महिला पात्र: रजिया सुल्तान से 'रंगून' तक / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :20 दिसम्बर 2016
कंगना रनौट और रितिक रोशन का विवाद ठंडा पड़ गया है अौर खबर है कि मामला अदालत में जा पहुंचा है। हिंदुस्तानी अदालतों के तंदूर में धीमी आंच पर पकने में एक उम्र लग जाती है। श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास 'राग दरबारी' में अदालती कार्यप्रणाली का सटीक विवरण प्रस्तुत है। अगर भारत महान की प्रतिनिधि रचनाएं रामायण और महाभारत है तो आजाद भारत को 'राग दरबारी' प्रस्तुत करता है अौर इन तीनों किताबों को सिलसिलेवार पढ़ने पर भारत नामक रहस्य की परतें खुलती जाती हैं और आप चाहें तो तीनों को पढ़ने के कष्ट से बचकर केवल पंडित जवाहरलाल नेहरू की 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' पढ़ लें। इनके साथ ही हिंदुस्तानी सिनेमा भी इस काम में आपकी मदद करता है।
कुछ दशकों से महिला स्वतंत्रता का मुद्दा सुर्खियों में रहा है। इस मामले पर भी हम नायिकाओं के बदलते हुए स्वरूप से काफी कुछ समझ सकते हैं। चौथे दशक में शांताराम की एक फिल्म में चौदह सताई हुई औरतें अपना एक दल बनाकर अन्याय के खिलाफ लड़ती हैं। वे हिंसा का भी इस्तेमाल करती हैं। अब विशाल भारद्वाज की कंगना रनौट अभिनीत 'रंगून' में नायिका का चरित्र-चित्रण भी दकियानूसी नारी छवि पर हथौड़ा मारता है। वह हाथ में हंटर लिए अन्याय का प्रतिरोध करती है। यह चरित्र-चित्रण चौथे दशक में प्रस्तुत नाडिया अभिनीत 'हंटरवाली' की याद ताजा कर सकता है। ज्ञातव्य है कि ऑस्ट्रेलिया में जन्मी मैरी एवान्स को ही होमी वाडिया ने नाडिया के नाम से फिल्मों में भूमिकाएं दीं। वह भी शांताराम की चौदह 'डकैत' नारियों की तरह अन्याय के खिलाफ लड़ती है। नाडिया की प्रशंसा वे लोग भी करते थे, जो अपने पारिवारिक जीवन में महिलाओं के खिलाफ अन्याय करते थे। नारी भूमिकाओं में मीना कुमारी अभिनीत छोटी बहू का चरित्र गुरुदत्त की 'साहब, बीबी अौर गुलाम' में अनोखा है। वह अपने अय्याश ठरकी जमींदार पति को रिझाने के लिए शराब पीना शुरू कर देती है और पति के सद्राह पर आने तक वह स्वयं शराब की आदी हो जाती है। परदे पर इस 'दर्द की देवी' की नशाखोरी सामंतवादी मूल्यों को कमोबेश वैसे ही ध्वस्त करने का प्रयास करती है जैसे श्याम बेनेगल की 'अंकुर' के अंतिम दृश्य में बच्चा करता है। कानूनी तौर पर सामंतवादी व्यवस्था भंग कर दी गई है और उसकी ढहती हुई इमारत को इंदिरा गांधी ने 'प्रिवीपर्स' बंद करके कमोबेश जमींदोज ही कर दिया था परंतु सामंतवादी सोच कभी नहीं खत्म होने वाली मानसिकता है और आज के सत्तासीन लोग भी सामंतवादी विचार वाले लोग हैं। मोहम्मद तुगलक की तरह करेंसी बदलने वाले आज भी हैं। हमारे घपलों के लंबे इतिहास में करेंसी घपला नए अध्याय की तरह जुड़ गया है, क्योंकि अब काला धन अपने नए स्वरूप में आ पहुंचा है और नए नोटों की नकल भी बाजार में प्रवाहमान है। इसे आतंकवाद के खिलाफ कदम के भ्रामक प्रचार पर एक ताजे हमले ने ध्वस्त कर दिया है। दरअसल, विकसित टेक्नोलॉजी और नए हथियार व्यवस्था के हाथ से पहले ही आतंकवादी हाथों में पहुंच जाते हैं।
कंगना रनौट जितनी सनकी हैं, उतनी ही प्रतिभाशाली भी हैं और अपने यथार्थ जीवन में भी हंटरवाली ही हैं। इसलिए विशाल भारद्वाज की 'रंगून' अगले वर्ष प्रदर्शित होने वाली फिल्मों में सबसे अधिक प्रतीक्षित फिल्म है।
इस तथ्य पर कम ही गौर किया गया है कि लीक से हटकर और फॉर्मूले के बाहर आकर बनाई गई फिल्मों ने ही अधिकतम आय अर्जित की है। हमारी सबसे सफल फिल्म 'मदर इंिडया' की नायिका अपने गुमराह बेटे को गोली मार देती है। 'आवारा' आधुनिकता के लिबास में सामंतवादी प्रवृत्ति वाले जज रघुनाथ की कथा है, जो दकियानूसी विचार के कारण अपनी गर्भवती पत्नी को निष्कासित कर चुका है। गुरुदत्त की 'प्यासा' की नायिका एक पेशेवर औरत है। राजेश खन्ना अभिनीत शक्ति सामंत की 'अमरप्रेम' की नायिका भी बदनाम बस्ती की नागरिक है। इसी तरह आक्रोश की छवि वाले नायक भी घिसी पिटी हुई लीक को छोड़कर कांटों भरी पगडंडी पर चलते हैं। 'तीसरी कसम' की हीराबाई भी नौटंकीवाली महिला है। 'देवदास' की चंद्रमुखी भी नाचने-गाने वाले पेशे की महिला है। वजय आनंद की 'गाइड' की रोजी भी उसी पेशे से आई हुई विलक्षण महिला है और कमाल अमरोही की रजिया सुल्तान भी घोड़े पर सवार युद्ध करने वाली स्त्री है। कंगना रनौट की एक विलक्षण फिल्म 'रिवॉल्वर रानी' थी। रोजी, रजिया सुल्तान, रिवॉल्वर रानी, हंटरवाली नाडिया की परम्परा की है कंगना रनौट की विशाल भारद्वाज निर्देशित 'रंगून।' इतना ही नहीं, माधुरी दीक्षित अभिनीत 'गुलाबी गैंग' भी इसी कड़ी की फिल्म है। आज भी भारतीय राजनीति में मायावती, ममता बनर्जी, सुषमा स्वराज अौर सोनिया गांधी सक्रिय हैं। सारी व्यवस्थाओं के महिला विरोधी होने के बावजूद महिलाओं ने इतिहास रचा है। घर की महिला भी अपने घर पुरुष की रिश्वत की कमाई को हाथ लगाने से इनकार कर दे तो केवल यही पहल कारगर हो सकती है। पाकिस्तान की शायरा सारा शगुफ्ता की पंक्तियां है, 'औरत का बदन ही उसका वतन नहीं, वह कुछ और भी है।' उनकी इस पंक्ति का अगला हिस्सा खाकसार का है 'मरदानगी का परचम लिए घूमने वालों, औरत जमीन नहीं, कुछ और भी है।'