महिला फिल्मकारों पर किताब / जयप्रकाश चौकसे

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महिला फिल्मकारों पर किताब
प्रकाशन तिथि : 17 अगस्त 2019


हार्पर कॉलिंस ने नंदिता दत्ता द्वारा भारतीय महिला फिल्मकारों पर लिखी किताब जारी की है। ज्ञातव्य है कि इस विषय पर निर्मला भुराड़िया द्वारा लिखी किताब 'कैमरे के पीछे महिलाएं' 1998 में प्रकाशित हुई थी। नंदिता दत्ता ने सई परांजपे, विजया मेहता, सिमी ग्रेवाल, अरुणा राजे और गोपी देसाई जैसे फिल्मकारों को अपनी किताबों में शामिल नहीं किया है, जबकि निर्मला भुराड़िया की किताब में इनकी फिल्मों का विवरण और समीक्षा शामिल की गई थी। अरुणा राजे की'रिहाई' से अधिक साहसी फिल्म किसी भी महिला फिल्मकार ने नहीं बनाई है।

बहरहाल, नंदिता दत्ता का कथन है कि महिला फिल्मकारों ने हमेशा स्वयं द्वारा भोगे यथार्थ को प्रस्तुत किया है, जबकि पुरुष फिल्मकार दूसरों द्वारा महसूस किए अनुभवों पर भी फिल्में बनाते हैं। नंदिता दत्ता ने इस बात को रेखांकित किया है कि इन फिल्मकारों के महिला होने से उनका काम कैसे प्रभावित होता है। फिल्मकार की हैसियत वही है जो एक लेखक की अपनी किताब पर होती है। एक फिल्म यूनिट में अधिकांश तकनीशियन पुरुष होते हैं और महिला फिल्मकार के आदेश पर काम करना उन्हें पसंद नहीं होता।

एक महिला फिल्मकार अपने कैमरामैन से सूर्योदय के दृश्य को शूट करने के लिए कहा तो उसने तकनीकी खराबी बताकर वह शॉट नहीं लिया। उस महिला फिल्मकार को अन्य सिनेमैटोग्राफर की सहायता लेनी पड़ी।

नंदिता दत्ता की किताब में फिल्मकार सोनाली बोस द्वारा लिखा अध्याय पाठक को हिला देता है। पाठक की आंखें नम हो जाती हैं। सोनाली की मां का निधन अस्पताल में हुआ था और डॉक्टर की लापरवाही के कारण मृत्यु हुई थी। उस समय सोनाली जोर से चीख पड़ी थी। उनके हृदय की वेदना भूकंप द्वारा धरती की छाती फटने के समान थी। सोनाली बोस की फिल्म 'लाइफ विद ए स्ट्रा' में कल्कि कोचलिन अभिनीत पात्र की मां की मृत्यु हो जाती है। सोनाली बोस ने अपने कलाकार और तकनीशियनों को अपनी बात विस्तार से समझाई और फिल्मकार का अनुभव ही जस का तस शूट किया गया। सोनाली बोस का पुत्र इशान छह महीने का था और वे शूटिंग के समय अपने पुत्र को स्टूडियो ले जाती थीं। उसे अपनी गोद में लिए ही उन्होंने निर्देशन किया। यहां तक कि सेट पर ही अपने पुत्र को अपना दूध भी पिलाया। स्टूडियो में पूरी यूनिट के सामने एक मां द्वारा अपने पुत्र को स्तनपान कराने का तथ्य पारम्परिक परिभाषाओं के परे जाता है। सोनाली बोस ने अपनी दो फिल्मों की शूटिंग उस समय भी जारी रखी जब उनके परिवार में दो सदस्यों की मृत्यु हुई थी। उनका पुत्र इलेक्ट्रिक रेज़र से दाढ़ी बना रहा था और रेजर से निकली एक चिंगारी ने उसकी कमीज जला दी और अस्पताल में इलाज करते समय ही 60 प्रतिशत त्वचा झुलस जाने के कारण मृत्यु हुई।

सोनाली बोस ने रेज़र बनाने वाली कंपनी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया परंतु वह केस हार गईं, क्योंकि रेज़र पर अत्यंत महीन अक्षरों में अंकित था कि आप अपने जोखिम पर इसे इस्तेमाल कर रहे हैं। बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियां अपना बचाव कर ही लेती हैं। भोपाल गैस त्रासदी के समय भी कंपनी नाम मात्र का मुआवजा देकर बच निकली थी। जब सोनाली बोस अमेरिका में रहती हैं तब उन्हें भारत की बहुत याद आती है। यह भावना इतनी तीव्र होती है कि वे पहली ही उड़ान से भारत आ जाती हैं। भारत में कुछ समय बिताने पर उन्हें अमेरिका की याद आती है और वे पहली उड़ान से अमेरिका चली जाती हैं। देशों के ही नहीं व्यक्तियों के अवचेतन के भी बंटवारे होते हैं। पाकिस्तान में उम्रदराज लोग लता मंगेशकर के गीत सुनकर अपने जन्मस्थान की याद में डूब जाते हैं। भारत में कुछ उम्रदराज लोग नूरजहां के गीत सुनकर अपने लाहौर में बिताए दिनों की यादों की जुगाली करते हैं।

आजकल सोनाली बोस, प्रियंका चोपड़ा, फरहान अख्तर और जायरा वसीम अभिनीत फिल्म 'द स्काई इज पिंक' नामक फिल्म बना रही हैं। ज्ञातव्य है कि दिल्ली रहने वाली एशा चौधरी ईश्वरीय कमतरी के साथ जन्मी थीं परंतु प्रेरणादायक भाषणों के लिए वे आमंत्रित की जाती थीं। मात्र 18 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, परंतु उनकी प्रेरणा से अनगिनत लोग लाभान्वित हुए। याद आता है फिल्म 'आनंद' का संवाद 'बाबू मोशाय जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए।' एशा के माता-पिता ने सोनाली बोस से प्रार्थना की कि वे उनकी बेटी से प्रेरित फिल्म बनाएं। स्मरण रहे कि इस फिल्म के कारण ही प्रियंका चोपड़ा ने सलमान खान की फिल्म 'भारत' में अभिनय करने से इंकार कर दिया था। प्रियंका 'मेरी कॉम' के जीवन से प्रेरित फिल्म कर चुकी हैं। अनुराग बसु की 'बर्फी' में प्रियंका ने ईश्वरीय कमतरी को जीने वाली युवती की भूमिका अभिनीत की थी। 'बर्फी' उनके श्रेष्ठतम प्रयासों में से एक है। 'चिल्ड्रन ऑफ लेसर गॉड' के प्रति प्रियंका चोपड़ा के मन में करुणा है।