मांटी के मोह / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
गोविन्द महतों के दूआरी पर लाल-पीरोॅ बत्ती लागलो चकचक गाड़ी। किसिम-किसिम के भेंस मेॅ सोर-सिपाही। अगल-बगल के पड़ोसी रही-रही तांक-झांक करी के मामला समझै केॅ जुगाड़ मेॅ लागलोॅ रहै। मतर बात आरोॅ ओझरैलो जाय। 77 बरस के गोविन्द बाबू एकदम भलमनसोॅ आदमी छै। नौकर चाकर के भरोसें मगन रहै छै। 15-20 बीघा जोत के बपौती जमीन छै। एक मात्र टिटेहीं रंग बेटा विक्रम छैं। सुनै छियै उ विदेश मेॅ बड़का आफिसर छीकै। चार बरस पहिनें विक्रम विदेशी लड़की से बीहा करलकै। वही खुशी मेॅ गोविन्द बाबू खूब धमगज्जर भोज-भात करी केॅ सब केॅ अघाय देलकै। मतर अचानक की भेलै जे आय अचानक गोविन्द महतों के घोर में छापामारी होय रहलोॅ छै।
यहा बीचें गोविन्द के सबसे पुरानोॅ नौकर जीबू गमछी मॅ कुच्छू बाँधने धड़फड़ैलो निकली के गल्ली दीन्नें बढ़लै। कुछ भलमनसोॅ लोग सही-सही जानै लेली जीबू कैॅ रोकै ले चाहलकै। जीबू घड़फड़ में छीलै, मतर एक्के सांस मेॅ सचकुलबा बात बताय देलकै। देखो आपने सनी तेॅ गाँव-टोला के छेकियै, से सब बात जानथैं छीयै कि मालिक के बस एक टा बेटा विक्रम छैं। उहो परदेश मेॅ हाकिम बनी गेलोॅ छै। हुनी वहीं अंग्रेज लड़की से बीहा करलकै। साल लागै पर होतै, छोटे मालिक के राजा बेटा होलोॅ छै। बड़का मालिक अभी तांय पोता देखने तक नय छै। दोनो। बाप-बेटा मेॅ पहिन्हैं से भंजियैने होतै, तभिये नी आय ख्ूाना हाकिम सनी अैलोॅ छै, बड़का मालिक केॅ परदेश लेॅ जाय लेॅ। बड़का मालिक आभियो आनाकानी करै छै मतर लागै छै तैयार होय जैतै। हुनी हमरा बोलाय के कहलकै कि हमरोॅ मोॅन ते जाय के नय करै छैा जीबू। के करतेॅ तोरा नाकती हमरो सेवा। बुलै-लरै में आबेॅ टग्गी जाय छीयै। दिसा-मैदान के ठेकाना नय, कखनी कन्ने होय जैतै। यहाँ आपनोॅ पसन्द से अच्छा-बेजाय खाय छौं। मतर वहा कौनें हमरो एत्ते खियाल करतै। सुनै छियै विदेश मेॅ गप्पो करै के टेम नय छै। सब अपनो मेॅ मगन। हमरा तै लोलै-दोलै के ढेर डोॅर लागै छै जीबू। पुतौहू अंग्रेज। नै हूनी हमरोॅ बात बुझतै नय हम्मैॅ हुनको बुझबै। यहैं देखै छीयै नी कि ढेर पढ़लकी सनी जखनी-तखनी ह्व्वाट, बट, दीश, दैट, सॉरी करतेॅ रहै छै।
आय खुना हुनी कत्ते नी भीतरिया बात बतैलकै, कहलै देख जीबू तोय तेॅ हमरोॅ घरोॅ केॅ जान छीकें। हम्मेॅ तोरा कयिहोॅ नौकर नय बुझलियौ। सब दिन तोय हमरोॅ आरोॅ विक्रम के खियाल राखलैॅ। मतर हमरा तोरा सेॅ भी कहियॉ-कहियोॅ डोॅर लागी जाय छौ।
हम्मेॅ टोकी देलियै! से की मालिक। हम्मेॅ कि चोर-बदमाश छीयै?
