महायात्रा (अज्ञात) / कथा संस्कृति / कमलेश्वर

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800 ई. पूर्व वर्णित यह अक्कादी (यूनानी) कथा जीवन की महायात्रा को दार्शनिक आभास देती है। यह कथा ‘एतना’ से ली गयी है। दूसरी गाथा ‘अदपा’ में मनुष्य के मरण के कारणों की व्याख्या है।

एक बार सर्प और गरुड़ ने मित्रता की प्रतिज्ञा की, परन्तु गरुड़ ने एक दिन सर्प के बच्चे को खा लिया। इस पर कातर और क्रुद्ध सर्प ने सूर्य देवता से शिकायत की। सूर्य ने सर्प को राय दी कि वह बैल का अस्थिपंजर कहीं से खोज लाये और जब गरुड़ उसे खाने आए, तो वह उसे पकड़ ले। सर्प ने ऐसा ही किया। गरुड़ अस्थिपंजर खाने आया, तो सर्प ने उसे पकड़ लिया और पंख काट लिये, इतना ही नहीं, गरुड़ को एक गड्ढे में फेंक दिया। पंख न होने से गरुड़ निस्सहाय हो गया और यातना भोगने लगा। गरुड़ ने सूर्य देवता से प्रार्थना की। सूर्य उसकी मदद करना चाहता था, पर सर्प ने जो कुछ किया था, वह गलत नहीं था, अतः सूर्य चुप हो गया। तभी एक घटना घटी। कीश के राजा एतना की पत्नी गर्भवती थी। वह उसकी प्रसव-पीड़ा कम करने के लिए जादू की ‘जन्म-औषध’ खोजने लगा। औषध के लिए उसने सूर्य से पूछा, तो सूर्य ने मौका अच्छा देखकर कहा, ‘‘वह औषध तो सिर्फ स्वर्ग में है। वहाँ केवल गरुड़ जा सकता है। तुम गड्ढे में पड़े गरुड़ को स्वस्थ कर लो, तो काम बन जाएगा!’’ एतना ने गरुड़ को स्वस्थ कर दिया। दोनों उड़ चले। उड़ते-उड़ते पहले आकाश पर पहुँचकर गरुड़ ने कहा, ‘‘मित्र! देखो पृथ्वी कैसी है! चतुर्दिक् सागर है और बीच में पर्वत की तरह पृथ्वी!’’ यात्रा का अन्त नहीं आ रहा था। गरुड़ अन, एन्लिल तथा एंकी के स्वर्ग-द्वार पार कर गया, पर अभी बहुत दूर जाना था-जहाँ देवी के सिंहासन के पास औषध का वृक्ष था। एतना के लिए यात्रा असह्य हो गयी, क्योंकि उसका कोई अन्त नहीं था। आखिर यात्रा से बुरी तरह घबराकर एतना कूद पड़ा और पृथ्वी पर गिर पड़ा।