माँ-बेटी संवाद / लूसियन
दूसरी सदी का यह यूनानी व्यंग्यकार इतना महत्त्वपूर्ण माना जाता है कि इसकी तुलना वॉल्तेयर से की जाती है। यूनानी नगर सभ्यता के एक पक्ष की बेचारगी का यह तिलमिलाता हुआ संवाद-चित्र सिर्फ यथार्थ को ही पेश नहीं करता, लेखकीय संवेदनात्मक संलग्नता का परिचय भी देता है।
क्रोबाइल : कोरीना बेटी, तूने आज पहली रात एक पुरुष के साथ गुजारी है। कौमार्य का भंग होना इतना कष्टप्रद नहीं है, क्यों? इन पैसों से तुझे मैं हार खरीद दूँगी... कोरीना : बढ़िया हार, माँ! जैसा फिलाइनिस के पास है... चमकदार पत्थरों का! क्रोबाइल : बिलकुल वैसा ही ले दूँगी, बेटी। पर मेरी बातें ध्यान से सुन। तुझे पुरुषों के साथ पेश आने की कला आनी चाहिए। तेरे पिता की मृत्यु ने हमें यह सब करने पर मजबूर कर दिया है, बेटी... अब तो तू ही मेरा सहारा है। अब तू इस कला में माहिर बन। अगर इस कला को तूने पा लिया, तो तू राजरानियों की तरह दौलत में लोटेगी। कोरीना : पर कैसे माँ? क्रोबाइल : अरे पगली, पुरुषों को खुश करके अपार धन प्राप्त किया जा सकता है, उनके साथ केलिक्रीड़ा करके। कोरीना : लीरा की तरह... गणिका बनकर... क्रोबाइल : इसमें रोने की क्या बात है, बेटी? गणिका होना कितनी बड़ी बात है! हर पुरुष तुझे चाहने आएगा। तुझे पता है, लीरा कितनी गरीब थी... कोरीना : वह इतनी धनी कैसे हो गयी, माँ? क्रोबाइल : वह समझदार है। तेरी तरह मुँह फाड़कर हँसती नहीं, धीरे-से मुस्कराती है। हर पुरुष के साथ प्रसन्नता से पेश आती है। आयोजनों में वह मद्यपान करके बेहोश नहीं होती। तान कर खाती नहीं। अगर पेट भर खा ले, तो वह शैया पर साथी पुरुष को कभी सन्तुष्ट नहीं कर पाएगी। लीरा बहुत समझदार है, वह हर पुरुष से बात भी नहीं करती। जिस शाम जिसने धन दिया होता है, वह उसी को प्रेम करती है, उसी का ख्याल रखती है। शैया पर भी वह अश्लीलता से पेश नहीं आती। कोरीना : पर माँ... अगर पुरुष सुन्दर न हो, तो... क्रोबाइल : गणिका के लिए हर पुरुष सुन्दर होता है, पगली। सबको सहना पड़ता है, बेटे! पर वे पुरुष सबसे अच्छे होते हैं, जो अच्छे घरों से आते हैं, क्योंकि उनके पास पैसा होता है। अगर तू ये बातें ध्यान में रखेगी, तो सबकी आँखों का तारा बन जाएगी...