नय रे, हौ डोॅर नय। दोसरेॅ डोॅर। अरे जीबू एक दफे हमरा सूल पडॅ़े लागलै। दू-तीन मेॅ देह टूटी गेलै। एक रात चोखै सेॅ गेनरा मेॅ टट्ी करी देलियै। बिहान केॅ चिपचिपोॅ लागलै तेॅ, देखी केॅ देह काठ होय गेलै कि तोंय की सोचमेॅ, यहा डोॅर से कमजोर पड़ला के बादोॅ, झट-पट हम्में गेनरा झपलाय लैलियै। चुपचाप दोसर सतरंगी विछाय के सुसतैलियै। तहिया सेॅ बुढापा मेंॅ आरोॅ की-की नतीजा हुये पारै, सोची केॅ चक्कर आबी जाय छै जीबू।
आबे बतावेॅ दिने-दिन तेॅ उमर गिरलेॅ न जैतैॅ जीबू। हम्मेॅ लाचारे न होलोॅ जैबै रे। जों ऐसने कुच्छू उहाँ होतै, तबेॅ की होतै। जग हसाइयेेेे नी रे! पुतोहू नाक सिकोड़तै। घीन मानतै। पोतबा केॅ कहतै-'उनके पास मत जाओ बाबू! वहाँ गन्दा है, दादा जी गन्दे है'। अंग्रजी में विक्रम सेैॅ कहते 'कहा सेॅ उठा लायें हैं कंकाल को? चिक्कन-चिक्कन खाते हैं और दिन भर...! ओ माई गॉड! ये तो थूंक-खखार से बाथरूम भी गन्दा कर दिये। इतना खाँसतेॅ हें, नींद हराम हो जाता है। देखिये तो मुँह से कितना लार चूता है।'
है सब सुनी केॅ विक्रम कुछ बोलतै तैॅ नय, मतर खिसिआय के रही जैतै। यहा सब बात सुनाय के जीवू गमछी सम्भारनेॅ गल्ली मेॅ घूसी गेलै।
घंटा भर मेॅ सब झमेला खतम होय गेलै। आखिर गोविन्द महतों, विक्रम के दूत साथें उड़लोॅ विदेश चलोॅ गेलै। जीवू, घोॅर-द्वार, जाल-जमाीन, गाय-गोरू के देख-रेख मेॅ लागलोॅ रहलै। तीन-चार दिना तक गाय-गोरू, तनी-मनी खाय कैॅ भोकरतेॅ रहलै, फेरू समय के साथ सब ठीक-ठाक होय गेलै। समाज मेॅ तरह-तरह के नुक्ता-चीनी के साथें यहोॅ बात उठे लागलै कि आबे जीबू माले-माल होय जैतै।
गोविन्द महतों के बथानी के बगल मेॅ एकटा छोटोॅ टा के बारी रहै, जेकरा मेॅ नीम, पपीता, नेमों, तुलसी आरोॅ एक टा अड़होल फूल के एक सिरफा गाछ रहै। एना तेॅ टोला केॅ लोग सनी समय-समय पर दूआरी पर आबै-जाय रहै। मतर महतों जी के गेला के बाद, नय आबै बाला भी घुरफिर करे लागलै। जे आबै जीबू के भूकाबै। जीवू एक्के बात बोलतें-बोलतें आजिज होय गेलै, जेना कि रेलवे पूछ-ताछ के करमचारी।
यहा बीच अलमारी पर राखलोॅ टेलीफोन ट्रिंग-ट्रिंग करी के घनघनाबे लागलै। जीबू धोती समेटनेॅ धड़फड़ैलो फोन उठैलकै। जय गुरू! के अबाज सुनथैं जीबू राम-राम मालिक कही के जबाब देलकै।
जीबू! हम्में दू दिना मेॅ पहुँची गेलियौ। देह-गात ते एकदम थकथकाय गेलौ। मतर नूनूआ के देखी के सब थकान भागी गेलौ। एकदम विक्कू रकम छै नूनूआ रे। दुल्हिन हमरा गोड़ छूबी के प्रणाम करलकै जीबू। अखनी ताय सब ठीके छौ। हों पहिले दिना हम्मेॅ देहाती आदमी, से बड़का फेरा मेॅ परी गेलियौ। कैसनोॅ फेरा मालिक!
