महावत / स्वप्निल श्रीवास्तव
हाथी एक अच्छा आदमी था
कुसंगत में बुरा जानवर बन गया था
उसके चिंघाड़ने में हिंसा सुनाई पड़ती थी
बाबू पहलवान सिंह सामंत थे। उनके गाँव का नाम पिपरा था। जब कोई पिपरा का नाम लेता तो लोग कहते कि वहीं पिपरा जहाँ पहलवान सिंह रहते हैं। उनके हाथी का नाम मस्ताना है। पहलवान सिंह का जिक्र उनके हाथी के विना अधूरा था
सामंत के हाथी सामंत की तरह अराजक होते है। यह अराजकता उनके हाथी ने हासिल कर ली थी। उसे मनबढ़ बनाने में पहलवान सिंह का योगदान था। मस्ताना जिस पथ से गुजरता था उस पथ के फसलो को नेस्तानेबूत कर देता था। गन्ने के खेत उसे विशेष प्रिय थे। एक बार यदि वह गन्ने के खेत में घुस गया तो बिना पेतभर खाये बाहर नहीं निकलता था,उसकी शिकायत करने की हिम्मत किसी एं नहीं थी। उल्टे उसके कारनामों पर बाबू साहब ठहाका मार कर हंसते थे।
इलाके में एक कांजीहाउस था जिसमें उन पशुओं को बंद किया जाता था जो किसी का खेत चर जाते थे। लेकिन हाथी जैसे जानवर के लिये किसी तरह के दंड का प्राविधान नहीं था। होता भी तो किसकी हिम्मत थी। सामत के आदेश स्वंय में अलिखित कानून थे।
चेतराम मस्ताना का पीलवान था। उसके मस्ताना को कई कलाओं में पारंगत कर दिया था। वह हाथी के मस्तक पर अंकुश लगाता था। जब हाथी की तेज चिंघाड सुननी होती वह जोर से अंकुश लगाता। धीमी आवाज के लिये वह हल्का अंकुश लगाता था। जो खेल उससे छूट जाते उसे बाबू साहब पूरा करते थे।
पिपरा गाँव बहुत बड़ा नहीं था। इस गाँव में कई जातियो के लोग थे जिसमें आधे से ज्यादा पहलवान सिंह के असामी थे। गाँव के दक्षिण ओर दलितों की बस्ती थी। वहाँ के लोग बाबू साहब का बेगार करते थे। बाबू साहब यदा कदा तीमारदारों की मदद करते रहते थे। उनमें कुछ मानवीय गुण थे। इसलिये वे अन्य जमीनदारों की तरह अलोकप्रिय नहीं हुये थे।
दक्षिण टोला में हितई रहते थे। उनके लड़के का नाम राह खेलावन था। बाप पूत बाबूसाहब की सेवा में लगे रहते थे। उनका घर बाबूसाहब की कोठी से दूर नहीं था। हितई मजदूरी धतूरी करते थे। एक बीघा खेत था उसे जोतते बोते थे। दो जून का खाना मुश्किल से जुरता था। कोई इमर्जेंसी होती तो बाबू साहब का दरबार तो था ही । हितई अपने बेटे से बहुत परेशान थे। उसका बस दो काम था बाबू साहब के हाथी के साथ घूमना और दोस्तो के साथ दूर दूर तक नाच देखने जाना।
उसने चेतराम से दोस्ती गाँठ ली थी। उसके साथ हाट बाजार बर बारात जाता रहता था। शादी बारात में खूब खाने को मिलता था। साथ में सैर हो जाती थी।
गर्मियों में शादी ब्याह होते थे। नाच कम्पनियां आती थी। राम खेलावन गोल बाँधकर नाच देखने चले जाते थे। और पछिलहरे लौटते थे। उसके बाद वह अखंड नींद में सोते थे। हितई भिंनसार में हल बैल लेकर खेत पर चले जाते थे। दोपहर में जब वह दाना पानी के लिये घर लौटते तो खेलावन को खर्र्राटा भरते हुये देखते। कहते। ससुर अभी तक सोये हुये हो। सारी दुनियां अपने काम काज में लगी हुई है और तुम अंगड़ाई ले रहे हो। नहीं चेतोगे तो पछताओगे। अभी तो मै हूं मेरे न रहने के बाद तुम्हे मालूम होगा। अभी समय है सुधर जाओं।
खेलावन कान में ठेपी लगा लेते जैसे कि कुछ सुना न हो। वे उठते दिशा फराकत जाते। उसके बाद तालाब में नहाकर दोस्तो के साथ बाग में चकल्लस करने चले जाते। जैसे सांझ होती घर वापस लौट आते। लालटेन तक नहीं जलाते। यह काम हितई को करना पड़ता था।
खेलावन बीस पार कर चुके थे उनकी उम्र के लड़के हिल्ले लग चुके थे और खेलावन लंडूरों की तरह घूम रहे थे। उन्हें जिम्मेदारी का तनिक अहसास नहीं था। यह हितई के चिंता का कारण था। हितई की देह गिर रही थी,ऊपर से खेलावन उनकी छाती पर सवार थे।
एक दिन घूमते घामते खेलावन के बाल सखा सुमेर के घर पंहुच गये। सुमीर भैस चराने जा रहे थे। हितई को देख कर रूक गये।
हितई ने पूंछा। क्या हाल चाल है सुमेर।
। सब ठीक है काका। खेलावन क्या कर रहे है। ?
। बस वहीं पुराना काम कर रहे है। हाथी के साथ घूमना और नाच देखना।
। इससे तो जिन्दगी नहीं चलेगी। आदमी को कुछ काम काज तो करना चाहिये। बस बेटा इसीलिये मैं तुम्हारे पास आया हूं। तुम उनके बचपन के दोस्त हो। तुम समझाओ शायद अक्ल खुल जाय।
। ठीक है काका,मैं उसे समझाऊगा।
जाड़े की सुबह खेलावन और सुमेर कउड़ा ताप रहे थे। सुमेर को मस्ताना हाथी के किस्से सुना रहे थे। सुमेर ने टोकते हुये कहा। मीता अब यह हाथी हाथी का खेल अच्छा नहीं लगता। अब यह दिल्लगी बंद करो। अपनी जिंदगी के बारे में सोचो। काका बुढ़ा गये हैं। वह पके आम है न जाने कब टपक पड़े। जिस काम में मन लगे वह करो
। मीता मेरा मन तो नाच में लगता है।
। नाच में काम करोगे।
। हाँ क्यो नहीं लेकिन कैसे काम मिलेगा ?
। तुम चिंता मत करो नाच कम्पनी के मालिक राम मोहन पाठक को मैं जानता हूं। वह मेरे ससुराल के रहनेवाले है। मेरी तो जान पहचान है लेकिन ससुरालवालो की बात नहीं टालेगे। गाना तो तुम बढ़ियां गा लेते हो। ऐक्टिंग तो सीख ही जाओगे। बस बाल और गलमुच्छे बढ़ाने पड़ेगे। वह कोई कठिन काम नहीं है।
पाठक जी की नौटंकी जवार में मशहूर थी। दूर दूर तक नाचने जाती थी। इस नाच के जोकर हीरालाल ने नौटकी को ऊचे आसमान पर पहुँचा दिया था। उनकी जोकरई देखकर पेट में बल पड़ जाते थे। खेलावन को इस नौटंकी में जगह मिलेगी यह सोचकर वह बहुत मगन थे। खेलावन का चेहरा मोहरा ठीक था,थोड़ा रंग रोगन लगाने पर चमक जायेगा, नाच में तो टेड़े बाकुल लोग भी रहते है। उनके हिसाब से काम का बटवारा होता है। नचनिहों की अलग मंडली होती है। बजानेवाले अलग होते हैं। सामान ढ़ोनेवाले खाना तैयार करनेवाले नाच के साथ होते हैं। जैसा काम वैसा धाम।
खेलावन के लिये नाच में खपना आसान था। भले ही उन्हे हीरो का पार्ट न मिले लेकिन साइड हीरो का रोल तो कर सकते थे।
हाट बाजार बन गये थे
वहाँ नई चीजों की आमद हो रही थी
सामान नहीं लोग भी बिक रहे थे
शुक्र के दिन नसिरागंज का बाजार लगता था। इस बाजार में नून तेल लकड़ी से लेकर कपड़ा लत्ता भी बिकता था। मीट मछली की अलग बाजार थी। बाजार में खेल तमाशे होते थे। भेड़े और मुर्गो की लड़ाई होती थी। लोग गोल बाँधकर चारो ओर बैठे रहते थे और खेल के बीच ललकार भरते थे। जिंदगी की लड़खटखट से अलग कुछ पल चुरा लेते थे। बाजार का मतलब केवल सौदा सुल्फ खरीदना नहीं मौज मस्ती करना होता था। इस हाट बाजार में जेबकतरे अपना हाथ साफ करते थे। उनके पकड़े जाने पर खाशी पिटाई होती थी लेकिन वे पुलिस को घूस देकर छूत जाते थे
बाजार के उत्तर छोर पर साधू रमचेलवा की कुटी थी। वहाँ उनके चेलो की भींड़ जमती थी। रोज सुबह शाम गाँजे का धुआ उड़ता रहता था। साधू को कुछ न मिले गाँजा मिल जाय तो उनकी आत्मा पुलकित हो जाय। इसी खासियत के नाते उनकी ख्याति गंजेड़ी साधू के नाम से हो गई थी।
समय के साथ साथ इस बाजार का चरित्र बदलता गया। ठेठ देसीपन खत्म होता गया। बाजार में कुछ नये लोग आ गये थे। इन नये लोगो ने बाजार को एक ऐसे ठीहे के रूप में बिकसित किया जो बाजार के मूल स्वभाव से अलग था,यहाँ वर्जित चीजे बिकने लगी। शराब और बियर की दुकाने खुल गयी। जैसे शाम घिरने लगती बाहर से आयी स्त्रियां ग्राहक खोजने लगती थी।
नसिरागंज बाजार से सौ कदम पर पाठक जी का घर था। मकान खपरैल का था लेकिन ढ़ग से बना हुआ था। देखने पर दो खंड का मकान लगता था। सामने बड़ा सा मैदान था। मैदान के अंतिम छोर पर कुंआ था। कुयें के जगत पर लोटा डोरी और उबहन रखी हुई थी। बजरिहे यहाँ अपनी प्यास बुझाने आते थे। कोई जान पहचान का
कोई जान पहचान का होता तो उस पानी पीने के लिये भेली दी जाती थी। आज से नहीं बहुत दिनो से यह परम्परा चल रही थी। भले ही पाठक जी नाच कम्पनी चला रहे थे लेकिन वह बहुत बड़े खेतिहर थे। जाति के ब्राह्मण होने के नाते उनके भीतर छुआछूत का भाव नहीं था। उनके उदारवादी निजाज की तारीफ लोग करते थे।
पाठकजी ने घर विद्रोह कर नाच कम्पनी बनाई थी। उनके नाम पर बहुत थू। थू हुई। परिजनो ने कहा। यह आदमी तो बह गया। खानदान का नाम मिट्टी में मिला दिया। हित रिश्तेदार कन्नी काटने लगे। न्योता हंकारी बंद हो गयी। यह पाठक जी का दम था कि क्षेत्र में उन्होने अपनी हैसियत बनाकर दिखा थी। लोगो को बताया नाच कोई बिजिनेस नहीं एक लोककला है। वह बड़े बड़े रियासतो और रसूखदारो के यहाँ नाच लेकर जाने लगे और उन्हें यथोचित सम्मान मिलने लगा। वह सूबे के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शिरकत करने लगे। आकाशबाणी में अपना गायन प्रोग्राम प्रस्तुत करते। जो लोग उनसे कटे कटे रहते थे उनसे जुड़ने लगे। इन सब के पीछे पाठक जी का संघर्ष था।
पाठक जी रोज रहे न रहे बाजार के दिन जरूर रहते थे। बाजार के दिन उनका ओसारा भर जाता था। हाँ गर्मियों में उनकी हाजिरी कम रहती थी। इन दिनों उनके नाच का काम करता रहता था।
वह कुर्सी पर बैठे हुये थे। उनके साथ जवार के लोग और नचनिहे थे। चाय का दौर चल रहा था। सिगरेट और बीड़ी के धुंये उड़ रहे थे। जैसे कोई चिमनी लगी हुई हो। जैसे हवा चलती धुंये उड़ने लगते फिर उन खाली जगहों को नये धुंये काबिज कर लेते।
सुमेर खेलावन के साथ पाठक बाबा के दरबार में पहुंचे। उनका पैर छुआ। खेलावन ने उनका अनुसरण किया। पाठक जी ने मूंड़ी उठाई और बोले। आओ सुमेर बहुत दिन बाद उपराये हो। कहाँ थे इतने दिन ?
। हाँ बाबा इधर आये काफी दिन हो गये। घर ग्रहस्थी के काम काज से फुरसत नहीं मिल पाती। जब शादी ब्याह नहीं हुआ था तो हर बाजार में आता था।
। ठीक कहते हो भैया यह दुनियां मायाजाल है। एक बार जो फंस गया सो फंस गया। कबीर साहब कह गये हैं। माया महाठगिनि हम जानी।
कुर्सियां भर चुकी थी। पाठक जी ने उन्हें चौकी पर बैठने का इशारा किया। खेलावन के मन में धुकधुकी चल रही थी लेकिन सुमेर शांत चित्त बैठे हुये थे। खेलावन को एक बड़े इंतहान से गुजरना था। उनकी नियति तय होनी थी। वह हनुमान जी में ध्यान लगाये हुये थे। इष्ट देवता को जप रहे थे।
सुमेर ने कहा। बाबा आपसे कुछ प्राईवेट काम है। आप थोड़ा समय दे दे।
। ठीक है हाट बाजार कर लो फिर आओ। तबतक मैं लोगो से मिल लूं।
सुमेर और खेलावन ने बाजार के कई चक्कर लगाये। सौदा सुल्फ खरीदा। खेल तमाशे देखे लेकिन उनका मन पाठक जी के जबाब पर अटका हुआ था। खेलावन की नजर देसी
ठर्रे की दुकान पर पड़ी। उनकी आंखो में चमक आ गयी। दारू के प्रति उनका पुराना अनुराग था। दुकान को देखकर सहसा उमड़ पड़ा। बाबू साहब के पीलवान के साथ रहते रहते खेलावन ने इस आदत को गले लगा लिया था। इस तरह यह नशा उनके गले पड़ गया था।
सुमेर ने कहा। धांधो नहीं पहले पाठक बाबा से मिलते है फिर ठीहे की ओर चलते हैं। कही दुकान भागी नहीं जा रही है।
पाठक बाबा के ओसारे से भींड़ छट चुकी थी। एक दो आदमी रह गये थे वे भी जाने की तैयारी में थे। सूरज महराज पश्चिम दिशा में अस्त होनेवाले थे। पेड़ की पुंनई पर बचे हुये धूप का लाल टुकड़ा लुपलुपा रहा था। यानी अब सांझ होनेवाली थी। चिरई चुरुंग अपने ठिकाने को प्रस्थान कर रहे थे।
। हाँ सुमेर बोलो क्या काम है ?
। बाबा ये मेरे बचपन के सखा राम खेलावन है। शुरू से इनका नाच में मन लगता है। इनका गला बहुत सुरीला है। नाच में कोई रोल कर सकते है। आपकी कृपा हो जाय तो कोई काम धाम मिल जाय। दो पैसा घर में आये और जिन्नगी चले।
खेलावन ने करूण भाव से पाठक जी की ओर देखा। जैसे वह उनके आदेश की प्रतीक्षा कर रहे हो।
। खेलावन किस तरह का गीत गाते हो ?
। बाबा हर तरह का गीत गा सकता हूं चाहे वह शहरी हो या देहाती।
। अच्छा अपने पसंद का कोई गीत गाओ। देखो तुम्हारा गला कैसा है।
यह खेलावन का आडीशन टेस्ट था।
खेलावन ने कान पर हाथ धर कर अपने पसंद का गीत गाया। काहे मनवा दुख की चिन्ता तुम्हे सताती है,दुख तो अपना साथी है।
खेलावन ने दिल से यह गीत गाया। सुनकर पाठक जी चकित रह गये।
बोले तुम्हारा गला बहुत मीठा है। तुम पास हो गये। तुम्हे जरूर नाच में काम मिलेगा।
खेलावन पाठक जी के गोड़ पर अपना सर रख दिया। पाठक जी ने पीठ पर हाथ रखकर मन से आशीर्वाद दिया। यह खेलावन के जीवन का अनोखा क्षण था। जिसे वह अकेले में गाकर व्यक्त कर सकते थे।
सुमेर ने कहा। खेलावन भाई। दौड़ कर बाजार से मिठाई ले आओ। बाबा का मुँह मीठा करो।
। नहीं सुमेर अभी नहीं। अभी नाच में काम करने दो। फिर जमकर दावत होगी।
। वह तो होगी ही ;लेकिन अभी तो बाबा मुँह तो मीठा कर ले। आप की कृपा हो गयी है। इसकी खुशी पर हमारा हक बनता है।
पाठक जी मना नहीं कर सके।
बाजार में दारू की दुकान पर खूब भींड़ लगी हुई थी। कुछ लोग शाम ढ़लते बाजार
में छिपकर पीने आते हैं। बाजार के दिन भींड़ बढ़ जाती है। पीने के बाद लोग अनाब शनाब बकने लगते है। यहाँ नये नये तरह की गालियां सुनने को मिलती है।
दारू की दुकान के पास भाति भाति के चिखने की दुकाने सजी हुई थी। मांसाहारियों के लिये गोश्त और मछली। शाकाहारियों के लिये मशालेदार चना और टिकिया। दोनो मीता जन्म से मांसाहारी थे। दुकान से चिखना लेकर वे पेड़ की सोर पर बैठ गये। साथ में एक बोतल लालपरी थी। जैसे दो बड़े पैग हलक में उतरे वे हवा में उड़ने लगे। उनके दिब्य चक्षु खुल गये।
खेलावन ने सुमेर को गले लगाते हुये कहा। मीता तुमने दोस्ती का फर्ज अदा कर दिया है,। मैं तुम्हारे जैसा पाकर धन्य हो गया हूं। हमारे तो दुर्दिन खत्म हो गये है।
। मीता यह मेरी नहीं पाठक जी की मेहरबानी है।
। लेकिन मीता तुम्हारे जरिये मैं पाठक जी तक पहुँचा हूं।
। सब भगवान की कृपा है। हम तो निमित्त मात्र है। होता वही है जो किस्मत में लिखा होता है।
दोनो जनों ने बहुत दिनो बाद मन की बात की। अंगूर की बेटी सिर पर सवार हो चुकी थी। नशे की मादक हवा में दोनो बिना पंख के उड़ रहे थे।
पीते पिलाते रात हो गई थी। झींगुर बोलने लगे थे। दूर जंगल में जूगुनू चमक रहे थे। सियारों का हुआं हुआं शुरू हो गया था।
नसिरागंज से उनका गाँव दूर नहीं था। गाँव में दो चार कोस की दूरी मायने नहीं रखती। इतनी दूरी तो लोग शादी ब्याह में पैदल दाब देते है। नाच देखने के लिये इससे ज्यादा दूरी आसानी से तय कर ली जाती है।
पेट में पेट्रोल पड़ चुका था। पांव में गति आ गयी थी। वे दोनो रास्ते के कुश काटों को रौदते हुये जा रहे थे।
वे कब चले कब घर पहुंचे कितना समय लगा। इसका कोई ध्यान नहीं था। बस वे बिस्तर पर थे। इस खबर से सबसे ज्यादा खुश खेलावन के दादा हितई थे।
सबहि नचावत राम गुसाईं उर्फ
खेलावन का नाटक मंडली में काया प्रवेश
राम खेलावन अब पाठक जी की नाट्य मंडली में प्रवेश कर चुके थे। उन्हें हीरो का काम नहीं मिला लेकिन सह नायक की भूमिकाये मिल रही थी,जब नाटक का रस बदलना होता,खेलावन को गाने के लिये स्टेज पर उतार दिया जाता। खेलावन गाकर शमां बाँध देते। उनके गाने पर खूब तालिया बजती। लोग गाने की फरमाईस करते।
उनकी भेषभूषा बदल चुकी थी। कंधे तक बाल आ गये थे। गलमुच्छे कान तक गझिन हो चुके थे। उनका चेहरा बदल चुका था। वह अच्छे से रहने लगे थे। चाल चलन में बदलाव आ चुका गया था। वह नाटकीय ढ़्ग से बात कर रहे थे। जैसे नाटक
का कोई सम्वाद बोल रहे हो।
दो चार पैसे घर में आ रहे थे। राम खेलावन तो खुश थे ही। उनके पिता हितई के चेहरे की आभा लौट आयी थी। बाप के जीवन की सबसे बड़ी खुशी यही होती है कि उसका बेटा अपनी जिम्मेदारी को अनुभव करे। पैसे की किल्लत न हो।
