माँ मरियम का बाजीगर / अनातोले फ्रांस

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अनातोले फ्रांस (1844-1924) अपने समय का जाना-माना फ्रेंच लेखक था। वह उपन्यासकार, कवि, आलोचक और व्यंग्यकार के रूप में प्रख्यात हुआ, उसे उसकी साहित्यिक सेवाओं के लिए 1921 में नोबेल पुरस्कार मिला।

किंग लुई के जमाने में काम्पेन में बार्नाबस नाम का एक गरीब बाजीगर रहता था, जो शहर-शहर घूमकर हिकमत और दिलेरी के करतब दिखाया करता था।

साफ मौसम के दिनों में वह किसी सार्वजनिक चौक में एक फटी-पुरानी दरी बिछाकर बच्चों और निठल्ले लोगों के एक बड़े समूह को, कुछ मजेदार मन्त्र आदि बुदबुदाकर अपनी तरफ आकर्षित कर लेता था। वह अजीब-अजीब हाव-भाव बनाता और अपनी नाक की नोक पर जस्ते की एक प्लेट खड़ी करके साध लेता। शुरू में भीड़ उसे बेरुखी से देखती, लेकिन जब वह सिर के बल खड़ा होकर धूप में चमकती हुई ताँबे की छह गेंदें हवा में उछालता और उन्हें अपने पैरों से गुपच लेता, या जब अपने लिए पीछे इस हद तक मोड़ लेता कि उसकी गरदन एड़ियों को छूने लगती, वह दोहरा होकर पहिये की शक्ल अख्तियार कर लेता और उस स्थिति में बारह छुरियों से बाजीगरी दिखाता, तो दर्शकों के मुँह से अनायास ही प्रशंसा के शब्द फूट पड़ते और उसकी दरी पर पैसों की वर्षा होने लगती।

लेकिन अपनी योग्यता के बल पर जीवन-यापन करने वाले बहुत-से लोगों की तरह बार्नाबस को भी अपनी रोजी कमाने में बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ता। इसके अलावा वह अपनी इच्छा के अनुसार पर्याप्त काम नहीं कर पाता था, क्योंकि अपनी अद्भुत प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए उसे पेड़ों की तरह सूर्य की उष्णता और दिन की गरमी की जरूरत थी। सरदी के दिनों में उसकी हालत अधमरे, नंगे पेड़ की तरह हो जाती। बर्फ से जमी जमीन बाजीगर को रास नहीं आती। ऐसे बुरे मौसम में वह टिड्डे की तरह भूख और ठण्ड से तड़पता, लेकिन नेकदिल इनसान चुपचाप सबकुछ बरदाश्त करता।

उसने कभी भी धन की उत्पत्ति या मानव-अवस्थाओं की असमानता के बारे में विचार नहीं किया। उसे पूरा विश्वास था कि यदि यह लोक खराब है, तो दूसरा जरूर अच्छा होगा, और यह एतबार उसे बड़ा सहारा देता था। वह ईमानदार आदमी की जिन्दगी जी रहा था और यद्यपि अविवाहित था, तथापि उसने कभी भी पड़ोसी की स्त्री पर नजर नहीं डाली, क्योंकि जैसा कि धर्मग्रन्थों में लिखी सेमसन की कहानी से शिक्षा मिलती है-स्त्री बलवान मनुष्यों की शत्रु होती है। वस्तुतः उसे स्त्री-सुख का परित्याग करने की तुलना में मद्यपान छोड़ते समय ज्यादा कष्ट हुआ होगा। क्योंकि, यद्यपि वह शराबी नहीं था, तथापि सुहावने मौसम में शराब पीना उसे अच्छा लगता था। वह ईश्वर से डरने वाला नेक आदमी था तथा होली वर्जिन की उपासना में उसकी पूरी श्रद्धा थी। गिरजाघर पहुँचने पर वह यीशु की माँ मरियम की प्रतिमा के आगे घुटनों के बल बैठकर अपनी प्रार्थना कहना कभी नहीं भूलता - माँ, जब तक ईश्वर की मरजी से मैं मर न जाऊँ, मेरे जीवन की रक्षा करो और जब मैं मर जाऊँ, तो मुझे स्वर्ग के सुख दिलाना।

एक दिन काफी पानी बरसा। शाम को जब वह बहुत उदास, अपनी करामाती गेंदों को बगल में दबाये, छुरियों को पुरानी दरी में लपेटे, बिना कुछ खाये-पिये, सोने के लिए किसी खलिहान की तलाश में भटक रहा था, उसने एक भिक्षु को बराबर से जाते हुए देखा। उसने भिक्षु को आदरपूर्वक सलाम किया। उनमें बातचीत होने लगी।

“दोस्त, तुम हरे कपड़े क्यों पहने हुए हो? ऐसा तो नहीं कि तुम किसी ‘मिस्टरी’ नाटक में मसखरे की भूमिका करने जा रहे हो?”