अरे होलै कि गप्पे करतें-करतें हमरा दिसा लागी गेलै। बिक्कू सेॅ कहलियै तेॅ उ हमरा बताय के हटी गेलै। हम्मेॅ केबाड़ खोली के ढूकलियै, ते देखै छीयै कि एकदम चकचक गोसांय के पिण्डा नॉकती बनलोॅ। हम्मेॅ तेॅ भाय गोड़ लागी के निकली गेलियै। फेरू विक्रम से कहलियै कि रे बेटा हम्में तेॅ तोरा सेॅ ेॅदिसा फेरै के जग्होॅ पूछलियौ, मतर तोंय हमरा गोसंाय घोॅर मेॅ डुकाय देलेॅ। अरे बाप! कत्ते बड़ोॅ पाप लागतोॅ।
नय बाबू यहाँ ऐसने पैखाना घौॅर होय छै। असल मेॅ गामोॅ मेॅ ते सब लोग लोटा लेॅ केॅ नी खेत-बारी मेॅ चल्लो जाय छै, यहा लेली अैसनोॅ लागल्हौन। चलोॅ आरोॅ सब कुछ बताय दिहौन।
बाबू! यहाँ सबके घरोॅ मेॅ ऐहिनेॅ रहै छै, बल्कि बड़का पैसा बाला केॅ तेॅ आरोॅ बढियाँ।
एह! की बतैयोॅ जीबू तखनी से जी जाँती के उ सब करै छीयै। मनें-मन सोचै भी छीयै 'जोॅ रे सुख' ! यहाँ तेॅ खटिया-चौकी के गप्पे नय रे, जन्ने बैठोॅ उन्हैं धसना नॉकी गद्!
आरोॅ सब हाल-चाल बताबें जीबू। हों! यहाँ तेॅ सब ठीके छै मालिक। गैया सनी दू-तीन दिना नखरा देखैलखौन। हरदम हुन्हैं ताकी कैॅ डकरै रहौन। आबेॅ ठीकेॅ सेॅ सानी-पानी खाय छै। देखोॅ नी अखनी दुआरी पर जुटलोॅ छहून, है-सदानन्द, दीना, सुभूक, बासदेव, कैलू, शत्रुधन सनी, आबी के बैठलोॅ छौन।
बाह! एन्है मिली-जूली के रहोॅ भाय आरोॅ की ...!
अच्छा तेॅ ठीक से देखिहैं! आबै राखै छीयौ फोन। कनियांन कहै छै कि 'पैसा कटता है'।
'पैसा कटता है' ! गोविन्द महतों के आखरी बात केॅ आँख फारी के मनें-मनें दोहरैतेॅ रहलै जीबू।
सदानन्द से नय रहलोॅ गेलै, पूछलकै गोविन्द बाबू ठीक से छै नी जीबू हो! ... हों बोललै तेॅ कि नूनूआ सब भी बुलन्द छै।
शत्रुधन, शंका करी केॅ कहलै तोरा आरनी जे कहो लेकिन महतों जी केॅ मोॅन नय लागै होतै। ... मोॅन कहीनें न लागतै महराज! विदेश में किसिम-किसिम कैॅ ठंढा-गरम...! वहाँ कि पंखा डोलाबै के काम छै। बुटाम दाबोॅ आरोॅ सन-सन हवा। दीना के तर्क रहै।
सुभूक कहलै, हो तबे कि की छौकलोॅ-बघारलोॅ मिलै होतै विदेशी पुतौही के हाँथ सेॅ।
कैलू के नजर मेॅ, असल विक्रम के बेटा के खेलाबै मेॅ मगन रहै होतै।
जीबू केॅ जखनी-तखनी 'पैसा कटता है' बाली बात याद आबै तेॅ एकदम ओझराय जाय। साल सेॅ उप्पर बीती गेलै, मतर गोविन्द बाबू आरो विक्रम के कोय खबर नय अैलै। खेती से अैलो आमदनी केॅ जीबू सैती केॅ राखने गेलै।
यहा रकम तीन साल बीती गेलै। जीबू हारी-पारी के टुटलो-भांगलोॅ अक्षर मेॅ संदेश लिखी केॅ भेजी देलकै।
संदेश भेजला के ठीक महिना दिन बाद दोनो बाप-बेटा (गोविन्द आरोॅ विक्रम) भोरे-भोर दनददैनोॅ जुटी गेलै। दू-तीन टा छोटो' बड़ोॅ गाड़ी। जीबू अचानक है सब देखी के अकचकाय गेलै। झाडू-बुहाड़ू छोड़ी केॅ धोती मेॅ हांथ पोछने गाविन्द के गोड़ लागलकै। गोबिन्द झट से उठाय के गल्ला से लगाय लेलकै। विक्रम भी जीबू के राम-सलाम करलकै। फटाफट कुछ समान उतारी के राखलकै जीबू। नींबू के चाय बनलै। विक्रम सिसोही के पीलकै। गोबिन्द मुह मलीन करी के तनीटा चाय पीलकै। गाड़ी मेॅ अैलोॅ आरो सनी लोग के चाय देलकै जीबू। लगलेॅ बारी से पपीता तोड़ी के छीलकै आरोॅ भर-भर छीपली सबकेॅ देलकै।