समाज में खेलावन की पहचान बनने लगी थी। आदमी बहुत भला आदमी क्यो न हो अगर जेब में पैसे न हो तो वह दो कौड़ी का हो जाता है। आदमी की हैसियत गुण से नहीं पैसे और जर जमीन से नापी जाती है। खेलावन ने जब से नाच में काम करने लगे थे तबसे उनकी स्थिति सुधरने लगी थी।
गर्मी के सीजन में खेलावन को नाचने का ज्यादा सट्टा मिल गया था। इस साल ज्योतिषियों की कृपा से खूब शादियां हुई। लोग मजाक करने लगे थे कि इस साल अगर बैल ब्याह करना चाहे तो लग्न निकल आयेगी। खेलावन शाह खर्च थे। लालपरी की बोतल लेकर सुमेर के पास पहुँच गये। झोले में उबले हुये अंडे नमकीन और खीरे का सलाद था। सुमेर उन्हे बैलों की घारी में ले गये। यह इस काम के लिये सुरक्षित जगह थी। बैलों की रिहाइस से जो जगह बची थी वहाँ बसखट बिछा दिया गया। बैल उन्हें देखकर चिंहुक उठे। जैसे उनके सोनें के काम में कोई खलल डाल रहा हो।
खेलावन ने दारू की बोतल अपने दांत से खोली और ढ़क्कन को हवा में उड़ा दिया। ढ़क्कन उछलकर बैल की पूछ पर लगा। बैल उछल पड़ा। सुमेर यह मंजर देखकर हंस पड़े। बोले मीता तो तुम तो बहुत बड़े कलाकार बन चुके हो। बन्द शील तोड़ देते हो। लेकिन यह आदत यही तक महदूद रखना। मनबड़ई मत करना।
। मीता लालपरी की बोतल देखकर रहा नहीं जाता है।
दोनो मिलकर हंसने लगे। इस हंसी में रहस्य और रोमांच था।
दोनो के हलक दारू की बारिश से भींग चुके थे।
सुमेर डेहरी पर रखा हुआ रेडियो उठा लाये और उसके कान उमेठ दिये। रेडियो गाने लगा। आज फिर मरने की तमन्ना है। आज फिर जीने का इरादा है।
दोनो साथ साथ झूमने लगे।
खेलावन की ठेपी खुल चुकी थी। मीता मैं एक हाथी खरीदना चाहता हूं।
सुमेर चौंक उठे। कैसा हाथी। उन्हे लगा कि नशा उन्हे गिरफ्त में ले चुका है। तभी तो बहकी बहकी बाते कर रहे है। उन्हे यह मुँह और मसूर की दाल। वाला महावरा याद आया।
। मीता जैसा हाथी पहलवान सिंह के पास है वैसा हाथी।
। खेलावन भाई कैसी बात कहते हो। हम लोगो की औकात बैल खरीदने की नहीं है और तुम हाथी की बात कर रहे हो। ? हाथी तो दो तीन लाख में आयेगा। कहीं पगला तो नहीं गये हो। हाथी खरीद भी लो तो खिलाओगे क्या। घर द्वार खलिहान खेत बिकने के बाद हाथी खरीदने का पैसा नहीं आयेगा।
खेलावन हाथी खरीदने पर अड़े हुये थे। सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम लट्ठा। की मसल याद आ रही थी।
दोनो लोगो की बतकही चल रही थी। इधर रात के बारह बज रहे थे। दोनो ने साथ खाना खाया। फिर बींड़ी सुलगाई। सुमेर खेलावन को पहुचाने गली की मोड़ तक गये। उनके हाथ में डंडा थमाते हुये कहा। ध्यान से जाना खेलावन भाई। गाँव के कुत्ते बहुत कटहा हो गये हैं। गाँव में एक काला कूकुर बौराया हुआ है। कई लोगो को काट चुका है। कुत्ता काटने पर पेट में बीस सुई लगती है।
गाँव के लोग खा पीकर आठ नौ बजे तक सो जाते है। गाँव की रखवाली कुत्ते करते हैं। गाँव की गली सूनी थी। जैसे खेलावन गली में घुसे कुत्तो ने उन्हे घेर लिया। और झौ झौ करने लगे।
नौटंकी एक गति से नहीं चलती थी। उसमें उतार चढ़ाव आता रहता था। किसी साल खूब सट्टा मिलता था किसी साल कम। यह ब्याह की लगन पर निर्भर था। नाच का काम गर्मियों में चलता था, बाकी दिन खलिहर होते थे। कभी कोई दानी धर्मात्मा कोई मांगलिक कार्य करता तो उन्हे बुला लिया जाता। घर गृहस्थी ठीक ठाक चल रही थी। लेकिन जीवन में निश्चितता का भाव नहीं था। हारी बीमारी और न्योते के नाते पैसे की किल्लत होने लगती थी। इन्ही विपरीत स्थितियों से खेलावन को गुजरना पड़ता था
जबसे वीडियो सिनेमा का प्रचलन शुरू हुआ। नाच का खुमार उतरने लगा। नये उम्र के लड़को की रुचि वीडियो सिनमा की ओर बढ़ने लगी। लोगो को लगा वीडियो सिनेमा नाच से ज्यादा सुविधाजनक है। बस दो बांस खड़ा करो और पर्दे को टांग कर खेल शुरू कर दो। इसमे किसी तरह के टिटिम्मे की जरूरत नहीं है। हजार बारह सौ में रातभर नये काट की फिल्मे देखो। न पंडाल की जरूरत न परदे की झंझट। वीडियो में हाट फिल्मो का सुख अलग है। लेकिन पुराने लोग इस धारणा से अलग सोचते थे। वे नंगी फुंगी औरतो को देखकर लजा जाते थे। कुछ खुर्राट बुड्डे थे जो नयी उम्र के लड़को के साथ लगे हुये थे। उनके साथ छिपकर फिल्मो का लुत्फ उठाते थे। कुल मिलाकर नाच के दर्शक वीडियो सिनेमा की ओर जा रहे थे।
वीडियो सिनेमा का धीमा जहर लड़को के नसों में फैल रहा था। उनका चाल चलन बदल रहा था। वे शीशे के सामने घंटो अपने आपको निहारते रहते थे और हीरो के तर्ज पर अपनी जुल्फे संवारते रहते थे। कई लड़को ने अपने घरों में हीरोइनो की तस्बीरे लगाये हुये थे। वह हेमामालिनी का जमाना था। उसपर मर मिटनेवालो की कमी नहीं थी
खेलावन की जिंदगी अभी पटरी पर चल रही थी कि वीडियो सिनेमा ने सब गुण गोबर कर दिया। उन्होने सोचा अब नाच से काम नहीं चलनेवाला है। उन्हे दूसरे रोजगार के बारे में सोचना चाहिये। नाच तो डूबता हुआ जहाज है इसके पहले जहाज डूब जाय उन्हे दूसरी कश्ती खोज लेनी चाहिये।
चूहे सिर्फ अनाज नहीं खाते
अनाज के साथ खेलते है
वे भंडारण की कला में माहिर है
जवार में अनाज कम चूहो की तादात
बढ़ती जा रही थी।
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उन दिनो जवार में चूहो का आतंक बढ़ता जा रहा था। उनकी संख्या में तेजी से बृद्धि हो रही थी। ये चूहे आम चूहो की तरह नहीं थे। वे मोटे ताजे और शक्ल में बिल्ली की तरह थे। चूहों की मूंछे बहुत डरावनी थी। वे सूई की तरह चोख थी। वे बहुत ढ़ीठ थे। लोगो को देखकर डरते नहीं थे। लोगो ने उनके सफाये के बिल्लियां पाली लेकिन नाकाम हो गये। वे बिल्लियों को धोखा देकर उनके हिस्से के दूध पी जाते थे।
खेलावन के दादा कहते थे कि ऐसे चूहे उन्होने अपनी जिंदगी में नहीं देखे थे। लगता था ये चूहे किसी दूसरे ग्रह से आये हो। उनपर किसी चूहेमार दवा का असर नहीं होता था। वे उसे सूंघकर छोड़ देते थे।
ये चूहे दिन में खेत में नहीं रहते थे। दिन में वे जंगल चले जाते थे और रात में लौटते थे। रात में वे खेत का अनाज जंगल में छिपा देते थे। उनकी रणनीति से किसान परेशान थे। फसलों के लिये हाड़ पसीना गलाते और उसे चूहे ले उड़ते। वे खाते कम नष्ट ज्यादा करते थे।
खेलावन ने सोचा क्यो न चूहेमार दवा को बेचकर पैसा कमाया जाय और जवार को चूहों से मुक्त किया जाय। लेकिन चूहेमार दवा कहाँ से लाई जाय। उन्हें ध्यान आया कि उनके नाना के यहाँ एक आदमी है जो चूहेमार दवा बेचता था। उसका उस इलाके में बहुत नाम था। लेकिन यह बात वर्षो पुरानी थी।
एक दिन पिता से कहा। काका नाना की बहुत याद आ रही है। इधर कोई काम धान नहीं है,कहो तो चला जाऊं।
पिता ने सहमति दे दी।
खेलावन की ननिहाल बखिरा थी। वह उनके गाँव से दस कोस दूर था। बखिरा अपने झील के लिये मशहूर था। बखिरा के आसपास मछेरो की बस्ती थी जो मछली मारकर जीवन यापन करते थे। झील में खूब परिंदे आते थे। जिसका लोग शिकार करते थे। बखिरा में ठठेरे रहते थे। वहाँ रात दिन खटर पटर की आवाज आती थी। खेलावन के नाना बखिरा कस्बे के दूसरे छोर पर रहते थे। वे इलाके के मशहूर मछेरे थे। गहरे पानी से मछलियां पकड़ लेते थे। उन्हे मालूम था कि कब और कहाँ मछलियों का शिकार किया जाय। लोग उनके साथ रहकर यह कला सीखते थे।
मछली बेचकर उन्हे थोड़ी बहुत आमदनी हो जाती थी। हालाकि इन्हे पैसे की कोई जरूरत नहीं थी। उनके दो लड़के शहर में कमा रहे थे और उनके नाम हर महीने पैसे
भेजते थे। बस मछली मारना उनका नशा था। जैसे भोर होती वह कंधे पर जाल उठाये नदी पोखर की ओर चल देते थे और सांझ को लौटते थे। लौटते समय उनकी जलखर में मछलियां रहती थी। उनके घर सब्जी की जगह मछलियां बनती थी।
उनका टोला मछुवारों का टोला था। जिसमें उनका घर अलग दिखता था। हर मछुवारों के घरपर जाल फैला रहता था। पूरे टोले में मछलियों की भीनी भीनी गंध थी। इससे पता लग जाता था कि यह मछेरों की बस्ती है।
खेलावन ननिहाल पहुंचे तो पता चला नाना नहीं है। वह मछली के शिकार पर गये हुये है। रात में लौटेगे।
नानी ने कहा –बचवा तुम्हारे नाना बौरा गये है। कहा नहीं मानते है अपने मन की करते है। कुछ कहो तो झगड़ने लगते है। बुढ़ापे में बुद्धि सठिया गयी है। बस दिन रात मछली मारने की फेर में लगे रहते है। जहाँ कहीं से बुलावा आता अपनी गोल के साथ चले जाते है। मछली में उनके प्राण बसे हुये है। लडके शहर से आते है और कहते है यह काम छोड़ दो लेकिन उनकी बात हवा में उड़ा देते है।
नानी का नाना पुराण जब शुरू हो जाता है तो चलता रहता है।
--छोड़ो बिटवा घर दुआर का हाल चाल बताओ। तुम्हारे नाना का किस्सा जल्दी खत्म होने वाला नहीं है।
जैसे हाथ गोड़ धोकर खेलावन बैठे ही थे कि कुत्तों के भूंकने की आवाज सुनाई दी। –बचवा तुम्हारे नाना आ रहे है।
-आपको कैसे मालूम।
-कुत्ते भूंक रहे है,जब वे आते है कुत्ते उनके पीछे लग जाते है। वे कुत्तो को खाने के लिये सिंधरी मछली जो देते है। इसीलिये कुत्ते सीवान में ही उनके साथ लग जाते है। बचवा तुम्हारे नाना के साथ रहते रहते जिंदगी बीत गयी। मै खांसी की आवाज से पहचान लूंगी कि वह खांस रहे है।
नाना जैसे घर पहुंचे बसखट पर धम्म से गिर पड़े। जाल को खूंटी पर टांग नहीं सके। जलखर को बसखट के नीचे जतन से रख दिया। तेजी से। राम हो। कहा।
उनकी आवाज से लग रहा था कि वह बहुत थके हुये है। वह उम्र का सत्तर साल पार कर चुके थे।
घर के अंधेरे में बहुत कुछ साफ नहीं दिखाई दे रहा था। लालटेन के शीशे पर कालिख जमी हुई थी। जैसे मुँह हाथ धोने कुंये की तरफ बढ़े नानी ने कहा। देखो कौन आया है ?
--कौन है ?
-अरे खेलावन हैं।
खेलावन का नाम सुनकर वह पुलकित हो गये। बिटियां दामाद का हाल चाल पूंछा।
नानी से कहा। भांकुर मछली लेकर आया हूं। कुछ तल देना बाकी का झोल बना देना।
नाना ने अपना कपड़ा उतार कर खूंटी पर टांग दिया और बहकटी और तहमद पहन कर बैठ गये।
-तुम्हारी नौटंकी कैसी चल रही है।
-अच्छी नहीं चल रही है नाना। जबसे यह वीडियो सिनेमा आया हुआ है। नौटंकियां टूटती जा रही है।
-ठीक कहते हो हमारे गाँव के कई नचनिहे नौटंकी छोड़कर शहर कमाने चले गये है। भैया नौटंकी डूंबती हुई नैया है। जब तक चल रही है चल रही है। अब इसका कोई भविष्य नहीं है तुम किसी दूसरे रोजगार के बारे में सोचो। तुम्हारे काका भी बुढ़ा गये है। जो कुछ करना धरना है वह तुम्हे करना है। जमाना बहुत खराब आ गया है।
-नाना इस मामले में आपकी मदद चाहिये।
-कैसी मदद। मैं तो हर तरह से मदद करने के लिये तैयार हूं।
-नाना आपको मालूम है जब पांच साल पहले आया था तो आपके घर चूहेमार दवा बेचनेवाले दोस्त आये थे। उनकी चूहेमार दवा अचूक होती थी। मैं चाहता हूं मैं उनसे चूहेमार दवा का फार्मूला सीखू।
-लेकिन अब वह चूहेमार दवा नहीं बेचता। उसके बच्चे कमासुत हो चुके है।
-लेकिन उनके पास चूहेमार दवा का फार्मूला तो होगा ही।
--चिंता न करो मैं सुबह उसे बुला लूंगा।
चूल्हे पर मछली पक रही थी। उसकी गंध से खेलावन के नथुने बेचैन हो रहे थे। उन्हें बहुत दिनो बाद मछली भात खाने को मिलेगा। यह सोचकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे।
नाना ने खेलावन से कहा। क्या मछली के साथ कुछ नशा पानी चलेगा ?
यह सुनकर खेलावन के मुँह से लार टपकने लगी।
खेलावन ने कोई जबाब नहीं दिया।
नाना ने कहा --नाच नौटंकी में नशा पानी के बिना काम नहीं चलता है।
खेलावन ने नाना की बातों का मौन समर्थन किया।
नानी कब चुप बैठनेवाली थी। बोली। अपने तो बर्बाद हो गये हो अब इस बच्चे को भी अपनी आदत सिखा दो।
-यह बच्चा कहाँ रहा भागवान। यह बालिग हो गया है
खेलावन बेटा इसके बकबक की परवाह न करो। बाग के पूरब छोर पर ताड़ीवान के घर चले जाओ। मेरा नाम लेकर कहो कि वह एक लबनी ताजी ताड़ी दे दे।
खेलावन को पंख लग चुके थे। कांटा कुश की परवाह किये बिना निकल पड़े।
ताड़ीवान की झोपडी में ढ़िबरी जल रही थी। उसकी लौ हवा से कांप रही थी।
लेकिन बुझ नहीं रही थी। ताड़ीवान नीचे बिछी दरी पर लेटा हुआ था। खेलावन की आहट पर चौंक उठा। कौन है ? की आवाज उसके गले से बेहद लापरवाही से निकली।
-मैं हूं खेलावन मुझे ननकू नाना ने ताड़ी लेने के लिये भेजा है।
-आओ पहुना आओ। अभी अभी नयी ताड़ी उतरी है। ले जाओ छककर पियो मजा आ जायेगा।
-बच्चा कब आये। सब कुशल मंगल है न तुम्हारे माई दादा कैसे है।
-सब ठीक है मामा।
खेलावन को ताड़ीवान का हाल चाल पूंछना अच्छा लगा। पुराने लोगो में अब भी प्रेम बचा हुआ है। आनेवाले दिनों में इस तरह सोचनेवाले कम हो जायेगे। उसका नजारा अभी से दिखाई दे रहा है। खेलावन ने सोचा।
खेलावन के हाथ में ताड़ी की लबनी थी। लेकिन उन्हे लग रहा था कि वह हाथ में अमृत कलश लिये हुये जा रहे हो। नशेबाजो के लिये नशे की चीजें अमृत रस ही होती है। उधर नन्हकू मुँह उठाये खेलावन को जोह रहे थे। पेट में भूख थी और कंठ में प्यास। सुबह सुबह मछली के शिकार पर निकल जाते थे। ठीक से भोजन शाम को ही हो पाता था।
नन्हकू ताड़ी रोज पीते थे। कभी कोई दोस्त रिश्तेदार मिल जाता तो पीने का मजा दुगुना हो जाता था। पीने के बाद उनकी छठी इंद्री जाग जाती थी। दुनिया भर के बहादुरी के किस्से याद आने लगते थे। उन्हें याद आता था कि कैसे नदी में बाढ़ आती थी और नदी तालाब एक हो जाते थे और वे खांची में मछलियों को पकड़ते थे। जो मछलियां गहरे पानी में रहती थी वे सैलाब में बाहर आ जाती थी।
-आ गये खेलावन।
-हाँ नाना।
-ताड़ीवान मिला था। कैसी ताड़ी दी उसने। कहीं तुम्हे उल्लू तो नहीं बना दिया ?
- नहीं नाना। वह मुझे पहचान गया था। उसने मुझे ताजी ताड़ी दिया है।
नन्हकू प्रसन्न हो गये। वे अनुष्ठान की तैयारी में लग गये। जमीन पर बोरा बिछाया। चिखने का कटोरा बगल में रखा। शीशे की दो गिलास ताखें से उतारी और राम का नाम लेकर शुरू हो गये।
-बेटवा हम बूंढे हो गये है। देह में जांगर नहीं रह गया है। घर बैठे बैठे देह में जंग न लग जाय इसलिये नदी तालाब मछली मारने चले जाते है। हर आदमी कोई न कोई नशा करता है। हमारा नशा यही है। बेटवा कभी कभी रास्ता भूलकर नाना के घर आ जाया करो। बाल बच्चे अपनी अपनी दुनियां में मगन है। कौन हमे पूंछता है।
खेलावन जानते थे कि नाना पीने के बाद दार्शनिक हो जाते है।
नाना बात करते करते रोने लगते थे। जैसे बहुत सारा दुख आंखों से बह रहा हो।
खेलावन ने नाना के कंधे पर हाथ धरकर कहा –नाना चिंता न करो। अब हम आया
जाया करेगे। आप से बात करके मुझे बहुत बल मिलता है। दादा से बात करनी मुश्किल होती है। बात बात में प्रवचन देते रहते है।
नन्हकू ने चिनकान को देखकर कहा—कैसे हो चिनकान भाई। बाल बच्चे कैसे है। बहुत दिन पर दिखाई दिये। कहाँ रहते हो।
-मैं तो घर रहता हूं तुम्हे मछली मारने से फुरसत मिले तो जाने। कौन कहाँ रहता है –ठीक कहते हो भैया। इन्हे तो अपनी सुध नहीं रहती। सुबह जाल कंधे पर लादे और निकल गये नदी की ओर। जब सारी दुनियां सो जाती है तब ये लौटते है। यहाँ आंख
नींद से भारी होने लगती है। लेकिन इन्हे कौन समझाये।
ठीक कहती हो भाभी। ताड़ी की दुकान हमारे घर से होकर जाते है लेकिन इतनी जल्दी में रहते है कि रूकना मुहाल हो जाता है। झिनकान ने कहा।
-अच्छा चलो। बोलो किस काम से बुलाये हो ?
