “और कोई जरूरी नहीं कि कोई जंग छिड़ी ही हो। आप एक अच्छे भले समाज में रहते हों तो भी अचानक एक दिन आपका बच्चा सड़क पर चलते हुए किसी की गोली का शिकार हो सकता है। .... तुम्हारा कोई बच्चा है ?”

उसके सवाल से मैं घबरा गया। मेरा बच्चा। मेरा बच्चा कहां है ? वह घर में सोया होगा। क्या यह संभव है कि मेरा बच्चा सोया हो और खिड़कियां तोड़कर बंदूकें लिए लोग घर में घुसें और .....!

इतनी देर बाद अब अलेक्सी ने कनाडियन से पूछा, “आपका नाम क्या है ?”

उसने चश्मा उतारकर रूमाल से पोंछते हुए कहा, “मुस्तफा... मुस्तफा अट्टिला।"

अलेक्सी ने शांत स्वर में पूछा, “बोस्नियन?”

कनाडियन ने हल्का सा सिर हिलाया और देर तक अलेक्सी के चेहरे पर नज़रें गड़ाए रहा।

मुझे फिर एक बार याद आया कि बोस्निया में सर्ब ईसाइयों और मुसलमानों के बीच लड़ाई छिड़ी हुई है। मैं उठा और बोला, “माफ कीजिएगा, मुझे वापस लौटना होगा। मेरे अतिथि का जहाज आने वाला होगा।”

वे भी मेरे साथ उठ पड़े। मुस्तफा बोला, “मुझे कल रात एरोफ्लोट की फ्लाइट लेनी है। मैं मास्को जाकर फिर फ्लाइट बदलूंगा।

उन दोनों में बिल चुकाने की होड़ छिड़ गई। मेरे लाख कहने पर भी किसी तरह उन्होंने मुझे पैसे न देने दिए। अलेक्सी ने ही बिल चुकाया और मुस्तफा ने मोटी 'टिप' रखी।

बाहर हवा थमी हुई थी। चौथे पहर की ठंडक से एक हल्के आराम का अहसास भी था। मैं सोच रहा था कि शायद अलेक्सी मेरे साथ ही वापस चले। मैं एयरपोर्ट की बस पकड़ने प्लाजा की ओर चला। पीछे मुड़कर देखा तो वे एक दूसरे से विपरीत दिशाओं में जा रहे थे।