गोबिन्द आबै के कारण जीबू के कान मेॅ फुसफुसाय के बतैलकै। जीबू सन्न रही गेलै। इ बीच कत्ते लोग अैलेॅ-गेलै। कागज-पत्तर, नक्शा-तिल्ला देखते-देखैते रहलै बिक्रम। गोबिन्द बाबू एक टक देखै आरोॅ पूछला पर हों-नै मेॅ जबाब दै। तीन चार दिन मेॅ सब बेची बिकाय के विदेश जाय के तैयारी मेॅ जुटी गेलै बिक्रम। गोबिन्द आरोॅ जीबू के भी तैयार होयलेॅ कहलै। जीबू इन्कार करी गेलै। कहलकै हम्में आपनो देश छोड़ी केॅ परदेश के नोन खाय ले नै जैबोॅ बिक्रम। हमरा आपनोॅ बाप-दादा के छोटोॅ टा घोर छोॅ, हम्में ओकरै मेॅ दिल-कुल काटबौ। गोबिन्द भी जाय सेॅ इन्कार करी गेलै। कहलकै एतना दिन जीबू हमरा गोड़ी मेॅ खटलै। सेवा करलकै, खैलकै आरोॅ खिलैनकै। आबे तेॅ हमरोॅ सब कुछ बिकी-बिकाय गेलै। यहा लेली आबेॅ हम्मेॅ जीबू के साथ ओकरेॅ खपड़ैल मेॅ रहबै, जे खिलैतेॅ से खैबै।
तोय जा आपनोॅ काम-धाम बाल बच्चा केॅ खुशहाली लेली सोचोॅ। हम्में यहाँकरें मांटी मेॅ दम तोड़बै। फुर्सत मिलथैन ते मरला पर ज़रूर अैहियोॅ आरोॅ हमरा गंगा मेॅ भसाय दीहोॅ। जा बेटा मगंन रहोॅ।
बिक्रम धरम संकट परी गेलै। सब कुछ बीकी-बिकाय गेलै। बाप दोसरा देहरी पर रहतै आरोॅ बेटा परदेश। सब सोचका पर पानी परी गेलै। सोचने रहै कि गोबिन्द के साथ जीबू रहतै तेॅ बाबू के खियाल राखतै। दोनोॅ केॅ आपनोॅ तरह के गप-शप करै मेॅ मोन लागतै। एक सस्ता आरोॅ विश्वासी नौकर के ज़रूरत भी पूरा होय जैतै। मगर सब गुड़ गोबर होय गेलै। दोनोॅ आपनोॅ जिद्द पर अड़लोॅ रहै। अलबत्ता ते ई कि जीबू गोबिन्द बाबू केॅ आपनोॅ साथ राखै के सहमति दे देलकै। जीबू गौरव महसूस करै रहै कि बड़का मालिक हमरा साथेॅ रहतै। हमरा नीमक के सैरियत चुकाबै के अच्छा मौका मिलतै।
बिक्रम के हवाई जहाज के समय होय गेलै। हारी-पारी के बिक्रम मोटोॅ रकम बंडल गोबिन्द बाबू के हाँथ में थमाबै लागलै। गोबिन्द जीबू के हाँथ में देकेॅ इशारा करलकै। मतर जीबू इन्कार करी गेलै। कहलै हमरोॅ हाँथ मेॅ छूच्छे पैसा छै बिक्रम। जों घटतै ते कहियोॅ माँगी लेबै। अखनी हमरा लजाबोॅ नै। आखिर हम्मूं हिनके दूआरी पर पललोॅ-बाढ़लोॅ छीयै,
तनी-टा हमरा भी उरीन हुअै दा नूनू। बिक्रम हारी-पारी के चौकी पर रुपया के बंडल धरी के गोबिन्द बाबू के प्रणाम-पाती करनेॅ गाड़ी पर बैठी गेलै, आरोॅ सब गाड़ी गर्दा उड़ेने निकली गेलै। गाबिन्द आरोॅ जीबू एक-टक हाँथ हिलतेॅ रहलै। आखिर घोर के मांटी के प्रणाम करी केॅ कानी भरलै दोनोॅ। भारी मन सेॅ जीबू! आपनोॅ मालिक गोबिन्द बाबू के हाँथ पकड़ने आपनोॅ साथ ...!