-ये खेलावन है। हमारे नाती। नाच में काम करते है,लेकिन वीडियो के आने से नाच टूट रही है। यह कोई दूसरा धंधा करना चाहते है।
-कौन सा धंधा। साफ साफ बताओ।
-ये चूहेमार दवा बेचना चाहते है। तुम पहले हाट बाजार में चूहेमार दवा बेचते थे। तुम हमारे मीता हो। इसे चूहे मारने वाली दवा का फार्मूला बता दो। बड़ी मेहरबानी होगी।
-इस काम में चार पांच दिन लग जायेगे।
झिनकान से शहर से कुछ सामान लाने की लिस्ट दे दी। दूसरे दिन खेलावन शहर की ओर उड़ गये। सारा सामान दिखाया। मुँह अन्हार दोनो लोग बाग की तरफ गये। पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर झिनकान ने खेलावन को चूहेमार दवा का फार्मूला बताया। फार्मूला बताते हुये वह बुद्ध की तरह लग रहे थे। बुद्ध ने अपने उपदेश पीपल बृक्ष की छाया में दिये थे। बुद्ध ने अहिंसा के उपदेश दिये थे और झिनकान हिंसा के उपदेश दे रहे थे। वह दौर अलग था यह अलग। उस समय इतने शत्रु नहीं थे। यहाँ दुश्मन आदमी नहीं चूहे थे,अगर वे न मारे गये तो आदमी भूख से मर जायेगा।
झिनकान ने गुरू गम्भीर मुद्रा में बताया—खेलावन यह बहुत तीखा जहर है। आदमी की जीभ पर पहुँच जाय तो आदमी बिलट जाय। कई लोग तो चूहेमार दवा खाकर अपनी जान दे देते है। इस जहर से बचकर रहना। चूहेमार दवा रात को बनाना ताकि कहीं और ध्यान न जाय। इसे बच्चो से दूर रखना। जिस कमरे में रखना वहाँ ताला मार देना। यह बात अपने ध्यान में रखना। याद रखना जरा सी चूक से बड़ी घटना हो सकती है।
खेलावन एक विनम्र शिष्य की तरह चिनकान के चरणों में झुक गये। चिनकान ने उन्हे अभय मुद्रा में आशीर्वाद दिया।
खेलावन एक बिजेता की तरह घर लौट रहे थे।
बाजार में बहुरूपिये आते थे
वे धोखा और बुखार बेचते थे
बस बेचने की कला चाहिये।
घोसियारी बाजार के तालाब के पास लोगो ने डमरू की आवाज सुनी। लोगो को लगा कोई बहुरूपियां तमाशा दिखा रहा है। वैसे बाजार में किसिम किसिम के सामान बेचने आते है लेकिन यहाँ दूसरे तरह की शंमा थी। लोगो क्प पता नहीं लग रहा था कि यहाँ कोई सामान बेचा जा रहा है या कोई खेल तमाशा हो रहा है। लोग खेल खेल में सामान बेच देते है। बहुत पहले यहाँ एक ठग आया था वह पैसे को दुगुना बनाने का काम करता था। पढ़े लिखे लोग उसके झांसे में आ गये थे। वह पुलिस से मिलकर धंधा करता था। पुलिस ने ज्यादा पैसे की मांग की। जिसे वह दे नहीं पाया। नतीजन पुलिस उसे पकड़ कर थाने में ले गयी। अच्छा खासा पैसा वसूला। उसके बाद वह आदमी बाजार में नहीं दिखाई दिया /इस तरह के खेल बाजार में होते रहते थे।
भींड़ को चीरकर देखने पर पता चला यह बहरूपिया कोई नहीं अपने राम खेलावन है। वे लम्बा सा अंगरखा पहने हुये थे। अंगरखे की पीठ पर चूहे का चित्र लगा हुआ था। उसके नीचे लिखा हुआ था। चूहे मारने की अचूक दवा। आगे एक वाक्य और था। नक्कालो से सावधान।
यह बहु प्रचलित वाक्य था जिसका इस्तेमाल इस तरह के सामान बेचनेवाले करते है। इस वाक्य से वे अपनी विश्वशनीयता को पुष्ट करने की कोशिश करते है। यह भी लिखा रहता है कि अगर दवा फायदा न करे तो पूरे पैसे वापस कर दिये जायेगे। सामान बेचने के बहुत सारे तरीके ये बहुरूपिये करते रहते है।
खेलावन अपने लम्बे चोंगे के नाते पहचान में नहीं आ रहे थे। उनका चेहरा हैट से ढंका हुआ था। उनके हाथ में छोटा सा माइक था जिसका तार बैटरी से जुड़ा हुआ था। बाजार के हजहज में उनकी आवाज साफ सुनाई दे रही थी। यह बाजार के लिये नये प्रयोग था। बाकी लोग भोपू से सामान बेचते थे। उनकी आवाज बाजार के शोर में खो जाती थी।
खेलावन के दोस्त सुमेर चार हाथ की दूरी पर खड़े थे। उनके चेहरे पर चमक थी। वे खेलावन के गहरे दोस्त थे। उनका आग और धुंये का सम्बंध था। जहाँ खेलावन होते थे वही सुमेर के होने की संभावना होती थी।
खेलावन ने डमरू बजाया। मेहरबान कद्र्दान सुनिये सुनिये मेरे हाथ में चूहेमार दवा है। इस दवा से हल्लबी चूहे मर जाते है,चूहे क्या आदमी भी इस दवा से नहीं बच सकता है, इस दवा का फार्मूला हिमालय में रहनेवाले साधु ने दिया है। बड़ी मुश्किल से मैंने यह फार्मूला हासिल किया है। इस दवा के झार से चूहे घर से दूर भाग जायेगे। बस इसे आटे में मिलाकर चने के बराबर गोली बना लीजिये। जहाँ चूहो की आमद हो वहाँ रख दीजिये। चूहे उसकी मस्त खूशबू से खिचे चले आयेगे। बस इसे बच्चों की
पंहुच से बाहर रखिये। चूहे हमारे अनाज के दुश्मन है। मेहरबान इस दवा से चूहे नहीं बच सकते। अगर फायदा न हो तो पूरा दाम वापस। मेहरबान आप सोचेगे कि इस दवा की कीमत क्या है। कीमत कुछ नहीं बस उतनी है जितना आप पान खाकर थूंक देते है। यह कहकर उन्होने तेजी से डमरू बजाना शुरू कर दिया।
देखते देखते उनकी दवा बिक गई। सबसे पहले वह मंदिर में गये और बीस आने का प्रसाद चढ़ाया। मंदिर में गाँजा बाबा मिले। बाबा का असली नाम रमचेलवा था। वे गाँजा खूब पीते थे। इसलिये उनका नाम गाँजा बाबा पड़ गया। वे जब चेलाही मे जाते तो लोग उनके लिये गाँजे का इंतजाम जरूर करते थे। उन्हे खाना दाना न मिले बस गाँजा मिल जाय तो वे खुश हो जाते थे।
बाजार के उत्तर तरफ मछली और गोश्त की दुकाने थे। उन्होने चिकवा से कहा कि वह एक किलो गोश्त बाँध दे। सामने ठर्रे की दुकान थी। वहाँ से एक बोतल लालपरी खरीद ली। राम खेलावन आसपास के हाट बाजारों में डेरा डालने लगे। उनकी चूहेमार दवा घूम से बिकने लगी। उनकी दवा से चूहे मरने लगे। इलाके में उनकी शोहरत बढ़ने लगी। आमदनी बढ़ी तो उन्होने एक मोपेड खरीद ली ताकि आने जाने में सहूलियत हो
चूहेमार दवा और नाच की आमदनी से घर ठीक से चलने लगा। लेकिन उन्हे इतना पैसा नहीं मिलता था कि वह हाथी खरीद सके। कार और घर के लिये बैंक लोन देते है लेकिन हाथी के लिये लोन की कोई व्यव्स्था नहीं थी। हाथी के लिये एक मुश्त रकम देनी पड़ती है।
हाथी का सपना उनका निरंतर पीछा करता रहता था। जब हाथी का सपना आता वह पसीने पसीने हो जाते थे,बेचैनी मे दुआर पर टहलने लगते थे। पिता कहते। खेलावन कहाँ रात में बउड़ियां रहे हो। क्या बात है। आधी रात हो चुकी है। सो जाओ।
वह क्या बताते कि वह किस अजाब में फंसे हुये है। वे किससे इस सपने का मतलब पूंछे।
इस सपने नें उन्हे परेशान कर रखा था। एक दिन वह पं गऊकरन के पास पहुंचे। सारी बाते तफसील में बताई। पंडित जी ने पोथी पतरा देखकर बताया। खेलावन यह अपना बहुत शुभ है। गणेश जी जरूर तुम्हारा भला करेगे। बस सुबह स्नान करके ऊं गणेशाय: नम: का जाप 108 बार करे और हाथी का दर्शन करे। उसका सूंड़ छुये। उसके मस्तक पर तिलक लगाये। उसपर दूब और चंदन चढ़ाये।
रामखेलावन की छबि जवार में एक नायक की बन गई थी। उनकी चूहेमार दवा से इलाके में चूहो की संख्या में काफी कमी आ गई थी। लेकिन बहुत दिनो तक उनका बर्चस्व बना नहीं रह गया। शहर से चूहेमार दवा बेचनेवाली कम्पनी आ गयी। उसके पास दवा बेचने के लिये मेटाडोर थे। वह दवा बेचने के लिये इनाम आदि निकालते रहते थे। यह अपने व्यापार चमकाने का तरीका था। उन्होने माल बेचने के लिये कई दलाल बना लिये थे। जो उनके सामान का प्रचार करते थे। उनका उद्देश्य यह भी था कि किस तरह
खेलावन की छबि को तोड़ा जाय। कम्पनी के पास पैसे की ताकत थी। उनके साथ दवंग लोग जुड़े हुये थे। खेलावन के पास पूंजी नहीं गुडविल थी। लेकिन इस मार्केटिंग के जमाने में जो आधुनिक तकनीक आजमायी जाती थी वह खेलावन के पास नहीं थी। आजकल लोग चमक दमक ज्यादा देखते है। नयी कम्पनी ने इसका फायदा उठाया। उसने चूहेमार दवा बेचने के लिये सेल्सगर्ल को बाजार मे उतार दिया था। इन लड़कियो ने बाजार का माहौल बदल दिया था। लोग दवा खरीदने कम उन्हे देखने ज्यादा जाते थे। भले दवा फायदा न करे लोग जरूर खरीदते थे।
यह देखकर खेलावन का दिल बैठा जा रहा था। जिस हाट बाजार वह जाते कम्पनी पहले से वहाँ मौजूद होती। चूहेमार दवा बेचने के पहले कम्पनी लाऊड्स्पीकर पर गाना बजवाती। जिससे लोगो की भींड़ जुट जाती। कभी कभी स्टेज पर लड़कियां भी नाचती।
खेलावन की चूहेमार दवा अचूक थी। लेकिन उधर तो धोखे का खेल था।
राम खेलावन उदास रहने लगे।
एक दिन रास्ते में गऊकरन पंडित मिल गये। उन्हे रास्ते से उतारकर पेड़ की छाह में ले गये और बोले। पंडित जी हमारी ग्रहदशा ठीक नहीं चल रही है। जो भी काम शुरू करता हूं पहले तो ठीक चलता है फिर बिघ्न बाधा आ जाती है।
-घबड़ाओ नहीं जजमान। तुम्हारी ग्रहदशा ऐसी बदलेगी कि लोग देखकर हैरान रह जायेगे। बस धैर्य रखो। ईश्वर आदमी की परीक्षा लेता है।
-पंडित जी आप जो कह रहे है मेरे समझ में नहीं आ रहा है।
दोपहर का समय था। खेलावन चारपाई पर बिछे हुये थे। उनके पिता हितई बैलों को सानी चलाकर जब लौटे तो खेलावन मुर्झाये हुये दिखाई दिये। चेहरे पर जो ताजगी थी वह धीरे धीरे खत्म हो रही थी। इसके पीछे उनकी दारूण परिस्थियां थी जिसके जाल में वा फंस चुके थे। अच्छा बुरा समय जीवन में आता ही है और यही जीवन की सच्चाई है।
हितई ने कहा। बेटा मन छोटा ना करो। धीरज से काम लो। राजघाट में शिव जी का मेला लग रहा है। कुछ बोहनी-बिक्री हो जायेगी,मन आन हो जायेगा। तुम अपने दोस्त भुलई से मिल लेना। सुना है उसकी हैसियत बहुत बढ़ गई है। जबसे बम्बई से कमाकर लौटा है उसके पौ बारह हो गई है।
खेलावन के मन में यह बात बैठ गई। वे मेले की तैयारी करने लगे। एक झोले मे6 दो जोड़ी कपड़ा और दूसरे झोले में चूहेमार दवा रख ली। उन्हे लगा जब मन खराब होने लगे तो आदमी को घर के बाहर निकल जाना चाहिये। एक जगह रूके रूके पानी भी सड़ जाता है
राजघाट उनके गाँव से पांच कोस की दूरी पर था। वहाँ पहुँचने के लिये सड़क नहीं थी। बस पगडंडी पकड कर जाना पड़ता था। रास्ते में नदी नाले और घने जंगल थे। रास्ते के लिये मां ने मक्के की रोटी और अचार का भरूआ मिर्चा रख दिया था। वह रास्ते में महकता था। खेलावन कहीं जाते मां अंगोछे में रोटी जरूर बाँध देती थी। मां की रोटी का स्वाद अलग था।
राजघाट पहुँचने के पहले बुद्धा नदी के दर्शन हो गये। उन्होने सिर झुककर प्रणाम किया। नदी हो या मंदिर खेलावन का सिर आदतन झुंक जाया करता था। नदी के ऊपर बगुलों की पांत उड़ रही थी। नदी के तट पर खूब हरियाली थी। वहाँ गाय –गोरू चर रहे थे। उनके डकरने की आवाज सुनाई पड़ रही थी।
मेले में दुकाने सज रही थी। खेल तमाशे वाले अपना स्टेज बना रहे थे। मंदिर से भजन भज रहा था। यह मेला तीन दिन तक चलता था। शिवरात्रि के दिन के एक दिन पहले और एक दिन बाद।
शिव मंदिर के आसपास खूब जमीन थी जो मेले के दिनो में गुलजार होती थी,बाकी दिन सन्नाटा छाया रहता था। हाँ सोमवार के दिन कुछ मनई दिखाई देते थे।
मेले में दूर दूर से लोग आते थे। ज्यादातर बैलगाँडियां आती थी। उसमें गाँग घर की औरते होती थी। बैलगाड़ी को चारो तरफ से परदे से घेर दिया जाता था। मर्द मेले के बाद बाहर सोते और औरते रात गाड़ी में बिताती थी।
इस तरह के मेले में बहुत ठग आते थे। जिसने थोड़ी गफलत की वह गया काम से। ठगों से शिव जी भी नहीं बचा पाते थे।
शिव रात्रि के दिन कुंआरी कन्यायों की काफी भींड़ होती थी। मान्यता थी कि जो कन्या शुद्ध भाव से शिव लिंग पर जल और फलफूल चढ़ाती है उसका ब्याह अगले साल जरूर हो जाता था।
शिव मंदिर बहुत प्राचीन था। बताते है कोई सौ साल पहले यह शिव लिंग जंगल में प्रकट हुआ था। सबसे पहले इसे एक साधु ने देखा। उसके बाद यहाँ माह के पहले सोमवार को मेला लगने लगा था। फिर जवार से चंदा इकट्ठाकर मंदिर की स्थापना की गई।
राजघाट के मेले में केवल श्रद्धालु ही नहीं आते थे। शोहदो की भीड़ जमा होती थी। वे तांक झांक करते थे। यह मेला प्रेमी प्रेमिकाओ का मिलन स्थल था। कई बार लड़कियों के भगाये जाने की सूचना मिलती थी। लेकिन इस खबर को दबा दिया जाता था ताकि शिव स्थान की बदनामी न हो।
इस मेले में हित रिश्तेदार मिलते थे। स्त्रियां रोते रोते अपने निकट के सम्बंधियों से हालचाल पूंछती थी। यह रोना सचमुच का रोना नहीं था। एक तरह का रिवाज था। इससे मन हल्का हो जाता था।
भुलई खेलावन के मित्र थे। दोनो साथ साथ धमौरा हाईस्कूल में पढ़ चुके थे। तभी
से उनकी मिताई थी। पढ़ाई के बाद दोनो के रास्ते अलग हो गये। खेलावन नौटंकी मे काम करने लगे और जब नौटंकी से दिल टूटा तो चूहेमार दवा का धंधा कर लिया। खीचतान कर जिंदगी चल रही थी लेकिन भुलई का इलाके के बड़मनई में शुमार हो गये थे।
जिसके पास है बहुत ज्यादा
वह दूसरे से छीना हुआ है
उनसे छीनना एक कला है
। ।
बम्बई से लौटने के बाद भुलई ने जनरल मर्चेंट की दुकान खोल ली थी। वह शहर से चीजें लाकर बेचते थे। लोगो को शहर नहीं जाना पड़ता था। औरतो के लिये बढ़िया साड़ी ब्लाउज सलवार समीज ब्रा पैन्टी। साबुन तेल शैम्पू। नये उम्र के लड़्के अपनी प्रेमिकाओ को खुफिया अंतरबस्त्र उपहार में देते थे। लेकिन भुलई की हैसियत इस दुकान से नहीं बनी थी। वह दूसरा धंधा करते थे। खेलावन को याद है कि जब वे दो साल पहले राजघाट के मेले में आये थे तो भुलई का मकान अधूरा था। दरवाजे पर सीमेंट नहीं लगी थी। दरवाजे और खिड़कियां टुटही थी। बस एक दो कमरे बने थे। ओसारा अधबना था। दो साल में ऐसा क्या चमत्कार हो गया कि मकान की जगह शानदार बिल्डिंग खड़ी है। दरवाजों और खिड़कियां साखू की लकड़ी से बनी है। घर के मुख्य दरवाजे पर नक्काशी कढ़ी हुई है।
आखिर भुलई को कौन सा कारू का खजाना हाथ लग गया कि उनकी किस्मत बदल गई। यहाँ खेलावन दिन रात खटते रहे। उनकी हालत में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ। दिन भर मांगो तो दीया भर। रात भर मांगो तो दीया भर।
बहुत सारे सवाल खेलावन के दिमाग को मथते रहे।
भुलई खेलावन से बड़े प्रेम से मिले। ऐसा नहीं लगा कि वे बहुत दिन बाद मिल रहे है। दोनो मीता हहककर गले से मिले। जैसे कृष्ण सुदामा मिल रहे हो।
खेलावन के लिये प्लेट में नाश्ता आया। साथ में एक खूबसूरत गिलाश में कोकोकोला ढ़ाला गया। भुलई ने खेलावन के आगे विल्ल्स फिल्टर पेश किया। दोनो साथ साथ धुंये उड़ाते रहे। खेलावन के गले में कांटा अटका हुआ था कि कब समय मिले वे भुलई की अमीरी का रहस्य जान सके।
मित्र मिलन मनाने के लिये जो अनुष्ठान होना चाहिये उसकी तैयारी चल रही थी। भुलई कमरे के भीतर गये और कहा। इंग्लिश चलेगी।
खेलावन समझ नहीं पाये कि भुलई किस इंगिलिश की बात कर रहे है। वे उनसे पूंछ बैठे।
-मरदेसामी इंगिलिश नहीं समझ रहे हो। मैं अंग्रेजी शराब के बारे में पूंछ रहा हूं।
खेलावन किलक उठे। ढ़र्रा पीते पीते वे थक चुके थे। आज अंग्रेजी दारू से भेट होगी।
बिलायती चषक में दारू ढ़ाली गयी और चीयर्स के साथ प्याले टकराये गये। चिखने में मुर्ग मुसल्लम और तला हुआ अंडा मौजूद था। एक दो पैग के साथ खेलावन की भटक खुल चुकी थी। वे बोले। भुलई भाई ऐसा कौन सा बिजनेस करते हो कि घर द्वार सब बनवा लिया। इलाके में नाम कर लिया। मुझे भी कोई मंत्र दो।
-खेलावन भाई। यह जमाना इमानदारी का नहीं है। इमानदारी से दो जून की रोटी मिल सकती है। आदमी की हैसियत नहीं बन सकती। आज जो लोग अमीर बने हुये है वे नम्बर दो के रास्ते से बने हुये है। चाहे वे नेता हो या मंत्री नौकरशाह हो। सब मिलकर इस मुल्क को लूट रहे हैं। यह जमाना ताकत और पैसे का है जिसके पास पैसा है उसका समाज में सम्मान है। कोई नहीं सोचता कि पैसा कहाँ से कैसे आ रहा हैं।
-भुलई भाई। लटर पटर बात न करो। साफ साफ बताओं।
--खेलावन भाई। हम कुछ नहीं करते बस जिसके पास ज्यादा है उससे थोड़ा ले लेते है। जाहिर है ये लोग आसानी से नहीं देते इसलिये बलात छीनना पड़ता है। हम यह काम छोटे मोटे लोगो पर नहीं करते। उनपर करते है जिन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता।
--लेकिन इस काम में पुलिस का डर रहता है।
-पुलिस तो हमारी मदद करती है। जिस क्षेत्र को हम अभियान के लिये चुनते है उस इलाके की पुलिस को बता देते है। पुलिस को उसका हिस्सा मिल जाता है। खेलावन भाई इस पेशे के कुछ नियम है। अगर उनका पालन किया जाय तो कोई खतरा नहीं होता। हम अपने इलाके से दूर यह काम करते है। काम के लिये अंधेरी रात का चुनाव करते है। बारिश हो तो क्या कहने,जिस घर को चुनते है उसकी पूरी जानकारी रखते है। जैसे वे कब घर से बाहर जाते है। कब सोते हैं। उनके घर के आसपास कौन से लोग रहते है। आने जाने का कौन सा रास्ता सुरक्षित है।
खेलावन पूरी कथा को भागवत की तरह सुन रहे थे। इस कथा मे6 रह्स्य और रोमांच कम नहीं था। उन्हे लगा कि उनकी मुक्ति का रास्ता इसी तरफ से होकर जाता है।
भुलई ने यह भी बताया कि उनकी टीम में बीस आदमी शामिल हैं। सबके अलग अलग काम है। ये लोग पढ़े लिखे है। बहुत मुस्तैदी से काम करते है। हमारी टीम खून खराबा में यकीन नहीं करती। हमारे पास बेहोशी की अचूक दवा होती है। हम उसे सुंघा देते है। जो चिदिर बिदिर करता है उसे एक दो हाथ दे देते है। उसे ऐसा मारते है कि वह बेहोश हो जाय। इस तरह हमारा काम आसान हो जाता है।
-इस तरह के वारदात पर क्या पुलिस कोई कार्यवाही नहीं करती ?
