मां-जाया भाई / गिजुभाई बधेका / काशीनाथ त्रिवेदी

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एक था भाई और एक थी बहन। दोनों को छोटा। छोड़कर मां-बाप मर गये थे। घर में एक दिन का खाना भी नहीं रह गया था, इसलिए भाई बहन दोनों कमाने-खाने के इरादे से एक दूसरे गांव जाने के लिए रवाना हुए।

चलते-चलते रास्ते में उनकों एक बड़ा नगर मिला। नगर के बाहर एक बड़ा-सा बगीचा था। शाम हो चुकी थी, इसलिए भाई बहन दोनों रात को बगीचे में ही रहे। रात ही रात में बहन की आंखें जोरों से दुखने लगीं। वह रोनलगी। इस पर भाई ने कहा, " तुम यहीं बैठना। मैं नगर में जाकर तुम्हारे लिए दवा ले आता हूं। बाद में हम इस बगीचे की मालिन के पास चलेंगे, तो वह तुम्हारी आंख में दवा लगा देगी।"

बहन ने कहा, " अच्छी है।"

भाई तो सुबह जल्दी उठकर नगर की तरफ चला गया। उस नगर का राजा पिछली रात को ही मर गया था। राजा का अपना कोई लड़का था नहीं।


राजा के मंत्रियों के सामने सवाल खड़ा हुआ कि गद्दी पर किसे बैठाया जाय? सब मंत्रियों ने आपस में सलाह की ओर यह तय किया। कि सबेरे-सबेरे नगर के गढ़ का फाटक खुलते ही जो भी कोई सबसे पहले सामने आ जाये, उसी को गद्दी पर बैठा दिया जाय।

सबेरा हुआ। सब गढ़ का दरवाजा खोलने चले। ज्योंही मंत्रियों ने दरवाजा खोला, वह भाई उनको दिखाई दिया। सब उसको राज दरबार में ले आए और उसे राजगद्दी पर बैठा दिया। अचानक राज्य मिल जाने से भाई तो इतना खुश हो गया कि अपनी बहन की बिलकुल भूल गया। वह राज के काम-काज में उलझ गया और मौज से रहने लगा।

उधर बगीचे में बैठी-बैठी बहन भाई की बाट बराबर देखती रही।

दोपहर का समय हुआ,पर भाई वापस नहीं आया। शाम हो गयी, पर भाई कहीं दिखाई नहीं पड़ा। बहन घबराकर रोने लगी। इसी बीच बगीचे की मालिन वहां आई कहने लगी, "पता नहीं तुम्हारा भाई कहां चला गया है। अब तुम मेरे साथ चलो। मेरी अपनी एक भी बेटी नहीं है। तुम मेरी बेटी बन जाओं।"

बाद में बहन रोती-रोती मालिन के घर पहुंची और वहां उसकी बेटी बनकर रहने लगी।

बहन ने भाई की खोज शुरु की। खोजने खाजते उसे पता चला कि भाई तो राजा बनकर राज कर रहा है। वह कुछ बोली नहीं, और सारी बात मन ही मन समझकर चुप रह गई।

इन्हीं दिनों एक बार राजा नगर के बाहर घूमने निकला। उसने बगीचे में मालिन की बेटी को देखा। वह अब सयानी हो चुकी थी, इसलिए राजा के मन में उससे ब्याह कर लेने की इच्छा पैदा हुई। राजा ने मालिन को बुलवाया और कहा, "तुम अपनी इस बेटी का ब्याह मुझसे कर दो।"

मालिन बहुत खुश हुई। उसने राजा से कहा, "बहुत अच्छी बात है।मैं अपनी बेटी का ब्याह आपके साथ कर दूंगी।"

मालिन की बेटी तो जानती थी कि राजा उसका अपना सगा भाई है। उसने राजा के साथ ब्याह करने से इनकार कर दिया । पर मालिन ने उस बेचारी की बात मानी नहीं । उसने कहा, :तुमको राजा के साथ ब्याह करना ही होगा।"


बाद में ब्याह का दिन तय हुआ और जब मालिन ने बहन को ब्याह के मण्डप में बैठा दिया, तो राजा की तरफ देखकर बहन कहने लगी:

मण्डप में मत बैठो, ऐ मेरे मां जाए भाई,

हम एक ही मां के बच्चे हैं, मेरे मां जाए भाई।

हम ठहरे थे। बगीचेक में, मेरे मां जाए भाई,

म गए थे दवा लेने मेरे मां जाए भाई।

राजा ने यह सब सुना पर वह कुछ समझा नहीं। आगे जब राजा मण्डप में आकर बैठा, तो बहन फिर बोली:

मण्डप में मत बैठो, ऐ मेरे मां जाए भाई,

हम एक ही मा के बच्चे हैं, मेरे मां जाए भाई।

हम ठहरे थे। बगीचे में, मेरे मां जाए भाई,

तुम गए थे दवा लेने, मेरे मां जाए भाई।

राजा फिर भी कुछ नहीं समझा। बहन ने तीसरी बार फिर अपनी बात दोहराई:


राजा सोचने लगा, ‘भला यह ऐसा क्यों कह रही है?’इसी बीच बहन चौथी बार फिर वही कहा।

अब राजा ने सोचा, ‘कहीं यह मेरी बहन तो नहीं हैं?’ ध्यान से देखा तो उसने बहन को पहचान लिया। भाई शर्मिन्दा हो गया। उसके मन में भारी पछतावा हुआ और वह अचानक खिड़की से कूदकर मर गया। भाई के पीछे। बहन भी खिड़की से कूदी और मर गई। ]