महिला केंद्रित फिल्लौरी और अनारकली / जयप्रकाश चौकसे

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महिला केंद्रित फिल्लौरी और अनारकली
प्रकाशन तिथि :13 मार्च 2017


चौबीस मार्च को अनुष्का शर्मा अभिनीत एवं निर्मित फिल्म 'फिल्लौरी' तथा स्वरा भास्कर अभिनीत 'अनारकली ऑफ आरा' का प्रदर्शन होने जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जा चुका है परंतु पवन करण के विचार से सहमत हूं कि यह कम से कम एक महीना तो मनाया जाना चाहिए। भारत में जन्मी और कनाडा में निवास करने वाली फिल्मकार दीपा मेहता की तीन फिल्में 'द अर्थ,' 'फायर' एवं 'वॉटर' प्रतीकात्मक ढंग से कहती हैं कि महिला ही 'धरती', 'अग्नि' एवं 'जल' है। यह प्रसंग अलग ही है कि तथाकथित अाध्यात्मिक एवं गणतंत्र का ढिंढोरा पीटने वाले भारत में ही 'वॉटर' की शूटिंग नहीं करने दी गई। अनुष्का शर्मा द्वारा निर्मित पहली फिल्म 'एनएच टेन' सफल एवं सार्थक फिल्म सिद्ध हुई थी। अत: इस फिल्म से बहुत उम्मीद की जा सकती है।

'फिल्लौरी' का कथा आधार आपको राजस्थान के विजयदान देथा की कथा की याद दिलाता है, जिससे प्रेरित 'पहेली' नामक फिल्म अमोल पालेकर ने बनाई थी। इसी कथा से प्रेरित फिल्म मणि कौल पहले ही बना चुके थे। एक बारात एक पेड़ के नीचे विश्राम कर रही है और पेड़ पर बैठा भूत दूल्हे के रूप में दुल्हन के पास जा पहुंचता है। उस भूत के साथ दुल्हन बहुत खुश है। उसे सत्य का ज्ञान नहीं है। बाद में दूल्हा भी घर लौटता है। महिला के साथ कौन रहे इसका फैसला करने वे एक चरवाहे के पास जाते हैं, जो अपनी सहज बुद्धि का प्रयोग करके भूत को बोतल में बंद कर देता है। इस फिल्म के एक प्रसंग में ब्याहता जिसका पति धन कमाने विदेश गया है, कहती है कि मंदिर जाकर उस पति की वापसी की प्रार्थना ही क्यों करूं, जो पैसे के लोभ में चला गया है। ईश्वर से वह क्यों मांगू जो समाज और पति नहीं दे पाया।

'फिल्लौरी' में प्रवासी भारतीय विवाह के लिए वतन लौटा है परंतु जन्म-पत्री में मांगलिक दशा होने के कारण उसे पहले एक वृक्ष से विवाह करना होता है और इस वृक्ष पर एक असफल प्रेम की शिकार महिला का भूत बैठा है। मांगलिक दशा होने के कारण वृक्ष से विवाह प्रचलित कुरीति है और भारत के अत्यंत सफल महानायक ने अपनी होने वाली बहु के मांगलिक होने के कारण उसका विवाह पहले वृक्ष से ही कराया था। इस तरह के पढ़े-लिखे, अमीर एवं प्रसिद्ध लोग कभी उस बेचारे वृक्ष का हाल जानने वापस नहीं जाते। संभवत: वह सूखकर गिर पड़ता हो और उसकी लकड़ी किसी गरीब के चूल्हे में जल रही होती हो, जिसके पास पकाने के लिए मात्र एक मुट्‌ठी आटा है। अगर सरकारी प्रचार सही है, तो अब लकड़ी के चूल्हे के बदले तमाम घरों में गैस सिलेंडर पहुंच गए हैं और इन सिलेंडरों की आंच पर वोट भूने जा रहे हैं।

24 मार्च को प्रदर्शित होने वाली दूसरी फिल्म निर्देशक अविनाश दास की स्वरा भास्कर अभिनीत 'अनारकली ऑफ आरा' है। यह अनारकली बिहार के गांवों और कस्बों में अपनी प्रस्तुती देकर अवाम का मनोरंजन करती है। उसके कार्यक्रम में द्विअर्थी संवाद भी हैं। इस तरह के कार्यक्रम का कुछ अनुमान आप शैलेंद्र-रेणु की 'तीसरी कसम' से लगा सकते हैं परंतु यह कार्यक्रम नौटकी से सर्वथा अलग होता है, जिसमें आपको सेट या प्रॉप की सुविधा नहीं है। सारा दारोमदार कलाकार पर टिका रहता है। यह एकल व्यक्ति तमाशा है। इस समूह की स्टार अनारकली की भिड़ंत हो जाती है एक कस्बाई दादा से। चुनाव के समय मतदाताओं को जानवरों की तरह हाका लगाने वाले बाहुबली विगत दो दशकों में बहुत अधिक दिखाई दे रहे हैं। इसके बाद घटनाएं तीव्र गति से घटित होती है और पौरुषीय दंभ में भरे उस बाहुबली को अनारकली पराजित कर देती है। यह अनारकली भारतीय जनमानस में गहरे पैठी हुई है। लाहौर में अनारकली बाजार भी है। इतिहासकारों का कहना है कि मुगल हरम में कोई अनारकली नामक स्त्री थी ही नहीं। यह पूरी तरह काल्पनिक पात्र है। के. आसिफ की मुगल-ए-आजम में मधुबाला ने यह भूमिका अभिनीत की थी। इस श्वेत-श्याम फिल्म की दो रीलें रंगीन थीं परंतु बाद में पूरी फिल्म को ही रंगीन किया गया। 'प्यार किया तो डरना क्या' गीत में बांदी अनारकली बादशाह अकबर पर भारी पड़ जाती है। प्राय: प्रेम-कथाओं में कोई न कोई शहंशा या शक्तिशाली व्यक्ति बाधा अवश्य डालता है। इन बाहुबलियों को विवाह से अधिक प्रेम से भय लगता है, क्योंकि प्रेम एक उजास है, जिससे अंधकार की शक्तियां भय खाती है। प्रेम अपने आप में अकाट्य तर्क है, जिसका कोई जवाब दकियानूसी के पास नहीं है। स्वरा भास्कर अत्यंत प्रतिभाशाली है और उन्हें अधिक अवसर मिलना चाहिए परंतु हर क्षेत्र से प्रतिभा निष्कासित हो चुकी है। अब तो बेचने की कला का ही जोर चलता है। सेल्समैन या सेल्स वीमैन इस बाजार युग के प्रतिनिधि हैं। संभवत: जेम्स जॉयस ने इसका अनुमान पहले ही लगा लिया था और उनकी यूलिसिस का नायक भी सेल्समैन है और पाइल्स का रोगी भी है। क्या राजनीतिक कुर्सियों के महत्व को जेम्स जायस ने लगभग दो सदी पहले ही भांप लिया था और इसीलिए उनके नायक को पाइल्स अर्थात भयंकर रोग है। वह बैठ ही नहीं पाता, इसलिए उसे बस चलते ही रहना है। एक फिल्म में गुलजार का गीत है, 'राहों के दिये, अांखों में लिए, राही तू चलता रह…।'