-करती क्यो नहीं। तुम तो राजकाज जानते ही हो। पुलिस तलाश मे6 गाँव गाँव घूमती है। लोगो से बयान लेती है। तफ्सीस होती है। फिर मामला टाय टाय फिस्स हो जाता है। लोगो की याददाश्त काफी कमजोर होती है। लोग भूल जाते है। आखिर कब तक थाने का
चक्कर काटेगे। आदमी थककर बैठ जाता है।
खेलावन कब घर पहुंचे तो बडे उत्साह में थे। हितई नें पूंछा। खेलावन बहुत खुश दिखाई दे रहे हो। लगता है मेले में खूब कमाई हुई है।
- नहीं दादा कमाई धमाई नहीं हुई है। बस भुलई से बात हुई कहा। कहाँ चूहेमार दवा के पचड़े में पड़े हुये हो। हमारे साथ बिजेनस करो जिंदगी चमक जायेगी।
-कहाँ बिजेनेस करोगे
-उसके लिये गाँव गाँव घूमना पड़ेगा।
-ठीक है बेटवा। लेकिन ऐसा कोई काम न करना कि इज्जत चली जाय। समय बहुत खराब चल रहा है।
खेलावन भुलई की गोल में शामिल हो गये। भुलई ने उन्हे दीक्षा दी। इस पेशे के बारे में बहुत सी जानकारी और अनुभव बताये। जहाँ भुलई जाते खेलावन को साथ ले जाते। खेलावन की कमाई बढ़ने लगी। चूहेमार दवा का काम छोड़ दिया। वह हजारों में खेलने लगे। नाच में गाड़ रगड़ने के बाद हजार पाचसौ की आमदनी मुश्किल से होती थी अगर ऐसी तरक्की होती रही तो कोई हाथी खरीदने से नहीं रोक सकता। उन्हे लगा पंडित गऊकरन की भविष्यवाणी सही साबित होगी।
कोइलापाकर के रामनाथ सेठ चारो धाम की यात्रा में निकल चुके थे। घर की रखवाली का जिम्मा बूंढ़ा हलवाहा संभाले हुये था,वह सोता कम था नाक ज्यादा बजाता था।
रामनाथ जवार के नामी सेठ थे। वे सूद पर पैसे देते थे। पैसे देते समय वे जमानत पर गहना गुरियां रख लेते थे। ब्याज इतना बढ़ जाता था कि लोग गहना छुड़ा नहीं पाते थे। गहने पर उनका अधिकार हो जाता था,वह अ
अव्वल दर्जे के कंजूस थे। मारकीन की धोती और बहकटी पहनते थे। न्योता हंकारी के लिये एक जोड़ी धोती कुर्ता था जिसे तहियां कर संदूक में रखे हुये थे। वे उसे पहने हुये ऊंबते नहीं थे। देखनेवाले जरूर ऊंब जाते थे। न जाने कितने साल हो गये इस पोशाक को पहनते हुये।
उनके घर में तीन परानी थे। लड़्का स्कूल में पढ़्ता था। छुट्टियों में आता जाता था। वह नये काट के कपड़े पहनकर दोस्तो पर रोब जमाता था। पिता की कंजूसी से वह परेशान रहता था। सोचता इतने पैसे कमाकर पिता क्या करेगे। एक दिन मुँह बा कर चले जायेगे। सब कुछ धरा का धरा रह जायेगा। कई बार उसने पिता से कहा कि ठाट से रहे। घोड़ा गाड़ी खरीद ले लेकिन रामनाथ तो रामनाथ। उनपर कोई फर्क नहीं पड़ा।
रामनाथ सेठ की उमर पैसठ से ऊपर हो चुकी थी। उन्होने सोचा चारो धाम कर लिया जाय। आने के बाद भागवत सुन ली जाये। रिश्तेदारो और जवारवालो को खाना खिला दिया जाय। रामनाथ अपने जीवन में नहीं पूजा पाठ में कंजूसी करते थे। लोग उनका मजाल उड़ाते हुये कहते थे कि रामनाथ सारा धन धर्म मरने के बाद लादकर ले जायेगे।
ठगई हलवाहा अपने गाँव से दिन ड़ूबने के बाद आ जाता था। दरवाजे खिड़की चेक करता था और ओसारे में चारपाई बिछाकर सो जाता था। सोते समय उसकी नाक बजनी शुरू हो जाती थी। उसके नाक बजने से लोगो को मालूम हो जाता था कि वह सो रहा है। उसकी उम्र ढ़ल चुकी थी। लाठी के सहारे चलता था। खांसते समय फेंफ़ड़े से सांय सांय की आवाज आती थी। जैसे कोई धौकनी चल रही हो।
खेलावन की नीयत खराब हो चुकी थी। सोचा एक बड़ा हाथ मार ले। जिंदगी भर के लिये फुरसत मिल जायेगी। सेठ के घर से इतना माल तो मिल जायेगा जिससे हाथी आ जायेगी। वह भुलई की इस बात को नजरंदाज कर चुके थे कि अपने इलाके में वारदात नहीं करनी चाहिये। लोभ आदमी को अंधा कर देता है। उसका विवेक हर लेता है।
संयोग से अंहेरियां पांख था,बारिश जम कर हुई थी। रास्ते गीले और रपटीले हो चुके थे। ऐसी स्थिति में लोग घर से बाहर कम निकलते थे। खेलावन ने सोचा इससे बढ़िया वक्त उन्हे कब मिलेगा। ठगई तो रात होते अखंड नींद में सो जाता था। उससे उन्हे कोई खतरा नहीं है। डेढ़ हड्डी का आदमी है एक ही रहपट में ढ़ेर हो जायेगा।
उन्होने एक फंरूहा और खंती का इंतजाम किया। टेट में पिस्तौल खोसी। टार्च गले में लटकाया और अभियान पर निकल पड़े। बारिश हुई थी इसलिये दीवारे नर्म थी। इससे सेंध काटने में सुविधा थी।
मकान के दो तरफ बांस के घने जंगल थे। एक गूलर का पुरायठ पेड़ था। कहा जाता था कि उसपर एक चुढैल रहती है। वह चादनी रात में सफेद कपड़े पहनकर घूमती रहती थी। रात में औरते उस तरफ नहीं जाती थी।
वह आधी दीवार काट चुके थे। मंजिल बहुत करीब थी। उनका कलेजा धड़क रहा था। तभी रोशनी का सैलाब उनके चेहरे पर पड़ा। उन्होने देखा सोंठा लिये हुये रामफेर सिपाही उनके सामने खड़ा है। उन्हे लगा उन्होने सिपाही को नहीं काल को देख लिया है। वे फक्क हो गये। जैसे दिल की धड़कन बंद हो गई हो। वह सिपाही के पांव पर गिर पड़े और कहा –दुहाई सरकार मुझे बचा ले। मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई है। खेलावन के अनुनय विनय का उनपर कोई असर नहीं पड़ा। दरअसल रामफेर रामनाथ के आदमी थे। घर की देखभाल का काम उन्हे सौंपा था। रामफेर रामनाथ के पुराने हितचिंतक थे। जो ब्याज के पैसे नहीं देता था वह पैसे रामनाथ रामफेर से वसूलवाते थे। इसके बदले उन्हे अच्छी खासी रकम मिलती थी। इसलिये उनकी निष्ठा रामनाथ के प्रति ज्यादा थी।
रामफेर सिपाही खेलावन को मारते हुये थाने की तरफ ले जा रहा था। ससुर चोरी के लिये तुम्हे गाँव का घर मिला था। एक घर तो डायन छोड़ देती है। अब पता चला कि तुम्हारा असली काम चोरी चमारी है। यह कहकर उसने एक सोंटा उसकी पीठ पर धर दिया। खेलावन को मारते हुये सिपाही हाँफ रहा था।
शोर सुनकर गाँव में रतजगा हो गया था। अंधेरी रात में लोगो के हाथ में टार्च की रोशनी चमक रही थी। लोग तरह तरह की बाते कर रहे थे। कोई कह रहा था कि खेलावन बहुत मुँहजोर निकला। गाँव की इज्जत मिट्टी में मिला दिया। खेलावन ने काम ही ऐसा किया था कि लोगो को कहने का मौका मिले।
जैसे यह सूचना हितई को मिली वह भहराकर गिर पड़े,जैसे जान निकल गई हो। उन्होने खेलावन को सावधान किया था कि वह कोई ऐसा काम न करे जिससे इज्जत चली जाय।
खेलावन थाने में पहुँच चुके थे। उधर से मुच्छड़ दरोगा जालिम सिंह आया। उसने भी खेलावन पर हाथ साफ किया। दरोगा मोटा ताजा था। उसकी लम्बाई चौढ़ाई में ज्यादा अंतर नहीं था। उसका पेट हाड़ी की तरह था और नितम्ब कोहड़े की तरह बाहर निकला हुआ था। हराम की कमाई खा खा कर वह बेडौल हो गया था। वह मुश्किल से चल पाता था। ऐसे लोगो को लाइनहाजिर कर देना चाहिये लेकिन वह सोर्स के दमपर बना हुआ था। बड़े अधिकारियों से उसकी सांठ गाँठ थी।
खेलावन को रामफेर ने लाक अप में बंद कर दिया था। इस खेल में रात के पांच बजे थे। लोग अपने घरो की ओर लौट रहे थे।
सुबह सुबह हितई बाबू पहलवान सिंह के दुआर पर पहुँच चुके थे। मुँह से बोकार नहीं फूट रही थी। कंठ में आवाज जम चुकी थी। बस आंख से आंसू टपक रहे थे।
बाबू साहब उनके नजदीक आकर उनका चेहरा ऊपर उठाया। वे फ़ूट पड़े। सरकार खेलावन को बचा लीजिये।
-धीरज धरो हितई कुछ न कुछ तो करूंगा। तुमलोग मेरे दुख सुख में खड़े रहते हो। खेलावन तो मेरे बेटे के बराबर है।
खेलावन और हितई के लिये यह जिंदगी की सबसे काली रात थी।
जिधर थाना था
उधर जुर्म था
जिधर जुर्म था उधर ताकत थी
पिपरा थाना जवार का मशहूर थाना था। वहाँ तैनाती के लिये लोग लालायित रहते थे। यहाँ के तैनाती के लिये पैसे और सोर्स दोनो की जरूरत रहती थी। यह थाना लाखों में बिकता था। इसकी बोली लगती थी। इस इलाके में दो तीन बरदही बाजार लगते थे। यह चोरों और बरूवारो का इलाका था। यहाँ मेले भी लगते थे। घने जंगलो में लूट के माल का बटवारा होता था। यहाँ गाय बैलों का अवैध व्यापार होता था।
थाने के गेट पर आदर्श थाना लिखा हुआ था। बताया जाता है कि किसी जमाने में एक संत दरोगा आया हुआ था जिसने इलाके में जुर्म को खत्म कर दिया था। चोर डाकू उसके नाम से कांपते थे। सुना है एक बार एस। पी दौरे पर आये तो दरोगा ने पानी
के लिये गुड़ की ढ़ोका दिया था। जिसे देखकर उनका दिमाग चकरा गया। बस उन्होने उसके ट्रांसफर की ठान ली थी। तबादले के बाद जवार की जनता ने एस। पी के दफ्तर का घेराव कर लिया था। दरोगा का तबादला नहीं हुआ। उल्टे एस। पी। साहब लद गये। जो परम्परा वे छोड़कर गये थे उनके जाने के बाद आनेवाले उत्तराधिकारियो ने थाने की पूर्व गरिमा को रसातल में पहुँचा दिया।
संत दरोगा ने जनता मे जो लोकप्रियता हासिल की थी उसके बदौलत उन्हे राज्यसरकार ने सम्मानित किया था।
थाने पर आदर्श थाना अब भी लिखा हुआ था। लेकिन आदर्श नहीं थे। थाना और आदर्श दोनो विपरीत चीजे थी। लेकिन ढ़ोग करने में क्या जाता है। थाने के परिसर में एक मंदिर था जहाँ स्टाफ को लोग पूजा पाठ करते थे। लेकिन उनके अंदर कुछ नहीं बदलता था। प्राय: थाने मे मंदिर बनाने की पुरानी परम्परा है। कृष्ण जमाष्टमी के दिन यहाँ जमकर जश्म होता था। खासकर यहाँ लड़कियो का डांस मशहूर था। इस आयोजन में आला अधिकारी शामिल होते थे और लड़कियो के साथ ठुमके लगाते थे। एकबार एक चैनलवाले नें बेहद आपत्तिजनक मुद्रा में बड़े अधिकारी का वीडियो चैनल पर दिखाया था। जिससे बहुत हंगामा मचा लेकिन अधिकारी का बाल बांका नहीं हुआ। जिस अधिकारी को जांच दी गई थी उसमे उसने बेदाग रिपोर्ट लगा थी। लोग अपना जैसा मुँह लेकर रह गये।
थाने अमूमन आबादी से दूर होते है। यह थाना भी दूर था। अगर अपनी सवारी न हो तो आदमी के पहुँचने में परेशानी होती थी। रिक्शेवाले मनचाहा किराया लेते थे। जो आम आदमी के पहुँच से बाहर था।
पहलवान सिंह कहीं जाते तो हाथी से जाते। हाथी से जाने की शान अलग थी। हाथी के सामने सड़क के लोग और ट्रेफिक चींटियों जैसी दिखती थी। बाबू साहब के पास जीप थी लेकिन वे अपने मस्ताना हाथी पर बैठकर जाते।
हाथी के थाने में पहुँचने के पहले हाथी के गले की घंटे की आवाज सुनाई पड़ती थी। यह एक तरह की सूचना थी कि मस्ताना आ रहा है। उसके पीछे बच्चों की भींड़ लग जाती थी। हाथी बच्चो का मनपसंद जानवर था।
दरोगा जालिम सिंह दफ्तर में कुर्सी लगाकर बैठे थे। पहलवान सिंह को हाथी से उतरते देख उठ खड़े हुये। नमस्ते के साथ उन्होने बाबू साहब से पूंछा। कैसे है बाबू साहब ?
-अच्छा हूं दरोगा जी। आप कैसे है। थाना ठीक से चल रहा है न ?
इस बात में औपचारिकता के साथ ब्यंग था। थाना चलाना एक कला है।
सामने लाक उप में खेलावन बंद थे। उनकी देह मरियल भालू की तरह लग रही थी। उन्होने करूण भाव से बाबू साहब के देखकर नमस्ते किया। बाबू साहब ने लापरवाही से जबाब दिया।
खेलावन की देह मार से दुख रही थी। लेकिन वह कराह नहीं रहे थे। कराहते तो लोगो को मालूम हो जाता कि बाबू साहब के देखकर नाटक कर रहे है। उन्होने चुप रहना बेहतर समझा।
-दरोगा जी आपके रात में फोन किया था। खेलावन हमारा आदमी है।
-लेकिन मामला बहुत संगीन है। इसे सेंध काटते हुये सिपाही ने पकड़ा
-बात सही है। आप जो रिपोर्ट लगायेगे वहीं सही मानी जायेगी। कत्ल डकैती के केस छूट जाते है। यह तो सेंधमारी का केस है। वह भी कि माल बरामद नहीं हुआ है।
-लेकिन जुर्म तो बनता है।
दोनो लोगो में सवाल जबाब हो रहे थे। दरोगा घाघ था आसानी से पुट्ठे पर हाथ रखने नहीं दे रहा था,वह यह जानता था कि बाबू साहब को नाराज करके इस थाने में नौकरी नहीं कर सकता। दरोगा को अपनी पावर जतानी थी।
-ठीक है आप कह रहे है तो छोड़ देता हूं लेकिन इसके लिये कप्तान को खुश रखना है। अगर उन्हें मालूम हो गया कि मैंने इतने बड़े केस को यूं ही छोड दिया है तो मेरी खैर नहीं।
बाबू साहब दरोगा कि इस बात पर मुस्कराये बिना नहीं रह सके। वह जानते थे कि पुलिसवाले अपने बाप नहीं छोड़ते है। बिना कुछ लिये दिये थाने में कोई काम नहीं हो सकता। एकबार जो थाने के फेर में पड गया। उसकी खाल जरूर उतर जाती है।
बाबू साहब की कृपा से खेलावन छूट गये। मुँह पर अंगोछा बाँधकर निकले। घर पहुँचकर देह पर हल्दी प्याज का लेपन लगाया गया। चोट से वह कराहते रहे। हितई ने कहा। खेलावन तुमने तो कुल को बोर दिया। मेरे सात खानदान में इस तरह की हरकत किसी ने नहीं की थी।
खेलावन क्या जबाब देते। वह चोर की तरह घर में छिपे रहते थे। मुँह अन्हार उठते। दिशा फराकत जाते। कुछ चाय पानी बेमन से पीते और चादर ओढ़ कर घर के भीतर सो जाते। वह दुनियां से कट चुके थे। कोई मिलने आता तो कहलवा देते कि बाहर है। सब जानते कि वह बाहर वाहर नहीं है। घर के अंदर गुरमिटियां कर बैठे थे।
दिन पंख लगाकर उड़ रहे थे। माह भर होने को आये खेलावन का अज्ञातवास नहीं टूटा। पिता जब उनके बगल से गुजरते तो कोई न कोई ताना जरूर मारते जिसे सुनते सुनते उनका कलेजा झांझर हो गया था। उनके पास प्रतिवाद की ताकत नहीं थी। वह गुमसुम रहते थे। उनका मन करता था कि वह नदी या कुंये में कूदकर अपनी जान दे दे। उनकी मौत जिंदगी की तरह कठिन थी। लोभ लालच ने उन्हे इस कदर अंधा कर दिया था कि वह चौर्य-नियमों का उल्लंघन कर बैठे। सारा दोष उनका था। लेकिन अब पछताने से क्या होगा। जो होना था वह हो गया।
बाबू पहलवान सिंह अपने मोंढ़े पर पसरे हुये अपनी मूंछ ऐठ रहे थे। खाली समय में यह उनका मनपसंद शगल था। उनके हाथ में एक शीशा और कैची होती थी जिससे
वे अपनी मूंछे तराशते रहते थे। एक ट्यूब में मूंछों को टाइट करने की क्रीम थी। उनका मानना था कि एक क्षत्रिय की पहचान उसकी मूंछों से होती है। वह इस बात से बहुत खफा थे कि आजकल के लड़के मूंछो के महत्व को फूल गये है। मूंछ मुड़ाकर पूरे मादा लगते है। उनका लड़का खुद क्लीन शेव रहता है,दूसरे की बात वह क्या करे।
उनका पीलवान बूंढ़ा और बीमार रहने लगा था। आये दिन गैरहाजिर रहता था। सींकड़ में बधा हुआ मस्ताना डकरता रहता था। कभी सूढ़ उठाकर जोर से चिंघाड़ता था। यह इस बात का सूबूत था कि वह जंगल जाने के लिये बेचैन हो रहा है। आदमी एक जगह रहते रहते उकता जाता है वह तो जंगल का जानवर है। वह किसी पीलवान के बारे में सोच रहे थे।
हितई के साथ खेलावन थे। वह उनकी परछाई में छिपे हुये थे। बहुत दिन बाद घर से बाहर हुये है। बाबू साहब का सामना करते हुये उन्हे लाज आ रही थी। हितई सोच रहे थे। बाबू साहब से क्या कहा जाय। असली समस्या खेलावन के स्थापन की थी। बाबूसाहब चाहेगे तो कही रोजी मिल जायेगी। उनकी सीर में बहुत से काम थे। उअनके पास पावर और पहुँच थी।
हितई को देखते पहलवान सिंह ने कहा –आओ हितई क्या हालचाल है,इधर दिखाई नहीं दिये। —
-सरकार इस लवंडे ने मुझे मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है।
-बार बार इस बात को न दोहराओ हितई,लड़के है गल्ती हो जाती है।
-लोग ताना देते है।
-लोगो पर ध्यान न दो कलेजा पोंढ़ कर लो। बस आगे के बारे में सोचो।
-हम तो देहाती मनई है हूजूर। बस आप ही बताये खेलावन क्या करे। लीलार पर कलंक लग गया है जिंदगी भर नहीं मिटेगा।
-खेलावन मेरा पीलवान बूंढा और बीमार हो गया है,खेलावन चाहे तो पीलवानी कर सकते है। इधर लगन चल रही है। मेले-ठेले आने वाले है। अनाज तो मिलेगा साथ में नकद आमदनी हो जायेगी।
हितई को यह प्रस्ताव अच्छा लगा,सबसे ज्यादा मुदित खेलावन थे। हाथी के नाम पर बचपन से उनका मन मचल उठता था। मस्ताना उनके लिये अजनवी नहीं था। वह पुराने पीलवान के साथ हाट-बाजार शादी ब्याह में घूम आते थे। कभी कभी खुद हाथी को हाँकते थे।
खेलावन ने बाकायदा मस्ताना का चार्ज ले लिया था। सुबह सुबह उठकर नदी जाते,हाथी को नहलाते और जंगल में उसके लिये चारा काटते। इस कवायद में शाम हो जाती। उन्हे बहुत अच्छी नीद आती। महीने में एक दो शादियों का न्योता मिल जाता। जिसमे अनाज और कुछ नकद पैसे मिल जाते थे।
धीरे-धीरे उनका जीवन पटरी पर आ रहा था,वह दु:स्वप्नो से मुक्त हो रहे थे।
मसीहा आसमान से नहीं
हमारे बीच से अवतरित होते है
उनके चेहरे हमारे जैसे होते हैं
बस उनका मिजाज अलग होता है।
।
लखनपुर राज में दो पार्टियां थी। एक सर्वजन पार्टी का जन्म आजादी की लड़ाई के बाद हुआ था। इस दल में समाज के सभी वर्गो का समावेश था। आंदोलन से निकले नेताओ की भीतर जनता के लिये निष्ठा थी। उन्होने जन कल्याण के कई काम किये थे कल कारखाने स्थापित किये गये। नदियों से नहरे निकाली गई। पुल बने। जमींदारी व्य्वस्था को तोड़कर नयी व्यवस्था बनाई गयी। इस पार्टी का चुनाव हल जोतता किसान था। कृषि व्यवस्था में हल और बैल के अपने उपयोग थे। इस चुनाव चिन्ह का इस्तेमाल बहुत चतुराई से किया जाता। यह वह समय था जब संयुक्त परिवार का आस्तित्व था। लोह मिलजुल कर खेती करते थे। परिवार में कोई पढ लिख गया तो शहर कमाने चला जाता था। पत्नी बच्चे गाँव में रहते थे। पूंजी के दबाव के साथ पुरानी व्यवस्थाये टूटने लगी थी। लोगो में शिक्षा का विकास हो रहा था। एकल परिवार बन रहे थे। कृषि व्यवस्था छिन्न भिन्न हो रही थी।
सर्वजन पार्टी के नेता बूंढे हो रहे थे। पार्टी से उनकी पकड छूट रही थी। नयी महत्वाकांक्षी पीढ़ी का उदय हो रहा था। इस पीढ़ी ने पुरानी पीढ़ी को बिस्थापित कर दिया था। राजनीति से नैतिकता की विदाई हो रही थी। राजनीति को एक धंधे की शक्ल दी जा रही थी। विचार नहीं पोशाक बदल रहे थे। खादी के कुर्ता पैजामा की जगह सफारी –सूट और डिजाइनर कपड़ों का चलन बढ़ रहा था। जिनके पास टुटही स्कूटर थी। वे कार के मालिक बन रहे थे। राजनेता जनता के आदमी नहीं रह गये थे। उनके रहन सहन में अभिजात्य दिखाई दे रहा था।
जिन लोगो ने इस पार्टी को अपने खून-पसीने से खड़ा किया था। वे इसे छिन्न विछिन्न होते देख रहे थे। पार्टी की लगाम उनके हाथ में नहीं रह गयी थी।
योजनाओ के लिये जो फंड मिलता था। मुश्किल से उसका 15% खर्च होता था। बाकी लूट लिया जाता था। इस लूट में राजनेता नौकरशाह और माफिया शामिल होते थे।
राजनीति सदाचार का खेल नहीं रह गयी थी। चुनाव के नियम इस तरह बन गये थे कि मामूली हैसियत का आदमी चुनाव नहीं लड़ सकता था। चुनाव के लिये पार्टी से टिकट खरीदे जाते थे। इलेक्शन में करोड़ो का खर्च होता था। जो इलेक्शन जीतता था,वह पहले अपने मूलधन को भारी ब्याज के साथ वसूलता था। और अगले इलेक्शन के लिये फंड जमा करता था।
राजनीति धंधे में बदल चुकी थी। पार्टी में माफिया डान जैसी संस्थाओ का प्रवेश हो चुका था। पार्टी को कारपोरेट की तरह चलाया जा रहा था। उसके पदाधिकारी सी। ई। ओ
की तरह काम कर रहे थे। वे क्षेत्र में बहुत कम जाते थे। जब चुनाव आता तो वे नये वादो की घोषणा करते थे। उनके पास दलालों की फौज थी। जिनका काम वोट खरीदना था। वोट के पहले लोगो में शराब बटती। उन्हे पैसे दिये जाते थे। उनकी तत्काल की जरूरते पूरी की जाती थी। जीत के लिये साम दाम दंड के नियम अपनाये जाते थे जीत का जश्न बहुत शान से मनाया जाता था। जनता के गाढ़ी कमाई के पैसे पानी की तरह बहाये जा रहे थे।
दूसरी ओर सनातन पार्टी थी जो हिंदुत्व के नियमों को अपना सविधान मानती थी। वह पुराने आख्यानो को इतिहास मानती थी और चमत्कारो पर भरोसा करती थी। उसका मानना था कि अगर सनातन धर्म के अनुसार सत्त चलाई जाय तो यह मुल्क पुन: सोने की चिड़िया बन सकता है। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह गाय थी। वेद पुराणो में गाय का महत्व स्थापित किया गया था। कामधेनु इसी मिथक की उपज थी।
इस पार्टी के समर्थक पुराने मूल्यो और मिथको में यकीन करनेवाले लोग थे। इसलिये उनकी संख्या सीमित थी। लेकिन इस पार्टी को विश्वाश था कि एक न एक दिन उसके दिन बहुरेगे।
सनातन पार्टी को साधु संतो मठाधीशो का आशीर्वाद प्राप्त था। वे उनकी सभाओ में अनिवार्य रूप से मौजूद रहते थे। सभाओ की शुरूवात शंख ध्वनि से होती थी। फिर मंत्रोच्चार किया जाता।
कई सालों से इस पार्टी ने गोरक्षा का अभियान शुरू किया था। गोबध के विरूद्ध आंदोलन किये जा रहे थे। पुराने गौरव की वापसी के लिये यज्ञ किये जा रहे थे।
राजनीति में सत्ता पक्ष की विफलता से जो शून्य पैदा हो रहा था। उसमे एक नये पार्टी की भरपूर जगह थी। जनता तंग आ चुकी थी। उसका निरंतर मोहभंग हो गया था।
रमईराम की शिक्षा-दीक्षा विदेश में हुई थी। पढ़ने में वे शुरू से मेधावी थे। एक पुरानी रियासत की कृपा से वे विदेश गये। उन्होने भारतीय समाज और उसके बिभिन्न जातियो बर्गो पर गहन अध्ध्यन करके पी. ए.च। डी। हासिल की। और एक विजेता की तरह देश में लौटे। हवाई अड्डे पर उनके समर्थको की अपार भींड थी। अखबारो में आगमन को अखबारो ने विस्तार से प्रकाशित किया। उनके जीवन –वृत पर लेख लिखे गये। कुछ उत्साही समथको ने उनपर किताबे लिखी।
रमईराम को एक संस्था निदेशक के पद पर नियुक्त किया। अच्छी खासी तनख्वाह के साथ बंगले गाड़ी की सुविधाये अलग थी। नौकरी मे रहते हुते उन्होने दलित संघ नाम के संगठन की नींव डाली। जिसका काम दलितो में चेतना फैलाना और यह बताना था कि किस प्रकार बड़ी जातियो नें दलित जातियो का सदियों से शोषण किया था। किस तरह बहुसंख्यक समुदाय को समाज की मूलधारा से अलग करने की कोशिश की गयी। ये सारी चीजें आंकड़ो के माध्यम से सामने लायी जा रही थी। इस काम में दलित
के बुद्धिजीवी लगे हुये थे। वे संगठन की पत्रिका दलित समाज में लेख लिख कर लोगो को शिक्षित कर रहे थे। धीरे धीरे दलित समाज में चेतना का विस्तार हो रहा था। रमई राम के इस अभियान से सर्वजन पार्टी सकते में थी। सनातन पार्टी का ढ़ोग लोगो के सामने आ रहा था।
रमईराम पांच साल तक नौकरी में थे। और इस दौर में उन्होने दलित वर्ग के ऊंचे और चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियो को एकजुट करने का काम किया। यह उनके जीवन का महत्वपूर्ण समय था जिसमे उन्होने सत्ता के चरित्र को करीब से जानने का अवसर मिला।
इस प्रकार रमईराम ने महादलित पार्टी का शिलान्यास किया। इस पार्टी में दलित जातियों के साथ पिछड़े वर्गो को अपने साथ लेकर अपने राजनीतिक उद्देश्य को आगे बढ़ाया।
लखनपुर रमईराम के राजनीतिक प्रयोग के लिये मुफीद जमीन थी। इस सूबे मे दलितो और उपेक्षित पिछड़े वर्ग की संख्या अन्य सूबे की तुलना में ज्यादा थी। उन्होने सूबे के अनेक इलाको में वाल्न्टियर बनाये गये। ब्लाक स्तर पर कार्यकर्ताओं को नियुक्त किया गया। जिनका काम क्षेत्र में सर्वे करके यह जानना था कि महादलितों की कितनी संख्या है। किस क्षेत्र के लिये किस उम्मीदवार का चुनाव किया जाय। रमईराम कार्यकरताओं के साथ क्षेत्र का दौरा करते थे।
रमईराम उम्मीदवार की खोज में पिपरा क्षेत्र में पहुंचे। पिपरा के दलित इलाके में मीटिंग की। कई लोगो के नाम सामने आये। लेकिन फाइनल में खेलावन नाम की सहमति बनी। खेलावन जंगल में हाथी चरा रहे थे। यहाँ रमईराम खेलावन के नाम का फैसला कर रहे थे। उनका दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल रहा था। राजनीति ऐसा खेल है जिसमे रातोरात आदमी रंक से राजा और राजा से रंक बन जाता है। राजनीति की इस अनिश्चित दुनियां में चमत्कार औए हादसे साथ साथ होते है।
खेलावन को बुलाने के लिये सुमेर को जंगल भेजा गया। वह मस्ताना की पीठ पर बैठकर गाना गा रहे थे। सुमेर को अचानक देखकर खेलावन चौक गये। बोले- सुमेर भाई क्या बात है ? सब ठीक है न। इतने समय यहाँ क्या कर रहे हो ?