“सचमुच नहीं, फादर!” बार्नाबस ने कहा, “मेरा नाम बार्नाबस है और मैं बाजीगरी का काम करता हूँ। यदि रोज मुझे भरपेट खाना मिल जाए, तो यह दुनिया का सबसे अच्छा धन्धा है।”

भिक्षु ने उत्तर देते हुए कहा, “दोस्त बार्नाबस, मठ-सम्बन्धी काम से अच्छा कोई व्यवसाय नहीं है। भिक्षु ईश्वर, वर्जिन और सन्तों का कीर्तिगान करता है।”

बार्नाबस ने कहा, “फादर, मैं स्वीकार करता हूँ कि मैंने अज्ञानी व्यक्ति की तरह बोल दिया था। मेरे और आपके स्तर की कोई तुलना नहीं है। फादर, मेरी इच्छा होती है कि मैं भी आपकी तरह दैनिक प्रार्थना कर सकता, विशेषकर माँ मरियम की उपासना जिनमें मेरी अगाध भक्ति है। मठ का जीवन बिताने के लिए मैं उस कला को शौक से छोड़ दूँगा, जिसके द्वारा सोइस्सांस से लेकर ब्युवेस तक छह सौ से अधिक नगरों और गाँवों में लोग मुझे जानते हैं।”

भिक्षु बाजीगर की सादगी से बहुत प्रभावित हुआ और अपनी सूक्ष्म दृष्टि के बल पर उसने बार्नाबस को उन सुव्यवस्थित व्यक्तियों में एक माना, जिनके विषय में ईश्वर ने कहा है - “संसार में उन्हें शान्ति मिले!” अतः उसने उत्तर दिया, “दोस्त बार्नाबस, मेरे साथ आओ, तुम्हें उस मठ में स्थान मिलेगा, जिसका मैं प्रायर (मठाधीश) हूँ। उस शक्ति ने, जो मिस्र की मेरी को रेगिस्तान की ओर ले गयी थी, मुझे तुम्हारे रास्ते में लाकर खड़ा कर दिया है, जिससे मैं तुम्हें मुक्ति का मार्ग दिखा सकूँ।”

इस प्रकार बार्नाबस भिक्षु बन गया। जिस मठ में उसे प्रवेश मिला, वहाँ हरेक भिक्षु होली वर्जिन की बड़ी शान से उपासना करता और उसके सामने ईश्वर-प्रदत्त समस्त ज्ञान और कौशल बघारता था।

अपने कर्तव्य के अनुसार प्रायर पुस्तकें लिखते थे, जिनमें पाण्डित्य के नियमों के अनुसार मरियम के गुणों का बखान होता था। ब्रदर मॉरिस इन धर्मलेखों को सुलेख में चर्मपत्रों पर लिखते थे और ब्रदर एलेकजान्द्रे उन पृष्ठों को मनोरम चित्रों से सजाते थे, जिनमें स्वर्ग की रानी को सोलोमन के सिंहासन पर बैठा हुआ चित्रित किया जाता था, नीचे अंगरक्षक की तरह चार शेर दिखाये जाते थे। उनके सिर को घेरे प्रभामण्डल के चारों ओर पवित्रात्मा के सात उपहार भय, भक्ति, ज्ञान, शक्ति, विवेक, बुद्धि और प्रज्ञा, सात फाख्ताओं के रूप में उड़ते हुए चित्रित किये जाते थे। उनके साथ ही छह सुनहरी बालों वाली कुमारियाँ रहती थीं-विनय, मनीषा, निवृत्ति, आदर, कौमार्य और आज्ञापालन। उनके चरणों में सफेद चमकने वाली दो छोटी-छोटी नग्न आकृतियाँ दीन याचकों के रूप में खड़ी दिखाई जाती थीं। वे ऐसी आत्माएँ होती थीं, जो अपनी मुक्ति के लिए उनकी सर्वशक्तिमान मध्यस्थता के लिए अभ्यर्थना करती थीं।

ब्रदर मारबोड भी मरियम के प्यारे बच्चों में से एक थे। वह हमेशा पत्थरों की मूतियाँ बनाने में व्यस्त रहते, जिससे उनकी दाढ़ी, भौंहें और बाल धूल से ढककर सफेद हो जाते। उनकी आँखें निरन्तर सूजी हुई और आँसुओं से डबडबायी रहतीं। लेकिन इस वृद्धावस्था में भी वह काफी हृष्ट-पुष्ट और खुशहाल थे, और इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि स्वर्ग की रानी अपने इस बच्चे के अन्तिम दिनों की निगरानी कर रही थी। मारबोड ने उसे एक मंच पर बैठे हुए दिखाया, उसके माथे के चारों ओर प्रभामण्डल के साथ मोतियों का घेरा था। उन्हें उसके लबादे की सिलवटें बनाने में काफी तकलीफ हुई। कभी वह उसे आकर्षक बच्चे की तरह दर्शाते और उनकी प्रतिभा जैसे यह कहती दिखाई देती - ‘ईश्वर, तुम मेरे स्वामी हो।’

मठ में ऐसे कवि भी थे, जो अपार करुणामय वर्जिन मेरी की प्रशस्ति में लैटिन में गद्य की और भजनों की रचना करते थे। उनमें से एक था पिकार्ड, जिसने मरियम के चमत्कारों का चालू भाषा में तुकान्त छन्द में, भाषानुवाद किया।

