महिलाएं फिल्म निर्माण में सक्रिय / जयप्रकाश चौकसे

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महिलाएं फिल्म निर्माण में सक्रिय
प्रकाशन तिथि :12 अप्रैल 2017


प्रियंका चोपड़ा और अनुष्का शर्मा लोकप्रिय सितारा हैं और सामाजिक सोद्‌देश्यता की मनोरंजक फिल्मों का निर्माण भी करना चाहती हैं। अनुष्का शर्मा 'एनएच टेन' और 'फिल्लौरी' बना चुकी हैं और अब मराठी भाषा में फिल्में बनाने के साथ पंजाबी व बंगाली भाषा में भी फिल्में बनाना चाहती हैं। प्रियंका चोपड़ा द्वारा निर्मित एवं राजेश मापुस्कर द्वारा निर्देशित फिल्म 'वेंटीलेटर' को पुरस्कारों से नवाज़ा गया है और वे दोनों अन्य फिल्मों की संभावनाओं पर चर्चा कर रही हैं। सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर खान, अक्षय कुमार और अजय देवगन भी नियमित रूप से फिल्म निर्माण करते आ रहे हैं। हमारे महिला सितारे पुरुष सितारों से अधिक साहसी फिल्म निर्माता है, क्योंकि वे अनछुए विषयों को फिल्माना चाहती हैं। अक्षय कुमार फिल्मों में पूंजी निवेश और उसके जोखिम के प्रति सजग हैं, अत: वे बहुत सोच-विचार करके, आर्थिक तराजू पर तौलकर फिल्म निर्माण में पूंजी निवेश करते हैं। फिल्म उद्योग के लिए यह शुभ संकेत है कि फिल्मों से पैसा कमाने वाले सितारे फिल्म निर्माण में भी जोखिम उठाना चाहते हैं गोयाकि वे जिस नदी से पानी पी रहे हैं, उस नदी की धारा के बहते रहने के लिए भी काम कर रहे हैं। ये सब विचारवान लोग धनसंचय से अधिक उसके प्रवाह को बनाए रखने का जतन कर रहे हैं। धन पर सांप बनकर बैठने को शैलेंद्र की पंक्तियों से समझ सकते हैं, 'थम गया पानी, जम गई काई, बहती नदिया ही साफ कहलाई।' यह गीत विजय आनंद की 'काला बाजार' के लिए लिखा गया था।

राज कपूर और देव आनंद ने युवा अवस्था में अपनी सितारा हैसियत जमने के साथ ही फिल्म निर्माण में पूंजी निवेश प्रारंभ कर दिया था। राज कपूर मात्र बाईस वर्ष के थे जब उन्होंने फिल्म निर्माण प्रारंभ किया और चौबीस की वय में वे एक स्टूडियो की स्थापना करने में सफल हुए। जब देव आनंद के पैर ठीक से जमे भी नहीं थे तब ही वे अपने भाइयों चेतन आनंद व विजय आनंद के साथ फिल्म निर्माण की योजना बनाने में लग गए थे। इस तरह की विचार प्रक्रिया के कारण ही भारत की प्रथम अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली 'नीचा नगर' से प्रशंसित 'गाइड' तक की यात्रा संपन्न हुई। इनके समकालीन दिलीप कुमार ने केवल 'गंगा-जमुना' बनाई जो क्लासिक है।

प्रियंका चोपड़ा का एक पैर हॉलीवुड मेें तो दूसरा भारतीय फिल्म में जमा है अत: यह आशा कर सकते हैं कि वे पूर्व व पश्चिम के बीच फिल्म सेतु का निर्माण कर पाएंगी। पाकिस्तान में जन्मे फिल्मकार माजिद मजीदी भी अंतरराष्ट्रीय फिल्में बनाते हैं गोयाकि यह संभावना भी है कि राजनीतिक स्वार्थवश रचीं, सुलगतीं सरहदों पर सृजन का इंद्रधनुष सारी संकीर्णता के ऊपर आशा के प्रतीक के रूप में मौजूद होगा। सात रंगों की यह रचना इतनी मजबूत होती है कि नफरत के तूफानों से टकरा सकती है। इसके साथ ही यह इतनी कोमल भी होती है कि संकीर्णता की एक बुरी नज़र से ऐसे गायब होती है जैसे कभी थी ही नहीं।

एक महान विद्वान का कथन है कि हर पुरुष में आधी नारी, आधा पुरुष और आधा शैतान होता है। हरिवंश राय बच्चन का कथन है कि उनके भीतर छुपी स्त्री ने ही उनसे कविताएं लिखवाई हैं। कुछ जुदा अंदाज में पवन करण की किताब का नाम है, 'स्त्री मेरे भीतर।' यह विरोधाभास देखिए कि सारे सृजन का केंद्र नारी है परंतु यथार्थ जीवन में वही सबसे अधिक दंडित है, सबसे अधिक शोषित है। संभवत: धरती और स्त्री समान रूप से रौंदी जाती है। नारी के दर्द पर छातीकूट करते हुए उसे दबाए रखने की स्थायी मुद्रा में आप पुरुष को मुस्कराते हुए तस्वीर खिंचाते देख सकते हैं।

यह भी गौरतलब है कि पुरुष केंद्रित समाज व सिनेमा में सबसे अधिक सफल फिल्म 'मदर इंडिया' है और पर्ल एस. बक की 'द गुड अर्थ' पर भी फिल्म बनी है। भारत में अरुणा राजे की 'रिहाई,' अमिताभ बच्चन अभिनीत 'पिंक' व हाल ही में प्रदर्शित 'आरा की अनारकली' प्रभावोत्पादक फिल्में सिद्ध हुईं। बॉक्स ऑफिस महत्वपूर्ण है परंतु वह निर्णायक मूल्य नहीं है। यह सच है कि बाजार के कोड़े पर हम सबको तरह-तरह नाचकर दिखाना यहां पड़ता है परंतु जीवन मूल्य और आदर्श ही इस संसा को बचाए रखते हैं। पाठशालाएं परीक्षा पास करने की कीमिया सिखाती हैं, वे जीवन मूल्य नहीं पढ़ातीं, क्योंकि उसका कोई पाठ्यक्रम ही नहीं है। परिवार की पाठशाला ही असल ज्ञान देती है।

प्रियंका चोपड़ा और अनुष्का शर्मा से अधिक सफल एवं सम्पन्न हैं दीपिका पादुकोण परंतु उनकी कोई मंशा नहीं है कि वे फिल्म निर्माण में आएं। हर व्यक्ति को अपना रास्ता चुनने का अधिकार है। विभिन्न किस्म की राजनीतिक आंधियों में भी आम आदमी अपनी जगह बनाए रखता है और सारी प्रगति साहसी मनुष्यों के अपने विश्वास पर अडिग रहने से हुई है। मनुष्य की यात्रा में सड़कों पर बने स्पीड ब्रेकर की तरह होती है सरकारें। मनुष्य है कि राहों के दिए आंखों में लिए चलता जाता है।