-मीता बहुत अच्छी खबर है। रमईराम टोले में आये हुये है। तुम्हे बुला रहे है ?
-क्या बात है। वहाँ मेरी क्या जरूरत है। हम ठहरे पीलवान और वे सूबे के बड़े नेता है।
-अब चलो तो शायद वे तुम्हे इलेक्शन में खड़ा करना चाहते है।
यह सुनकर खेलावन के पैर से जमीन खिसक गयी।
सुमेर खेलावन के साथ हाथी की पीठ पर बैठ गये। खेलावन ने हाथी के मस्तक पर अंकुश लगाया। हाथी अपनी सामान्य गति से आगे चलने लगा। वह चाहते थे। हाथी और तेज दौड़ कर पहुँच जाये। पुराणों में उड़नेवाले घोडो के बारे में खेलावन ने सुना था। हाथी भी उड़ते है। इसकी जानकारी उन्हे नहीं थी।
बहरहाल वे दोनो दलित टोले की सभा में आधे घंटे में हाजिर हो गये। देखा बड़मनई दिखनेवाला एक आदमी लोगो के बीच बैठा है। खादी का कुर्ता पैजामा हाथ में नये काट की चमचमाती हुयी घड़ी। अगर ध्यान से सुना जाय तो उसकी टिकटिक बहुत साफ थी। खेलावन को वह कही से दलित नहीं लगे। रंग गोरा चिट्टा था। बाते बहुत मार्के की कर रहे थे। खेलावन ने एकबारगी से उनका मुआयना कर लिया। उनके चरणों में झुककर प्रणाम किया और बोले। सर आपने मुझे बुलाया है ?
-हाँ मुझे तुमसे जरूरी काम लेना है। मैने जवार में तुम्हारे बारे में जानकारी हासिल कर ली है।
खेलावन ने सोचा कही उन्हे मेरे चौर्य कर्म के बारे में जानकारी मिली तो बहुत गजब हो जायेगा। खेलावन नहीं जानते थे। सियासत में आदमी की योग्यताये गुण की तरह जानी जाती है। आज की राजनीति में चोरी डकैती छीना झपटी कत्ल बलात्कार वाले जातक को तरजीह दी जाती है। आजादी की लड़ाई में लोग देश के लिये जेल जाते थे। यहाँ अपने देश को लूटने और कानून तोड़ने गुनाह में जेल यात्रा करनी पड़ती है। जो जेल जाता है या जेल से छूटता है। उसके चेहरे पर शर्म का नहीं गर्व का भाव दिखाई देता है। एक दिन जेल क्या गये खेलावन अपने आपको अपराधी समझने लगे। उन्हे क्या पता सियासत की दुनियां अपराधियों और घड़ियालों से भरी हुई है
खेलावन रमईराम के सामने हाथ जोड़कर खड़े थे। रमई राम ने बैठने का संकेत किया। खेलावन घस्स से जमीन पर बैठ गये। रमईराम ने कहा –यहाँ नहीं मेरे बगल में बैठो। रमईराम के दिये हुये मान से खेलावन के साथ टोले के लोगो को खुशी हुई।
खेलावन ने रमईराम से कहा –सरकार किस काम के लिये आपने बुलाया है।
-मै तुम्हे पार्टी की ओर से इस क्षेत्र का उम्मीदवार बनना चाहता हूं। इस इलाके में तुम्हे लोग जानते है।
-सर मैं बेहद मामूली आदमी हूं। मुझे राजनीति का कोई ज्ञान नहीं है न पास में पैसा घेला है।
-यह सब पार्टी देख लेगी। बस तुम हाँ भर कर दो।
खेलावन अटक फटक रहे थे। टोले के लोगो ने हाथ उठाकर कहा। खेलावन की हाँ है।
रमईराम ने अपनी डायरी में खेलावन की डिटेल लिखी और लोगो से कहा कि वह पार्टी को अपनी रिपोर्ट दे देगे,उम्मीदवारों के चयन के लिये राज्य चयन समिति का निर्णय अंतिम माना जाता है। आपलोगो को 15 दिन के भीतर सूचना मिल जायेगी। सब कुछ रमईराम तय करते थे। पार्टी का लोकतांत्रिक लोकतांत्रिक् चरित्र बनाये रखने के लिये की तरह की समितियां बनाई जाती थी। उसमे पार्टी कार्यकर्ताओं की खपत की जाती है।
रमईराम अपनी पार्टी के निर्विवाद कप्तान थे। पार्टी के लोग उनके पीछे भेंड़ की तरह
चलते थे। रमईराम ने खेलावन के नियति का फैसला कर दिया था। बस आफिस की मुँहर लगनी बाकी थी। जवार में खेलावन के नाम का बाजा बज रहा था। नुक्कड़ चौराहो हाट-बाजार में खेलावन खबर बने हुये थे।
देखा जाय तो खेलावन का जीवन विविधता से भरा हुआ था। उनके जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव था। कई योग संयोग नेकनामियां और बदनामियां थी। बुरे दिनो में उनका साथ देनेवाले कम थे। अब उनके सामने स्वर्ण-अवसर का दरवाजा खुल रहा था। वह जिस पेशे में रहे हो जनता के सतत सम्पर्क में रहे। लोगो के बीच लोकप्रियता हासिल की। नाटक में काम करते हुये चूहेमार दवा बेचते हुये उनके वाक-कला का लोहा सभी मानते थे। उनके सम्वाद में नाटकीयता थी जिसे उन्होने नाच में काम करते हुये अर्जित किया था। जीवन के अनुभव जाया नहीं जाते किसी न किसी रूप में हमारे काम आते है। खेलावन के मूल्यवान अनुभव उनके राजनीतिक जीवन में भूमिका के लिये बेताब थे।
ज्यादा नहीं ठीक 15 दिन के बाद पार्टी का एक दूत एक अधिकृत पत्र लेकर आया जिसमे खेलावन का नाम पिपरा विधान सभा क्षेत्र उम्मीदवार के रूप में घोषित किया गया था। यह खेलावन के जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था। दूत ने बताया कि उनके नाम मे तनिक संशोधन कर दिया गया था। पूरा नाम राम खेलावन भारती कर दिया गया था। यानी राम खेलावन भारती संक्षेप में आर। डी भारती हो गये थे। उनका पुराना नाम राम खेलावन था। बुलानेवाले उन्हे खेलावन के नाम से बुलाते थे। बुलाने में नाम का पहला शब्द विलुप्त हो गया था। दूत ने कहा कि वह दो तीन दिन के भीतर पार्टी के मुख्यालय पहुँच कर हाईकमान से दिशा-निर्देश प्राप्त कर ले और इलेक्शन की तैयारी में लग जाय।
सोमवार के दिन राम खेलावन नहा-धोकर सबसे पहले महादेव बाबा के थान पर सिर नवाया। कुल देवता से आशीर्वाद लिया और राजधानी की ओर निकल पड़े। लौटते समय उनके साथ जीप झंडे बैनर और वालंटियर थे। जीप पर पार्टी का झंडा लहरा रहा था। बैनर पर रमईराम का फोटो लगा हुआ था। उसके नीचे लिखा हुआ था। महादलितो का उत्थान। रोक नहीं सकते जजमान।
और कई आक्रामक नारे लिखे हुये थे। जिसमे दलितो का गुस्सा प्रकट किया गया था।
जैसे जीप गाँव की चौहद्दी में पहुंची। बच्चे उसके पीछे दौड़ने लगे। गाँव में बहार आ गई। पिपरा जैसे क्षेत्र में जीप के दर्शन चुनाव के समय ही होते थे। या कभी जिले के पदाधिकारी के आने पर उन्हे देखा जाता था। खेलावन का चेहरा दमक रहा था। गर्दन तनिक ऊपर उठ गयी थी। वे अब खेलावन नहीं आर। के,भारती हो चुके थे।
हितई दौड़्ते हुये आये और सपूत को गले लगा लिया। खेलावन के सारे कलुष नष्ट हो रहे थे। उनके जीवन की नई इबारत लिखी जा रही थी। वाल्न्टियरों ने नारा लगाया। महादलित पार्टी जिंदाबाद। रमईराम जिंदाबाद। आर। डी भारती जिंदाबाद।
नारों से आसमान गूंज उठा। पेड़ से परिंदे उड़ने लगे। गाँव के लोग इकट्ठा होने लगे। उन्होने खेलावन को कंधे पर उठा लिया। जिस बेटे को हितई नालायक मान चुके थे वह कुलभूषण हो रहा था। उनकी मूंछ खुशी से फड़कने लगी। देह में जांगर लौटने लगा। उन्होने अपने कुलदेवता का आभार प्रकट किया। वह सोचने लगे कि उन्होने गुस्से में खेलावन को क्या से क्या कह दिया था। उन्हे बहुत ग्लानि हुई।
राम खेलावन ने अपनी सभा की शुरूवात पिपरा से किया जो उनका कर्म स्थल था। विजेता सबसे पहले अपने घर लौटता है। वह जताना चाहता है कि वह इसी जमीन से उठकर विजेता का ओहदा हासिल किया है। वहाँ वह अपनी शान दिखाना चाहता है।
लाउड्स्पीकर जवार में घूम रहा था। खेलावन की कल होनेवाली सभा की मुनादी की जा रही थी। जीप में सुमेर बैठे हुये थे। उनके साथ वालंटियर थे। जीप के ऊपर दलित पार्टी का बैनर,रमई राम के साथ खेलावन का फोटो लहरा रहा था। पूरे क्षेत्र में राम खेलावन इलेक्शन लड़ने का शोर मच चुका था। फिंजा बदल चुकी थी। मौसम खेलावन के पक्ष में था।
राम खेलावन का निशाना दलित और पिछड़ी बस्तियां थी। वहीं उनके वोट छिपे हुये थे।
जहाँ जहाँ खेलावन जाते। लोग माला पहना कर उनका स्वागत करते,स्वागत के बाद गगनभेदी नारे लगते।
पिपरा में लोगो की भींड़ जुट चुकी थी। मंच सज चुका था। लाउड्स्पीकर के जाल बिछ चुके थे। खेलावन चाहते थे। उनकी आवाज दूर तक जाये। लोग अपनी नींद से जगे। उनके भीतर अपने वर्ग के हित के लिये चेतना जाग्रत हो।
राम खेलावन भींड़ के सैलाब से उठे और दहाड़ना शुरू किया। भाइयों और बहनो अब वक्त आ गया है कि हम चेते। हम लोगो पर बड़ी जातियों से सदियों से जुल्म किया है। हमे उठने नहीं दिया हमे दबाकर रखा। हम उनके लिये खेतों में काम करते रहे। उनके लिये बंधुआ मजूर बने। बदले में हमे दो जून की रोती नहीं नसीब हुई। अब हमे नया समाज बनाना है और बड़ी जातियों के वर्चस्व को तोड़ना है।
खेलावन के भाषण के बीच जयजयकार के नारे लगते रहे। जैसे नारे लगते खेलावन की गर्दन ऊची हो जाती। उनके चेहरे पर तेज आ जाता। कौन जानता था नौटंकी में काम करनेवाला चूहेमार दवा बेचनेवाले खेलावन की जिंदगी में ऐसा समय आयेगा जब वह इतनी बड़ी सभा को सम्बोधित करेगा। उसके पीछे इतना बड़ा हूजूम होगा।
खेलावन के पास भाषण की कला थी। उन्हे पता था। कैसे भींड़ जमा की जाती है। भाषॅण देते समय उनके दिमाग में जरूर अनाजखोर चूहे थे जिसे उन्होने जवार से बाहर कर दिया था। इसबार बड़े चूहों की बारी थी जिन्होने समाज मे स्थायी सुरंगे बना ली है। और वे लम्बे अरसे से समाज पर काबिज है।
महादलित पार्टी का तूफानी अभियान पूरे इलाके में घूम से चल रहा था। जातिगत समीकरण बन बिगड़ रहे थे। दलित और पिछड़ी जातियो6 की ध्र्वीकरण हो रहा था।
परम्परागत पार्टियां सकते में थी। उनके भीतर हलचल मची हुई थी। पुराने नेता नये रंगरूट नेताओ से जबाब तलब कर रहे थे। उनका जहाज डूबनेवाला था। उनके जहाज से नये चूहे भाग रहे थे। सियासत में बहुत से लोग लूट पाट के लिये आते है। उनका जनता से कोई सरोकार नहीं होता। वे राजनीति को एक पेशा समझते हैं। ये लोग जहाँ कही रहते है देश के संसाधनो की लूट में लगे रहते है। सत्ता की दलाली करते है और अपनी झोली भरते है। वे कहाँ जायेगे ? जाहिर है वे पुराने धंधो में लौट जायेगे। वे जल्दी टूट जानेवाले पुल बनायेगे।
हाथी घूमे गाँव गाँव /कुत्ते करते झांव झांव
चारों ओर बंधी है नांव /चाहे इस ठांव चाहे उस ठांव
महादलित पार्टी के कर्ता धर्ता रमईराम पूरे सूबें में चुनावी सभा कर रहे थे। जगह जगह उनकी सभा होती। सभा में खूब भींड़ जुटती। उनके भाषण से लोगो में जागरूकता आ रही थी। नुक्कड़ नुक्कड़ पर उनके चर्चे थे। खास बात यह थी कि वह जनता के बीच सहज रूप से आते जाते थे। उनसे संवाद करते थे। कोई ताम झाम नहीं था। किसी के घर पहुँचकर खाना खा लेते थे। टुटही चारपाई पर सो जाते थे। उनकी इस आदत से लोगो को पता चलता था कि वे जनता के आदमी है। दूसरी तरफ सर्वजन पार्टी की संस्कृति अलग थी। वे राजा महराजों की तरह आते थे। उनके आसपास दलालों की फौज थी। उनका जनता से संवाद कम होता गया। वे सत्ता के अहंकार में डूबे हुये थे। आखिर जनता को कब तक मूर्ख बनाया जा सकता है।
रमईराम को बाजार के दिन पिपरा आना था। बाजार के दिन वैसे ही भींड़ होती है। एक सप्ताह पहले से खेलावन क्षेत्र में घूम घूम कर लोगो को रमईराम की चुनाव सभा में आने के लिये लोगो को तैयार कर रहे थे। जगह जगह तोरण द्वार सजाये जा रहे थे। बैनर और झंडों का कहना क्या। उससे पूरा जवार पट गया था।
यह चुनाव सभा खेलावन की अग्नि परीक्षा की तरह थी। इसे सफल बनाने के लिये उन्होने पूरी ताकत झोंक दी थी। इस सभा से वह अपने पार्टी प्रमुख को यह जताना चाहते थे कि उन्होने उनका चुनाव करके कोई गलत फैसला नहीं किया है।
दोपहर होते होते बाजार की दुकाने लग जाती थी। जो लोग दूर से आते थे वे अपनी दुकान सजाकर दुकान में आराम करते थे। यह बहुत मशहूर बाजार थी। दस दस कोस दूर से व्यापारी अपने घोड़े नांधकर आते थे। कुछ लोग सायकिल और मोपेड से आते थे।
गर्मी का मौसम था। चारों तरफ धूल के बवंडर उड़ रहे थे। चुनाव सभा में लाउड्स्पीकर चीख रहा था। कुछ नये नवेले नेता अपना गला साफ कर रहे थे। रमईराम का गुणगान किया जा रहा था। जैसे कि दलितो के उद्धार के लिये इस मसीहा का
अवतरण हुआ है। अब हमारी दुनिया बदल जायेगी। समाज में दलितो का राज होगा।
अचानक जीपों का काफिला मंच के पास रूका। खेलावन ने नारा लगाया। दलित एकता जिंदाबाद। महादलित पार्टी जिंदाबाद। रमईराम जिंदाबाद।
नारों में सबसे ज्यादा तेज आवाज खेलावन की थी। नारा लगाते समय उनके गले की नस खड़ी हो जाती थी। नारे के साथ उनकी पूरी देह घूम जाती थी। उन्होने मंच पर चढ़कर बोलना शुरू किया। बहनो और भाईयो। हमारे बीच दलित समाज के मसीहा पहुँच चुके है। उनकी बाते ध्यान से सुने। चुनाव में महादलित पार्टी को जिताये और नया समाज बनाये। याद रखे अगर आप चूक गये तो फिर आपकी मदद के लिये कोई सामने नहीं आयेगा। लोहा गर्म है बस हथौड़ा मारने की जरूरत है।
रमईराम धूल में नहा चुके थे। धूल उनके कपड़ो और बरौनियों पर ज्यो कि त्यो थी। थोड़ी देर के बाद ध्यान आया तो धूल को अंगोछे से साफ किया। वे उत्साह में थे। उनके चेहरे पर कोई थकान नहीं थी।
जैसे वे बोलने को खड़े हुये तालियों का बजना शुरू हो गया। इन्ही तालियों की आवाज में उन्होने बोलना शुरू किया। दोस्तो तालियों की आवाज से काम नहीं चलनेवाला है। आजादी के बाद से आप नेताओ के लिये बिना समझे जाने तालियां बजा रहे है। वे बहुत शातिर लोग है। आपसे तालियां खरीद लेते है और पांच साल के लिये गायब हो जाते है। जब इलेक्शन आता है तब उनकी शक्ले दिखाई देती है। हमे इस सूरत को बदलना है। हम चाहते है कि हम जिसे चुने वह हमारे बीच का आदमी हो, वह हमारे दुख दर्द को जानता हो। अगर हमारी पार्टी सता में आयी तो हमारे विधायक आपके बीच में रहेगे। यदि वह आपकी अपेक्षाओ पर खरे नहीं उतरते है तो उन्हे पार्टी से हटा दिया जायेगा। हम कोई राजनीति करने नहीं आये है। हम दलित समाज में चेतना फैलाने आये है।
रमईराम नये तरह की बात कर रहे थे। उनकी भाषा और सरोकार अलग दिखाई दे रहे थे। लोगो को इस तरह की बाते सुनने का अभ्याश नहीं था। पुराने नेता सिर्फ वादे करते थे। सपने दिखाते थे। लोगो की आंखे सपनों का इंतजार करते पथरा गयी थी लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ।
रमईराम ने अपनी बात जारी करते हुये कहा। दोस्तो आपका चुनाव चिन्ह हाथी पर सवार महावत है। आप जानते है हाथी बहुत समझदार जानवर है। उसकी याददास्त अच्छी होती है। अच्छा महावत हाथी का ठीक ढ़ग से संचालन करता है। आप इस हाथी के महावत है। संयोग है कि आपके राम खेलावन एक अच्छे महावत है। हमारा हाथी कई जानवरों पर भारी है। शेर उससे डरता है। आपको इस चुनाव चिन्ह पर मुहर लगानी है
पार्टी प्रमुख रमईराम की सभा में अभूतपूर्व भींड़ थी ‘लोग बताते है इस तरह की भींड़ गाँधी जी की सभा में होती थी। रमईराम की चर्चा तो इलाके में थी ही लेकिन राम खेलावन अचानक जवार के हीरो बन चुके थे। यानी जीरो से हीरो। यह सफर
उनके लिये आसान नहीं था। यहाँ तक पहुँचने के लिये बहुत से मोड़ों से होकर गुजरना पड़ा था। बुरे समय में लोगो ने साथ छोड़ दिया था। यहाँ तक परिवार ने उन्हें अंधेरे में अकेला कर दिया था।
बहुत दिनों तक बोतल में कैद
जिन्न बाहर निकला
शैतानों की शामत आ गई थी
वे कब्रगाहों में वापस लौट रहे थे।
चुनाव के दिन बूथ पर लम्बी लाइने थी। दलितो और पिछड़ी जातियों की संख्या ज्यादा थी। जो लोग मुश्किल से वोट देने जाते थे वे लाइनों में लगे हुये थे। उनके चेहरों पर उत्साह था। लोग पहले वोट देने के लिये वोट देते थे। वे यह जानते थे कि वोट देने से कुछ नहीं बदलनेवाला है। भले ही चेहरे बदल जाय नीयत नहीं बदलेगी। यही बजह थी वोट का प्रतिशत 40 से 50 के बीच रहता था। इसबार 65 फीसदी वोट पड़े। यह इस बात का प्रमाण था कि रमईराम ने लोगो का मानस बदलने का काम किया था। चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी दिखाई दे रही थी।
सर्वजन पार्टी और सनातन पार्टी का चुनाव अभियान फीका था,उनकी सभाओं में सियार फेंकरते थे। नेताओ की भाषा थकी हुई थी। उनके पास बोलने के लिये कुछ नहीं था। बस वादों के पुराने रेकार्ड दोहरा रहे थे। रेकार्ड की सुई पहले से घिस गई थी। उनके चेहरों को देखकर लगता था। जैसे हत्यारी लगी हुई हो।
कांठ की हाँड़ी बार बार नहीं चढ़ती। इस बार शराब और रूपये का जादू नहीं चला। वोटो के दलालों की कुछ नहीं चली। उनका धंधा चौपट हो गया था। वे मुँह छिपाकर घूम रहे थे। एक दो दलालों ने कोशिश की लेकिन उनकी भरपूर पिटाई हो गयी थी। ये दलाल सर्वजन और सनातन पार्टी के थे। उनका यही कारोबार था। उम्मीदवार के जीतने के बाद उन्हे छोटे मोटे ठीके का काम मिल जाता था। अफसरों की पोस्टिंग के लिये दलाली खाते थे। नेताओ और मंत्रियों से मिलकर अपना उल्लू सीधा करते थे।
खेलावन ने हर बूथ पर अपने लोगो को तैनात कर दिया था। ताकि कोई गड़बड़ी न हो सके।
मतगणना सुबह सुबह शुरू हो गयी। वोट गिने जा रहे थे। सवर्ण इलाकों में खेलावन बहुत पीछे थे। जैसे दलित इलाके का बक्सा खुलता उनके वोटो की संख्या बढ़ती जाती थी। अंत में परिणाम घोषित हुआ। खेलावन दो लाख वोटो से विजयी हुये। सर्वजन पार्टी और सनातन पार्टी के उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गयी।
लखन पुर राज्य में महादलित पार्टी को बहुमत मिल गया था। यह पार्टी की ऐतिहासिक विजय थी। अखबारों की मुख्य खबर महादलित पार्टी की ऐतिहासिक विजय पर
सम्पादकीय लिखे गये थे। सम्पादको की निष्ठा रातोरात बदल गयी थी। जो लोग पहले सर्वजन पार्टी का यशोगान करते थे वे पाले बदल कर महादलित पार्टी के गुणगान में लग गये थे। रमई राम रातोरात महादलितों के महानायक बन चुके थे। इसी तरह खेलावन अपने इलाके में नायकतत्व का दर्जा हासिल कर चुके थे। उनकी जीत के गीत गाये जा रहे थे। पिपरा तो जीत के जश्न में डूब गया था। उन्हे फूलमालाओं से लाद दिया गया था। उनकी जीत के नारे लग रहे थे। पिपरा में रातभर लोग जागते रहे। खेलावन के आंखो से नींद गायब थी। विधायक हो गये थे। आगे पार्टी कौन सी जिम्मेदारी देगी,इसके बारे में वह सोच रहे थे।
पार्टी के भीतर हलचल तेज हो गयी थी। किसे मंत्री बनाया जाय किसे संगठन की जिम्मेदारी दी जाय। इसपर चर्चा हो रही थी। राजधानी में कार्यकर्ताओं का जमावड़ा बढ़ गया था। चुने गये विधायक अपने समर्थको के साथ डेरा डाले हुये थे। एक सप्ताह के गहमा-गहमी के बाद मंत्रिमंडल का गठन किया गया। राम खेलावन भारती बन राज्यमंत्री बनाये गये। ज्वार में खुशी की लहर दौड़ गई।
राजधानी से खेलावन नहीं राम खेलावन भारती बन राज्यमंत्री लौटे। उनका नाम और ओहदा बदल चुका था। रास्तो पर तोरण द्वार बनाये गये थे। बैनर पर लिखा था। पहलीबार क्षेत्र में बन मंत्री आर। के भारती के आगमन पए स्वागत।
राम खेलावन कहीं नहीं गये थे। न कहीं से लौटे थे। बस उनकी स्थिति बदल गयी थी। हाँ इतना जरूर था कि जो आदमी लौटा था वह खेलावन तो कत्तई नहीं था। वह राज्य सरकार का मिनिस्टर था। जिसके पीछे कारो का काफिला था। उनकी जयजयकार करती हुई भींड़ थी। जिनसे उनकी थोड़ी बहुत जान पहचान थी वे उनसे मिलना चाहते थे।
पूरे दिन वे क्षेत्र में लोगो को धन्यवाद देते रहे। सबका आभार प्रकट किया। फूलमालाओ से लदे हुए राम खेलावन का चेहरा फूलों के बीच छिप गया था। औरते उन्हे घूंघट के ओट से निरख रही थी।
सबसे मिलने के बाद राम खेलावन बाबू साहब के यहाँ गये। बाबू साहब ने कहा। राम खेलावन अब तो तुम मंत्री बन गये हो। कहाँ मेरी याद करोगे ?