प्रशंसा की इस तीव्र प्रतियोगिता को देखकर और इतनी सुन्दर कृतियों के सृजन का आभास पाकर बार्नाबस को अपनी अज्ञानता और सरलता पर दुख हुआ। मठ की दीवार के किनारे-किनारे छोटे-से बाग में अकेले टहलते समय एक दिन उसके मुख से निकल पड़ा - “मैं अपने भाइयों की तरह ईश्वर की पावन माँ की उनके योग्य उपासना नहीं कर पाता, जबकि उनके प्रति मैंने अपने हृदय का समस्त प्रेम समर्पित कर दिया है। उफ, मैं बिना किसी कला का, मूर्ख व्यक्ति हूँ। हे देवी! तुम्हारी सेवा के लिए न मेरे पास ज्ञानपूर्ण उपदेश हैं, न नियमों के अनुसार ढंग से तैयार किये गये श्रेष्ठ निबन्ध, न सुन्दर चित्र, न चतुराई से गढ़ी गयी मूर्तियाँ और न लय और छन्दों में बद्ध गीत! हाय, मेरे पास कुछ भी तो नहीं है!” इस प्रकार वह विलाप करके दुखी होता रहा।

एक शाम भिक्षु आपस में बैठे विषय बदलने के लिए कुछ बात कर रहे थे। तब उसने उनमें से एक को एक ऐसे भिक्षु के बारे में बताते हुए सुना, जो ‘आवे मारिया’ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं गा पाता था। उसके अज्ञान के लिए उसकी निन्दा की जाती थी, लेकिन जब वह मर गया, तो ‘मारिया’ के पाँच अक्षरों के सम्मान में उसके मुँह से पाँच गुलाब के फूल निकले। इस प्रकार उसकी पवित्रता प्रकट हो गयी।

यह कहानी सुनकर बार्नाबस फिर वर्जिन की उपकारशीलता के बारे में सचेत हो गया। लेकिन उसे इस सुखद चमत्कार के उदाहरण से सान्त्वना नहीं प्राप्त हो सकी, क्योंकि उसका हृदय उमंग से पूर्ण था और वह स्वर्ग की देवी के वैभव का यशोगान करना चाहता था। इसके लिए उसने कोई तरीका ढूँढ़ना चाहा, पर असफल रहा। प्रतिदिन उसकी निराशा बढ़ती गयी। एक दिन सुबह जब वह उठा, तो बहुत खुश था। वह दौड़ा-दौड़ा चैपेल (उपासना-गृह) गया। वहाँ वह एक घण्टे से भी ज्यादा समय तक अकेला रहा। खाना खाने के बाद वह फिर वहीं लौट आया। उस दिन के बाद से जब भी चैपेल खाली होता, वह अपना अधिक समय वहीं, उन भिक्षुओं के साथ बिताता, जो कलाओं और विज्ञान के अनुसन्धान में लगे हुए थे। न तो वह अब उदास रहता और न ही आहें भरा करता। उसके इस व्यवहार के प्रति अन्य भिक्षुओं की उत्सुकता बढ़ने लगी। उन्होंने सोचा, बार्नाबस अकसर अकेला क्यों चला जाता है, और प्रायर ने, जिनका काम अपने भिक्षुओं की देख-रेख करना था, बार्नाबस को देखने का निश्चय किया। फलस्वरूप, एक दिन जब बार्नाबस चैपेल में अकेला था, प्रायर दो सबसे बूढ़े ब्रदर साथ लेकर पहुँचे, और यह देखने के लिए कि अन्दर क्या हो रहा है, दरवाजे के सींकचों से झाँकने लगे।

उन्होंने देखा, बार्नाबस होली वर्जिन की प्रतिमा के सामने सिर के बल खड़ा हुआ है और ताँबे की छह गेंदों और बारह छुरियों से विचित्र करतब दिखा रहा है। होली वर्जिन के सम्मान में वह सारे कौशल दिखा रहा था, जिनके कारण उसे ख्याति मिली थी। बिना यह समझे कि होली वर्जिन की सेवा में वह अपनी सर्वश्रेष्ठ योग्यता को अर्पित कर रहा है, बूढ़े ब्रदर चीखने लगे कि वह उपासना-गृह की मर्यादा भंग कर रहा है, प्रायर जानते थे कि बार्नाबस बहुत भोला व्यक्ति है, लेकिन उन्हें लगा कि वह अपनी अक्ल गँवा बैठा है। तीनों बार्नाबस को वहाँ से हटाने के लिए आगे बढ़े ही थे कि उन्हें वर्जिन, वेदी से उतरती अपने नीले दुपट्टे से बाजीगर के माथे पर बहता पसीना पोंछती दिखाई दीं।

तब प्रायर ने संगमरमर के फर्श पर अपना सिर नवाते हुए कहा, “हृदय से पवित्र लोग धन्य हैं, क्योंकि उन्हें ईश्वर के दर्शन होंगे।”

फर्श पर झुके हुए दोनों ब्रदरों ने स्वर-में-स्वर मिलाया - “आमीन!”