मातम / संजय पुरोहित
न्यूज टीवी चैनल के स्टूडियो के एक कमरे में कुछ लोग निराश-निढाल बैठे थे। उनकी इतने दिनों की मेहनत बेकार चली गई थी। राष्ट्रीय स्तर के एक बड़े नेता दुर्घटना में घायल हुए थे। बचने की संभावना बहुत कम थी। टीवी चैनल की इस टीम ने उनकी संभावित मृत्यु की स्थिति में प्रसारित किये जाने वाले कार्यक्रमों की तैयारी आरम्भ कर दी थी। नेताजी के जन्म से लेकर उनके राष्ट्रीय राजनीति में उत्कर्ष और उतार चढ़ाव पर टिप्पणी के लिए चित्र व अभिलेख जुटा लिए गए थे। नेताजी के करीबी लोगों को उन पर टिप्पणी करने के लिए अनुबंधित किया गया। नेताजी के जन्म स्थल पर भी कुछ रिपोर्टरों को एक्सक्ल्यूसिव कवरेज के लिए भेजा गया था। कार्यक्रम के लिए विज्ञापन जुटाने की तैयारी भी लगभग फाइनल थी। सब मेहनत बेकार गई। नेताजी के इलाज के लिए बुलाये गये विदेशी डॉक्टरों ने दो ही दिन बाद स्पष्ट कर दिया कि नेताजी के दो महत्वपूर्ण ऑपरेशन कर दिये गये हैं। उनकी जान को अब कोई खतरा नहीं है। नेताजी की जान बच जाने का समाचार सुनकर उनके परिजन और कार्यकर्ताओं में राहत और खुशी थी, वहीं टीवी न्यूज चैनल के इस स्टूडियो में चहुँओर मातम छाया हुआ था।