-कैसी बात कह रहे है साहब। हम जो कुछ है आपके बनाये हुये है। आपकी कृपा आशीर्वाद नहीं होता तो हम कहीं के नहीं होते।
राम खेलावन में वह सब कुछ बचा हुआ था जिसे लोग पद पाने के बाद भूल जाते है।
राजधानी के पार्क रोड के पास उन्हे बंगला आवंटित किया गया। बंगले में पांच छ : बड़े कमरे थे। जिनका आकार आम कमरों से ज्यादा बड़ा था। उसकी छते ऊंची थी। बड़ी बड़ी खिड़कियां और दरवाजे थे। ये कमरे उस दौर के बने हुये थे जिस दौर में लोग आठ दस प्रतिशत कमीशन खाते थे। अब तो आठ दस फीसदी काम नहीं होता। बन
विभाग के अफसरो कर्मचारियों ने उनका बंगला सजाना शुरू कर दिया। जो टूट-फूट थी उसकी मरम्मत की गयी। बंगलों का रंग-रोगन किया गया। दरवाजों और खिड़कियों को चमकाया गया। कीमती पर्दे लगाये गये। सामने एक गैरेज था जहाँ गाड़ियां खड़ी होती थी थी। यह गैरेज आम गैरेजों से बड़ा था। राम खेलावन से सोचा क्या इसे हाथीखाना बनाया जा सकता है। इस सवाल का जबाब बन विभाग के अधिकारी दे सकते थे। उन्होने पी. ए. से कहकर तुरंत फोन घुमाया। थोड़ी देर बाद अधिकारी हाजिर हुआ।
-क्या इस गैरेज को हाथीखाने में बदला जा सकता है ?
इस सवाल को सुनकर अधिकारी चौका।
-मैं समझा नहीं सर।
-मतलब यह कि आपको इस गैरेज को हाथीखाने में बदलना है। मैं यहाँ हाथी रखूंगा।
-ठीक है सर देखता हूं।
उस अधिकारी ने गैरेज का मुआयना किया। और बताया कि गैरेज की लम्बाई ठीक है। बस चौड़ाई बढ़ाने के लिये एक तरफ की दीवार गिरानी पड़ेगी। छत ऊंची करनी पड़ेगी।
-तो बस काम शुरू कर दीजिये।
अधिकारी चकित था। लोग गैरेज में गाड़ी रखते है। यहाँ हाथी रखने की बात हो रही है। उन्हे इससे कोई मतलब नहीं था। अधिकारी इस मामले में अपनी निजी राय नहीं प्रकट कर सकते। उन्हे मंत्री के सनक के हिसाब से काम करना होता है।
राम खेलावन बन मंत्री हो गये थे। उन्हे हाथी खरीदने से कोई नहीं रोक सकता। विभाग में तमाम तरह के फंड थे,हर साल क्षेत्र के लिये मिलनेवाली विकास निधि थी ही। वे जानते थे। कैसे विधायक मंत्री फर्जी विल बनवाकर इस निधि को अपने निजी कार्य में खर्च करते थे।
उनके बंगले के सामने पीतल पर उनका नाम आर। के भारती खुदा हुआ था। नीचे लिखा हुआ था। बन राज्य मंत्री।
एक दो माह उन्होने अपने बाल सखा सुमेर को बुला लिया। उन्होने उनके देखभाल की जिम्मेदारी उठा ली। कब खाना है कब सोना है कहाँ जाना है किससे मिलना है। यह कार्यभार सुमेर के मत्थे था। सुमेर उन्हें राय भी देते थे। राम खेलावन के साथ रहकर उनका भी बेंड़ा पार हो रहा था।
एक दिन सुमेर से राम खेलावन ने कहा। बहुत दिन हुआ मीता अब आपको क्षेत्र का प्रोग्राम बनाना चाहिये।
राम खेलावन ने हामी भरी।
जिलाधीश को राम खेलावन के आने की सूचना भेज दी गयी। पुलिस को शांति व्यवस्था के निर्देश निर्गत कर दिये गये। पी। डब्लू डी का सर्किट हाउस सजाया जा रहा था। सफाई व्यवस्था चौचक की जा रही थी। सडकों पर चूने छिड़के जा रहे थे। वी आई। पी के
आने पर इस तरह के ढ़ोग किये जाते है। सर्किट हाउस में लाइटिंग की गयी थी। क्षेत्र के लोगो के बैठने के लिये सभा कक्ष में व्यवस्था की गयी थी। यह सब इंतजाम इलाके के तहसीलदार के जिम्मे था। मंत्रियों अफसरों के आने पर जिले के अफसर सक्रिय हो जाते है। अतिरिक्त रुचि लेने लगते है। इसी बहाने परिचय का दायरा बढ़ता है और वे गाढ़े वक्त काम आते है। चतुर सुजान अफसर इस कला में माहिर होते है। तहसीलदार तेल पानी लगाकर कानूनगो के पद से मौजूदा पद पर पहुँचा था। उसके साथ के लोग पुराने ओहदे पर घिस पिट रहे हैं।
राम खेलावन केवल इस क्षेत्र के मंत्री नहीं जनपद के प्रभारी थे। उनके एक इशारे से जनपद के अधिकारियों कहीं फेंका-पटका जा सकता था। इसलिये अधिकारी अपनी सांस रोके हुये थे। कहीं कोई चूंक न हो जाय इसपर ध्यान दिये हुये थे।
दिन के तीन बजे थे। दूर से गाड़ियों के आने की आवाज सुनाई दी। गाड़ी का हूटर तेज तेज बज रहा था। इस काफिले में कुल आठ गाड़ियां थी। राम खेलावन की सरकारी गाड़ी बीच में थी। इन गाड़ियों में दो तीन गाड़ी जिले की थी।
मंत्री जी की सुरक्षा में पुलिस की एक टुकड़ी तैनात थी। आपको जानकर हैरत होगी इस टुकड़ी के प्रभारी बरिष्ट सिपाही राम भजन थे। वही राम भजन जिन्होने चोरी करते हुये खेलावन को रंगे हाथ पकड़ा था। थानेदार छुट्टी पर था इसलिये राम खेलावन की सुरक्षा का दायित्व राम भजन को सौपा गया था। राम भजन किस मनस्थिति में होगे इसका अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। उन्हे लगा वह शेर की मांद में पहुँच गये है। एक झपट्टे में उनका काम तमाम हो जायेगा। इस विपत्ति से उन्हे कोई नहीं बचा सकता। फिलहाल वे राम राम करते हुये अपने देवी देवताओं को याद कर रहे थे। उनकी सांस गले में अटकी हुई थी। वह कैसे राम खेलावन का सामना करेगे। उन्हे डर था उन्हे हथकड़ी लगाकर जेल न भेज दिया जाय। सरकार तो राम खेलावन की थी। एक मंत्री के लिये यह वायें हाथ का खेल था। राम भजन सोच रहे थे। ओखल में सर तो मूसल से क्या डर। ?
संयोगो के कौतुक निराले होते है। हमे तमाम आकस्मिक स्थितियों का सामना करना पड़ता है। यही जीवन की विड्म्बना है। जहाँ एक चोर शाह बन जाता है और एक शाह को जिंदगी के दुर्दिन देखने पड़ते है।
राम खेलावन सफारी सूट पहने हुये गाड़ी से उतरे जैसे वे हेलीकाफ्टर से उतर रहे हो। सैकड़ो कंठो से एक साथ आवाज आई। राम खेलावन की जय हो। महादलित पार्टी जिंदाबाद।
भींड़ ने उन्हे बछड़े की तरह उन्हे उठा लिया।
राम खेलावन का चेहरा पहले की तरह नहीं रह गया था। गाल के गड्डे भर चुके थे। कहाँ मैले-कुचैले कपड़े में खेलावन कहाँ सफारी सूट में इठलाते राम खेलावन भारती। कहाँ बन राज्य मंत्री राम खेलावन भारती। इन दोनो में जमीन आसमान का अन्तर था। इस
फासले को पाटने के लिये उन्हे आग की दरिया से गुजरना पड़ा था। कोयले को हीरा बनने के लिये जो कसौटी होती है। खेलावन उस पर खरे उतरे। उनके जीवन में विविधता थी। सोचिये अगर उनके जीवन में रमईराम की आमद न हुई होती तो उनका क्या हुआ होता। वे जीवन के अंधेरे में गुम हो गये होते। ज्यादा से ज्यादा बाबू साहब के यहा6 पीलवानी करते हुये एक नामालूम जिंदगी जीते।
सर्किट हाउस में इलाके के लोगो की आवाजाही शुरू हो गयी थी। सुमेर लोगो से मिल जुल रहे थे,जो खेलावन के करीब था। उससे मिलवा रहे थे। कुछ लोग उन्हे जीभर कर देखना चाहते थे। वे सहज सुलभ नहीं थे। वे वी। आई पी के दर्जे में पहुँच चुके थे। उनसे मिलने के लिये पी. ए. से इजाजत लेनी पड़ती थी। लेकिन यहाँ वे उदार थे। इस इलाके के लोगो ने उन्हे सिंहासन पर बैठाया था। उनके गुनाह माफ किये थे जो कुछ वे थे उन लोगो के बदौलत थे जिन्होने उन्हे अपना प्रतिनिधि चुना था।
सिपाही राम भजन इधर उधर बेचैन होकर घूम रहे थे,वे राम खेलावन से अपने किये हुये की माफी मांगना चाहते थे। यह काम खुलेआम नहीं हो सकता था। जब भींड़ कम हुई वे चुपके से उनके सूईट में दाखिल हुये। नमस्ते करने के बजाय उनके पांव पर गिर गये। रोते हुये कहा। मंत्री जी मुझे माफ कर दीजिये। यह जूता लीजिये और जितना चाहे उतने जूते मारिये। मुझे जेल भेज दीजिये। मेरा जुर्म बहुत बड़ा है। मैं अन्हरा गया था। मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया। आप मुझे जो सजा देना चाहे दीजिये।
राम खेलावन ने राम भजन को पहचानने में कोई भूल नहीं की। वह उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा हादसा था। जिसने उनकी पहचान बदल दी थी। पूरे जवार में वे बदनाम हो गये थे।
राम खेलावन मन ही मन कुछ सोचने लगे। निर्णय खेलावन को नहीं आर। के भारती बन राज्य मंत्री को लेना था।
वे उठे और दोनो हाथ से रामभजन को उठाया और कहा। जो कुछ हुआ वह सब भूल जाओ। जो तुमने किया वह तुम्हारी डियूटी थी। जो मैं कर रहा हूं वह मेरी इंशानियत है। अब तुम उस थाने का नाम बताओ जहाँ कमाई –धमाई हो। जहाँ चाहोगे मैं तुम्हारी पोस्टिंग करवा दूंगा। तुम्हारा प्रमोशन करवा दूंगा।
राम भजन चकित थे। सिर्फ उनके गुनाह नहीं माफ हुये थे बल्कि सजा के बदले रियासत बख्शी जा रही थी। राम भजन ने ऐसे न्याय की कल्पना नहीं की थी। ऐसा न्याय तो धर्मराज की सभा में होता है। राम खेलावन ने शरणागत के साथ जो न्याय किया वह खेलावन और राम भजन के अलावा कोई नहीं जानता था। दोनो ने अहद लिया कि वे इसे सार्वजनिक नहीं करेगे।
दोनो सहज हो गये। राम भजन ने कहा। सरकार आपने मेरे साथ जो किया वह दुनियां में कोई नहीं कर सकता है आपको जब मेरी जरूरत हो यह जान हाजिर है। राम खेलावन मुस्करा कर रह गये। कोई दूसरा होता तो इस तरह का बर्ताव नहीं कर
नहीं करता। सीधे जेल में डलवा देता। राम खेलावन दूसरी मिट्टी के बने थे। उनके भीतर एक मनुष्य जीवित था।
सुबह सुबह राम खेलावन का कारवां राजधानी को ओर रवाना हो गया। राम भजन अश्रुपूरित आंखों से देखते रहे। जवार के अनगिनत हाथ हिलते रहे।
मेले में हाथी अलग दिखाई देते है
उनके दांत दूर से चमकते है
सूंढ़ और कान लय में हिलते हैं
सोनपुर का पशु मेला एशिया का सबसे बड़ा मेला था। यह हर साल कार्तिक पूर्णिमा को लगता है और माह भर जारी रहता है। इस मेले में सुई से लेकर हाथी तक की खरीद की जा सकती है। इस मेले का ऐतिहासिक महत्व है। पहले यह मेला हाजीपुर में लगता था,बाद में सोनपुर में लगने लगा। लोग बताते है इस मेले में हाथी और घोड़ो की खरीद के लिये मध्य एशिया के अफगानिस्तान इराक जैसे देशो से लोग आते थे। यह भी बताया जाता है कि इस मेले से चंद्र गुप्त मौर्य ने हाथी घोड़ो और बैलों की खरीद की थी। यह मेला औरंगजेब के समय से लगता रहा है। जब अंग्रेज बहादुर आये तो यह उनके तफरीह की जगह बनी।
धीरे धीरे इस मेले का धार्मिक महत्व बढ़ने लगा। लेकिन जैसे हमारा समाज आधुनिक हुआ। मेले मौज मस्ती के स्थल बन गये। उनका मूल स्वरूप विकृत होता चला गया। दिन में मेले की गहमा-गहमी रहती। शाम होते फिंजा बदलने लगती थी। मेले में दूर दूर से नौटंकियां और थियेटर आते। उसमें अश्लील डांस होते। इन थियेटरो का टिकट 500 रूपये से कम नहीं होता। वह भी जल्दी बिक जाता था।
राम खेलावन अपने दोस्त सुमेर के साथ हाथी खरीदने पहुँच चुके थे। यहाँ पहुँचते हुये रात हो गयी थी। दोनो ने एक होटल में शरण ली। सुमेर कहते रह गये कि बिहार के किसी मिनिस्टर से कह दिये होते तो रहने-सहने का इंतजाम हो जाता। हाथी भी ठीक कीमत पर मिल जाता। लेकिन राम खेलावन इस बात पर राजी नहीं हुये। बोले मुझे इस तिगड़म में न फंसाओ हम यहाँ मौज करने आये है। मंत्री की उपाधि लादे लादे मूंड़ पिरा रहा है। ज्यादा बड़बड़ न करो नहा-धोकर कपड़े बदल लो। फिर थियेटर देखने चलेगे। ससुर ई मन बहुत थक गया है।
दोनो ने अपनी पोशाक बदली,खेलावन ने कहा। सुमेर भाई इंग्लिश निकालो। चलने के लिये पेट्रोल तो चाहिये न।
-खेलावन भाई दुनियां बदल जाय,तुम नहीं बदलोगे। मिनिस्टर हो गये अब भी पुरानी बातों में मन लगाये रहते हो।
-पुराना समय अच्छा था सुमेर भाई। भले ही हम तकलीफ में रहे हो लेकिन मस्ती
का आलम बना रहता था। अब सब कुछ है लेकिन मस्ती नहीं है। हमने कांटों का ताज पहन लिया है।
राम खेलावन आचमन के बाद अक्सर दार्शनिक हो जाया करते थे।
सुमेर ने आगे की क्लास का टिकट कटवा लिया। दोनो जन आरामदेह कुर्सी पर सवार हो गये। उन्हे नाटक-फाटक से कुछ लेना-देना नहीं था। बस वे थिरकती हुई परियों को देखना चाहते थे। गाजा-बाजा देर से बजता रहा। अचानक एक नाचती हुई लड़की स्टेज पर नमूदार हुई। उसका गाना शुरू हुआ। नथुनियां से हाय राम बहुत दुख दीन्हा। फिर नथुनियों पर गोली मारे वाला गीत गाया गया। गीत के साथ उस लड़की का अंगसंचालन गजब का था। राम खेलावन उस पर मर -मिटे। पांच सौं का नोट मुँह में दाबा और उसे इशारे से बुलाने लगे। वह लड़की भी खूब निकली। अपने मुँह से नोट खींच लिया। यह मंजर देखकर लोग दंग थे।
खेलावन कुर्सी से उठे और नाचने लगे। सुमेर ने उनका कुर्ता खींचकर बैठाया और कहा। अपनी सीमा में रहो अब तुम सरकार के मंत्री हो कोई ऐरे-गैरे नहीं हो।
-हम मंत्री नहीं लाड़ है,जब भी मस्ती में होता हूं तुम मेरी मस्ती झाड़ देते हो। तुम दोस्त हो कि दुश्मन।
सुमेर समझ गये मंत्री जी अपनी रौं में बह रहे हैं इनसे बात करना मुश्किल है। जिस थियेटर का टिकट लिया गया था। उसके बारे में बताया गया कि दो बजे रात के बाद यहाँ। खुला खेल फरूखाबादी शुरू होता है। मतलब यह कि कुछ लड़कियां कुछ पलों के लिये दिगम्बर हो जाती है।
इस खेल को देखने के लिये नवजवान तो थे ही साठ के पार लोगो की संख्या कम नहीं थी। वे धनहा कौवे की तरह स्टेज पर अपनी नजर गड़ाये हुये थे। वे बार बार अपनी घड़ी देख रहे थे।
दूसरी लड़की पहले से ज्यादा मादक थी। उसने गाना शुरू किया। ढ़ोड़ि में डालि के बीयर सैंया सतायें सारी रतियां। सतावे सारी रतियां,बेदर्दी सतावें सारी रतियां।
इस गीत के साथ वह लड़की नागिन की तरह नाच रही थी। उसके अंग प्रत्यंग खुल खुल जा रहे थे। झीनी पोशाक से मादकता झर रही थी।
खेलावन फिर उठे। इस बार सुमेर ने धर लिया। गुस्से से बोले। अगर तुमने इस तरह की हरकत की तो नाच छोड़्कर चला जाऊंगा। आपको पता है सोनपुर मेले में दुनियां भर के लोग आते है। कोई पहचान लिया तो बनी बनायी इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी। तुम्हे कितनी बार याह दिलाऊं कि तुम आम आदमी नहीं हो। एक सूबे के मंत्री हो।
सुमेर के भाषण के बाद खेलावन थोड़ा थमे। लेकिन वह बैठे बैठे ठुमका लगाना नहीं भूलते थे। कहावत है चोर चोरी से जाये हेरा-फेरी न जाये। राम खेलावन क्या हर आदमी अपनी आदतो का गुलाम होता है खेलावन अपवाद नहीं थे।
जैसे घड़ी की सूई दो बजे के आगे बढ़ी,स्टेज पर नीम अंधेरा छा गया। स्टेज पर रंग-बिरंगी रोशनी का सैलाब बहने लगा। स्टेज पर बारी बारी से आयी लड़कियों ने पलभर के लिये अपने बस्त्र हटा दिये और स्टेज के अंधेरों में गुम हो गयी। दर असल लडकियां सिर्फ तौलिया ओढ़ी हुई थी। बस पल भर के लिये मुक्त होना था। यह पल भर का समय लोगो के लिये प्रलय से कम नहीं था।
इस खेल के पीछे कितनी यंत्रणा थी। कोई नहीं जानता। मजबूर और बेबस लड़कियां जीवन यापन के लिये इस तरह के खेल करने के लिये मजबूर की जाती थी। सारा मुनाफा कम्पनी के मालिक के हिस्से में जाता है,उन्हे सिर्फ खुरचन मिलती है। इस पेशे में उनका दैहिक शोषण भी होता है जिसे वे चुपचाप सहती रहती है
खेलावन के पास एक छोटी सी शीशी थी /जब तलब लगती चुपके से एक दो घूंट गले में उतार लेते। वह नशा कायम रखने की कला जानते थे।
स्टेज के इस शो के बाद नाच में कुछ नहीं बचा था। कुछ लोग अपनी तलब मिटाने के लिये मेले में आयी बदनाम औरतों के आगोश में चले जाते थे। बाकी लोग अपने थाने-पवाने की ओर रूख करते थे।
मेले में जो चाहो वही मिलेगा का मुहावरा लागू होता था। बस टेंट में माल होना चाहिये। मेले में अघोषित रेड लाइट एरिया आपरेट करती है। जगह जगह दलाल घूमते रहते थे।
रातभर दोनो लोग जमकर सोये। उन्हें सुबह हाथी खरीदने जाना था। हाथी बाजार मेले से थोड़ी दूर लगा हुआ था। उनका असली काम हाथी खरीदना था। दोनो जन हाथी बाजार की ओर निकल पड़े। एक नहीं दो नहीं सैकड़ो हाथी थे। बगल में घोडॉ की मंडी थी। वे हिनहिना रहे थे। उनके आयाल चमक रहे थे। खेलावन का मन हुआ एक घोड़ा भी खरीद ले। उनके मन का घोड़ा दौड़ने लगा।
मेले में तरह-तरह के हाथी थे। उनकी नस्लें अलग थी। इस रेवड़ में छोटे बड़े उन्हे के हाथी थी। उन्हें देखकर हाथी का व्यापारी पास आ गया। आइये साहब आपको किस तरह का हाथी चाहिये। वह हाथियों के बारे में तफसील से बताने लगा।
एक साथ इतने हाथी देखकर खेलावन का मन चिघाड़ने को हुआ। हाथी गन्ने चूस रहे थे। एक दूसरे से सूंढ़ लड़ा रहे थे। किलोल कर रहे थे। बड़े हाथी संजीदा थे लेकिन छोटे हाथियों का कौतुक देखने लायक था। बचपन चाहे आदमी का हो या जानवर का उसके खेल निराले होते है। बचपन के ये दिन जिज्ञासाओं से भरे होते है। जैसे जैसे उम्र बढ़ती है स्वभाविकता खत्म होने लगती है।
राम खेलावन सुमेर को थोड़ी दूर लेकर गये और हाथी के खरीद पर मंत्रणा करने लगे। मीता किस तरह का हाथी खरीदा जाय।
-मेरे ख्याल से न बड़ा न छोटा बीच की उम्र का हाथी खरीदा जाय ताकि उसे सिखाया
जा सके।
-सही कह रहे हो सुमेर भाई।
वे दोनो हाथी की भींड़ में पहुँच चुके थे। वे हाथियों से थोड़ा डरे हुये थे।
-डरिये नहीं साहब हाथी कुछ नहीं करेगे। हाथी बहुत सीधा जानवर है। देखने को इसका डील-डौल बड़ा है लेकिन इसका दिल बच्चो जैसा होता है। यही वजह है यह बच्चो को और बच्चे इसे खूब पसंद करते हैं।
दोनो ने एक छोटे हाथी का चुनाव किया। इस हाथी के कान अन्य हाथियों की तुलना में बड़े थे। उसके कान ताड़ के पंखों जैसे थे,वे धीरे धीरे हिल रहे थे। लोगो से उन्होने सुना था। जिस हाथी के कान बड़े होते है वह स्वामिभक्त होता है।
हाथी के सौदागर से उन्होने पूछ। इस हाथी का क्या दाम है।
-सर आप लोगो ने बेहतरीन हाथी का चुनाव किया है। लगता है आप लोगो को हाथी के बारे में अच्छी जानकारी है।
खेलावन कैसे बताते जिंदगी भर वह हाथी के साथ रहे। उन्हे हाथी की आदत और स्वभाव का पूरा पता है। लेकिन वह यहाँ पीलवान की हैसियत से नहीं एक खरीदार के रूप में आये हैं। अब वह पीलवान कहाँ रह गये है। पीलवान से मंत्री के ओहदे पर पहुँच चुके है।
हमारी सियासत इस तरह के कारनामों से भरी हुई है। जहाँ कोई राजनेता भैंस की पीठ से उठकर हवाईजहाज तक पहुँच जाता है। राम खेलावन राजनेताओं की इस परम्परा में बाकायदे शामिल हो चुके थे।
-हाँ बताइये इस हाथी की क्या कीमत है ?
