महेश भट्‌ट बायोपिक की जरूरत है / जयप्रकाश चौकसे

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महेश भट्‌ट बायोपिक की जरूरत है
प्रकाशन तिथि :14 अप्रैल 2017


महेश भट्‌ट का कहना है कि 'सारांश,' 'अर्थ' या 'नाम' उनकी श्रेष्ठतम रचना नहीं है बल्कि उनकी सुपुत्री आलिया भट्‌ट उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना है। भारतीय सिनेमा के इतिहास में महेश भट्‌ट 'सारांश' के लिए दर्ज होंगे। क्या मोतीलाल नेहरू की श्रेष्ठतम रचना जवाहरलाल हैं और उनकी श्रेष्ठतम रचना इंदिरा गांधी हैं? मनुष्य पर उस कालखंड का बहुत प्रभाव होता हैं, जिसमें वह जन्मा और सक्रिय रहा। जलती हुई लकड़ियों या दहकते हुए कोयलों का क्या प्रभाव उस हांडी पर पड़ता है, जिसमें भोजन पक रहा है और रसोइये की भूमिका का क्या महत्व है? कभी-कभी जंगल में आग लग जाती है परंतुु उस आग पर भोजन नहीं पकता। पांडवों ने इंद्रप्रस्थ के निर्माण के लिए एक जंगल को नष्ट कर दिया था। किसी नष्ट वृक्ष या उस पर घरौंदा बनाने वाले किसी पक्षी का ही श्राप था, जिससे उनके पूरे वंश का विनाश हो गया।

सृजन और समाप्ति सतत जारी रहने वाली प्रक्रियाएं हैं और प्रवृत्तियों के निर्माण का श्रेय व्यक्ति से अधिक अन्य अनेक बातों पर निर्भर करता है। न तो जन्म ही किसी दास्तां का प्रारंभ है और न ही मृत्यु उसका अंत है। अधिक से अधिक यही कह सकते हैं कि मृत्यु पूर्वविराम नहीं वरन महज अर्धविराम है। इस तरह के विश्वास मृत्यु के दंश कम दर्दनाक कर देते हैं। महेश भट्‌ट को यह जरूर गौर करना चाहिए कि उनके दो विवाहों से जन्मे पुत्र उतने सफल नहीं हुए जितनी कि पुत्रियां- पूजा और आलिया। महेश भट्‌ट के पिता ने भी दो विवाह किए थे और अपने हिप्पी व रजनीश प्रभाव के दौर में महेश भट्‌ट ने स्वयं को अवैध संतान कहा था,जबकि उनके पिता के दोनों विवाह उस समय हुए थे, जब इस तरह के विवाह जायज माने जाते थे। यह आश्चर्य है कि एक दौर में उस तरह दो विवाह के खिलाफ खड़े महेश भट्‌ट ने स्वयं भी दो विवाह किए हैं। पृथ्वी की तरह विचार भी सतत घूमते रहते हैं और आप डंके की चोट पर यह दावा नहीं कर सकते कि कभी आपकी कही कोई बात अंतिम सत्य है। राजनीतिक दल भी जब विरोध में बैठते हैं तब किए गए अपने विरोध को सत्तासीन होते ही भूल जाते हैं। अब शराबबंदी नहीं करने की दलील उस उद्योग द्वारा उत्पन्न धन राशि के नाम पर दी जा रही है परंतु गोश्त के निर्यात से लंबा मुनाफा होता था, इसे नज़रअंदाज किया जा रहा है। दरअसल सारा खेल सहूलियत का है। सुविधाजनक झूठ और दुविधाजनक सत्य में फर्क होता है। इस वैष्णव देश में अधिकतम लोग मांसाहारी और शराबखोर हैं।

महेश भट्‌ट होने का अर्थ और उनके व्यक्तित्व का सारांश उनका लचीलापन रहा है, उनका सतत विकास होते रहना है। महेश भट्‌ट के आदर्श अौर मुकेश भट्‌ट का यथार्थ ही उनकी जोड़ी को विशेष बनाता है। उनके दफ्तर में जाने पर पहला कमरा महेश का है, जहां आप जोश को एक इंसान में तब्दील हुआ देखते हैं और दूसरा कक्ष मुकेश का है, जहां होश मंत्र की तरह जपा जाता है। परेशानी यह है कि आप कभी दूसरे कक्ष में पहले कक्ष से गुजरे बिना पहुंच नहीं सकते गोयाकि आदर्श बखाने बिना यथार्थ से रू-ब-रू नहीं हो सकते, चुनांचे मरे बिना स्वर्ग नहीं जा सकते।

बहरहाल, इस वक्त कथा का अकाल है। अत: महेश भट्‌ट का बायोपिक बनाया जा सकता है। उसमें प्रेम कथाएं हैं और रहस्य तथा रोमांच भी है। उन्होंने दीवालिये होने से दीवाली तक का सफल किया है बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि रोजे रखे हैं तो ईद भी मनाई है। भट्‌ट बंधुओं ने ही अनुराग बसु को अवसर दिया था और उन्हें ही महेश बायोपिक निर्देशित करने का आमंत्रण दिया जाना चाहिए। दरअसल, अनुराग बसु 'जग्गा जासूस' में आत्मलीन होते हुए फिजूल खर्च हो गए हैं, अत: अपने प्रथम स्कूल में उन्हें एक रिफ्रेशर कोर्स की आवश्यकता भी है। चार करोड़ बजट में फिल्म बनाने वाले भट्‌ट मदरसे से निकले अनुराग का जग अस्सी करोड़ तक फैल गया है। कोई अनुराग को स्मरण कराए कि 'मदरसा ए इश्क का इक ढंग निराला देखा, सबक जिसको याद हुआ उसे छुट्‌टी नहीं मिली।' उन्हें अपनेे पहली पाठशाला में जाकर अपने गुरु महेश भट्‌ट का बायोपिक बनाना चाहिए और राहत इंदौरी से ही इसकी पटकथा भी लिखवानी चाहिए, क्योंकि महेश भट्‌ट नामक रहस्य को कोई शायर ही समझ सकता है। अपने रजनीश दौर में महेश भट्‌ट, विनोद खन्ना और परवीन बॉबी रिश्तों ी त्रिवेणी खेल रहे थे। वर्तमान में विनोद खन्ना बेहद बीमार हैं। अत: इस तरह के बायोपिक बनने की खबर उनके लिए दवा का काम कर सकती है। इस महेश भट्‌ट बायोपिक का नाम उन्हीं की एक फिल्म 'मंजिलें और भी हैं,' हो सकता है।