-सर मुझे मोलभाव की आदत नहीं है। बस एक दाम इस हाथी के ढ़ाई लाख लगेगे। सर आप इस हाथी को ले जाइये। यह बड़ा मस्त हाथी निकलेगा। आपका साथ जिंदगी भर देगा। पूरे इलाके में आपका नाम रोशन करेगा।
खेलावन को यह कीमत ज्यादा लगी। उन्हे लगा मोलभाव करने से अगर यह हाथी का बच्चा दो लाख में मिल जाय तो सौदा मंहगा नहीं है।
। कुछ आगे पीछे चलिये।
- नहीं सर कीमत जायज है। आप निश्चिंत रहिये।
सुमेर आगे बढ़े। बस एक बात मेरी भी मान लो। यह हाथी हमे दो लाख में दे दो।
-- नहीं सर मेरा परता नहीं पड़ेगा। हाथी को लाने जाने में बहुत खर्च पड़ता है। लोग अब हाथी नहीं खरीद रहे है। उनकी जगह जीपें और कारें आ गयी है। इसलिये यह धंधा मंदा हो गया है।
राम खेलावन ने दो लाख देने का मन बना लिया था। यह नहीं कि वह ढ़ाई लाख देने के हैसियत में नहीं थे।
वे दोनो उठकर जाने लगे। सौदागर ने पूछा –क्या बात है सर। आप कुछ आगे बढ़िये। तो बात बने।
-बस दो में तैयार हो जाओ। ज्यादा किचकिच करने से कोई फायदा नहीं है।
सौदागर तैयार हो गया। सर कुछ बयाना दे दीजिये। कल ट्रक लेकर आइये और हाथी को ले जाइये। कल पूरा पेमेंट देने पर रसीद मिल जायेगी। कल का दिन बहुत शुभ है। आपके जीवन गणेश जी का आगमन बहुत सुखदायी होगा।
हंसी खुशी दोनो लोग होटल के लिये रवाना हो गये। खेलावन का मन हुआ एक बार और नाच देख आये लेकिन सुमेर ने मना कर दिया। खेलावन जैसे बिगरैल हाथी के लिये सुमेर पीलवान की तरह थे। जहाँ वे बऊड़ियाते वहाँ वह अपना अंकुश उनके माथें पर धर देते।
सुबह ही वे ट्रक के साथ पहुँच चुके थे। उनका बस चलता तो हाथी को हवाईजहाज को लादकर ले जाते। लेकिन हवाईजहाज में इसकी व्यवस्था नहीं थी।
उनका गाँव पिपरा सोनपुर से 500 कि मी। की दूरी पर था। इस दूरी को तय करने के लिये 15 व 20 घंटे से कम समय नहीं लगेगा। हाथी को पीछे लादा गया और दोनो जने ड्राइबर की बगल वाली सीट पर बैठ गये। वे अपने गाँव ऊड़कर पहुँचना चाहते थे। लेकिन उनके पास पंख नहीं थे। गाड़ी की रफ्तार 30-40 कि मी। से ज्यादा नहीं थी। हाथी के नाते ट्रक का वजन बढ़ गया था। हाथी के साथ एक मन गन्ना रख दिया था। सुबह ही खेलावन ने देवी देवताओं की पूजा की। पूर्वजों की पवित्र स्मृति को याद किया।
बेवत ब्यवस्था करते दोपहर हो गयी थी। दोपहर बाद गाड़ी नांधी गई। राम खेलावन सात आसमान में गोते लगा रहे थे। उनका वर्षो देखा गया सपना सच हो रहा था। खेलावन मन ही मन गुनगुना रहे थे। जब आदमी खुश होता है उसकी अभिव्यक्ति गीतो में होती है। खेलावन का लोकगीतो से पुराना सम्बंध था। नौटंकी के दिनों के गीत उनके कंठ में उमड़ रहे थे।
रास्ते में भूख लगी वे ढ़ाबे पर रूके। ट्रक ढ़ाबे के किनारे खड़ा था। थोड़ी देर बाद ट्रक हिलने लगा। ढ़ाबें पर बैठे हुये लोग चौक गये। वे उधर दौड़ने लगे। द्राइबर ने कहा। परेशान होने की कोई बात नहीं है। ट्रक में हाथी लदा है। ढ़ाबें में खाना खा रहे लोगो ने खेलावन को बड़ी हसरत के साथ देखा। और सोचा कि अपने जवार का कोई बड़ा आदमी होगा।
हाथी खरीदना हैसियत की बात है। हाथी खरीदने से ज्यादा कठिन है हाथी को पालना। बहुत से लोग हाथी पालने में बिला जाते है। जमीदारी टूटने के बाद सामंत हाथी नहीं रख पाये,उन्हे औने-पौने दामों में बेचना पड़ा।
ट्रक लखनपुर की सीमा में प्रवेश कर चुका था। खेलावन को लगा कि वह अपनी
जमीन छू चुके है। ट्रक घने जंगलों के बीच से गुजर रहा था। रास्ते में चांद की जादुई रोशनी थी जिससे पेड़ नहाये हुये थे। बीच रास्ते में चौकड़ी भरते मृग शावक दिखाई दे रहे थे। नीलगायो के झुंड कम नहीं थे खेलावन जंगल को बड़े ध्यान से देख रहे थे। वह उसी मुहकमे के वजीर थे। सूबे के सारे जंगल उनके अधिकार क्षेत्र में
आते थे। उन्हें मालूम था कि सर्वजन पार्टी के बन मंत्री ने जंगल के जंगल बेच दिये थे। खेलावन के भीतर इस तरह की कल्पना नहीं आती थी। वह जंगल को बन देवता की तरह याद करते थे। अभी तो यही ख्याल था। आगे चल कर क्या होगा। इसका जबाब भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ था।
खेलावन की आंखों में नींद नहीं सपने थे। सच होनेवाले सपने थे। हाथी उनका एक बड़ा सपना था जो पूरा हो गया था। यह आश्चर्य ही था कि जो आदमी बकरी नहीं खरीद सकता था,वह हाथी का मालिक बन गया है
राम खेलावन के टोले के पास खलिहान में लोगो का हूजूम जुटा हुआ था। पहले से सुमेर ने फोन कर दिया था। खेलावन के घर और आम के पेड़ पर विजय पताकाये फहरा रही थी। लाउस्पीकर बाँध दिये गये थे। धार्मिक गायन भिंनसार से शुरू हो गया था। जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। की प्रार्थना बज रही थी। लोग भावबिभोर हो रहे थे। कुछ लोग नाच रहे थे।
सुबह के वक्त ज्यादा शोर शराबा नहीं होता। ट्रक के आने की आवाज सुनाई पड़ रही थी। लडको की एक गोल सड़क की ओर दौड़ी। थोड़ी देर में ट्रक खलिहान में आ पहुँचा। आगे से राम खेलावन और सुमेर उतरे। हाथी को पीछे से उतरना था।
खेलावन के चेहरे पर जरा सी थकान नहीं थी। मुख-कमल खिला हुआ था। जैसे अभी नहा-धोकर उतरे हो। उनके गाड़ी से उतरते ही। गणेश जी की जय के नारे लगने शुरू हो गये। गगन समवेत ध्वनि से गुंजायमान हो उठा। यह आवाज उनके गाँव पिपरा तक सीमित नहीं थी। ध्वनि-विस्तारक यंत्र ने उसे सीवान उस पार तक पहुँचा दिया था। इसी तरह उनके इलेक्शन जीतने के बाद उनकी कीर्ति जवार के कोने कोने में पहुंची थी
पं गऊकरन पूजा की वेदी सजाये बैठे थे। पास में दूब अच्छत और फूल की थाली के साथ हवन सामग्री थी। पंडाल सजा हुआ था। गाँव के स्त्री पुरूष भोज बनाने की तैयारी में लगे हुये थे। कोई पूड़ी बेल रहा था कोई सब्जी काट रहा था। सब लोग अपने काम-काज में लगे हुये थे। पिपरा गाँव में जश्न का माहौल था।
पंडित गऊकरन की भविष्य्वाणी सही साबित हुई। जातक के भाग्य। में हाथी का सुख लिखा हुआ था। गऊकरन के प्रति खेलावन का आस्था भाव बढ़ गया था।
गऊकरन अपने बेरोजगार बेटे के बारे में सोच रहे थे। यदि मंत्री जी क्र्पा हुई तो लड़का ठीहे लग जायेगा। जजमानी में कोई फायदा नहीं रह गया है। लोगो का धर्म-कर्म से विश्वाश उठता जा रहा है। कोई सत्यनारायण की कथा नहीं सुनता। गाँव के सम्पन्न
शहर की शरण में जा चुके है। शादी-ब्याह शहरो से हो रहे है। इसके पहले उनका जहाज डूंबे वे अपना ठिकाना ढ़ूढ़ लेना चाहते थे। उन्हे अपनी चिंता नहीं थी। जैसे-तैसे वे अपना बचा हुआ जीवन काट लेगे। उन्हे अपने लड़के की फिकिर थी। किसी तरह जोगाड़ से एम। ए की डिग्री हासिल करने के बाद कोई नौकरी नहीं मिली। जहाँ जाओं लोग लाखों का घूस मांगते हैं। उसपर भी कोई गारंटी नहीं कि नौकरी बचेगी या डूबेगी।
हाथी को लोगो ने देखा। हाथी बड़ा नहीं था। बच्चा था। बच्चा हाथी लोगो को खूब अच्छा लगा। बच्चे उसका सूंढ़ छू रहे थे। वह अपना सूंढ़ उठा कर बच्चों के साथ किलोल कर रहा था। हाथी भूखा नहीं था। ट्रक में रखा मन भर का गन्ना खा चुका था। लेकिन लोगो की श्रद्धा का क्या। हितई खांची में हाथी के खाने के लिये गेंहूं और जौं ले आये थे। साथ में आठ-दस भेली थी। लोगो की राय थी कि भेली का शर्वत बनाकर हाथी को पिलाया जाय,हाथी बच्चा है शायद भेली न खा सके। वहाँ उत्साही लोगो की कमी नहीं थी। भेली को लोंढ़े से तोड़कर शर्वत बनाया गया,फिर हाथी देवता ने उसे तवियत से ढ़कोला। फिर सूंढ़ उठाकर चिंघाड़ भरा।
राम खेलावन पियरी धोती पहनकर पत्नी के साथ पूजा की वेदी पर विराजमान हो चुके थे। गऊकरन पंडित के सामने माइक था। उन्होने मंत्र का सस्वर पाठ किया। यह सब कर्मकान्ड करीब आधे धंटे तक चला। खेलावन ने गणेश देवता के मस्तक पर हल्दी चंदन अर्पित किया। गऊकरन ने देर तक हाथी के मस्तक पर चंदन का लेपन किया। उन्होने बताया इसके लेप से हाथी का मस्तक ठंड़ा रहता है। हाथी के मस्तक की अग्नि चंदन के लेप से शांत होती है। इसके बाद विधिवत हवन का कार्यक्रम हुआ। हवन की सुगंध दूर दूर फैलने लगी।
इसके बाद हाथी को रंगने का काम किया गया। उसके गले में पीतल की धंटी पहनायी गई। यह घंटी खेलावन ने सोनपुर मेले से खरीदी थी,जैसे हाथी दूमता घंटे की आवाज बजनी शुरू हो जाती।
यही नहीं खेलावन हाथी की पीठ पर चढ़कर महादेव बाबा के थान पर गये,वहाँ साधु बाबा से आशीर्वाद लिया। इसी बहाने गाँव का एक चक्कर लगा लिया था। उन्हे देखकर उनके दुश्मनों के सीनें पर सांप लोट गये थे।
भोज तैयार हो गया था,गाँव के लोगो और हित-रिश्तेदारों ने जमकर भोजन किया। गऊकरन को 1001 रूपया दक्षिणा मिला। साथ में धोती कुर्ता औए अंगोछे की सौगात मिली, वह मन ही मन बहुत प्रसन्न थे,बस उन्हे माकूल समय की प्रतीक्षा थी जब वह खेलावन से अपने लड़के की नौकरी की बात करेगे।
जैसे गऊकरन घर जाने को तत्पर हुये खेलावन ने कहा। पंडित जी कहाँ चले अभी असली काम बाकी है।
-सब तो हो गया जजमान।
अभी तो हाथी का नामकरण होना है। थोड़ा सुस्ता लीजिये। फिर अपना पोथी-पत्रा खोलियें। पंडित जी ने पत्रा खोला। ग्रह नक्षत्र देखे। ईष्ट का ध्यान किया और कहा। हाथी का नाम गणपति गजराज या महादेव। रखा जा सकता है।
राम खेलावन को ये नाम जचें नहीं। उन्हे ये नाम परम्परागत लगे। ये सब भगवान के नाम थे।
खेलावन ने कहा;;पंडित जी मतवाला कैसा नाम रहेगा। पत्रा में देखिये यह नाम रखने में कोई हर्ज तो नहीं है।
पंडित जी ने बिना सोचे-विचारे कह दिया। कोई हर्ज नहीं है जजमान। मतवाला नाम तो शंकर जी का ही है,
गऊकरन कोई वितंडा नहीं खड़ा करना चाहते थे। उन्हे तो अपनी दक्षिणा से काम था। जो जजमान को भाता है पंडित वही करते है। यह पुरानी चलन है,गऊकरन इस चलन से परे नहीं थे।
राम खेलावन एक सप्ताह से राजधानी के बाहर थे,विभाग के काम-काज पर उनका ध्यान था। राजनीति ऐसी टुच्ची चीज थी कि गैरहाजिर होने से दुश्मनों को मौका मिल जाता है। कुर्सी पाने से ज्यादा जरूरी है कुर्सी की रक्षा करना। यह बात थोडे दिनों में खेलावन को मालूम हो गयी थी। राजनीति तो साजिशों का खेल है जो चूंका वह काम से गया।
सबसे बड़ी समस्या पीलवान की थी। उन्हे ऐसा पीलवान चाहिये जो हाथी को ट्रेंड कर सके। यह जिम्मेदारी उन्होने सुमेर को सौपी। कहा। कि वह एक अच्छे पीलवान का इंतजाम करके राजधानी पहुंचे।
सुमेर इस अभियान में जुट गये। खोजते-खाजते एक जमींदार का पीलवान मिला। जमींदार अपनी मुफलिसी में हाथी बेंच चुके थे। पीलवान खाली था। सुमेर ने उसे समझाया कि वह हाथी का ठीक से देखभाल करे उसे सही ट्रेनिंग दे। उसे यह भी बताया कि यह मामूली आदमी का नहीं एक मंत्री का हाथी है। अगर ठीक से मन लगाकर काम करोगे तो तुम्हे मंत्री जी से खूब फायदा मिलेगा। तुम्हारा नाम होगा। तुम्हारे घर के बच्चो को नौकरी मिल सकती है।
पीलवान ने सुमेर की बातों की गाँठ बाँध ली। मन लगाकर काम करने लगा। सुबह उठकर नदी की ओर जाता। जंगल से चारा काटता। उसे नदी में नहलवाता और दिन डूबते खलिहान पहुँच जाता। हाथी को पेड की सोंर में बाँध देता। खलिहान के एक तरफ हाथी के रहने के लिये अस्थायी हाथीखाना बनाया गया था। लेकिन हाथी को खुले मे रहना पसंद था। हाथी के आसपास बच्चों की भींड़ लगी रहती थी हाथी को देखने दूर दूर से लोग आते थे। बच्चों को तब मजा आता था जब हाथी चिंघाड़ता था। बच्चा हाथी की आवाज बड़े हाथी की तरह नहीं थी। उसमे मुलामियत थी। उसके दांत निकल रहे थे।
काले रंग के हाथी से सफेद दांत का निकलना बहुत अच्छा लग रहा था। लोग कह रहे थे कि यह हाथी दंतैड होगा यानी कि इसके दांत बहुत बड़े निकलेगे। अच्छे हाथी के दांत बहुत बड़े होते है। हाथी के दांत बहुत मंहगे बिकते है। हाथी के दांत की तस्करी होती है। उसके दांत से कीमती चींजे बनती है।
जब भी रामखेलावन गाँव आते जवार का एक फेरा जरूर लगाते। वे हाथी पर एक सांमत की तरह सवार होते। हाथी को खूब सजाया-सवांरा जाता था। उसके चारो तरफ झालर झूलती रहती थी। वे खुद हाथी का संचालन करते थे। पीलवान उनके पीछे बैठा रहता था। जहाँ भी हाट-बाजार लगती वे हाथी लेकर पहुँच जाते थे। राम खेलावन केवल हाथी सवार नहीं थे। वे सत्ता की पीठ पर बैठे थे इसलिये उनका महत्व बढ़ गया था। वे जगह जगह रूकते और लोगो से बात करते थे। उनकी समस्याये अपनी नन्ही सी डायरी में नोट करते। यह डायरी उनके कुरते की सामने की जेब में बिराजमान रहती थी। उनके हाथ में एक भारी सी मोबाइल रहती थी। मोबाइल के बारे में उनका ज्ञान अल्प था,बस कामचलाऊ जानकारी थी लेकिन अभिनय ऐसा करते थे कि जैसे मोबाइल के परम ज्ञानी हो। राजनीति में रहते हुये उन्होने अभिनय कला सीख ली थी। अभिनय तो उनके खून में था। इसी कला के बदौलत वे नाच में टिके रहे। राजनीति शुद्ध अभिनय का खेल है। नेता के अभिनय के सामने अभिनेता पानी भरते है।
मतवाला हाथी का कद बढ़ रहा था। साल भर में वह कई हाथ बढ़ गया था। उसके दोनो ओर के दांत साफ दिखाई दे रहे थे। कान का आकार बढ़ गया था। वह ताड़ के पत्ते की तरह दिख रहा था। थोड़ी हवा चलती वह हिलने लगता था। हाथी की शरारते बढ़ रही थी। वह मनबढ़ हो गया था। वह किसी के गन्ने के खेत में पहुँचकर गन्ना खा जाता था। रबी और खरीफ की फसलों के बीच चला जाता था। वह खाता
कम था रौदता ज्यादा था। हाथी का मूल स्वभाव रौदना होता है,वह इस कला में पारांगत हो गया था। वह बाबू साहब के मस्ताना हाथी से उन्नीस नहीं बीस था।
जैसा हाथी का मालिक होता है हाथी उसी तरह हो जाता है। हाथी पर पीलवान की मर्जी नहीं चलती बल्कि पीलवान वही करता है जो हाथी का मालिक चाहता है। राम खेलावन कम उखमजी नहीं थे। जब गाँव आते तो मतवाला को देसी ठर्रे जरूर पिलाते। दारू पीने के बाद मतवाला खूब झूमता था। वह तरह तरह का कौतुक करता था जिसे देखकर राम खेलावन प्रसन्न होते थे।
हाथी की ट्रेनिंग पूरी हो चुकी थी। राम खेलावन ने सोचा कि हाथी को लखनपुर लेकर जाये।
जंगल छोड़कर हाथी कंक्रीट के महाबन में
पहुँचा
वहाँ पेड नहीं ऊंची इमारते थी
इमारतों पर पत्ते नहीं थे।
हाथी आवाज खाकर जिंदा नहीं रह
सकता था।
आदमी हो या जानवर हर एक की अपनी जगह होती है। जैसे आदमी जंगल में नहीं रह सकता है ठीक वैसे जानवर गाँव या शहर में नहीं रह सकते है। जो रहते है उन्हे बलात रखा जाता है। हाथी और घोड़े शुरू से आदमी के साथ थे। आदमी ने उसे अपनी जरूरत के हिसाब से सुविधाजनक बना लिया था। वे अपनी इच्छा से साथ नहीं रहते थे। हाथी ज्यादातर गाँव में रहते थे। उन्हे सामंत पालते थे। उनके पास अपने जंगल बाग बगीचे थे। हाथी को पालने का सामर्थ्य था।
राम खेलावन ने हाथी को अपने गाँव से राजधानी में लाने का जो निर्णय लिया वह उसके पीछे के खतरे को नहीं समझ सके। वे मंत्री जरूर थे लेकिन कई मायनों में वे बुद्धि से पैदल थे। शहरों में जगहों की कमी थी। हाथी के लिये काफी जगह चाहिये। वह ऐसा जानवर है जिसे बाँधकर नहीं रखा जा सकता। राम खेलावन यह समझते थे कि हाथी के आने पर उनकी शान बढ़ेगी। वे मंत्री समूह में अलग दिखेगे। कभी मन करेगा तो रात के सन्नाटे में हाथी के साथ सैर करेगे।
बहरहाल हाथी को पहले से बनाये गये हाथीखाने में रखा गया। उसकी खुराक के लिये एक कर्मचारी को लगाया गया जो देहात से गन्ना खरीद कर ले आता था। पास के जंगल से चारा लाता था। कई टन जौ गेंहूं गुड़ और पौष्टिक आहार का इंतजाम किया गया। हाथी जमकर खाता। खाने के बाद जोर से चिंघाड़ भरता। उसकी आवाज आसपास के इलाको में सुनाई पड़ती थी। कुछ लोगो का दावा था कि हाथी की आवाज सचिवालय तक में सुनाई पड़ती है।
मतवाला हाथी देखते देखते राम खेलावन से ज्यादा मशहूर हो गया। उसके किस्से सरेआम होने लगे। इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी मंत्री ने हाथी पाला हो और उसे राजधानी लाने का साहस किया हो। ऐसा साहस तो राम खेलावन ही कर सकते थे। उन्होने अपने जीवन में दु:साहसिक काम किया है। राजनीति में आना भी एक तरह का दु:साहस है।
हाथी कुछ दिनों तक ठीक ठाक था। लेकिन बाद में उसके तेवर बदलने लगे। कई बार उसने खूंटा तोड़ाकर भागने की कोशिश की। बाद में उसे लोहे के खूंटे में बांधा गया। वह खूंटे के आसपास दूमता था। गुस्से में उसने हाथीखाने की छत गिरा दी। वह दिन भर चिंघाड़ता था। उसके चिंघाड़ की आवाज से कालोनी के लोग परेशान थे। लेकिन किससे शिकायत करे। यह वाकयां कई बार अखबारों में आया लेकिन उसे दबा दिया गया। सम्पादको को मैंनेज कर लिया गया। कुछ को घमकी दे दी गयी।
रविवार का दिन था। दफ्तर बंद थे। लोग खरीदारी और तफरीह के लिये गंज के पाश इलाके में जमा हुये थे। सड़के कारों से भरी हुई थी। इस दिन अमूमन अन्य दिनों से ज्यादा भींड़ होती थी। अचानक हाथी खूंटा तुड़ा कर भागा। रास्ते में जो कारें मिली उसे उलटकर रौदने लगा। सिविल लाइन में भगदड़ मच गई। कई लोग भागते हुये एक दूसरे पर गिर पड़े। कुछ लोग डर के मारे डिपार्मेनटल स्टोर में छिप गये। थोड़ी देर के लिये उस इलाके में जैसे जलजला आ गया हो। हाथी आक्रामक मुद्रा में आ चुका था। जो कुछ सामने आता उसे पांव से रौदता फिर सूंढ़ का इस्तेमाल करता। चारो ओर खबर फैल चुकी थी कि मंत्री जी का हाथी बौंरा गया है।
पुलिस को खबर मिली। उसकी गाडियां दौड़ने लगी। पुलिस के साथ फायरब्रिगेड की गाड़ियां थी। उनके सायरन बज रहे थे। सायरन की आवाज सुनकर हाथी जोर से चिंघाड़ने लगता था। किसी और का हाथी होता तो पुलिस उसे दांग देती। यह मामूली हाथी नहीं मंत्री जी का मतवाला हाथी था। किसी तरह हाथी को दोब कर बड़े मैदान में पहुँचाया गया।
राजधानी में हाहाकार मचा हुआ था। राम खेलावन शहर से बाहर थे। पी. ए. ने उन्हे खबर दी और सारी बाते तहफसील से बतायी। यह भी कहा कि वह जहाँ हैं वहीं रूके रहे। यहाँ का माहौल ठीक नहीं है।
यह सुनकर राम खेलावन की चुर्की रेंड़ गयी। उन्होने इस तरह के विपत्ति की कल्पना नहीं की थी। अगर उन्हे पता होता कि हाथी इस तरह का गुल खिलायेगा तो उसे गाँव भेज देते।
उनके बंगले को मीडिया वालो ने घेर लिया था। चारो ओर कैमरे चमक रहे थे /लेकिन जबाब देने के लिये मंत्री जी मौजूद नहीं थे। वह जहाँ कहीं थे वहाँ परेशानहाल थे। सोच रहे थे किस मनहूस घड़ी में उन्होने हाथी को राजधानी में लाने का निर्णय लिया। उनकी मति मारी गयी थी। उन्हे डर लग रहा था कि कहीं हाईकमान उनका मंत्री पद न छीन ले। उनके मन में बहुत बुरे ख्याल आ रहे थे। जबसे वे मंत्री हुये है उनके खिलाफ एक गुट षड़यंत्र कर रहा था। कई बार हाईकमान के पास उल्लूल जूलूल शिकायते पहुँचा चुका था।
राम खेलावन का पी. ए. बहुत चतुरसुजान था,वह घाघ किस्म का आदमी था। वह कई मंत्रियो का पी. ए. था। कई मंत्रियों के गड्ढे से निकाल चुका था। इस हिकमत के नाते उसने अकूत दौलत हासिल कर ली थी। कई शहरों में उसकी जमीने इमारते और पेट्रोल पम्प थे। नौकरशाहो से उसके मधुर रिश्ते थे। मीडिया में उसकी पैठ थी। सरकार किसी की हो वह अपने लिये मुफीद जगह खोज लेता था।
मंत्री जी का हाल मीडियाकर्मियों से भरा हुआ था। उधर अस्पतालों में घायलों की भर्ती की जा रही थी। डाक्टर मलहम पट्टी में लगे हुये थे। माहौल बहुत तनावपूर्ण हो गया था, टेलीफोन से खबरे आ रही थी। हाईकमान ने उन्हे तुरंत याद किया था। राम
खेलावन अज्ञात जगह में छिपे हुये थे। छिपने की जगह सिर्फ पी. ए. को मालूम थी। पी. ए. एक एक को अपने कक्ष में ले जाकर समझा रहा था। उन्हे कई तरह के प्रलोभन दे रहा था। मीडियाकर्मी दूध के धुले हुये नहीं थे। उनका इतिहास पी. ए. को पता था। कुछ देर में भींड़ बंगले से विदा होने लगी। इस प्रवंधन में रात के बारह बज चुके थे।
हाथी की जगह खाली थी। हाथी बवाल मचाकर मैदान में आराम फरमा रहा था। उसे बेहोशी की सुई लगा दी गयी थी। एक बजे रात को हाँफते डांफते पिछले दरवाजे से राम खेलावन चोर की तरह दाखिल हुये। उन्होने पी. ए. से विस्तार से जानकारी ली। पी. ए. ने उन्हे आश्वस्त किया कि उसने सब कुछ मैंएज कर लिया है। अखबार मे6 खबर जरूर छपेगी लेकिन उसका ज्यादा असर नहीं होगा।
यह खबर अखबार के पहले पेज की खबर होनी चाहिये लेकिन यह चौथे पेज पर नामालूम ढ़ग से प्रकाशित की गई थी। हाँ एक अड़ियल सम्पादक ने सम्पादकीय में यह जरूर लिखा था कि वन्य संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत वन्य जीवों को पालना गैरकानूनी है।
कानून के खिलाफ काम करना उसकी धज्जियां उड़ाना मंत्रियों का जन्म सिद्ध अधिकार है। राम खेलावन इसके अपवाद नहीं थे। राजनीति में नियम तोड़ने के लिये ही बनाये जाते है। अगर नियम के मुताबिक काम किये जाय तो सूबे का कायाकल्प हो जाय। लेकिन ऐसा नहीं होगा। कम से कम राजनीति में इस तरह की कोई संभावना नहीं है।
राम खेलावन को रात भर मुश्किल से नींद आयी थी। उसके लिये राम बाण औषधि दारू थी जो काफिर बचपन से उनके मुँह लगी हुई थी। इस आपातकाल में उसने उनका खूब साथ दिया। भोले शंकर का नाम लेकर सोये और सुबह चैतन्य होकर उठे।
हाईकमान अपने आफिस में थे। उनके माथे पर चिंता की रेखाये साफ साफ दिखाई दे रही थी। उन्हे देखते ही बोल पड़े। आईये मंत्री जी। कहाँ थे ?
-सर मैं क्षेत्र में गया था।
-आपने तो खूब तमाशा किया और पार्टी की साख को खतरे में डाल दिया।
खेलावन ने आंव देखा न तांव दन्न से हाईकमान के चरणों में बिछ गये। माफ कर दीजिये सर मुझसे बहुत बड़ी गल्ती हो गयी।
उन दोनो के बीच एक लम्बा सा सन्नाटा था। हाईकमान कुछ सोच रहे थे। राम खेलावन के लिये एक एक पल भारी था। जैसे उन्हे फांसी पर चढ़ाये जाने का हुकुम जारी होनेवाला हो।
राम खेलावन के उथल-पुथल मची हुई थी। उन्होने हाईकमान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। बकरी चिंकवा के हवाले हो चुकी थी।
-- राम खेलावन।
--जी सरकार।
--आप सूबे को छोड़ कर कुछ दिनो के लिये नेपाल चले जाईये। फिर देखते है क्या हो सकता है।
हाईकमान ने यह फैसला सहज नहीं लिया था। उनकी भी साख दाँव पर थी।
खेलावन को अस्थायी राहत तो मिल गयी थी लेकिन भविष्य में उनके साथ पार्टी क्या व्यवहार करेगी यह अनिश्चित था। यह कम नहीं था कि वह पद पर बने हुये थे। राजनीति में कब क्या हो जाय इसके बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। पार्टी को बचाने के लिये कठोर फैसले किये जाते है। यहाँ सवंध मायने नहीं रखते। सियासत बहुत क्रूर चीज होती है। लोग पार्टी को बचाने के लिये अपने लोगो को बलि पर चढ़ा देते है। खेलावन का हाईकमान से कोई रक्त सम्वध नहीं थी। वह हाईकमान के बनाये गये मोहरे थे। और कभी भी पार्टी के हित के लिये खेले जा सकते थे।
राम खेलावन भरे कदमों से बंगले से लौटे और अचानक थक गये। लगा उनके सिर पर कई मन का बोंझ लदा हो। वे घप्प से बिस्तर पर गिर पड़े। अब काबा गालिब किस मुँह से जायेगे।
उधर हाथी पगलाया हुआ था। उसे गाँव भेजना था। उसके दवा-दारू की व्यवस्था करनी थी। इसी बीच सुमेर ससुराल चले गये।
वह इस बात से चिंतित थे कि उनके अचानक छुट्टी जाने पर खूब चर्चा होगी। उनके विरोधी सक्रिय हो जायेगे। उनके खिलाफ अभियान तो चलते रहते थे। उनके सामने कोई विकल्प नहीं था। हाईकमान के आदेश की अवमानाना करने का साह्स नहीं था। पार्टी से निकलने के बाद वह पलिहर के बानर हो जायेगे। उन्होने सोचा जो भी हो रहा है उसे स्वीकार करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। हाईकमान को पटाकर रखना जरूरी है।
उन्होने नेपाल के किसी बड़े शहर का चुनाव नहीं किया। वह एक छोटे से नामालूम शहर तानसेन पहुंचे। तानसेन में कोई भींड भाड नहीं रहती। गर्म्री और जाड़े में एक सा मौसम रहता है। जब आदमी अवसाद में रहता है तो निर्जन जगहो का चुनाव करता है। नेपाल के शहर काठमांडू और पोखरा बहुत व्यस्त शहरों में शुमार है। जब से उनके ऊपर विपत्ति का पहाड़ टूटा है वे तनहाई में रहना ज्यादा पसंद करने लगे थे। इसलिये अज्ञातवास के लिये तानसेन उपयुक्त जगह थी।
तानसेन नेपाल के पालपा जनपद का एक प्राचीन नगर है। एक जमानें में वह व्यवसायिक केंद्र रहा है लेकिन जब से नेपाल में आधुनिकता का आगमन हुआ पुराने केन्द्र टूटते गये। उनकी जगह पर नये केंद्र स्थापित हुये।
तानसेन ऊचाई पर बसा हुआ नगर है। राम खेलावन ने एक होटल में अपना बोरियां-बिस्तर उतारा और डबल बेड पर पसर गये। कमरे में पंखा नहीं था। उन्होने वेटर को बुलाकर शिकायत की। वेटर ने कहा। सर यहाँ पंखे की जरूरत नहीं होती।
उन्होने सामने की खिड़की खोल दी। उन्हे छोटे छोटे क्यारियों की तरह खेत दिखाई
देने लगे। जैसे किसी ने पेंटिंग टांग दी हो। खिडकी से हवा का खुशगवार आकर उन्हे भिगो गया। इस हवा में बारिश की बूंदें शामिल थी। वेटर से उन्होने घूमने की जगहों के बारे में पूंछा।
सुबह हल्की सी ट्रेकिंग करके श्रीनगर पार्क पहुंचे। यह पार्क तानसेन का बेहतरीन पार्क है। इसके आसपास जंगल हैं। यहाँ लोग पिकनिक मनाने आते है। वे पार्क के एक कोने में पहुँचकर हिमालय के शिवालिक पहाड़ियों के देखने लगे। धूप से पहाड़ियों में कई रंग भर गये थे। उनके ऊपर बादलों के दस्ते उड़ रहे थे। बादलों में कई तरह के रंग थे। जिसमें लाल रंग प्रमुख था। अचानक वह भावुक हो उठे और गाने के लिये उनके होठ गोल होने लगे। उन्हे कोई पुराना गीत याद आया। जब वह नाच में थे अक्सर इस गीत की फरमाइस आती थी। यह तीसरी कसम का गीत था। सजनवां बैरी हो गये हमार। चिठियां हो तो सब कोइ बांचे भाग्य न बांचे कोय। करमवां बैरी हो गये हमार।
कभी कभी कोई गीत ऐन मौके पर याद आते है और मन के भाव को अभिव्यक्त कर देते है। इससे दिल को थोड़ा सा सूकून मिल जाता है। यह सूकून स्थायी नहीं होता।
राम खेलावन हारे हुये योद्धा लग रहे थे। उनका साहस छींज रहा था। वे पानी के प्रवाह को रोकने के लिये मेंड़ की जगह खुद लेटे हुये थे। पानी उनके ऊपर से बह रहा था।
वे जानने लग गये थे कि सियासत बड़ी कुत्ती चीज होती है। हमे अपनी आत्मा को बेचना पड़ता है तभी कुर्सी बच पाती है। तानसेन का प्रवास मंथन का प्रवास था। जब राजनेता थक जाते है तो वह इस तरह के ठिकाने खोजकर आत्ममंथन करते है। फिर नई ब्यूह रचना के साथ प्रकट होते है। राम खेलावन तो अपना निष्कासन झेल रहे थे। अमूमन नौकरशाहों को दंड स्वरूप लम्बे अवकाश पर भेज दिया जाता है या प्रतीक्षा श्रेणी में डाल दिया जाता है। वे अपनी किस्मत को रोते रहते है। इस तरह की अस्थायी सजायें औकात को बताने के लिये दी जाती है।
दूसरे दिन राम खेलावन तानसेन दरबार देखने गये। राणाओं के शासन-काल में यह दरबार बहुत ऐतिहासिक था। अब यह धीरे धीरे खंडहर में तब्दील हो रहा था। उसके भब्यता की कल्पना सहज की जा सकती थी। इस खंडहर को देखकर राम खेलावन वियाबान में चले गये।
उन्हे नींद मुश्किल से आती थी। वह अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंन्तित थे। उनके प्रान कुर्सी में बसे हुये थे। अच्छी जगह का मजा आदमी को तभी आता है जब वह निश्चिंत हो। वरना सारे नजारे फिजूल लगने लगते है।
दूसरी चिंता उन्हे मतवाला हाथी को लेकर थी। उसके बौराहट में कमी नहीं आ रही थी। दिन ब दिन वह हिंसक होता जा रहा था। सोखाई-ओझाई के बाद उसके स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आ रहा था। उसे लोहे के सींकड़ में बांधा गया था। जिसे वह तुड़ाकर
भाग जाता था। पूरे जवार में हल्ला मच जाता था। लोग अपने बचाव के लिये लाठी-भाला लेकर दौड़ते थे। यह तमाशा एक दो दिन नहीं रोज होता था। वह आसपास के गाँव में पहुँचकर तोड़-फोड़ करता था। खूब जोर से चिंघाड़ता था। रात के पहर में उसकी आवाज डरावनी लगती थी। वह हाथी नई राक्षस लगता था। उसके कारण बच्चों का स्कूल जाना बंद हो गया था। पीलवान का उसपर कोई नियन्त्रण नहीं रह गया था। वह उसकी कोई आज्ञा नहीं मानता था। कई बार वह हाथी के चपेट में आने से बचा था /
राम खेलावन को तानसेन की कई जगहे देखनी थी। लेकिन वह दूसरी मन:स्थिति में थे। कुछ दिनों बाद उन्हे तानसेन के नजारे बिरानें लगे थे। उनके अज्ञातवास की अवधि खत्म होनेवाली थी।
सुमेर ने उन्हे फोन पर बताया कि उन्हे लेकर इलाके में अफवाह फैली हुई है कि उन्हे मंत्री पद से हटा दिया गया है,इधर हाथी बौराया हुआ था और दूसरी ओर उनको लेकर तमाम तरह की बुरी खबरे फैली हुई थी। जाये तो जाये कहाँ।
बौराया हाथी अच्छे हाथी का
विलोम होता है
बुरे महावत इस बात को नहीं जानते
इसलिये हाथी के गुस्से का शिकार
हो जाते हैं
जिस हाथी को लेकर खेलावन से सपने देखे थे वह टूट रहा था। हाथी खरीदना उनके जीवन की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा थी। लेकिन इस महात्वाकांक्षा का अंत इतना दारूण होगा इसकी कल्पना खेलावन ने कभी नहीं की थी। उन्होने सोचा राजधानी जाने से पहले हाथी का हालचाल ले ले। अगर वह नहीं सुधरता तो उसे गोली मरवां देगे। आखिर एक साथ कई मोर्चे पर अकेले कैसे लड़ सकते हैं। लोग हाथी के साथ उनका मजाक उड़ा रहे थे। बहुत चले थे हाथी पालने। हाथी पालना हंसी खेल नहीं है। जितने मुँह उतनी बाते।
अपना मुँह छिपाते वह रात को गाँव पहुंचे। रात में ही अपने दोस्त सुमेर को बुलाया। खेलावन पुराने महावत थे। सोचा एक बार हाथी पर चढ़कर देख ले। सुमेर ने कहा। मीता यह काम मत करना वह बौराया हुआ है। कोई ऊंच-नीच हो जायेगा तो पछताना पड़ेगा। वह किसी को नहीं चींन्हता। आपका अभ्याश छूट गया है। लेकिन राम खेलावन को अपनी पीलवानी पर भरोसा था।
हाथी जंगल में था। वह पेड़ की डाल तोड़ रहा था। खेलावन ने एक हाथ में अंकुश और दूसरे हाथ में भाला थामा और हाथी पर विजय करने के लिये निकल पड़े। वह सामान्य मूड में नहीं थे। उनके नंथुने फड़क रहे थे। वे सांप की तरह फुंफकार रहे थे के। उनका यह रूप देखकर सुमेर डर गये थे। जैसे कोई अघटित घटित होनेवाला हो। उनके
पास सत्ता का नशा था। जो छूटने के बाद दिमाग पर तारी था। उनके भीतर जमानें भर का गुस्सा जमा हो गया था,वह सोच रहे थे कि जिस हाथी के लिये दुनियां भर की जलालते सही थी। उसके नाते उन्हे ये दुर्दिन पड़ रहे हैं।
जैसे वह हाथी के समीप पहुंचे। हाथी उन्हे देखकर चिंघाड़ने लगा। वे गुस्से में बोले। थम। थम मतवाला थम-थम।
मतवाला जैसे उन्हे पहचान न रहा हो। उसके माथे में मद जमा हो गया था। उन्होने आंव देखा न तांव बिजली की फुर्ती से उसके पीठ पर सवार हो खा गये और बर्छे से उसके मस्तक पर प्रहार कर रहे थे। ससुर के नाती मैंने इसीलिये तुम्हे पाल-पोस कर बड़ा किया था कि तुम मेरा जीना हराम कर दोगे। मैंने तुम्हे बच्चे की तरह रखा। अच्छा खाना पीना दिया।
हाथी कुछ भी नहीं सुन रहा था। उसके सिर पर काल सवार था। वह हूंफ रहा था। उसके चिंघाड़ने की आवाज तेज हो रही थी। उसने अपने सूंढ़ से पकड़कर राम खेलावन को जमीन पर पटका और उनके ऊपर अपने पांव रख दिये। राम खेलावन के भीतर से
एक लम्बी चींख निकली और देह शांत हो गयी। जिस हाथी के पीठ पर सवार होकर वे सता के शिखर पर पहुंचे थे उसी हाथी ने उन्हे रौद डाला।